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विषय
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मूल निवासियों का विस्थापन


इस अध्याय में अमरीका और अॉस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के इतिहास के कुछ पहलू पेश किए गए हैं। विषय 8 में हमने दक्षिण अमरीका में स्पेनी और पुर्तगाली औपनिवेशीकरण के इतिहास की झाँकी देखी थी। 18वीं सदी से दक्षिणी अमरीका के और भी हिस्सों में, तथा मध्य, उत्तरी अमरीका, दक्षिणी अफ़्रीका, अॉस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड के इलाकों में यूरोप से आए आप्रवासी बसने लगे। इस प्रक्रिया ने वहाँ के बहुत से मूल निवासियों को दूसरे इलाकों में जाने पर मजबूर किया। यूरोपीय लोगों की एेसी बस्तियों को ‘कॉलोनी’ (उपनिवेश) कहा जाता था। जब यूरोप से आए इन उपनिवेशों के बाशिंदे यूरोपीय ‘मातृदेश’ से स्वतंत्र हो गए, तो उन्हें ‘राज्य’ या देश का दर्ज़ा हासिल हो गया।

19वीं और 20वीं सदी में एशियाई देशों के लोग भी इनमें से कुछ देशों में आ बसे। आज ये यूरोपीय और एशियाई लोग इन देशों में बहुसंख्यक हैं, और वहाँ के मूल निवासियों की संख्या कम रह गई है। वे शहरों में मुश्किल से ही नज़र आते हैं, और लोग भूल गए हैं कि कभी देश का अधिकतर हिस्सा उन्हीं के कब्ज़े में था, और यह भी कि कई नदियों, शहरों इत्यादि के नाम ‘देसी’ नामों से बने हैं [(मसलन, संयुक्त राज्य अमरीका में ओहियो (Ohio), मिसीसिपी (Mississippi) और सिएटल (Seattle) व कनाडा में सस्कातचेवान (Saskatchewan), अॉस्ट्रेलिया में वॉलान्गॉन्ग (Wollongong) और परामत्ता (Parramatta)]।

 बीसवीं सदी के मध्य तक अमरीका और अॉस्ट्रेलिया की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में यह बताया जाता था कि किस तरह यूरोपवासियों ने उत्तरी और दक्षिणी अमरीका तथा अॉस्ट्रेलिया की ‘खोज’ की। उनमें यहाँ के मूल बाशिंदों का शायद ही कभी ज़िक्र होता था, सिवाय यह बताने के कि यूरोपीय लोगों के प्रति उनका रवैया शत्रुतापूर्ण था। पर 1840 के दशक से ही अमरीका में मानवविज्ञानियों ने उन पर अध्ययन आरंभ कर दिया था। बहुत बाद में, 1960 के दशक से, इन मूल निवासियों को अपने इतिहास को लिखने या बयान करने (मौखिक इतिहास) के लिए प्रेरित किया गया।

आज इन मूल निवासियों द्वारा लिखे गए इतिहास और कथाकृतियों को पढ़ना संभव है। इन देशों में जानेवाले लोग वहाँ के संग्रहालयों में ‘देसी कला’ की दीर्घाएँ तथा आदिवासी जीवन-शैली को दिखलानेवाले विशेष संग्रहालय भी देख सकते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका में नया अमरीकी इंडियन राष्ट्रीय संग्रहालय खुद अमरीकी इंडियनों की देख-रेख में बना है।


यूरोपीय साम्राज्यवाद

स्पेन और पुर्तगाल के अमरीकी साम्राज्य (देखिए, विषय 8) का सत्रहवीं सदी के बाद विस्तार नहीं हुआ। तब तक प्रुांस, हॉलैंड और इंग्लैंड जैसे दूसरे देशों ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार करना और अमरीका, अफ़्रीका तथा एशिया में अपने उपनिवेश बसाना शुरू कर दिया; आयरलैंड भी कमोबेश इंग्लैंड का उपनिवेश ही था, क्योंकि वहाँ बसे हुए ज़़्यादातर भूस्वामी अंग्रेज़ ही थे।
अठारहवीं सदी से यह बहुत साफ़-साफ़ दिखने लगा कि यद्यपि मुनाफ़े की संभावना ने ही लोगों को यहाँ उपनिवेश बसाने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन जो नियंत्रण स्थापित किया गया, उसकी ‘प्रकृति’ में महत्त्वपूर्ण विविधताएँ थीं।
दक्षिण एशिया में व्यापारिक कंपनियों ने अपने को राजनीतिक सत्ता का रूप दिया, स्थानीय शासकों को हराया और अपने इलाके का विस्तार किया। उन्होंने पुरानी सुविकसित प्रशासकीय व्यवस्था को जारी रखा और भूस्वामियों से कर वसूलते रहे। बाद में उन्होंने व्यापार को सुगम बनाने के लिए रेलवे का निर्माण किया, खदानें खुदवाईं और बड़े-बड़े बाग़ान स्थापित किए।
दक्षिणी अफ़्रीका को छोड़ कर शेष पूरे अफ़्रीका में यूरोपीय लोग सर्वत्र समुद्र तटों पर ही व्यापार करते रहे। 19वीं सदी के आख़िरी दौर में ही वे अंदरूनी इलाकों में जाने का साहस कर सके। इसके बाद कुछ यूरोपीय मुल्कों के बीच अपने उपनिवेशों के रूप में अफ़्रीका का बँटवारा करने का समझौता हुआ।
‘सेटलर’ (Settler/आबादकार) शब्द दक्षिण अफ़्रीका में डच के लिए, आयरलैंड, न्यूज़ीलैंड और अॉस्ट्रेलिया में ब्रिटिश के लिए और अमरीका में यूरोपीय लोगों के लिए इस्तेमाल होता है। इन उपनिवेशों की राजभाषा अंग्रेज़ी थी (कनाडा को छोड़ कर, जहाँ प्रुांसीसी भी एक राजभाषा है)

‘नयी दुनिया’ के देशों को यूरोपवासियों द्वारा दिए गए नाम

 ‘अमरीका’ पहली बार अमेरिगो वेसपुकी (1451-1512) का यात्रा-वृत्तांत छपने के बाद प्रयुक्त

‘कनाडा’ कनाटा से निकला शब्द (1535 में खोजी ज़ाक कार्टियर को मिली जानकारी के मुताबिक, ह्यूरों-इरोक्यूइस की भाषा में कनाटा का मतलब था, ‘गाँव’)

‘अॉस्ट्रेलिया’ महान दक्षिणी महासागर में स्थित भूमि के लिए सोलहवीं सदी में प्रयुक्त नाम (लातिनी में ‘दक्षिण’ को अॉस्ट्रल कहते हैं।)

‘न्यूज़ीलैंड’ हॉलैंड के तासमान द्वारा दिया गया नाम, जिसने सबसे पहले 1642 में इन टापुओं को देखा था (डच भाषा में ‘समुद्र’ को ज़ी कहते हैं।)

जियोग्रॉफ़िकल डिक्शनरी (पृ. 805-822) में अमरीका और अॉस्ट्रेलिया के एेसे सौ से ज़्यादा स्थान-नामों की सूची दी गई है, जो ‘न्यू’ से शुरू होते हैं। 


उत्तरी अमरीका

उत्तरी अमरीका का महाद्वीप उत्तरध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्क रेखा तक और प्रशांत महासागर से अटलांटिक महासागर तक फैला है। पथरीले पहाड़ों की शृंखला के पश्चिम में अरिज़ोना और नेवाडा की मरुभूमि है। थोड़ा और पश्चिम में सिएरा नेवाडा पर्वत हैं। पूरब में ग्रेट (विस्तृत) मैदानी इलाके, ग्रेट (विस्तृत) झीलें, मिसीसिपी और ओहियो और अप्पालाचियाँ पर्वतों की घाटियाँ हैं। दक्षिण दिशा में मेक्सिको है। कनाडा का 40 फीसदी इलाका जंगलों से ढँका है। कई क्षेत्रों में तेल, गैस और खनिज संसाधन पाए जाते हैं, जिनके चलते संयुक्त राज्य अमरीका और कनाडा में ढेरों बड़े उद्योग हैं। आजकल कनाडा में गेहूँ, मकई और फल बड़े पैमाने पर पैदा किए जाते हैं और मत्स्य-उद्योग वहाँ का एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है।
खनन, उद्योग और बड़े पैमाने की खेती का विकास पिछले 200 सालों में ही यूरोप, अफ़्रीका और चीन के आप्रवासियों के हाथों हुआ है। लेकिन यूरोपवासियों की जानकारी में आने से पहले हज़ारों सालों से उत्तरी अमरीका में लोग रह रहे थे।


मूल निवासी

उत्तरी अमरीका के सबसे पहले बाशिंदे 30,000 साल पहले बेरिंग स्ट्रेट्स के आरपार फैले भूमि-सेतु के रास्ते एशिया से आए, और 10,000 साल पहले आखिरी हिमयुग के दौरान वे और दक्षिण की तरफ़ बढ़े। अमरीका में मिलनेवाली सबसे पुरानी मानव कृति- एक तीर की नोक - 11,000 साल पुरानी है। तकरीबन 5000 साल पहले जब जलवायु में ज़्यादा स्थिरता आई, तब आबादी बढ़नी शुरू हुई।

‘‘अमरीका की पूर्वसंध्या (यानी जब यूरोपीय लोग आए और इस महाद्वीप को उन्होंने अमरीका नाम दिया) से ठीक पहले तक विविधता हर जगह पसरी हुई थी। लोग सौ से भी ज़्यादा ज़बानें बोलते थे। वे शिकार, मछली पकड़ना, संग्रहण, बागवानी और खेती में से जो-जो मुमकिन हो, वह सब आज़माते हुए अपनी जीविका कमाते थे। मिट्टी की गुणवत्ता कैसी है और उसके इस्तेमाल तथा देख-भाल के लिए कितने प्रयास की दरकार है, इसी पर जीने के तरीके का उनका चुनाव निर्भर करता था। सांस्कृतिक और सामाजिक पूर्वग्रह के आधार पर कुछ दूसरी चीज़ें तय होती थीं। मछली, अनाज, बाग़ के पेड़-पौधे, मांस - इनके अधिशेष हमारे यहाँ ताकतवर, श्रेणीबद्ध समाजों की रचना में मददगार बने, लेकिन वहाँ नहीं। कुछ संस्कृतियाँ सहस्राब्दियों तक कायम रहीं। . . .’’

– विलियम मैकलिश, अमरीका से पहले का दिन


‘नेटिव’ (मूल बाशिंदा) का मतलब होता है एेसा व्यक्ति, जो अपने मौजूदा निवास-स्थान में ही पैदा हुआ था। बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों तक यह पद यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों के बाशिंदों के लिए इस्तेमाल होता था।

ये लोग नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बना कर रहते थे। वे मछली और मांस खाते थे, और सब्ज़ियाँ तथा मकई उगाते थे। वे अक़्सर मांस की तलाश में लंबी यात्राओं पर जाया करते थे। मुख्य रूप से उन्हें ‘बाइसन’ यानी उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते थे। (यह सत्रहवीं सदी से आसान हो गया, जब इन मूल निवासियों ने घुड़सवारी शुरू कर दी। वे घोड़े स्पेनी आबादकारों से ख़रीदते थे।) लेकिन वे उतने ही जानवर मारते, जितने की उन्हें भोजन के लिए ज़रूरत होती थी।

उन्होंने बड़े पैमाने पर खेती करने की कोई कोशिश नहीं की और चूंकि वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पादन नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने केंद्रीय तथा दक्षिणी अमरीका की तरह राजशाही और साम्राज्य का विकास नहीं किया। इलाके को लेकर कबीलों के बीच झगड़े की कुछ मिसालें मिलती हैं, पर कुल मिलाकर ज़मीन पर नियंत्रण कोई मुद्दा नहीं था। वे ज़मीन पर अपनी ‘मिल्कियत’ की कोई ज़रूरत महसूस किए बग़ैर उससे मिलनेवाले भोजन और आश्रय से संतुष्ट थे। उनकी परंपरा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी, औपचारिक संबंध और दोस्तियाँ कायम करना तथा उपहारों का आदान-प्रदान करना। चीज़ें उन्हें ख़रीदने की बजाय उपहार के तौर पर हासिल होती थीं।

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रंगीन सीपियों को आपस में सिलकर बनायी जाने वाली वेमपुम बेल्ट; किसी समझौते के बाद स्थानीय कबीलों के बीच इसका आदान-प्रदान 
होता था।

उत्तरी अमरीका में अनेक भाषाएँ बोली जाती थीं, हालांकि वे लिखी नहीं जाती थीं। उनका विश्वास था कि समय की गति चक्रीय है, और हर कबीले के पास अपनी उत्पत्ति और इतिहास के बारे में ब्यौरे थे जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते आ रहे थे। वे कुशल कारीगर थे और खूबसूरत कपड़े बुनते थे। वे धरती को पढ़ सकते थे - जलवायु और विभिन्न भू-दृश्यों को वे उसी तरह समझ सकते थे, जैसे पढ़े-लिखे लोग लिखी हुई चीज़ें पढ़ते हैं।


यूरोपियनों से मुकाबला


‘नयी दुनिया’ के मूल बाशिंदों के लिए अंग्रेज़ी में प्रयुक्त पद

aborigine – native people of Australia (लैटिन में एेब का मतलब है, ‘से’ और ओरिजिन का, ‘शुरुआत’)

Aboriginal – एक विशेषण, जिसे संज्ञा की तरह इस्तेमाल करने की ग़लती अक़्सर की जाती है

American Indian/Amerind/Amerindian-उत्तरी और दक्षिणी अमरीका तथा कैरेबियन के मूल निवासी

First Nations peoples – मूल निवासियों के संगठित समूह, जिन्हेें कनाडाई सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी (1876 के इंडियन्स एक्ट में ‘बैंड्स’ पद का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन 1980 के दशक से ‘नेशन्स’ शब्द प्रयुक्त होने लगा)

indigenous people – एेसे लोग, जो किसी जगह में हमेशा से रहते आए हैं

native American – उत्तरी और दक्षिणी अमरीका के देसी लोग (यह पद अब बहुप्रचलित है)

‘Red Indian’ – गेहुंए वर्ण के लोग, जिनके निवास-स्थान को कोलंबस ने ग़लती से इंडिया समझ लिया था

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विस्कान्सिन के विनेबागो कबीले की एक महिला। 1860 के दशक में इस कबीले के लोग नेबरास्का स्थानांतरित कर दिए गए।

मूल निवासियों के नाम एेसी चीज़ों को दिये गये जिनका इन क़बीलों से कोई संबंध नहीं था।
डकोटा (हवाईजहाज़)
चिरोकी (जीप)
पोंटिआक (कार)
मोहॉक (बाल-कटाई)!

"प्रस्तर की पट्टी पर यह खुदा था कि *होपी यह मानते थे कि उनके पास वापस आने वाले पहले भाई और बहन धरती के पार से कछुओं के रूप में आएँगे। वे इनसान होंगे, पर कछुओं के रूप में आएँगे। इसलिए जब समय आया, तो होपी लोग धरती के उस पार से आनेवाले उन कछुओं का स्वागत करने के लिए एक खास गाँव में इकट्ठा हुए। वे सुबह-सुबह उठ गए और उन्होंने सूर्योदय देखा। उन्होंने मरुभूमि के पार निगाह दौड़ाई और उन्हें बख़्तरबंद स्पेनी कॉन्क्विस्टाडोर दिखलाई पड़े, जो धरती के उस छोर से आते कछुओं की तरह लग रहे थे। सो, उन्होंने समझा, ये वही हैं जिनका इंतज़ार था। इसलिए वे स्पेनी इनसान के पास गए और हाथ मिलाने की उम्मीद में अपना हाथ बढ़ाया, लेकिन स्पेनी ने उनके हाथ में कोई सस्ती-सी चीज़ पकड़ा दी। और इससे पूरे उत्तरी अमरीका में यह बात फैल गई कि बहुत कठिन समय आनेवाला है, कि शायद कुछ भाइयों और बहनों ने सभी चीज़ों की पवित्रता को भुला दिया है और इसकी वजह से धरती पर सभी इनसान काफी कष्ट पानेवाले हैं।"

-ली ब्राउन की एक वार्ता से, 1986

*होपी अब कैलीफोर्निया के निकट रहने वाले आदिवासी हैं।

सत्रहवीं सदी में दो महीने के कठिन समुद्री अभियान के बाद उत्तरी अमरीका के उत्तरी तट पर पहुँचे यूरोपीय व्यापारियों को यह देख कर सुकून मिला कि वहाँ के स्थानीय लोगों का व्यवहार दोस्ताना और गर्मजोशी-भरा है। दक्षिण अमरीका गए स्पेनियों के विपरीत, जो वहाँ की सोने की प्रचुरता से अभिभूत हो गए थे, ये लोग मछली और रोंएदार खाल के व्यापार के लिए आए थे, जिसमें उन्हें शिकार-कुशल देसी लोगों की ओर से अपेक्षित मदद मिली।

थोड़ा और दक्षिण में, मिसीसिपी के किनारे-किनारे, प्रुांसीसियों ने पाया कि देसी लोग नियमित रूप से जमा होते थे। इसका मक़सद था, एेसे हस्तशिल्पों का आदान-प्रदान करना जो किसी खास कबीले में ही बनते थे, या एेेसे खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान जो अन्य इलाक़ों में उपलब्ध नहीं थे। स्थानीय उत्पादों के बदले में यूरोपीय लोग वहाँ के बाशिंदों को कंबल, लोहे के बर्तन (जिसे वे कभी-कभी अपने मिट्टी के पात्रों की जगह इस्तेमाल करते थे), बंदूकें (जो जानवरों को मारने में तीर-धुनष की अच्छी पूरक साबित हुईं) और शराब देते थे। वहाँ के बाशिंदों का पहले शराब से परिचय नहीं था। वे जल्दी ही इसकी आदत के शिकार हो गए, जो कि यूरोपीय लोगों के लिए अच्छा साबित हुआ, क्योंकि इसने उन्हें व्यापार के लिए अपनी शर्तें थोपने में सक्षम बनाया। (यूरोपीय लोगों ने उन मूल निवासियों से तंबाकू की आदत ग्रहण की।) 

10.3


पारस्परिक धारणाएँ


अठारहवीं सदी में पश्चिमी यूरोप के लोग ‘सभ्य’ मनुष्य की पहचान साक्षरता, संगठित धर्म और शहरीपन के आधार पर ही करते थे। उन्हें अमरीका के मूल निवासी ‘असभ्य’ प्रतीत हुए। फ्रांसीसी दर्शनशास्त्री ज्यां जैक रूसो जैसे कुछ यूरोपीयों के लिए एेेसे लोग तारीफ़ के काबिल थे, क्योंकि वे ‘सभ्यता’ की विकृतियों से अछूते थे। इसके लिए एक प्रचलित पद था, ‘उदात्त उत्तम जंगली’ (The noble savage)। एक दूसरा नज़रिया अंग्रेज़ी के कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की कुछ पंक्तियों में मिलता है। वर्ड्सवर्थ और रूसो में से कोई भी किसी अमरीकी मूल निवासी से नहीं मिला था, लेकिन वर्ड्सवर्थ ने उनका वर्णन करते हुए कहा कि वे ‘‘जंगलों में’’ रहते हैं, ‘‘जहाँ कल्पनाशक्ति के पास उन्हें भावसंपन्न करने, उन्हें ऊँचा उठाने या परिष्कृत करने के अवसर बहुत कम हैं’’, जिसका मतलब यह कि प्रकृति के निकट रहनेवालों की कल्पनाशक्ति और भावना अत्यंत सीमित होती है !

यह दिलचस्प है कि एक दूसरे लेखक, वाशिंगटन इरविंग ने, जो वर्ड्सवर्थ से खासे छोटे थे और जो मूल निवासियों से सचमुच मिले थे, उनका वर्णन बिलकुल भिन्न रूप में किया। ‘‘जिन इंडियन्स की असली ज़िंदगी को देखने का मुझे मौका मिला, वे कविताओं में वर्णित अपने रूप से काफ़ी भिन्न हैं। यह सच है कि गोरे लोगों, जिनकी नीयत पर वे भरोसा नहीं करते और जिनकी भाषा भी नहीं समझते, की संगत में रहने पर वे काफ़ी कम बोलते हैं। पर परिस्थितियाँ वैसी ही हों, तो गोरा आदमी भी उन्हीं की तरह अल्पभाषी हो जाता है। ये इंडियन्स जब अपनों के बीच होते हैं, तो वे नकल उतारने के उस्ताद साबित होते हैं और गोरों की नकल उतार कर अपना खूब मनोरंजन करते हैं... वही गोरे, जो समझते हैं कि इंडियन्स को वे अपनी भव्यता और गरिमा के प्रति गहरे आदरभाव से ओत-प्रोत कर चुके हैं। . . . गोरे लोग ग़रीब इंडियन्स के साथ एेसे पेश आते हैं (मैं इसका साक्षी हूँ), मानो उनमें और जानवरों में बहुत कम फ़र्क हो।’’


संयुक्त राज्य अमरीका के तीसरे प्रेसिडेंट और वर्ड्सवर्थ के समकालीन, थॉमस जैफ़र्सन ने मूल निवासियों के बारे में एेेसे शब्द कहे हैं, जिन पर आज के समय में कड़ा विरोध ज़ाहिर किया जाता ः ‘‘यह अभागी नस्ल, जिसे सभ्य बनाने के लिए हमने इतनी ज़हमत उठाई . . . अपने उन्मूलन का औचित्य सिद्ध करती है।’’


*मूल निवासियों की कई लोककथाओं में यूरोपीय जनों का मज़ाक उड़ाया गया था और उनका वर्णन लालची और धूर्त के रूप में किया गया था, लेकिन चूंकि वे काल्पनिक कथाओं की शक्ल में थीं, इसलिए यूरोपीय लोग उनके सही संदर्भ को काफ़ी बाद में जाकर समझ पाए।

मूल बाशिंदे यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीज़ों का आदान-प्रदान करते थे, वे उनके लिए दोस्ती में दिए गए ‘उपहार’ थे। दूसरी ओर अमीरी का सपना देखने वाले यूरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खाल ‘माल’ थे, जिसे उन्हें मुनाफ़ा कमाने के लिए यूरोप में बेचना था, इन बेची जानेवाली चीज़ों के दाम, पूर्ति के आधार पर, साल-दर-साल बदलते रहते थे। मूल निवासी इसे समझ नहीं सकते थे - उन्हें सुदूर यूरोप में स्थित ‘बाज़ार’ का ज़रा भी बोध नहीं था। उनके लिए तो यह सब पहेली की तरह था कि यूरोपीय व्यापारी उनकी चीज़ों के बदले में कभी तो बहुत सारा सामान देते थे और कभी बहुत कम। वे यूरोपीय लोगों के लालच को देख कर भी दुखी होते थे।∗ प्रचुर मात्रा में रोएँदार खाल हासिल करने के लिए उन्होंने सैकड़ों ऊदबिलावों को हलाल किया था, और मूल बाशिंदे इससे काफ़ी विचलित थे। उन्हें डर था कि जानवर उनसे इस विध्वंस का बदला लेंगे।

शुरुआत में आए यूरोपीय लोगों, जो कि व्यापारी थे, के पीछे-पीछे अमरीका में ‘बसने’ के लिए भी लोग आए। 17वीं सदी से यूरोपीय लोगों के कुछ समूह ईसाइयत के भिन्न संप्रदाय से ताल्लुक रखने की वजह से उत्पीड़न के शिकार थे (कैथलिक प्रभुत्व के देशों में रहनेवाले प्रोटैस्टेंट, या प्रोटैस्टेंटवाद को राजधर्म का दर्ज़ा देनेवाले देशों के कैथलिक)। उनमें से बहुतेरों ने यूरोप छोड़ दिया और एक नयी ज़िंदगी शुरू करने के लिए अमरीका चले गए। जब तक वहाँ खाली ज़मीनें थीं, कोई समस्या नहीं आई, लेकिन धीरे-धीरे वे और अंदर, मूल निवासियों के गाँवों की ओर बढ़े। उन्होंने जंगलों की सफ़ाई के लिए अपने लोहे के औज़ारों का इस्तेमाल किया, ताकि खेती की जा सके।

मूल निवासी और यूरोपीय लोग जब जंगल को देखते, तो उनकी निग़ाह में अलग-अलग चीज़ें आती थीं - मूल निवासियों ने उन रास्तों की पहचान की, जो यूरोपीय लोगों के लिए अदृश्य थे। यूरोपीय लोगों की कल्पना में कटे हुए जंगल की जगह मक्के के खेत उभरते थे। जैफ़र्सन का सपना एक एेसे देश का था जो छोटे-छोटे खेतों वाले यूरोपीय लोगों से आबाद था। मूल निवासी - जो अपनी ज़रूरतों के लिए फ़सलें उगाते, न कि बिक्री और मुनाफे के लिए, और जो ज़मीन का ‘मालिक’ बनने को ग़लत मानते थे - इस बात को नहीं समझ सकते थे। यही चीज उन्हें जैफ़र्सन की निग़ाह में ‘असभ्य’ बनाती थी।

10.4

क्रियाकलाप 1

यूरोपीय लोगों और अमरीकी मूल निवासियों के मन में एक-दूसरे की जो छवि थी तथा प्रकृति को देखने के जो उनके अलग-अलग तरीके थे, उन पर विचार करें।


10.5
मानचित्र 1ः संयुक्त राज्य अमरीका का विस्तार।

जिन मुल्कों को हम कनाडा और संयुक्त राज्य अमरीका के नाम से जानते हैं, वे 18वीं सदी के अंत में वजूद में आए। अपने वर्तमान क्षेत्रफल का एक छोटा हिस्सा ही उस समय उनके कब्ज़े में था। मौजूदा आकार तक पहुँचने के लिए अगले सौ सालों में उन्होंने अपने नियंत्रण वाले इलाके में काफ़ी इज़ाफ़ा किया। संयुक्त राज्य अमरीका ने कई विशाल क्षेत्रों की खरीद की - उन्होंने दक्षिण में प्रुांस (लुइसियाना परचेज़) और रूस (अलास्का) से ज़मीन खरीदी, साथ ही, उसने युद्ध में भी ज़मीन जीती– दक्षिणी सं.रा.अ. का अधिकतर हिस्सा मेक्सिको से ही जीता गया है। किसी के मन में यह खयाल नहीं आया कि उन इलाकों में रहने वाले मूल बाशिंदों की भी रज़ामंदी ली जाए। संयुक्त राज्य अमरीका की पश्चिमी ‘सरहद’ (प्रुंटियर) खिसकती रहती थी, और जैसे-जैसे यह खिसकती जाती, मूल निवासी भी पीछे खिसकने के लिए बाध्य किए जाते थे।

10.6

19वीं सदी में अमरीका के भूदृश्य में ज़बर्दस्त बदलाव आए। ज़मीन के प्रति यूरोपीय लोगों का रवैया मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन और प्रुांस से आए कुछ प्रवासी एेसे थे, जो छोटे बेटे होने के कारण पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे और इसी वजह से अमरीका में ज़मीन के मालिक बनना चाहते थे। बाद में जर्मनी, स्वीडन और इटली जैसे मुल्कों से एेसे आप्रवासी उमड़ पड़े, जिनकी ज़मीनें बड़े किसानों के हाथ चली गई थीं और वे एेसी ज़मीन चाहते थे, जिसे अपना कह सकें। पोलैंड से आए लोगों को प्रेयरी (prairie) चारागाहों में काम करना अच्छा लगता था, जो उन्हें अपने घरों के स्टेपीज़ (घास के मैदानों) की याद दिलाते थे, और यहाँ बहुत कम कीमत पर बड़ी संपत्तियाँ खरीद पाना उन्हें बहुत रास आ रहा था। उन्होंने ज़मीन की सफ़ाई की और खेती का विकास किया। उन्होंने एेसी फ़सलें (धान और कपास) उगाईं, जो यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं और इसीलिए वहाँ उन्हें ऊँचे मुनाफ़े पर बेचा जा सकता था। अपने विस्तृत खेतों को जंगली जानवरों - भेड़िए और पहाड़ी शेरों - से बचाने के लिए उन्होंने शिकार के ज़रिए उनका सफ़ाया ही कर दिया। 1873 में कँटीले तारों की खोज के बाद ही वे अपने को पूरी तरह सुरक्षित महसूस कर पाए।

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कोलोरेडो का एक पशु-फार्म।

घर के बाहर काम करने के लिहाज़ से दक्षिणी इलाके की जलवायु यूरोपीय जनों के लिए काफ़ी गर्म थी, और दक्षिण अमरीकी उपनिवेशों का यह अनुभव रहा था कि दास बनाए गए मूल निवासी बहुत बड़ी संख्या में मौत के शिकार हुए थे। इसीलिए बाग़ान-मालिकों ने अफ़्रीका से दास ख़रीदे। दासप्रथा-विरोधी समूहों के विरोध के चलते दासों के व्यापार पर तो रोक लग गई, लेकिन जो अप़़्ाΡηीकी संयुक्त राज्य अमरीका में थे, वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे।
संयुक्त राज्य अमरीका के उत्तरी राज्यों ने, जहाँ अर्थतंत्र बग़ानों पर (और इसीलिए दासप्रथा पर) टिका हुआ नहीं था, दासप्रथा को खत्म करने के पक्ष में दलीलें दीं और उसे एक अमानवीय प्रथा बताया। 1861-65 में दासप्रथा को जारी रखनेवाले और उसके खात्मे की वकालत करने वाले राज्यों के बीच युद्ध हुआ। दासता विरोधियों की जीत हुई। दासप्रथा खत्म कर दी गई, हालांकि अप़़्ाΡηीकी मूल के अमरीकियों को नागरिक स्वतंत्रताओं के लिए अपने संघर्ष में विजय 20वीं सदी में आकर ही मिल पाई और तभी स्कूलों तथा ट्रेनों-बसों में उन्हें अलग रखने की व्यवस्था समाप्त हुई।
कनाडाई सरकार के सामने एक समस्या थी, जो लंबे समय तक हल नहीं हो पाई थी, और जो मूल निवासियों के सवाल के मुकाबले ज़्यादा ज़रूरी प्रतीत होती थी - 1763 में ब्रिटिश लोगों ने प्रुांस के साथ हुई लड़ाई मेें कनाडा को जीता था। वहाँ प्रुांसीसी आबादकार लगातार स्वायत्त राजनीतिक दर्ज़े की मांग कर रहे थे। 1867 में कनाडा को स्वायत्त राज्यों के एक महासंघ के रूप में संगठित करके ही इस समस्या का हल निकल पाया।


अपनी ज़मीन से मूल बाशिंदों की बेदख़ली

जैसे-जैसे संयुक्त राज्य अमरीका ने अपनी बस्तियों का विस्तार किया, ज़मीन की बिक्री के समझौते पर दस्तख़त कराने के बाद मूल निवासियों को वहाँ से हटने के लिए प्रेरित या बाध्य किया गया। उन्हें दी गई कीमतें बहुत कम थीं, और इसके भी उदाहरण मिलते हैं कि अमरीकियों (संयुक्त राज्य अमरीका में रहनेवाले यूरोपीय लोगों के लिए प्रयुक्त पद) ने धोखे से उनसे ज़्यादा ज़मीन ले ली या पैसा देने के मामले में वायदाखिलाफ़ी की।

उच्च अधिकारी भी मूल बाशिंदों की बेदख़ली को ग़लत नहीं मानते थे। यह जॉर्जिया के एक प्रकरण में देखा जा सकता है। जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमरीका का एक राज्य है। यहाँ के अधिकारियों की दलील थी कि चिरोकी कबीला राज्य के कानून से शासित तो होता है, लेकिन वे नागरिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते। (ध्यान देने की बात है कि मूल निवासियों में से चिरोकी ही एेसे थे, जिन्होंने अंग्रेज़ी सीखने और अमरीकी जीवन-शैली को समझने की सबसे ज़्यादा कोशिश की थी, और तब भी उन्हें नागरिक अधिकार नहीं दिए गए।)

1832 में संयुक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश, जॉन मार्शल ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि चिरोकी कबीला ‘‘एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्वाधिकार वाले इलाके में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता’’ और वे कुछ मामलों में संप्रभुतासंपन्न हैं। संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति, एंड्रिउ जैकसन, जिनकी छवि आर्थिक और राजनीतिक पक्षपात के खिलाफ़ लड़नेवाले की थी, इंडियन्स का मामला आने पर वह बिलकुल उलट गए। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश की इस बात का मान रखने से इनकार कर दिया और चिरोकियों को अपनी ज़मीन से हाँक कर विस्तृत अमरीकी मरुभूमि (Great American Desert) की ओर खदेड़ने के लिए अमरीकी फ़ौज भेज दी। जिन 15000 लोगों को वहाँ से हटने पर मजबूर किया गया, उनमें से एक चौथाई अपने ‘आँसुओं की राह’ (Trail of Tears)के सफर में ही मर-खप गए।

जिन लोगों ने पहले से रहनेवाले कबीलों की ज़मीनें ले लीं, वे इस आधार पर अपने को उचित ठहराते थे कि चूंकि मूल निवासी ज़मीन का अधिकतम इस्तेमाल करना नहीं जानते, इसलिए वह उनके कब्ज़े में रहनी ही नहीं चाहिए। वे इस बिना पर भी मूल निवासियों की आलोचना करते कि वे आलसी हैं– इसलिए बाज़ार हेतु उत्पादन करने में अपने शिल्प-कौशल का इस्तेमाल नहीं करते हैं, अंग्रेज़ी सीखने और ‘ढंग के’ कपड़े (जिसका मतलब था, यूरोपीयों जैसे कपड़े) पहनने में उनकी दिलचस्पी नहीं है। कुल मिलाकर उनका कहना यह था कि वे ‘मर-खपने’ लायक ही हैं। खेती की ज़मीन निकालने के लिए प्रेयरीज़ साफ़ की गईं, और जंगली भैंसों को मारा गया। एक प्रुांसीसी आगंतुक ने लिखा, ‘‘आदिम जानवरों के साथ-साथ आदिम मनुष्य लुप्त हो जाएगा’’।

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10.7

इस बीच मूल निवासी पश्चिम की ओर धकेल दिए गए थे। उन्हें ‘स्थायी तौर पर अपनी’ ज़मीन दे दी गई थी, लेकिन अक्सर उन्हें उस जगह से भी बेदख़ल होना पड़ता, जब उनकी ज़मीन के अंदर सीसा, सोना या तेल जैसे खनिज के होने का पता चलता। प्रायः कई समूहों को मूलतः किसी एक के कब्ज़े वाली ज़मीन में ही साझा करने के लिए बाध्य किया जाता, जिससे उनके बीच झगड़े हो जाते थे। मूल निवासी छोटे इलाकों में कैद कर दिए गए थे, जिन्हें ‘रिज़र्वेशन्स’ (आरक्षण) कहा जाता था। ये प्रायः एेसी ज़मीन होती थी, जिसके साथ उनका पहले से कोई रिश्ता नहीं होता था। एेसा नहीं है कि अपनी ज़मीनें उन्होंने बिना लड़े छोड़ दी हों। संयुक्त राज्य की फ़ौज ने 1865 से 1890 के बीच विद्रोहों की एक पूरी शृंखला का दमन किया था। कनाडा में 1869 से 1885 के बीच मेटिसों (यूरोपीय मूल निवासियों के वंशज) के सशस्त्र विद्रोह हुए थे। लेकिन इन लड़ाइयों के बाद उन्होंने हार मान ली।

मानवशास्त्र

यह महत्त्वपूर्ण है कि इसी समय (1840 के दशक से) उत्तरी अमरीका में ‘मानवशास्त्र’ विषय (जो कि प्रुांस में विकसित हुआ था) की शुरुआत हुई। यह शुरुआत स्थानीय ‘आदिम’ समुदायों और यूरोप के ‘सभ्य’ समुदायों के बीच के अंतर के अध्ययन के लिए हुई थी। कुछ मानवशास्त्रियों ने यह स्थापित किया कि जिस तरह यूरोप में ‘आदिम’ लोग नहीं पाए जाते, उसी तरह अमरीकी मूल निवासी भी ‘समाप्त  हो जाएँगे’।
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मूल निवासी का एक घर, 1862 पुरातत्त्वविदों ने इसे पहाड़ों के बीच से ले जाकर व्योमिंग के एक संग्रहालय में रखा।


1854 में, संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति को मूल निवासियों के एक नेता, सिएटल के प्रधान का खत मिला। राष्ट्रपति ने प्रधान से एक समझौते पर दस्तखत करने के लिए कहा था। समझौते के अनुसार सिएटल के लोगों की रिहाइशी ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा अमरीकी सरकार को सौंपा जाना था। प्रधान ने जवाब दिया :

‘‘आप आकाश को, भूमि की ऊष्मा को कैेसे खरीद या बेच सकते हैं? यह खयाल ही हम लोगों के लिए बहुत अजूबा है। अगर आप हवा की ताज़गी और पानी की चमक के स्वामी नहीं हैं, तो आप उसे खरीद कैसे सकते हैं? धरती का हर हिस्सा मेरी जनता के लिए पुण्य-पावन है। चीड़ की चमकती हुई हर सुई, हर बालुका-तट, घने जंगलों में पसरा हर कुहरा, सफ़ाई करनेवाला और गुनगुनाने वाला हर कीड़ा मेरे लोगों की स्मृति और 
अनुभवों में पवित्र है। पेड़ों में दौड़ता हुआ रस ‘रेड मैन’ की स्मृतियों का वाहक है। . . . .

इसलिए वाशिंगटन में बैठा महान मुखिया (ग्रेट चीफ़) जब यह संदेश भेजता है कि वह हमारी ज़मीन खरीदना चाहता है, तो वह हमसे कुछ ज़्यादा ही उम्मीद करता है। महान मुखिया का संदेश है कि वह हमारे लिए कोई जगह मुकर्रर कर देंगे, ताकि हम आराम से रह सकेंगे। वह हमारे पिता होंगे और हम उनके बच्चे होंगे। इसलिए हम इस ज़मीन को खरीदे जाने के प्रस्ताव पर विचार करेंगे। लेकिन यह आसान न होगा। क्योंकि यह ज़मीन हमारे लिए पावन है। धाराओं और नदियों में बहता हुआ चमकीला पानी सिर्फ़ पानी नहीं है, वह हमारे पुरखों का लहू है। अगर हम आपको ज़मीन बेच दें, तो आपको यह याद रखना होगा कि वह पवित्र है और अपने बच्चों को सिखाना होगा कि वह पवित्र है और उसके तालाबों के निथरे हुए पानी में दिखता हर भूतहा प्रतिबिंब मेरी जनता के जीवन की घटनाओं और स्मृतियों का बयान करता है। पानी की कलकल मेरे पिता के पिता की आवाज़ है . . .’’


गोल्ड रश और उद्योगों की वृद्धि

यह उम्मीद हमेशा से की जाती थी कि उत्तरी अमरीका में धरती के नीचे सोना है। 1840 में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफ़ोर्निया में सोने के कुछ चिह्न मिले। इसने ‘गोल्ड रश’ को जन्म दिया। यह उस आपाधापी का नाम है, जिसमें हज़ारों की संख्या में आतुर यूरोपीय लोग चुटकियों में अपनी तकदीर सँवार लेने की उम्मीद में अमरीका पहुँचे। इसके चलते पूरे महाद्वीप में रेलवे-लाइनों का निर्माण हुआ जिसके लिए हज़ारों चीनी श्रमिकों की नियुक्ति हुई। संयुक्त राज्य अमरीका रेलवे का काम 1870 में पूरा हुआ और कनाडा की रेलवे का 1885 में। एंड्रिउ कार्नेगी ने, जो स्कॉटलैंड से आया हुआ एक ग़रीब आप्रवासी और सं.रा.अ. के पहले करोड़पति उद्योग-स्वामियों में से एक था, कहा - ‘‘पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं, नया गणराज्य किसी एक्सप्रेस की गति से दौड़ रहा है।’’

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‘गोल्ड रश’ के दौरान कैलीफोर्निया जाते लोग, कैमराचित्र

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के एक खास समय में होने के पीछे एक कारण यह भी था कि छोटे खेतिहर बड़े किसानों के हाथों अपनी ज़मीन से वंचित होकर कारखानों की नौकरी की ओर मुड़ रहे थे (देखिए विषय 9)। उत्तरी अमरीका में उद्योग कई अलग तरह के कारणों से विकसित हुए - रेलवे के साज़-सामान बनाने के लिए ताकि दूर-दूर की जगहों को तीव्र परिवहन के द्वारा जोड़ा जा सके, और एेसे यंत्रों का उत्पादन करने के लिए जिनसे बड़े पैमाने की खेती को आसान बनाया जा सके। सं.रा.अ. और कनाडा, दोनों जगहों पर औद्योगिक नगरों का विकास हुआ, और कारखानों की संख्या तेज़ी से बढ़ी। 1860 में सं.रा.अ. का अर्थतंत्र अविकसित अवस्था में था। 1890 में वह दुनिया की अग्रणी औद्योगिक शक्ति बन चुका था।

बड़े पैमाने की खेती का भी विस्तार हुआ। बड़े-बड़े इलाके साफ़ किए गए और खेतों के रूप में उनके टुकड़े किए गए। 1890 तक आते-आते जंगली भैंसों का लगभग पूरी तरह उन्मूलन किया जा चुका था, और इस तरह शिकार वाली वह जीवनचर्या भी समाप्त हुई, जिसे मूल बाशिंदे सदियों से जीते आ रहे थे। 1892 में संयुक्त राज्य अमरीका का महाद्वीपीय विस्तार पूरा हो चुका था। प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर के बीच का क्षेत्र राज्यों में विभाजित किया जा चुका था। अब कोई ‘प्रुंटियर’ नहीं रहा, जो कई दशकों तक यूरोपीय आबादकारों को पश्चिम की ओर खींचता रहा था। कुछ ही वर्षों के भीतर संयुक्त राज्य अमरीका हवाई और फिलिपीन्स में अपने उपनिवेश बसा रहा था। वह एक साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका था।


संवैधानिक अधिकार

आबादकारों ने 1770 के दशक में आज़ादी के अपने संघर्ष में ‘लोकतांत्रिक भावना’ के जिस नारे के तहत एकजुटता बनाई थी, वही पुरानी दुनिया की राजशाही और अभिजात तंत्र के खिलाफ़ संयुक्त राज्य अमरीका की पहचान बनी। उनके लिए यह भी अहम था कि उनके संविधान में व्यक्ति के ‘संपत्ति के अधिकार’ को शामिल किया गया, जिसे रद्द करने की छूट राज्य को नहीं थी।

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ऊपरः सं.रा.अ. द्वारा आप्रवासियों का स्वागत, रंगीन छपाई, 1909
नीचेः प्रेयरी पर एक पशु-फार्म जो कि गरीब यूरोपीय आप्रवासी का सपना होता था, कैमराचित्र

लेकिन लोकतांत्रिक अधिकार (राष्ट्रपति और कांग्रेस के प्रतिनिधियों के चुनाव में वोट देने का अधिकार) और संपत्ति का अधिकार, दोनों सिर्फ़ गोरे लोगों के लिए थे। एक कनाडाई मूल निवासी, डेनियल पॉल ने 2000 में इस ओर ध्यान खींचा कि अमरीकी स्वाधीनता संग्राम और प्रुांसीसी क्रांति के समय लोकतंत्र के पक्ष में आवाज़ बुलंद करने वाले थॉमस पाइन ने ‘‘समाज का संगठन करने के लिए इंडियन्स का इस्तेमाल एक मॉडल के तौर पर किया था।" इसके आधार पर उसने दलील दी कि ‘‘अमरीकी मूल निवासियों ने मिसाल बन कर यूरोपीय लोगों के लंबे लोकतंत्रोन्मुखी आंदोलन के बीज बोये थे’’। (वी वर नॉट द सेवेजेज़, पृष्ठ 333)

महान जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स (1818-83) ने अमरीकी प्रुंटियर को ‘‘आख़िरी सकारात्मक पूँजीवादी यूटोपिया’’ के रूप में देखा है . . . ‘‘सीमाहीन प्रकृति और स्थान, जिसके अनुरूप अपने को ढालती है मुनाफ़े की सीमाहीन चाहत।’’ 

- ‘बस्तियात एंड कैरे’, ग्रुंद्रिसे’


बदलाव की लहर...

1920 के दशक तक संयुक्त राज्य अमरीका और कनाडा के मूल निवासियों के लिए कुछ भी बेहतर होना शुरू नहीं हुआ। संयुक्त राज्य अमरीका की समस्त जनता को प्रभावित करनेवाली बड़ी आर्थिक मंदी से कुछ साल पहले, 1928 में समाजवैज्ञानिक लेवाइस मेरिअम के निर्देशन में संपन्न हुआ एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ - दि प्रॉब्लम अॉफ़ इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन - जिसमें रिज़र्वेशन्स में रह रहे मूूल निवासियों की स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाओं की दरिद्रता का बड़ा ही दारुण चित्र प्रस्तुत किया गया था।

गोरे अमरीकियों के मन में उन मूल निवासियों के प्रति सहानुभूति जागी, जिन्हें अपनी संस्कृति को पूरा-पूरा निभाने से रोका जाता था और साथ-ही-साथ नागरिकता के लाभों से भी वंचित रखा जाता था। इसने संयुक्त राज्य अमरीका में एक युगांतरकारी कानून को जन्म दिया - 1934 का इंडियन रीअॉर्गनाईज़ेशन एक्ट - जिसके द्वारा रिज़र्वेशन्स में मूल निवासियों को ज़मीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार हासिल हुआ।

1950 और 60 के दशकों में संयुक्त राज्य और कनाडा की सरकारों ने मूल बाशिंदों के लिए किए गए विशेष प्रावधानों को खत्म करने पर इस उम्मीद से विचार किया, कि इससे वे ‘मुख्यधारा में शामिल’ होंगे, अर्थात वे यूरोपीय संस्कृति को अपनाएँगे। लेकिन मूल बाशिंदे एेसा नहीं चाहते थे। 1954 में अनेक मूल निवासियों ने अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन अॉफ़ इंडियन राइट्स’ में इस शर्त के साथ सं.रा.अ. की नागरिकता स्वीकार की कि उनके रिज़र्वेशन्स वापस नहीं लिए जाएँगे और उनकी परंपराओं में दखलंदाज़ी नहीं की जाएगी। कुछ एेसी ही चीज़ें कनाडा में भी हुईं। 1969 में सरकार ने घोषणा की कि वह ‘‘आदिवासी अधिकारों को मान्यता नहीं’’ देगी। मूल निवासियों ने सुसंगठित तरीके से इसका विरोध करते हुए धरना-प्रदर्शनों और वाद-विवादों की एक पूरी शृंखला आयोजित की। 1982 में एक संवैधानिक धारा के तहत मूल निवासियों के मौजूदा आदिवासी अधिकारों और समझौता-आधारित अधिकारों को स्वीकृति मिलने तक यह सवाल हल नहीं हो पाया। परन्तु इन अधिकारों की बारीकियों के बारे में बहुत से फैसले बाकी हैं पर अब यह बहुत साफ़ है कि दोनों मुल्कों के मूल निवासियों ने, 18वीं सदी के मुकाबले अपनी संख्या बहुत कम हो जाने के बावजूद, अपनी संस्कृति को निभाने के अपने अधिकारों को लेकर पुरज़ोर दावेदारी की है और, खास तौर से कनाडा में, अपनी पवित्र भूमि पर अधिकार की भी दावेदारी की है। एेसी दावेदारी 1880 के दशक में उनके पुरखे नहीं कर सकते थे।

10.8

क्रियाकलाप 3
अमरीकी इतिहासकार होवर्ड स्पॉडेक के इस कथन पर टिप्पणी करेंः ‘ अमरीकी क्रांति का जो प्रभाव (गोरे) आबादकारों के लिए था, उससे ठीक विपरीत मूल निवासियों के लिए था - फैलाव सिकुड़न बन गया, लोकतंत्र तानाशाही बन गया, संपन्नता विपन्नता बन गई, और मुक्ति कैद बन गई।


आस्ट्रेलिया

उत्तरी और दक्षिण अमरीका की तरह ही अॉस्ट्रेलिया में भी मानव निवास का इतिहास लंबा है। शुरुआती मनुष्य या आदिमानव जिन्हें ‘एेबॉरिजिनीज़’ कहते हैं(यह कई भिन्न-भिन्न समाजों के लिए प्रयुक्त एक सामान्य नाम है) अॉस्ट्रेलिया में 40,000 साल पहले आने शुरू हुए (संभवतः उससे भी पहले से)। वे अॉस्ट्रेलिया के साथ एक भू-सेतु से जुड़े न्यू गिनी से आए थे। मूल निवासियों की अपनी परंपराओं के हिसाब से वे अॉस्ट्रेलिया आए नहीं थे, बल्कि हमेशा से यहीं थे। बीती सदियाँ ‘स्वप्नकाल’ कही जाती थीं। इस कथन को समझना यूरोपीय लोगों के लिए मुश्किल था, क्योंकि इसमें अतीत और वर्तमान का अंतर धुँधला हो जाता था।

18वीं सदी के आखिरी दौर में अॉस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के 350 से 750 तक समुदाय थे। हर समुदाय की अपनी भाषा थी (इनमें से 200 भाषाएँ आज भी बोली जाती हैं)। देसी लोगों का एक और विशाल समूह उत्तर में रहता है(इसे टॉरस स्ट्रेट टापूवासी कहते हैं। ‘एेबॉरिजिनी’ शब्द इनके लिए इस्तेमाल नहीं होता, क्योंकि यह माना जाता है कि वे कहीं और से आए हैं और एक अलग नस्ल के हैं। 2005 में कुल मिला कर वे अॉस्ट्रेलिया की आबादी का 2.4 फ़ीसदी हिस्सा थे।

अॉस्ट्रेलिया की आबादी बहुत छितरायी हुई है, और आज भी वहाँ के ज़्यादातर शहर समुद्रतट के साथ-साथ बसे हैं (जहाँ 1770 में ब्रिटिश लोग पहली बार पहुँचे थे), क्योंकि बीच का इलाका शुष्क मरुभूमि है।

10.9

10.10
मानचित्र 2: आस्ट्रेलिया।

अॉस्ट्रेलिया में यूरोपीय आबादकारों, मूल निवासियों और ज़मीन के बीच आपसी रिश्तों का किस्सा उत्तरी और दक्षिणी अमरीका के किस्से से कई बिंदुओं पर मिलता-जुलता है, हालांकि इसकी शुरुआत 300 साल बाद हुई। मूल निवासियों के साथ हुई मुलाक़ात को लेकर कैप्टन कुक और उसके जत्थे के आरंभिक ब्यौरे मूल निवासियों के दोस्ताना व्यवहार के बारे में उत्साहपूर्ण हैं। लेकिन जब एक मूल निवासी ने कुक की हत्या कर दी - हवाई में, अॉस्ट्रेलिया में नहीं - तब ब्रिटिशों का रवैया पूरी तरह से उलट गया। जैसा कि प्रायः होता आया है, इस तरह की एक घटना औपनिवेशिक ताकतों द्वारा बाद में दूसरों के खिलाफ़ किए गए हिंसक व्यवहार का औचित्य साबित करने के लिए इस्तेमाल की गई।

सिडनी के इलाके का एक वर्णन, 1790

‘‘ब्रिटिशों की उपस्थिति ने आदिवासियों के उत्पादन को नाटकीय ढंग से अस्त-व्यस्त कर दिया। हज़ारों भूखे मुखों के आने से, जिनके पीछे-पीछे सैकड़ों और आए, स्थानीय खाद्य संसाधनों पर अभूतपूर्व दबाव पड़ा।

तो दारूक लोगों ने इन सबके बारे में क्या सोचा होगा? उनके लिए पवित्र स्थानों का इतने बड़े पैमाने पर विनाश और अपनी ज़मीन के प्रति विचित्र, हिंसक बरताव समझ से परे था। ये नवागंतुक बिना वजह पेड़ों को काटते जाते। यह बिना वजह इसलिए जान पड़ता था कि उन्हें न डोंगी बनानी थीं, न जंगली शहद इकट्ठा करना था और न ही जानवर पकड़ने थे। पत्थरों को हटाकर उनका चट्टा लगा दिया गया, मिट्टी खोद कर उसे आकार देकर पका दिया गया, ज़मीन में गड्ढे बना दिए गए, बहुत भारी-भरकम इमारतें तैयार कर दी गईं। पहले-पहल उन्होंने इस सफ़ाई की तुलना किसी पवित्र आनुष्ठानिक भूमि के निर्माण से की होगी . . . संभवतः उन्होंने सोचा कि एक विशाल कर्मकांडी जलसा होने जा रहा है और यह एक खतरनाक धंधा होगा, जिससे उन्हें पूरी तरह दूर रहना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके बाद दारूक उन बस्तियों से बच कर रहने लगे, और राजकीय अपहरण ही उन्हें वापस लाने का एकमात्र तरीका था।’’

– (पी.ग्रिमशॉ, एम.लेक, ए.मैक्ग्राथ, एम.क्वार्टली, क्रिएटिंग ए नेशन)

यूरोपीय लोगों के आगमन को सभी मूल बाशिंदों ने खतरे की तरह नहीं देखा। वह यह अनुमान नहीं लगा पाए कि 19वीं और 20वीं सदी के दरम्यान कीटाणुओं के असर से, अपनी ज़मीनें खोने के चलते और आबादकारों के साथ हुई लड़ाइयों में लगभग 90 फ़ीसदी मूल बाशिंदों को अपनी जान गँवानी पड़ेगी। ब्राज़ील में पुर्तगाली कैदियों को बसाने का प्रयोग तब जाकर बंद कर दिया गया, जब उनके हिंसक बरताव ने मूल निवासियों को प्रतिहिंसा पर उतारू कर दिया। ब्रिटिशों ने स्वतंत्र होने तक अमरीकी उपनिवेशों में यही तरीका अपनाया, और फिर उसे अॉस्ट्रेलिया में भी जारी रखा। अॉस्ट्रेलिया के ज़्यादातर शुरुआती आबादकार इंग्लैंड से निर्वासित होकर आए थे और उनके कारावास पूरा होने पर ब्रिटेन वापस न लौटने की शर्त पर उन्हें अॉस्ट्रेलिया में स्वतंत्र जीवन जीने की इजाज़त दे दी गई। अपने क्षेत्र से इतने भिन्न इस इलाके में किसी भी तरह के सहारे के बग़ैर जीवनयापन करने के लिए उन्होंने खेती के लिए ली गई ज़मीन से मूल निवासियों को निकाल बाहर करने में कोई झिझक नहीं दिखलाई।

10.11
यूरोपीय बस्तियों के तहत अॉस्ट्रेलिया का आर्थिक विकास अमरीका जितना भिन्नतापूर्ण नहीं था। भेड़ों के विशाल फ़ार्म और खानें उसके पश्चात, मदिरा बनाने हेतु अंगूर के बाग़ और गेहूँ की खेती एक लंबी अवधि में और काफ़ी परिश्रम से विकसित हो पाईं, इन्होंने अॉस्ट्रेलिया की संपन्नता की बुनियाद तैयार की। जब राज्यों को मिलाया गया और 1911 में अॉस्ट्रेलिया की एक राजधानी बनाने की योजना चल रही थी, तब उसके लिए ‘वूलव्हीटगोल्ड’ (Woolwheat gold) नाम का सुझाव दिया गया था! अंततः उसका नाम कैनबरा रखा गया जो एक स्थानीय शब्द कैमबरा (Kamberra) से बना है, जिसका अर्थ है, ‘सभा-स्थल’)।

कुछ मूल निवासी एेसे सख्त हालात में खेतों में काम करते थे कि उसका दासप्रथा से अंतर बहुत कम था। बाद में चीनी आप्रवासियों ने सस्ता श्रम मुहैया कराया, जैसा कि कैलिफ़ोर्निया में हुआ था। लेकिन ग़ैर-गोरों पर बढ़ती हुई निर्भरता से जन्मी घबराहट के चलते दोनों देशों की सरकारों ने चीनी आप्रवासियों को प्रतिबंधित कर दिया। 1974 तक लोगों के मन में यह भय घर कर गया था कि दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के ‘गहरी रंगत वाले’ लोग बड़ी तादाद में अॉस्ट्रेलिया आ सकते हैं, और इसीलिए ‘ग़ैर-गोरों’ को बाहर रखने के लिए सरकार ने एक नीति अपनाई।

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1911 में यह घोषणा हुई कि नयी दिल्ली और कैनबरा को क्रमशः ब्रिटिश भारत और अॉस्ट्रेलियाई राष्ट्रमण्डल की राजधानी बनाया जाएगा। उस समय में इन देशों के मूल निवासियों की राजनीतिक स्थितियों की तुलना कीजिए और उसकी विषमता को रेखांकित कीजिए।


बदलाव की लहर...

1968 में एक मानवशास्त्री डब्ल्यू.ई.एच.स्टैनर के एक व्याख्यान से लोगों मेें बिजली की तरंग-सी दौड़ गई। व्याख्यान का शीर्षक, दि ग्रेट अॉस्ट्रेलियन साइलेंस (महान अॉस्ट्रेलियाई चुप्पी) - इतिहासकारों की मूल निवासियों के बारे में चुप्पी थी। 1970 के दशक से उत्तरी अमरीका की तरह ही यहाँ भी मूल निवासियों को एक नए रूप में समझने की चाहत जग चुकी थी। उन्हें मानवशास्त्रीय जिज्ञासाओं के रूप में नहीं, बल्कि विशिष्ट संस्कृतियों वाले समुदायों के रूप में, प्रकृति और जलवायु को समझने की विशिष्ट पद्धतियों के रूप मेे समझना था। उन्हें एेेसे समुदायों के रूप में समझना था, जिनके पास अपनी कथाओं और कपड़ासाज़ी-चित्रकारी-हस्तशिल्प के कौशल का विशाल भंडार था और वह भंडार सराहने, आदर तथा अभिलेखन के योग्य था। इन सबकी तह में वह ज़रूरी सवाल था, जिसे आगे चल कर हेनरी रेनॉल्ड्स ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक, व्हाइ वरंट वी टोल्ड? (हमें बताया क्यों नहीं गया?), में सामने रखा। इस किताब में अॉस्ट्रेलियाई इतिहास लेखन के उस ढर्रे की भर्त्सना की गई थी, जिसमें कैप्टन कुक की ‘खोज’ से ही इतिहास की शुरुआत मानी जाती थी।

उसके बाद से मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालयी विभागों की स्थापना हुई है। कलादीर्घाओं (आर्ट गैलरीज़) में देसी कलाओं की दीर्घाएँ शामिल की गई हैं, देसी संस्कृति को समझानेवाले कल्पनाशील तरीके से सज्जित कमरों के लिए संग्रहालयों में जगह बनाई गई है, और मूल निवासियों ने अपने जीवन-इतिहासों को लिखना शुरू किया है। यह सब एक अद्भुत प्रयास है। यह प्रयास समय रहते शुरू हो गया। अगर मूल निवासियों की संस्कृतियों की अनदेखी बदस्तूर जारी रहती, तो इस समय तक उसका काफ़ी कुछ विस्मृति की गर्त में जा चुका होता। 1974 से ‘बहुसंस्कृतिवाद’ अॉस्ट्रेलिया की राजकीय नीति रही है, जिसने मूल निवासियों की संस्कृतियों और यूरोप तथा एशिया के आप्रवासियों की भांति-भांति की संस्कृतियों को समान आदर दिया है।

"विदीर्ण हृदय वाली मेरी बहन कैथी,

मैं नहीं जानती कि काग़ज की छाल पर लिखी

तुम्हारे सपनों के समय की हर्ष-विषादमय कहानियों के लिए

मैं तुम्हें कैसे धन्यवाद दूँ।

तुम गहरी रंगत वाले उन बच्चों में से एक थीं,

जिनके साथ खेलने की मुझे इजाज़त न थी -

नदी-तट पर अपना खेमा गाड़नेवाले, गलत रंग के लोग

(मैं तुम्हें गोरा न बना सकी।)

इसलिए काफ़ी देर से मैं तुम्हें मिली,

काफ़ी देर से शुरुआत हुई जानने की

उन्होंने मुझे नहीं बताया था कि जिस ज़मीन को मैं इतना प्यार करती हूँ

वह तुम्हारे ही हाथों से छीनी गई थी।"

– ‘दो स्वप्नसमय’, ऊडगेरो नूनुक्कल (Oodgeroo Noonuccal) के लिए

अॉस्ट्रेलियाई लेखिका ज्यूडिथ राइट(Judith Wright) (1915-2000) ने अॉस्ट्रेलियाई मूल निवासियों के अधिकारों के लिए ज़ोरदार आवाज़ बुलंद की। उसने गोरे और मूल निवासियों को अलग-अलग रखने से होनेवाले कई नुकसानों को लेकर अत्यंत प्रभावशाली कविताएँ लिखीं।


1970 के दशक से, जब संयुक्त राष्ट्र संघ और दूसरी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की बैठकों में ‘मानवाधिकार’ शब्द सुनाई पड़ने लगा, अॉस्ट्रेलियाई जनता को यह अहसास हुआ कि संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा और न्यूज़ीलैंड के विपरीत अॉस्ट्रेलिया में यूरोपीय लोगों द्वारा किए गए भूमि-अधिग्रहण को औपचारिक बनाने के लिए मूल निवासियों के साथ कोई समझौता-पत्र तैयार नहीं किया गया है। सरकार हमेशा से अॉस्ट्रेलिया की ज़मीन को टेरा न्यूलिअस (terra nullius) कहती आई थी। इसका मतलब था, ‘जो किसी की नहीं है’। इसके अलावा, वहाँ अपने आदिवासी रिश्तेदारों से छीने गए मिश्रित रक्तवाले (मूल निवासी-यूरोपीय) बच्चों का एक लंबा और यंत्रणापूर्ण इतिहास भी था।

इन सवालों पर खड़े हुए आंदोलन के कारण तहकीकातें शुरू हुईं और दो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए - एक, इस बात को मान्यता देना कि मूल निवासियों का ज़मीन के साथ, जो कि उनके लिए ‘पवित्र’ है, मज़बूत एेतिहासिक संबंध रहा है और इसका आदर किया जाना चाहिए; दो, पिछली गलतियों को धोया तो नहीं जा सकता, लेकिन ‘गोरों’ और ‘रंगबिरंगे लोगों’ को अलग-अलग रखने की कोशिश करके बच्चों के साथ जो अन्याय किया गया है, उसके लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगी जानी चाहिए।

 10.12

अभ्यास

संक्षेप में उत्तर दीजिए

1. दक्षिणी और उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बीच के फ़र्कों से संबंधित किसी भी बिन्दु पर टिप्पणी करिए।

2. आप उन्नीसवीं सदी के संयुक्त राज्य अमरीका में अंग्रेज़ी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेज़ों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की कौन-सी विशेषताएँ देखते हैं?

3. अमरीकियों के लिए ‘फ्रंटियर’ के क्या मायने थे?

4. इतिहास की किताबों में अॉस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल क्यों नहीं किया गया था?

संक्षेप में निबंध लिखिए

5. लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीज़ें कितनी कामयाब रहती हैं? किसी संग्रहालय को देखने के अपने अनुभव के आधार पर सोदाहरण
विचार करिए।

6. कैलिफ़ोर्निया में चार लोगों के बीच 1880 में हुई किसी मुलाकात की कल्पना करिए। ये चार लोग हैं ः एक अफ़्रीकी गुलाम, एक चीनी मज़दूर, गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन और होपी कबीले का एक मूल निवासी। उनकी बातचीत का वर्णन करिए।