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अध्याय 16
जैव-विविधता एवं संरक्षण
आप भूआकृतिक प्रक्रियाओं विशेषकर अपक्षय और विभिन्न जलवायवी क्षेत्रों में अपक्षय आदि के विषय में पहलेही पढ़ चुके हैं। यदि आपको स्मरण नहीं है, तो संक्षिप्त सार के लिए अध्याय 6 में चित्र 6.2 देखें। यह अपक्षयप्रावार (Weathering mantle) वनस्पति विविधता का आधार है, अतः इसे जैव-विविधता का आधार मानागया है। सौर ऊर्जा और जल ही अपक्षय में विविधता और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न जैव-विविधता कामुख्य कारण है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वे क्षेत्र, जहाँ ऊर्जा व जल की उपलब्धता अधिक है, वहीं जैव-विविधता भी व्यापक स्तर पर है।
प्रजातियों के दृष्टिकोण से और अकेले जीवधारी के दृष्टिकोण से जैव-विविधता सतत् विकास का तंत्र है। पृथ्वी पर किसी प्रजाति की औसत आयु 10 से 40 लाख वर्ष होने का अनुमान है। एेसा भी माना जाता है कि लगभग 99 प्रतिशत प्रजातियाँ, जो कभी पृथ्वी पर रहती थी, आज लुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जैव-विविधता एक जैसी नहीं है। जैव-विविधता उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में अधिक होती है। जैसे-जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ बढ़ते हैं, प्रजातियों की विविधता तो कम होती जाती है, लेकिन जीवधारियों की संख्या अधिक होती जाती है।
जैव विविधता दो शब्दों के मेल से बना है, (Bio) ‘बायो’ का अर्थ है- जीव तथा डाइवर्सिटी (Diversity) का अर्थ है- विविधता। साधारण शब्दों में किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या औरउनकी विविधता को जैव-विविधता कहते हैं। इसका संबंध पौधों के प्रकार, प्राणियों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं सेहै। उनकी आनुवंशिकी और उनके द्वारा निर्मित पारितंत्र से है। यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवधारियों कीपरिवर्तनशीलता, एक ही प्रजाति तथा विभिन्न प्रजातियों में परिवर्तनशीलता तथा विभिन्न पारितंत्रों मेंविविधता से संबंधित है। जैव-विविधता सजीव संपदा है। यह विकास के लाखों वर्षों के इतिहास का परिणाम है।
जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है- (i) आनुवांशिक जैव-विविधता (Genetic diversity), (ii) प्रजातीय जैव-विविधता (Species diversity) तथा (iii) पारितंत्रीय जैव-विविधता (Ecosystem diversity)।
आनुवांशिक जैव-विविधता (Genetic biodiversity)
जीवन निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवंशिक जैव-विविधता है। समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं। मानव आनुवांशिक रूप से ‘होमोसेपियन’ (Homosapiens) प्रजाति से संबंधित है, जिसमें कद, रंग और अलग दिखावट जैसे शारीरिकलक्षणों में काफी भिन्नता है। इसका कारण आनुवांशिक विविधता है। विभिन्न प्रजातियों के विकास व फलने-फूलने के लिए आनुवांशिक विविधता अत्यधिक अनिवार्य है।
प्रजातीय विविधता (Species diversity)
यह प्रजातियों की अनेकरूपता को बताती है। यह किसी निर्धारित क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या से संबंधित है। प्रजातियों की विविधता, उनकी समृद्धि, प्रकार तथा बहुलता से आँकी जा सकती है। कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की संख्या अधिक होती है और कुछ में कम। जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के ‘हॉट-स्पॉट’ (Hot spots) कहते हैं। (चित्र 16.1)
इंदिरा गाँधी नेशनल पार्क में (अन्नामलाई पश्चिमी घाट) घास भूमि एवं उष्ण कटिबंधीय शोला वन - पारितंत्रीय विविधता का एक उदाहरण
पारितंत्रीय विविधता (Ecosystem diversity)
आपने पिछले अध्याय में पारितंत्रों के प्रकारों में व्यापक भिन्नता और प्रत्येक प्रकार के पारितंत्रों में होने वालेपारितंत्रीय प्रक्रियाएँ तथा आवास स्थानों की भिन्नता ही पारितंत्रीय विविधता बनाते हैं। पारितंत्रीयविविधता का परिसीमन करना मुश्किल और जटिल है, क्योंकि समुदायों (प्रजातियों का समूह) और पारितंत्र की सीमाएँ निश्चित नहीं हैं।
जैव-विविधता का महत्त्व (Importance of biodiversity)
जैव-विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है और इसी प्रकार, मानव समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ ा योगदान दिया है। जैव-विविधता की पारिस्थितिक (Ecological), आर्थिक (Economic) और वैज्ञानिक (Scientific) भूूमिकाएँ प्रमुख है।
जैव-विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका (Ecological role of biodiversity)
पारितंत्र में विभिन्न प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितंत्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती है और न ही बनी रह सकती है। अर्थात्, प्रत्येक जीव अपनी ज़रूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। क्या आप बता सकते हैं कि मानव, पारितंत्रों के बने रहने में क्या योगदान देता है? जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं, कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं और पारितंत्र में जल व पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त प्रजातियाँ वायुमंडलीय गैस को स्थिर करती हैं और जलवायु को नियंत्रित करने मेंसहायक होती हैं। ये पारितंत्री क्रियाएँ मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं। पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। प्रजातियों की क्षति से तंत्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवंशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितंत्र में पर्यावरण के बदलावों को सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।
जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका (Ecological role of biodiversity)
सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव-विविधता एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जैव-विविधता का एकमहत्वपूर्ण भाग ‘फसलों की विविधता’ (Crop diversity) है, जिसे कृषि जैव-विविधता भी कहा जाता है। जैव-विविधता को संसाधनों के उन भंडारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ,औषधियाँ और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में है। जैव संसाधनों की ये परिकल्पना जैव-विविधता के विनाश के लिए भी उत्तरदायी है। साथ ही यह संसाधनों के विभाजन और बँटवारे को लेकर उत्पन्न नये विवादों का भी जनक है। खाद्य फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और दवा संसाधन आदि कुछ एेसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद हैं, जो मानव को जैव-विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।
जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका (Scientific role of biodiversity)
जैव-विविधता इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत दे सकती है कि जीवन का आरंभ कैसे हुआ और यह भविष्य में कैसे विकसित होगा। जीवन कैसे चलता है और पारितंत्र, जिसमें हम भी एक प्रजाति हैं, उसे बनाए रखने में प्रत्येक प्रजाति की क्या भूमिका है, इन्हें हम जैव-विविधता से समझ सकते हैं। हम सभी को यह तथ्य समझना चाहिए कि हम स्वयं जिएँ और दूसरी प्रजातियों को भी जीने दें।
यह समझना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हमारे साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार है। अतः कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है। जैव-विविधता का स्तर अन्य जीवित प्रजातियों के साथ हमारे संबंध का एक अच्छा पैमाना है। वास्तव में, जैव-विविधता की अवधारणा कई मानव संस्कृतियों का अभिन्न अंग है।
जैव-विविधता का ह्रास (Loss of biodiversity)
पिछले कुछ दशकों से, जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अधिक होने लगा है। इससेसंसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेज़ी से कमी हुई है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र,जो विश्व के कुल क्षेत्र का मात्र एक चौथाई भाग है, यहाँ संसार की तीन चौथाई जनसंख्या रहती है। इसविशाल जनसंख्या की ज़रूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआहै। उष्णकटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50 प्रतिशत प्रजातियाँ पाई जाती हैं और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमंडल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।
प्राकृतिक आपदाएँ- जैसे- भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी उद्गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वालीप्राणिजात और वनस्पति जात को क्षति पहुँचाते हैं और परिणामस्वरूप संबंधित प्रभावित प्रदेशों की जैव-विविधता में बदलाव आता है। कीटनाशक और अन्य प्रदूषक, जैसे- हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) और विषैली भारी धातु (Toxic heavy metals), संवेदनशील और कमज़ोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं। वेप्रजातियाँ, जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियाँ’ (Exotic species) कहा जाता है। एेसे कई उदाहरण हैं, जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से पारितंत्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ। पिछले कुछ दशकों केदौरान, कुछ जंतुओं, जैसे- बाघ, चीता, हाथी, गैंडा, मगरमच्छ, मिंक और पक्षियों का, उनके सींग, सूँड़ व खालों के लिए निदर्यतापूर्वक अवैध शिकार किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गई हैं।
रेड पांडा - एक संकटापन्न प्रजाति
हमबोशिया डेकरेंस बेड- दक्षिण पश्चिमी घाट (भारत) की एक दुर्लभ प्रजाति
प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण की अंतर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संकटापन्न पौधों व जीवों कीप्रजातियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है।
संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered species)
इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर दकंज़रवेशन अॉफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज़ (IUCN) विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियों के बारे में (Redlist) रेड लिस्ट के नाम से सूचना प्रकाशित करता है।
सुभेद्य प्रजातियाँ (Vulnerable species)
इसमें वे प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं, किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगीकारक यदि जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्यधिक कम होनेके कारण, इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है।
दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare species)
संसार में इन प्रजातियों की संख्या बहुत कम है। ये प्रजातियाँ कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं या बड़ े क्षेत्र में विरल रूप में बिखरी हुई हैं।
जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of biodiversity)
मानव के अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है। जीवन का हर रूप एक दूसरे पर इतना निर्भर है कि किसी एक प्रजाति पर संकट आने से दूसरों में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। यदि पौधों और प्राणियों की प्रजातियाँ संकटापन्न होती हैं, तो इससे पर्यावरण में गिरावट उत्पन्न होती है और अन्ततोगत्वा मनुष्य का अपना अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।
चित्र 16.1ः कुछ पारिस्थितिक हॉट-स्पॉट (Ecological 'hotspots' in the world)
आज यह अति अनिवार्य है कि मानव को पर्यावरण-मैत्री संबंधी पद्धतियों के प्रति जागरूक किया जाए और विकास की एेसी व्यावहारिक गतिविधियाँ अपनाई जाएँ, जो दूसरे जीवों के साथ समन्वित हों और सतत् पोषणीय (Sustainable) हों। इस तथ्य के प्रति भी जागरूकता बढ़ रही है कि संरक्षण तभी संभव और दीर्घकालिक होगा, जब स्थानीय समुदायों व प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होगी। इसके लिए स्थानीय स्तर पर संस्थागत संरचनाओं का विकास आवश्यक है। केवल प्रजातियों का संरक्षण और आवास स्थान की सुरक्षा ही अहम समस्या नहीं है, बल्कि संरक्षण की प्रक्रिया को जारी रखना भी उतना ही ज़रूरी है।
सन् 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो (Rio-de-Janeiro) में हुए जैव-विविधता के सम्मेलन (Earth summit)में लिए गए संकल्पों का भारत अन्य 155 देशों सहित हस्ताक्षरी है। विश्व संरक्षण कार्य योजना में जैव-विविधता संरक्षण के निम्न तरीके सुझाए गए हैंः
(i) संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए।
(ii) प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने के लिए उचित योजनाएँ व प्रबंधन अपेक्षित हैं।
(iii) खाद्यान्नों की किस्में, चारे संबंधी पौधों की किस्में, इमारती लकड़ ी के पेड़ , पशुधन, जंतु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।
(iv) प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को चिह्नित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
(v) प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हों।
(vi) वन्य जीवों व पौधों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, नियमों के अनुरूप हो।
भारत सरकार ने प्राकृतिक सीमाओं के भीतर विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने औरविस्तार करने के लिए, वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 (Wild life protection act, 1972), पारित किया है, जिसके अंतर्गत नेशनल पार्क (National parks), पशुविहार (Sanctuaries) स्थापित किये गए तथा जीवमंडलआरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) घोषित किये गए। इन संरक्षित क्षेत्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन ‘भारतः भौतिक पर्यावरण’ (एन.सी.ई.आर.टी., 2006) पुस्तक में किया गया है।
वह देश, जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में स्थित हैं, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है।उन्हें ‘महा विविधता केंद्र’ (Mega diversity centres) कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और उनके नाम हैं ः मैक्सिको, कोलंबिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राज़ील, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक अॉफ कांगो, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया और आस्ट्रेलिया। इन देशों में समृद्ध महा-विविधता के केंद्र स्थित हैं। एेसे क्षेत्र,जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव-विविधता हॉट-स्पॉट (Hot spots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है (चित्र 16.1)। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए हैं। पादप महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये ही किसी पारितंत्र की प्राथमिक उत्पादकता को निर्धारित करते हैं। यह भी देखा गया है कि ज़्यादातर हॉट-स्पॉट में रहने वाले प्रजातिभोजन, जलाने के लिए लकड़ ी, कृषि भूमि और इमारती लकड़ ी आदि के लिए वहाँ पाई जाने वाली समृद्ध पारितंत्रों पर ही निर्भर है। उदाहरण के लिए मेडागास्कर में पाए जाने वाले कुल पौधों व जीवों में से 85 प्रतिशत पौधे व जीव संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं पाए जाते हैं। अन्य हॉट स्पॉट, जो समृद्ध देशों में पाए जातेहैं, वहाँ कुछ अन्य प्रकार की समस्याएँ हैं। हवाई द्वीप जहाँ विशेष प्रकार की पादप व जंतु प्रजातियाँ मिलती हैं, वह विदेशज़ प्रजातियों के आगमन और भूमि विकास के कारण असुरक्षित हैं।
अभ्यास
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्वपूर्ण है
(क) जंतु (ख) पौधे
(ग) पौधे और प्राणी (घ) सभी जीवधारी
(ii) निम्नलिखित में से असुरक्षित प्रजातियाँ कौन सी हैं
(क) जो दूसरों को असुरक्षा दें (ख) बाघ व शेर
(ग) जिनकी संख्या अत्यधिक हों (घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
(iii) नेशनल पार्क (National parks) और पशुविहार (Sanctuaries) निम्न में से किस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैंः
(क) मनोरंजन (ख) पालतू जीवों के लिए
(ग) शिकार के लिए (घ) संरक्षण के लिए
(iv) जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं :
(क) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र (ख) शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(ग) ध्रुवीय क्षेत्र (घ) महासागरीय क्षेत्र
(v) निम्न में से किस देश में पृथ्वी सम्मेलन (Earth summit) हुआ थाः
(क) यू.के. (U.K.) (ख) ब्राजील
(ग) मैक्सिको (घ) चीन
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :
(i) जैव-विविधता क्या हैं?
(ii) जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
(iii) हॉट-स्पॉट (Hot spots) से आप क्या समझते हैं?
(iv) मानव जाति के लिए जंतुओं के महत्व का वर्णन संक्षेप में करें।
(v) विदेशज प्रजातियों (Exotic species) से आप क्या समझते हैं?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
(i) प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
(ii) जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
परियोजना कार्य
जिस राज्य में आपका स्कूल है, वहाँ के नेशनल पार्क (National parks) पशुविहार (Sanctuaries) और जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) के नाम लिखें और उन्हें भारत के मानचित्र पर रेखांकित करें।