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मौसम शब्द किसी विशेष स्थान तथा समय पर मौसम संबंधित तत्त्वों की वायुमंडलीय दशाओं को निर्दिष्ट करता है। मौसम तत्त्वों के अंतर्गत तापमान, वाुदाब, पवन, आर्दता तथा मेघमयता आदि को शामिल किया गया है। प्रतिदिन मौसम विज्ञान विभाग द्वारा विश्व के विभिन्न मौसम केंद्रों से प्राप्त प्रेक्षणों के आधार पर मौसम मानचित्र बनाए जाते हैं। भारत में, नई दिल्ली स्थित भारतीय मौसम विभाग द्वारा मौसम संबंधी जानकारियों को एकत्रित एवं प्रकाशित किया जाता है, जो कि मौसम पूर्वानुमानों के लिए भी उत्तरदायी होते हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग :
भारतीय मौसम विभाग (आई.एम.डी.) की स्थापना 1875 में की गई थी, जिसका मुख्यालय कलकत्ता में था। अब इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है।
मौसम संबंधी पूर्वानुमान की मदद से खराब मौसम होने की संभावना होने पर पहले से ही सुरक्षा उपाय करने में सहायता मिलती है। कुछ दिन पहले मौसम का पूर्वानुमान किसानों, पोत के नाविक दल, पायलट, मछुआरों, सैनिकों आदि के लिए बहुत-ही उपयोगी होता है।
शब्दावली
मौसम : निर्दिष्ट स्थान एवं समय पर वायुमंडलीय दाब, तापमान आर्द्रता, वर्षण, मेघमयता तथा पवन की दृष्टि से वायुमंडल की दशा। ये कारक मौसम तत्त्व कहे जाते हैं।
मौसम पूर्वानुमान : किसी निश्चित क्षेत्र में आगामी 12 से 48 घंटों के दौरान मौसम की दशाओं के विषय में तर्कसंगत निश्चितता का पूर्वानुमान।
मौसम प्रेक्षण
विश्व स्तर पर मौसम संबंधी प्रेक्षणों को तीन स्तरों पर अभिलिखित किया जाता है, ये हैं ः धरातलीय वेधशालाएँ, उपरितन वायु वेधशालाएँ तथा अंतरिक्ष स्थित प्रेक्षण प्लेटप्.ाηॉर्म। ये प्रेक्षण संयुक्त राष्ट्र की एक विशेषीकृत एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संस्थान (डब्ल्यू.एम.ओ.) द्वारा संचालित होते हैं।
धरातलीय वेधशालाएँ
एक आदर्श धरातलीय वेधशाला में अनेक मौसम तत्त्वों, जैसे- तापमान (अधिकतम एवं न्यूनतम), वायुदाब, आर्द्रता, मेघ, पवन एवं वर्षा को मापने तथा अभिलेखन करने वाले यंत्र होते हैं। अन्य विशिष्ट वेधशालाओं में विकिरण, ओज़ोन, वायुमंडलीय सूक्ष्म गैस, प्रदूषण तथा वायुमंडलीय विद्युत जैसे तत्त्वों का भी अभिलेखन किया जाता है। ये प्रेक्षण संपूर्ण विश्व में, दिन के एक निश्चित समय पर लिए जाते हैं, जिसे विश्व मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा तय किया जाता है। इसमें प्रयुक्त यंत्र अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होते हैं, ताकि विश्व स्तर पर प्रेक्षणों में समानता रखी जा सके।
भारत में, मौसम वेधशालाओं को उनके यंत्रों तथा प्रतिदिन लिए गए प्रेक्षणों की संख्या के आधार पर सामान्यतः पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है। उच्चतम वर्ग-I है। वर्ग-I की वेधशालाओं में जिन विशिष्ट यंत्रों की सुविधा है, वे निम्नलिखित हैं-
- अधिकतम एवं न्यूनतम तापमापी
- पवनवेगमापी तथा वात-दिग्दर्शी
- शुष्क एवं आर्द्र बल्ब तापमापी
- वर्षामापी
- वायुदाबमापी
पूरे विश्व में इन वेधशालाओं में अवलोकन सामान्यतः आठ प्रेक्षण घंटों 00, 03, 06, 09, 12, 15, 18, 21 (ग्रिनिच माध्य समय) पर लिए जाते हैं। लेकिन व्यावहारिक कारणों से कुछ वेधशालाएँ केवल दिन के समय सीमित संख्या में दैनिक ऊपरी वायु प्रेक्षण ही लेती हैं।
अंतरिक्ष आधारित प्रेक्षण
मौसम उपग्रह, विभिन्न मौसम संबंधी तत्त्वों के धरातलीय प्रेक्षण के साथ-साथ वायुमंडल की ऊपरी परतों का भी व्यापक तथा विस्तृत प्रेक्षण करते हैं। तुल्यकाली उपग्रह से मौसम से संबंधित अंतरिक्ष-आधारित सूचनाएँ प्राप्त होती हैं (अध्याय 7 देखें)। उदाहरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (INSAT) तापमान, मेघावरण, पवन एवं अन्य मौसम परिघटनाओं के मूल्यवान प्रेक्षण उपलब्ध कराता है।
मौसम यंत्र
विभिन्न मौसमी परिघटनाओं को मापने के लिए अलग-अलग यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। कुछ सामान्य, लेकिन महत्त्वपूर्ण मौसम संबंधी यंत्रों की सूची निम्नलिखित है-
चित्र 8.1 : अधिकतम तापमापी
तापमापी
वायु के तापमान को मापने के लिए तापमापी का उपयोग किया जाता है। अधिकतर तापमापी संकीर्ण बंद शीशे की नली के रूप में होते हैं, जिनके एक सिरे पर प्रसारित बल्ब होता है। नली के निचले भाग तथा बल्ब में तरल पदार्थ, जैसे- अल्कोहल या पारा भरा होता है। दूसरे सिरे को बंद करने से पहले नली में उपस्थित वायु को गर्म करके निकाल दिया जाता है। तापमापी का बल्ब, जो वायु के संपर्क में रहता है, तात्कालिक अवस्था के अनुसार गर्म या ठंडा हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप बल्ब का पारा ऊपर की ओर उठता है या नीचे की ओर गिरता है। शीशे की नली पर एक मापनी बनी होती है, जहाँ से पाठ्यांक लिए जाते हैं।
तापमापी में प्रयुक्त दो सामान्य मापनी सेंटीग्रेड तथा फ़ारेनहाइट हैं। सेंटीग्रेड तापमापी पर पिघलते हुए हिम का तापमान 0°C तथा उबलते हुए पानी का तापमान 100°C होता है तथा इन दोनों के बीच के अंतराल को 100 बराबर भागों में विभाजित किया जाता है। फ़ारेनहाइट तापमापी पर पानी का हिमांक एवं क्वथनांक क्रमश 32°F एवं 212°F होता है।
चित्र 8.2 : न्यूनतम तापमापी
वायु के तापमान को मापने के लिए उच्च तापमापी एवं निम्न तापमापी का उपयोग किया जाता है, जबकि वायु की आर्द्रता को मापने के लिए शुष्क बल्ब एवं आर्द्र बल्ब तापमापी का उपयोग किया जाता है। स्टीवेंसन स्क्रीन में इन तापमापियों के एक सेट को रखा जाता है (बॉक्स 8.1)।
बॉक्स 8.1- स्टीवेंसन स्क्रीन
स्टीवेंसन स्क्रीन का उपयोग तापमापियों को वर्षण एवं सूर्य की सीधी किरणों से बचाने के लिए किया जाता है। वायु इसके चारों ओर सुगमता से घूम सकती है। यह लकड़ी का बना होता है, जिसके किनारे झरोखेदार होते हैं, जिससे वायु का सुगमता से प्रवेश हो सके। विकिरण को परावर्तित करने के लिए इसे श्वेत रंग से रंगा जाता है। इसके चार पैर होते हैं तथा सतह से इसकी ऊँचाई 3 फीट, 6 इंच होती है। कंपन से बचाने के लिए इसके पैरों को काफी दृढ़ बनाकर इन्हें भूमि में गाड़ दिया जाता है। सामने वाले फलक को तल में लगाकर उससे एक दरवाजे का काम लिया जाता है, जिससे तापमापी का पठन एवं अनुरक्षण किया जाता है। स्टीवेंसन स्क्रीन का दरवाजा उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण की ओर होता है, क्योंकि सूर्य की सीधी किरणें पारे को भी परावर्तित करती हैं। स्टीवेंसन स्क्रीन का उद्देश्य एक समान तापमान वाला बाड़ा बनाना है, जो बाहर की वायु का तापमान दर्शाता है।
अधिकतम तापमापी को दिन के उच्चतम तापमान को अंकित करने के लिए बनाया जाता है। जैसे ही तापमान बढ़ता है, नली का पारा ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, किंतु जब पारा ठंडा होता है, तब यह नली में संकीर्णन के कारण नीचे की ओर नहीं जा पाता है। पारे को नीचे लाने के लिए इसे फिर से सैट किया जाता है। न्यूनतम तापमापी के द्वारा दिन के न्यूनतम तापमान का प्रेक्षण किया जाता है। इस तापमापी में पारे के स्थान पर अल्कोहल का उपयोग किया जाता है। जब तापमान घटता है, तो नली में रखी धातु की पिन नीचे चली जाती है तथा न्यूनतम तापमान पर जाकर रूक जाती है (चित्र 8.1 अधिकतम तथा चित्र 8.2 न्यूनतम तापमापी)।
चित्र 8.3 : आर्द्र एवं शुष्क बल्ब तापमापी
शुष्क बल्ब का पाठ्यांक वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा से प्रभावित नहीं होता है, लेकिन आर्द्र बल्ब के पाठ्यांक में भिन्नता आती है, क्योंकि वाष्पीकरण की दर वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा पर निर्भर करती है। वायु में जितनी अधिक आर्द्रता होगी, वाष्पीकरण की दर उतनी ही कम होगी, फलस्वरूप, शुष्क एवं आर्द्र बल्बों के बीच के पाठ्यांकों का अंतर कम होगा। दूसरी तरफ, जब वायु शुष्क होती है, तब आर्द्र बल्ब की सतह से वाष्पीकरण तेजी से होगा, जो इसके तापमान को कम कर देगा तथा दोनों के पाठ्यांकों का अंतर अधिक होगा। इसलिए आर्द्र एवं शुष्क बल्ब के पाठ्यांक का अंतर आर्द्रता के सापेक्ष वायुमंडल की अवस्था को निर्धारित करता है। अंतर जितना ही अधिक होगा, वायु उतनी ही अधिक शुष्क होगी।
वायुदाबमापी
हमारे चारों ओर उपस्थित वायु में भार होता है तथा यह पृथ्वी की सतह पर दबाव डालती है। सामान्य अवस्था में समुद्र तल पर वायु का दाब 1.03 किलो प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। वायु की सतत् गति के कारण तापमान एवं वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा में परिवर्तन आता है। वायु का भार समय तथा स्थान के साथ लगातार बदलता रहता है।
वायुमंडलीय दाब को मापने वाले यंत्र को वायुदाबमापी कहते हैं। सबसे अधिक उपयोग में लाए जाने वाले वायुदाबमापी, पारद वायुदाबमापी, निर्द्रव वायुदाबमापी तथा वायुदाब लेखी यंत्र हैं। इसे मापने की इकाई मिलीबार होती है। पारद वायुदाबमापी एक यथार्थ यंत्र है तथा इसका उपयोग मानक के रूप में किया जाता है। इसमें किसी भी स्थान के वायुमंडलीय दाब को प्रतिलोमित काँच की नली में पारे के स्तंभ के भार के अनुसार संतुलित रखा जाता है। एक साधारण प्रयोग द्वारा पारद वायुदाबमापी के सिद्धांत को समझा जा सकता है (चित्र 8.4)। लगभग 1 मीटर लंबी, काँच की मोटी एकरूपी एक नली लें तथा उसमें पारद भर दें। अँगुली से नली के मुँह को बंद कर दें और इसे उलट दें तथा इसके खुले सिरे को पारद वाले पात्र में इस प्रकार डुबोएँ कि नली में वायु प्रवेश न कर सके। फिर अंगुली को हटा लें।
चित्र 8.4 : पारद वायुदाबमापी
पारद नली से निकलकर पात्र में आएगा और शेष पारद नली में पात्र के पारद की सतह से ऊपर एक निश्चित ऊँचाई पर ठहर जाएगा। एेसा इसलिए होता है कि नली में पारद का स्तंभ, जो पात्र में उपस्थित पारद की सतह से ऊपर रहता है, का भार एक अनिश्चित ऊँचाई की वायु के स्तंभ के भार से संतुलित हो जाता है। यह अनिश्चित ऊँचाई का वायु स्तंभ तरल सतह की एक समान अनुप्रस्थ काट पर दाब डालता है। अतः नली में पारद की ऊँचाई द्वारा दाब का बोध होता है।
निर्द्रव वायुदाबमापी ग्रीक शब्द ‘एेनेरास’ (aneros: a –'not', neros- 'moisture') से लिया गया है। यह सुसंहत एवं सुवाह्य यंत्र होता है। इसमें वलिमय धातु से निर्मित एक कोष्ठ होता है, जो पतले मिश्र धातु का बना होता है। इसे अच्छी तरह से बंद कर लगभग वायुरहित कर दिया जाता है। इसके अंदर एक लचीला ढक्कन होता है, जो दाब के परिवर्तनों से प्रभावित होता है (चित्र 8.5)।
चित्र 8.5 : निर्द्रव वायुदाबमापी
जैसे ही दाब बढ़ता है, ढक्कन अंदर की ओर दब जाता है तथा ढक्कन से जुड़े अंशांकित डायल पर स्थित सूई दक्षिणावर्त घूमने लगती है तथा उच्च पाठ्यांक दर्शाती है। जब दाब घटता है, तब ढक्कन बाहर की ओर चला जाता है तथा सूई वामावर्त दिशा में घूमती है, जो कि कम दाब को दर्शाती है।
वायुदाब लेखी यंत्र भी निर्द्रव वायुदाबमापी यंत्र की भाँति कार्य करता है। विस्थापन की अधिकता के लिए कई वायु रहित बक्सों को एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है। लीवरों के एक तंत्र से यह गति बढ़ जाती है, जिससे इसका अभिलेखन एक घूर्णी ढोल से संलग्न कागज पर स्वलेखी कलम से होता है। वायुदाबलेखी यंत्र के पाठ्यांक सदैव शुद्ध नहीं होते हैं, इसलिए पारा वायुदाबमापी यंत्र के साथ तुलना करके मानक बनाए जाते हैं।
पवन वेगमापी
पवन वेगमापी एक एेसा यंत्र है, जिसका उपयोग वायु की दिशा निर्धारित करने में किया जाता है। पवन वेग मापी एक हल्की एवं घूमती हुई तश्तरी है, जिसके एक सिरे पर तीर तथा दूसरे सिरे पर दो धातु की तश्तरियाँ समान कोण पर जुड़ी होती हैं। यह घूमती हुई तश्तरी लोहे की छड़ के साथ इस प्रकार जुड़ी होती है कि वह क्षैतिज तल पर स्वतंत्र रूप से घूम सके। यहाँ तक कि वायु में थोड़ी-सी गति होने पर भी यह घूमने लगती है। तीर की दिशा हमेशा वायु के बहाव की दिशा को दर्शाता है (चित्र 8.6)।
वर्षामापी
वर्षा की मात्रा को वर्षामापी यंत्र द्वारा मापा जाता है। वर्षामापी यंत्र में धातु का सिलिंडर होता है, जिस पर एक गोलाकार कीप लगा होता है। कीप का व्यास सामान्यत : 20 से.मी. होता है। वर्षा के पानी को इसमें इकट्ठा किया जाता है तथा मापक ग्लास के द्वारा इसे मापा जाता है। सामान्यत: वर्षा को मिलीमीटर या सेंटीमीटर की इकाई में मापा जाता है। बर्फ को भी इसी प्रकार द्रव के रूप में परिवर्तित करके मापा जाता है (चित्र 8.7)।
सारणी 8.1 : मौसम के तत्त्वों को मापने के यंत्र
क्रमांक | तत्त्व | यंत्र | इकाई |
1 | तापमान | तापमापी | °C/°F |
2 | वायुमंडलीय दाब | दाबमापी | मिलीबार |
3 | वायु (दिशा) | पवन वेगमापी | प्रधान दिशाएँ |
4 | वायु (वेग) | वात दिग्दर्शी | कि.मी./घंटा |
5 | वर्षा | वर्षामापी | मी.मी./से.मी. |
मौसम मानचित्र एवं चार्ट
मौसम मानचित्र : मौसम मानचित्र पृथ्वी या उसके किसी भाग के मौसमी परिघटनाओं का समतल धरातल पर प्रदर्शन है। एक निश्चित दिन में, ये विभिन्न मौसम तत्त्वों, जैसे-तापमान, वर्षा, सूर्य का प्रकाश, मेघमयता, वायु की दिशा एवं वेग इत्यादि की अवस्थाओं के बारे में बताता है। सन् 1688 में एडमंड हिलेरी ने 30° उत्तर एवं दक्षिण अक्षांशों के लिए एक मानचित्र का प्रकाशन किया, जिसमें व्यापारिक पवनों तथा प्रचलित मॉनसून पवनों की दिशाओं को प्रदर्शित किया गया था। निश्चित घंटों पर लिए गए प्रेक्षणों को कोड के द्वारा पूर्वानुमान केंद्रों पर प्रेषित किया जाता है। केंद्रीय कार्यालय, इन सूचनाओं का अभिलेख रखता है, जिसके आधार पर मौसम मानचित्र बनाए जाते हैं। ऊपरी वायु प्रेक्षणों को पहाड़ी स्टेशनों, वायुयानों, पायलट-गुब्बारों आदि के द्वारा प्राप्त करके अलग से अंकित किया जाता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना के बाद से ही मौसम मानचित्रों एवं चार्टों को नियमित रूप से तैयार किया जाता है।
मौसम वेधशालाएँ आँकड़ों को पुणे स्थित केंद्रीय वेधशाला को दिन में दो बार भेजती हैं। भारतीय समुद्रों में चलने वाले जहाजों पर भी आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। अंटार्कटिका में मौसम वेधशाला की स्थापना, अंतर्राष्ट्रीय, भारतीय महासागरीय अभियान चलाने तथा रॉकेट एवं मौसम उपग्रहों के छोड़े जाने से मौसम पूर्वानुमान एवं प्रेक्षण के क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई है।
मौसम चार्ट : विभिन्न मौसम वेधशालाओं से प्राप्त आँकड़े पर्याप्त एवं विस्तृत होते हैं। अतः ये एक चार्ट पर बिना कोडिंग के नहीं दिखाए जा सकते। कोडिंग के द्वारा कम स्थान में सूचनाएँ देकर चार्ट की उपयोगिता बढ़ जाती है। इन्हें सिनाप्टिक मौसम चार्ट कहते हैं तथा जो कोड प्रयोग में लाए जाते हैं, उसे मौसम विज्ञान प्रतीक कहते हैं। मौसम पूर्वानुमान के लिए मौसम चार्ट प्राथमिक यंत्र हैं। ये विभिन्न वायुराशियों, वायुदाब यंत्रों, वाताग्रों तथा वर्षण के क्षेत्रों की अवस्थिति जानने एवं पहचानने में सहयोग करते हैं।
मौसम प्रतीक
सभी वेधशालाओं से प्राप्त सूचनाओं को विश्व मौसम विज्ञान संगठन एवं राष्ट्रीय मौसम ब्यूरो द्वारा मानक बनाए गए मौसम प्रतीकों का प्रयोग करते हुए मानचित्रों पर अंकित किया जाता है (चित्र 8.8 एवं 8.9)।
जलवायु आँकड़ों का मानचित्रीकरण
जलवायु के बहुत-से आँकड़े रेखा प्रतीकों के द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। उनमें सबसे प्रचलित समदूरिक रेखाएँ हैं। इन समदूरिक रेखाओं को मानचित्रों पर समान रेखाओं के रूप में दर्शाया जाता है। ये रेखाएँ एेसे स्थानों को मिलाती हैं, जिनके तापमान, वर्षा, वायुदाब, सूर्य प्रकाश, मेघ आदि के औसत मान एक हों। इस प्रकार की कुछ रेखाओं एवं उनके उपयोग को नीचे दिया गया है ः
समदाब रेखाएँ : समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ
समताप रेखाएँ : समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ
समवर्षा रेखाएँ : दिए गए समय में समान औसत वार्षिक वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ
आइसोहेल : उन स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ, जहाँ प्रतिदिन माध्य सूर्य प्रकाश की अवधि समान हो
सममेघ रेखाएँ : समान औसत मेघावरण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ
मौसम मानचित्र का निर्वचन
ऊपर दी गई सूचनाओं के आधार पर हम एक मौसम मानचित्र का विश्लेषण कर सकते हैं तथा देश के विभिन्न भागों में विद्यमान मौसमी दशाओं के सामान्य प्रतिरूप को समझ सकते हैं। चित्र 8.10 में भारत में मई के महीने में प्रचलित सामान्य मौसमी दशाओं को दिखाया गया है। यहाँ वायु दाब की सामान्य वृद्धि उत्तर एवं उत्तर-पूर्व की ओर है। दो अल्प वायुदाब केंद्र को पहचाना जा सकता है, एक राजस्थान में तथा दूसरा बंगाल की खाड़ी के ऊपर। बंगाल की खाड़ी पर निम्न दाब केंद्र विकसित होता है, जिसे संकेंद्रीय समदाब रेखाओं के द्वारा दर्शाया जाता है, जहाँ निम्नतम वायुदाब 996 मिलीबार होता है। भारत के दक्षिणी भाग के ऊपर आकाश अधिकांशतः बादलों से घिरा होता है। दूसरी ओर भारत के मध्य भाग में आकाश सामान्यतः साफ रहता है। पूर्वी तट के दक्षिणी भाग में पवनों की दिशा अधिकांशतः स्थल से समुद्र की ओर वामावर्त दिशा में चलती है। चित्र 8.13 का अध्ययन कीजिए एवं पता लगाइए कि जुलाई में तापमान एवं वायुदाब की स्थिति क्या है।
चित्र 8.11 : जनवरी महीने का भारतीय मौसम मानचित्र
चित्र 8.13 : भारत-जुलाई में औसत वायुदाब एवं तापमान
चित्र 8.11 एवं 8.12 में जनवरी माह में सर्दियों के समय भारत की सामान्य मौसमी दशाओं को दर्शाया गया है। यहाँ पर वायुदाब की सामान्य वृद्धि दक्षिण से उत्तर की ओर है। भारत के पूर्वी भाग में उच्च वायुदाब क्षेत्र विकसित होने के साथ लगभग सम्पूर्ण देश में आसमान साफ है। 1.018 मिलीबार की सर्वोच्च समदाब रेखा राजस्थान से गुजरती है।
अभ्यास
1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें ः
(i) प्रत्येक दिन के लिए भारत के मौसम मानचित्र का निर्माण कौन-सा विभाग करता है?
(क) विश्व मौसम संगठन
(ख) भारतीय मौसम विभाग
(ग) भारतीय सर्वेक्षण विभाग
(घ) इनमें से कोई नहीं
(ii) उच्च एवं निम्न तापमापी में कौन-से दो द्रवों को प्रयोग किया जाता है?
(क) पारा एवं जल
(ख) जल एवं अल्कोहल
(ग) पारा एवं अल्कोहल
(घ) इनमें से कोई नहीं
(iii) समान दाब वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखाओं को क्या कहा जाता है?
(क) समदाब रेखाएँ
(ख) समवर्षा रेखाएँ
(ग) समताप रेखाएँ
(घ) आइसोहेल रेखाएँ
(iv) मौसम पूर्वानुमान का प्राथमिक यंत्र है-
(क) तापमापी
(ख) दाबमापी
(ग) मानचित्र
(घ) मौसम चार्ट
(v) अगर वायु में आर्द्रता अधिक है, तब आर्द्र एवं शुष्क बल्ब के बीच पाठ्यांक का अंतर होगा-
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) समान
(घ) इनमें से कोई नहीं
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में देंः
(i) मौसम के मूल तत्त्व क्या हैं?
(ii) मौसम चार्ट क्या है?
(iii) वर्ग 1 के वेधशालाओं में सामान्यतः कौन-सा यंत्र मौसम परिघटनाओं को मापने के लिए होता है?
(iv) समताप रेखाएँ क्या हैं?
(v) निम्नलिखित को मौसम मानचित्र पर चिह्नित करने के लिए किस प्रकार के मौसम प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है?
(क) धुँध
(ख) सूर्य का प्रकाश
(ग) तड़ित
(घ) मेघों से ढका आकाश
3. निम्न प्रश्न का उत्तर लगभग 125 शब्दों में देंः
(i) मौसम मानचित्रों एवं चार्टों को किस प्रकार तैयार किया जाता है तथा ये हमारे लिए कैसे उपयोगी हैं?
मानचित्र पठन
चित्र 8.12 एवं 8.13 को पढ़ें एवं निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें ः
(i) इन मानचित्रों में किन ऋतुओं को दर्शाया गया है?
(ii) चित्र 8.12 में अधिकतम समदाब रेखा का मान क्या है तथा यह देश के किस भाग से गुजर रही है?
(iii) चित्र 8.13 में सबसे अधिक एवं सबसे न्यून समदाब रेखाओं का मान क्या है तथा ये कहाँ स्थित हैं?
(iv) दोनों मानचित्रों में तापमान वितरण का प्रतिरूप क्या है?
(v) चित्र 8.12 में किस भाग का अधिकतम औसत तापमान तथा न्यूनतम औसत तापमान आप देखते हैं?
(vi) दोनों मानचित्रों में आप तापमान वितरण एवं वायुदाब के बीच क्या संबंध देखते हैं?