Our Past -3

अध्याय 7

मानव स्मृति


इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप


  • स्मृति के स्वरूप को समझ सकेंगे,
  • विभिन्न प्रकार की स्मृतियों के बीच विभेद कर सकेंगे,
  • दीर्घकालिक स्मृति की सामग्री के संगठन एवं प्रस्तुतीकरण की व्याख्या कर सकेंगे,
  • स्मृति की रचनात्मक एवं पुनर्रचनात्मक प्रक्रिया के गुणों की विवेचना कर सकेंगे,
  • विस्मरण के स्वरूप एवं कारणों को समझ सकेंगे, तथा
  • स्मृति सुधार के उपायों को सीख सकेंगे।


विषयवस्तु

परिचय

स्मृति का स्वरूप

सूचना प्रक्रमण उपागम:अवस्था मॉडल

स्मृति तंत्र:संवेदी, अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक स्मृतियाँ

कार्यकारी स्मृति (बॉक्स 7.1)

प्रक्रमण स्तर

दीर्घकालिक स्मृति के प्रकार

घोषणात्मक एवं प्रक्रियामूलक; घटनापरक एवं आर्थी

दीर्घकालिक स्मृति वर्गीकरण (बॉक्स 7.2)

स्मृति मापन की विधियाँ (बॉक्स 7.3)

स्मृति में ज्ञान का संगठन एवं प्रतिनिधान

स्मृति निर्माण:प्रत्यक्षसाक्षी एवं असत्य स्मृतियाँ (बॉक्स 7.4)

स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया के रूप में

विस्मरण के स्वरूप एवं कारण

चिह्न ह्रास, अवरोध एवं पुनरुद्धार की असफलता के कारण विस्मरण

दमित स्मृतियाँ (बॉक्स 7.5)

स्मृति वृद्धि

प्रतिमाओं के उपयोग से स्मृति-सहायक संकेत

संगठन के उपयोग से स्मृति-सहायक संकेत

प्रमुख पद

सारांश

समीक्षात्मक प्रश्न

परियोजना विचार


परिचय

स्मृति हमारे जीवन में किस प्रकार का खेल करती है इससे हम सभी अवगत हैं। क्या आपने कभी इस कारण उलझन महसूस की है कि जिस जानकार व्यक्ति से आप बात कर रहे थे उसका नाम आपको याद नहीं आ रहा था? या दुशि्ंचतित और असहाय महसूस किया है जब परीक्षा से एक दिन पहले आपने जो कुछ अच्छी तरह से याद किया था वह परीक्षा के दौरान याद नहीं आ रहा है? या खुद को उत्साहित महसूस किया है, क्योंकि जो प्रसिद्ध कविता आपने बचपन में याद की थी, बिना किसी त्रुटि के आप उसकी प्ांक्तियाँ दुहरा सकते हैं? स्मृति वास्तव में मनुष्य की एक अत्यंत रोचक किंतु घटनाजटिल शक्ति है। हम कौन हैं, हमारे अंतर्वैयक्तिक संबंधों को बनाए रखने में, हमारी समस्याओं का समाधान करने में, तथा निर्णय लेने जैसे कार्यों में यह हमारी मदद करती है। चूँकि स्मृति सभी संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं; जैसे- प्रत्यक्षण, चिंतन तथा समस्या समाधान में प्रमुख है, अतएव मनोवैज्ञानिकों ने यह जानने का प्रयास किया है कि किस प्रकार सूचना स्मृति में क्रमबद्ध की जाती है, किस युक्ति से लंबे समय तक धारित की जाती है, स्मृति किन कारणों से खो जाती है, और किन प्रविधियों द्वारा स्मृति में सुधार लाया जा सकता है। इस अध्याय में हम स्मृति के इन सभी पक्षों की जाँच करेंगे तथा स्मृति तंत्र को समझने के लिए प्रतिपादित विभिन्न सिद्धांतों का अवलोकन करेंगे।

स्मृति पर किए गए मनोवैज्ञानिक शोध का इतिहास लगभग सौ वर्षों का है। स्मृति के पहले क्रमिक अध्ययन का श्रेय हर्मन एबिन्गहास (Hermann Ebbinghaus) को जाता है जो उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध (1885) के जर्मन मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने अपने ऊपर ही कई प्रयोग किए और पाया कि हम कोई भी अधिगत सामग्री, समान गति से या पूरी तरह से भूल नहीं जाते। प्रारंभ में भूलने की गति तेज़ होती है किंतु क्रमशः यह स्थिर होती जाती है। एक अन्य दृष्टिकोण फ्रेड्रिक बार्टलेट (Frederick Bartlett, 1932) द्वारा प्रतिपादित किया गया था, जिसके अनुसार स्मृति निष्क्रिय नहीं बल्कि एक सक्रिय प्रक्रिया है। सार्थक शाब्दिक सामग्री; जैसे- कहानियाँ और गद्यांशों की सहायता से उन्होंने प्रदर्शित किया कि स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया है। इसका तात्पर्य यह है कि जो कुछ भी हम स्मरण और संचित करते हैं उसमें समय के साथ बहुत परिवर्तन और संशोधन होते हैं। अतएव जो प्रारंभ में हमने याद किया था और बाद मेें उसका पुनरुद्धार या प्रत्याह्वान किया, उसमें गुणात्मक भेद होते हैं। कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक भी हैं जिन्होंने स्मृति के शोधों को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित किया है। इस अध्याय में समुचित स्थानों पर हम उनके योगदान का पुनरावलोकन करेंगे।

स्मृति का स्वरूप

स्मृति किसी सूचना को एक समय तक धारित करना तथा उसका प्रत्याह्वान करना है जो इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरह का संज्ञानात्मक कार्य किया जाना है। कभी किसी सूचना को कुछ क्षणों के लिए रोक कर रखना होेता है। उदाहरणार्थ, एक अपरिचित टेलीफोन नंबर को तब तक धारित रखना पड़ता है जब तक कि आप टेलीफोन यंत्र तक उस नंबर को डायल करने के लिए पहुँच नहीं जाते या अपने स्कूल के प्रारंभिक दिनों में जोड़-घटाव करने की जो विधि आपने सीखी थी वह कई वर्षों बाद भी याद रहती है। स्मृति एक प्रक्रिया है जिसमें तीन स्वतंत्र किंतु अंतःसंबंधित अवस्थाएँ होती हैं। ये हैं- कूट संकेतन (encoding), भंडारण (storage) एवं पुनरुद्धार (retrieval)। कोई भी सूचना जो हमारे द्वारा ग्रहण की जाती है वह इन अवस्थाओं से अवश्य प्रवाहित होती है।

(अ) कूट संकेतन पहली अवस्था है जिसका तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा सूचना स्मृति तंत्र में पहली बार पंजीकृत की जाती है, ताकि इसका पुनः उपयोग किया जा सके। जब भी कोई बाह्य उद्दीपक हमारी ज्ञानेंद्रियों को प्रभावित करता है तो वह तांत्रिका आवेग उत्पन्न करता है और इन्हें हमारे मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों में पुनः प्रक्रमण के लिए ग्रहण किया जाता है। कूट संकेतन में आने वाली सूचना को ग्रहण किया जाता है तथा उससे कोई अर्थ व्युत्पन्न किया जाता है। उसे इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि उसका पुनः प्रक्रमण किया जा सके।

(ब) भंडारण स्मृति की द्वितीय अवस्था है। सूचना, जिसका कूट संकेतन किया गया, उसका भंडारण भी आवश्यक है जिससे उस सूचना का बाद में उपयोग किया जा सके। अतः भंडारण उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा सूचना कुछ समय सीमा तक धारण की जाती है।

(स) पुनरुद्धार स्मृति की तीसरी अवस्था है। सूचना का उपयोग तभी किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति अपनी स्मृति से उसे वापस प्राप्त करने में समर्थ हो। विभिन्न प्रकार के संज्ञानात्मक कार्यों; जैसे- समस्या समाधान, निर्णयन इत्यादि को करने के लिए जब संचित सूचना को पुनः चेतना में लाया जाता है तो इस प्रक्रिया को पुनरुद्धार कहा जाता है। यह एक रोचक तथ्य है कि स्मृति की विफलता इनमें से किसी भी अवस्था में हो सकती है। आप किसी सूचना का पुनःस्मरण इसलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि आपने उसका ठीक ढंग से कूट संकेतन नहीं किया या आपका भंडारण कमज़ोर था। अतः आवश्यकता पड़ने पर उसका पुनरुद्धार नहीं किया जा सका।

सूचना प्रक्रमण उपागम:अवस्था मॉडल

प्रारंभ में यह समझा जाता था कि हम जो कुछ भी सीखते हैं या अनुभव करतेे हैं उन समस्त सूचनाओं को संचित करने की क्षमता स्मृति में होती है। इसे एक वृहद् भंडार की भाँति समझा जाता था जिससे आवश्यकता पड़ने पर उस सूचना को वहाँ से निकाल कर उसका उपयोग किया जा सके। किंतु कंप्यूटर के आविष्कार से मानव स्मृति को भी उसी तंत्र के रूप में देखा जाने लगा है जिसमें सूचनाओं का प्रक्रमण कंप्यूटर की भाँति होता है। दोनों ही बड़ी मात्रा में सूचना का पंजीकरण, भंडारण और उसमें फेरबदल करते हैं और इस फेरबदल के परिणामस्वरूप कार्य करते हैं। यदि आपने कभी कंप्यूटर पर काम किया होगा तो आपको पता होगा कि इसमें एक अस्थायी स्मृति (यादृच्छिक अभिगम स्मृति) और एक स्थायी स्मृति (जैसे- हार्ड डिस्क) होती है। कार्यक्रम आदेश के आधार पर कंप्यूटर अपनी स्मृति की सूचना में फेरबदल करके उत्पादित सूचना को कंप्यूटर की स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है। उसी प्रकार मनुष्य भी सूचना को पंजीकृत करता है, संचित करता है तथा आवश्यकतानुसार संचित सूचना में फेरबदल करता है। उदाहरणार्थ, जब आपको किसी गणितीय समस्या का समाधान करना हो तो गणितीय संक्रिया से संबंधित स्मृति, जैसे- भाग या घटाव इत्यादि का उपयोग किया जाता है और इससे स्मृति क्रियाशील होती है तथा समस्या का समाधान उत्पादित सामग्री के रूप में प्राप्त किया जाता है। इस सादृश्य से प्रेरित होकर एटकिंसन (Atkinson) एवं शिफ्रिन (Shiffrin) ने 1968 में स्मृति का प्रथम मॉडल प्रस्तुत किया, जिसे अवस्था मॉडल (stage model) के रूप में जाना जाता है।

स्मृति तंत्र:संवेदी, अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक स्मृतियाँ

अवस्था मॉडल के अनुसार स्मृति तंत्र तीन प्रकार के होते हैंः संवेदी स्मृति (sensory memory), अल्पकालिक स्मृति (short-term memory) एवं दीर्घकालिक स्मृति (long-term memory)। प्रत्येक तंत्र की अपनी अलग विशेषताएँ होती हैं तथा इनके द्वारा संवेदी सूचनाओं के संबंध में भिन्न-भिन्न प्रकार्य निष्पादित किए जाते हैं (चित्र 7.1 देखें)। आइए, देखें ये तंत्र क्या हैं।

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चित्र 7.1:स्मृति का अवस्था मॉडल

संवेदी स्मृति

कोई भी नयी सूचना पहले संवेदी स्मृति में आती है। संवेदी स्मृति की संचयी क्षमता तो बहुत होती है किंतु इसकी अवधि बहुत कम होती है, एक सेकण्ड से भी कम। यह एक एेसा स्मृति तंत्र है जो प्रत्येक संवेदना को परिशुद्धता से ग्रहण करता है। अक्सर इस तंत्र को संवेदी स्मृति या संवेदी पंजिका कहते हैं, क्योंकि समस्त संवेदनाएँ यहाँ उद्दीपक की प्रतिकृति के रूप में ही संग्रहित की जाती हैं। यदि आपने कभी दृश्य-उत्तर-बिंब (बल्ब बुझनेेे के बाद भी जो छाया रह जाती है) का अनुभव किया होेे या आवाज़ के बंद होे जाने के बाद भी उसकी प्रतिध्वनि सुनी हो तो इसका तात्पर्य है कि आप चित्रात्मक एवं प्रतिध्वन्यात्मक संवेदी पंजिका से परिचित हैं।

अल्पकालिक स्मृति

आप इस बात से सहमत होंगे कि हम उन सभी सूचनाओं पर ध्यान नहीं देते जोे हमारे संवेदी ग्राहकों को प्रभावित करती हैं। जिन सूचनाओं पर हम ध्यान देते हैं वे हमारी द्वितीय स्मृति भंडार में प्रवेश करती हैं जिसे अल्पकालिक स्मृति कहा जाता है, जोेेेेे थोड़ी सूचना को थोड़े समय तक (सामान्यतः 30 सेकण्ड या उससे कम) ही रख पाती है। एटकिंसन एवं शिफ्रिन के अनुसार अल्पकालिक स्मृति में सूचना का कूट संकेतन मुख्य रूप से ध्वन्यात्मक होता है। यदि इसका निरंतर अभ्यास न किया जाए तो 30 सेकण्ड से कम समय में ही अल्पकालिक स्मृति सेे बाहर चली जाती है। ध्यान दीजिए कि अल्पकालिक स्मृति कमज़ोर तो होती है लेकिन संवेदी पंजिका की भाँति नहीं, जहाँ एक सेकण्ड से भी कम समय में सूचना का क्षय हो जाता है।

दीर्घकालिक स्मृति

एेसी सामग्री, जो अल्पकालिक स्मृति की क्षमता एवं धारण अवधि की सीमाओं को पार कर जाती है, वह दीर्घकालिक स्मृति में प्रवेश करती है जिसकी क्षमता व्यापक है। यह स्मृति का एेसा स्थायी भंडार है जहाँ सूचनाएँ, चाहे वह कितनी भी नयी क्यों न हों, जैसे आपने कल क्या नाश्ता किया था? सेे लेकर इतनी पुरानी, जैसे आपने अपना छठा जन्मदिन कैसे मनाया था? सभी संचित होती हैं। यह प्रदर्शित किया गया है कि कोई सूचना एक बार दीर्घकालिक स्मृति के भंडार में चली जाती है तो उसे हम कभी नहीं भूलते क्योंकि वह शब्दार्थ कूट संकेतन, अर्थात किसी सूचना का क्या अर्थ है? द्वारा संग्रहित की जाती है। आप जिस सूचना को भूलते हैं वह पुनरुद्धार की विफलता के कारण होती है। पुनरुद्धार की विफलता कई कारणों से हो सकती है, जिसकी चर्चा हम इस अध्याय में आगे करेंगे।

अभी तक हमने अवस्था मॉडल के संरचनात्मक स्वरूप की ही चर्चा की है। जिन प्रश्नों के उत्तर अभी शेष हैं, वे हैं - सूचना एक भंडार से दूसरे भंडार तक कैसे पहुँचती है? और किस तंत्र के द्वारा वह एक विशिष्ट स्मृति-भंडार में संगृहीत रहती है? आइए, देखें एेसा कैसे होता है?


बॉक्स 7.1 कार्यकारी स्मृति

हाल के वर्षों में मनोवैज्ञानिकों ने सुझाया है कि अल्पकालिक स्मृति एेकिक नहीं होती है, बल्कि इसमें बहुत से घटक हो सकते हैं। अल्पकालिक स्मृति का यह बहु-घटकीय दृष्टिकोण सबसे पहले बेडेले (Baddeley) ने 1986 में प्रस्तावित किया था। उन्होंने सुझाया कि अल्पकालिक स्मृति निष्क्रिय भंडार नहीं है बल्कि एक कार्य-मेज़ है जिस पर स्मृति की बहुत प्रकार की सामग्री रखी रहती है। जब-जब लोग विभिन्न संज्ञानात्मक कार्य करते हैं तब-तब इस सामग्री का लगातार उपयोग किया जाता है, इसको नियंत्रित और परिवर्तित किया जाता है। इस कार्य-मेज़ को कार्यकारी स्मृति कहा जाता है। इस कार्यकारी स्मृति का पहला घटक स्वनिमिक घेरा है जिसमें ध्वनियों की सीमित संख्या होती है और अगर उनको दोहराया न जाए तो वे दो सेकण्ड के भीतर क्षय हो जाती है। इस स्मृति का दूसरा घटक दृष्टि-स्थानिक स्केचपैड है जिसमें चाक्षुष और स्थानिक सूचनाएँ संचित होती हैं। इस स्केचपैड की क्षमता स्वनिमिक घेरे की तरह सीमित होती है। इस स्मृति का तीसरा घटक जिसको बेडेले केंद्रीय प्रबंधक कहता है, सूचनाओं को स्वनिमिक घेरे से, दृष्टि-स्थानिक स्केचपैड से तथा दीर्घकालिक स्मृति से संगठित करता है। एक सच्चे प्रबंधक की तरह ये अवधानिक साधनों का नियतन करता है। इन साधनों को दिए हुए संज्ञानात्मक कार्य को करने के लिए आवश्यक विभिन्न सूचनाओं को वितरित करता है और व्यवहार का परिवीक्षण, नियोजन और नियंत्रण करता है।


सूचना एक भंडार से दूसरे भंडार तक कैसे पहुँचती है? इस प्रश्न के उत्तर में एटकिंसन एवं शिफ्रिन नेे निंयत्रण प्रक्रियाओं का विचार प्रस्तुत किया है जो स्मृति के विभिन्न भंडारों से सूचना के प्रवाह का परिवीक्षण करती हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि वेे सभी सूचनाएँ, जो हमारे संवेदी ग्राहक प्राप्त करते हैं, पंजीकृत नहीं की जातीं। यदि एेसा होता तो कल्पना कीजिए कि हमारे स्मृति तंत्र पर कितना दबाव होता। केवल वे ही सूचना, जिस पर ध्यान दिया जाता है, हमारे संवेदी ग्राहकों द्वारा अल्पकालिक स्मृति में प्रवेश करती हैं। जैसा कि अध्याय 5 में आप पढ़ चुके हैं कि चयनात्मक अवधान पहली नियंत्रण प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करती है कि कौन-सी सूचना संवेदी ग्राहकों से अल्पकालिक स्मृति में प्रवेश करेगी। एेसे संवेेेदी चिह्न जिन पर ध्यान नहीं दिया जाता, शीघ्र ही धूमिल हो जाते हैं। अल्पकालिक स्मृति फिर दूसरी नियंत्रण प्रक्रिया अनुरक्षण पूर्वाभ्यास को सक्रिय करती है जिससे सूचना को वांछित समय तक धारित किया जा सके। जैसा कि इसके नाम से प्रतीत होता हैै, यह पूर्वाभ्यास सूचना को दुहरा कर अनुरक्षित करता है तथा जब पूर्वाभ्यास रुक जाता है तब सूचना की क्षति हो जाती है। अल्पकालिक स्मृति की क्षमता को बढ़ाने के लिए एक औेर नियंत्रण प्रक्रिया, जो अल्पकालिक स्मृति में गतिशील होती है, खंडीयन विधि (chunking) है। इसके द्वारा अल्पकालिक स्मृति की क्षमता, जो वैसे तो 7+2 होती है, बढ़ाई जा सकती है (क्रियाकलाप 7.1 देखेें)। उदाहरणार्थ, यदि आपको अंकों की एक शृंखला याद करनी हो जैसेे - 194719492004 (ध्यान दें कि संख्या अल्पकालिक स्मृति की क्षमता से अधिक है) तो आप 1947, 1949 और 2004 के खंड बना सकते हैं तथा इसे भारतवर्ष की स्वतंत्रता का वर्ष, भारतीय संविधान को अपनाने का वर्ष तथा भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के तटीय क्षेत्रों में सुनामी आने के वर्ष के रूप में याद कर सकते हैं।

सूचना अल्पकालिक स्मृति से दीर्घकालिक स्मृति में विस्तारपरक पूर्वाभ्यास के द्वारा प्रवेश करती है। अनुरक्षण पूर्वाभ्यास के विपरीत, जिसमें मूक या वाचिक रूप से दुहराया जाता है, इसमें धारित की जाने वाली सूचना को दीर्घकालिक स्मृति में पूर्व निहित सूचना के साथ जोड़ने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए, ‘मानवता’ शब्द का अर्थ याद करना सरल होगा, यदि पहले से हम ‘करुणा’ ‘सत्य’ और ‘सद्भावना’ के संप्रत्ययों का तात्पर्य जानते हों। नयी सूचना के साथ आप कितना साहचर्य उत्पन्न कर सकते हैं, यह उसके स्थायित्व को निर्धारित करेगा। विस्तारपरक पूर्वाभ्यास में व्यक्ति एक सूचना को उससेे उद्वेलित विभिन्न साहचर्यों के आधार पर विश्लेषित करता है। इसमें सूचना को विभिन्न संभावित तरीकों से संगठित किया जाता है। सूचना को किसी तार्किक ढाँचे में विस्तृत किया जा सकता है, समान स्मृतियों से जोड़ा जा सकता है, अथवा कोई मानसिक प्रतिमा बनाई जा सकती है। चित्र 7.1 स्मृति के अवस्था मॉडल को प्रदर्शित करता है, जिसमें बने हुए तीर यह दिखाते हैं कि सूचना कैसे एक अवस्था से दूसरी अवस्था तक प्रवाहित होती है।

अवस्था मॉडल का परीक्षण करने हेतु जो प्रयोग किए गए उनसे मिश्रित परिणाम प्राप्त हुए हैं। जहाँ कुछ प्रयोग स्पष्टतः यह सिद्ध करते हैं कि अल्पकालिक स्मृति और दीर्घकालिक स्मृति वास्तव में दो भिन्न स्मृति भंडार हैं, वहीं अन्य प्रयोगों ने इनकी विभिन्नता पर प्रश्नचिह्न लगाया है। उदाहरणार्थ, पहले दिखाया गया कि अल्पकालिक स्मृति की सूचना प्रतिध्वन्यात्मक रूप से संकेतित की जाती है जबकि दीर्घकालिक स्मृति की सूचना शब्दार्थ रूप से, किंतु बाद के प्रायोगिक प्रमाण यह प्रदर्शित करते हैं कि अल्पकालिक स्मृति में सूचना शब्दार्थ के रूप में तथा दीर्घकालिक स्मृति में प्रतिध्वन्यात्मक रूप में भी संकेतित की जा सकती है।

क्रियाकलाप 7.1

I. नीचे लिखे गए अंकों की सूची (प्रत्येक अंक) को याद करने का प्रयत्न कीजिए:

1 9 2 5 4 9 8 1 1 2 1

अब इन्हें निम्न समूहों में याद करने का प्रयास कीजिए:

1 9 25 49 81 121

अंत में इन्हें निम्नलिखित तरीके से याद कीजिए:

12 32 52 72 92 112

आपने इनमें क्या अंतर पाया?

II. नीचे की पंक्ति में दी गई सूची का एक-एक अंक प्रति सेकण्ड की गति से पढ़िए तथा अपने मित्र को उसी क्रम में अंकों को दोहराने के लिए कहिए:

सूची अंक

1 (6 अंक) 2-6-3-8-3-4

2 (7 अंक) 7-4-8-2-4-1-2

3 (8 अंक) 4-3-7-2-9-0-3-6

4 (10 अंक) 9-2-4-1-7-8-2-6-5-3

5 (12 अंक) 8-2-5-4-7-4-7-7-3-9-1-6

याद रखिए कि आपके द्वारा एक पंक्ति के सभी अंकों को पढ़ लेने के बाद आपका मित्र प्रत्याह्वान करेगा। आपके मित्र द्वारा प्रत्याह्वान की गई अंकों की सही मात्रा ही उसका स्मृति प्राप्तांक होगा। अपने सहपाठियों और शिक्षक के साथ अपने परिणाम की विवेचना कीजिए।


सन् 1970 में शैलिस (Shallice) एवं वारिंगटन (Warrington) ने एक एेसे व्यक्ति का उद्धरण प्रस्तुत किया जो KF के नाम से जाना जाता था, जिसके प्रमस्तिष्कीय गोलार्द्ध का बायाँ हिस्सा चोट के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था। कालांतर में यह पाया गया कि उसकी दीर्घकालिक स्मृति तो सुरक्षित थी किंतु अल्पकालिक स्मृति बुरी तरह से प्रभावित थी। अवस्था मॉडल यह इंगित करता है कि सूचनाएँ दीर्घकालिक स्मृति में अल्पकालिक स्मृति से होकर ही जाती हैं। यदि KF की अल्पकालिक स्मृति प्रभावित थी तो दीर्घकालिक स्मृति कैसे सामान्य थी? कई अन्य अध्ययनों ने यह प्रदर्शित किया है कि स्मृति की प्रक्रियाएँ सभी सूचनाओं के लिए समान होती हैं, चाहे वे कुछ सेकण्ड के लिए धारित की गई हों या कई सालों के लिए। साथ ही, स्मृति भंडारों को अलग किए बिना भी स्मृति को पर्याप्त रूप से समझा जा सकता है। इन सभी प्रमाणों के फलस्वरूप स्मृति की अन्य संकल्पना-निर्धारण विधि का विकास हुआ जिसे यहाँ स्मृति के दूसरे मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

प्रक्रमण स्तर

प्रक्रमण स्तर दृष्टिकोण क्रैक (Craik) एवं लॉकहार्ट (Lockhart) द्वारा सन् 1972 में प्रतिपादित किया गया था। इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी भी नयी सूचना का प्रक्रमण इस बात से संबंधित है कि उसका किस प्रकार से प्रत्यक्षण एवं विश्लेषण किया जा रहा है तथा उसे किस प्रकार से समझा जा रहा है। प्रक्रमण का स्तर यह सुनिश्चित करता है कि किस सीमा तक सूचना धारित की जाएगी। यद्यपि तब से इस दृष्टिकोण में कई संशोधन किए जा चुके हैं, किंतु फिर भी इसके मूलभूत पक्ष समान हैं। आइए, इस दृष्टिकोण की विस्तार से जाँच करें।

क्रैक एवं लॉकहार्ट ने बताया कि सूचना का कई स्तरों पर विश्लेषण संभव है। कोई भी इसके भौतिक या संरचनात्मक गुणों के आधार पर विश्लेषण कर सकता है। उदाहरणार्थ, ‘बिल्ली’ शब्द के लिए कोई भी इस बात पर ध्यान दे सकता है कि वह बड़े अक्षरों में लिखा गया है या छोटे अक्षरों में, या उसकी स्याही का रंग कैसा है। यह प्रथम एवं सबसे निम्न स्तर का प्रक्रमण है। मध्य स्तर पर कोई इस शब्द के उच्चारण की ध्वनि पर ध्यान दे सकता है अर्थात इसकी संरचनात्मक विशेषताआें के आधार पर इसका अर्थ निकाल सकता है कि बिल्ली शब्द में दो पूर्ण अक्षर तथा एक आधा अक्षर है। इन दो स्तरों पर सूचना का विश्लेषण किए जाने पर स्मृति कमज़ोर रहती है और शीघ्र ही उसका क्षय हो जाता है। सूचना का प्रक्रमण एक तीसरे और गहन स्तर पर भी किया जा सकता है। कोई भी सूचना लंबे समय तक हमारी स्मृति में रहे, इसके लिए आवश्यक है कि उसका अर्थ समझ कर उस सूचना का विश्लेषण किया जाए। उदाहरणार्थ, आप यह सोच सकते हैं कि बिल्ली एक जानवर है जिसके रोएँ होते हैं, चार पैर होते हैं, एक पूँछ होती है और यह स्तनधारी होती है। आप बिल्ली की प्रतिमा भी अपने मन में ला सकते हैं और उसे अपने अनुभव से जोड़ सकते हैं। संक्षेप में, जब हम सूचना की संरचनात्मक और स्वनिक विशेषताओं पर ध्यान देते हैं तो यह निचले स्तर का प्रक्रमण है जबकि इसके शब्दार्थ के आधार पर कुछ संकेतन करना गहन स्तर का प्रकमण है, इससे एेसी स्मृति बनती है कि उसका विस्मरण अपेक्षाकृत कम होता है।

हम किसी सूचना को जिस तरह से संकेतित करते हैं, हमारी स्मृति उसी का परिणाम होती है। इस तथ्य का महत्त्व अधिगम की प्रक्रिया में सर्वाधिक है। स्मृति के इस पक्ष से आप यह अनुभव करेंगे कि जब भी आप कोई नया पाठ सीख रहे होते हैं तो यथासंभव सामग्री के अर्थ पर विस्तारपूर्वक ध्यान देना आवश्यक होता हैै न कि केवल रट कर याद करना। इस युक्ति का प्रयोग कीजिए और आप शीघ्र ही महसूस करेंगे कि किसी सूचना के अर्थ को समझना तथा उसे दूसरे संप्रत्ययों, तथ्यों एवं अपने जीवन के अनुभवों से जोड़ना, दीर्घकालिक धारण का सुनिश्चित उपाय है।

दीर्घकालिक स्मृति के प्रकार

जैसा कि आपने बॉक्स 7.1 में पढ़ा कि अल्पकालिक स्मृति या कार्यकारी स्मृति में एक से अधिक घटक होते हैं। उसी तरह दीर्घकालिक स्मृति भी एेकिक नहीं है, क्योंकि इसमें भिन्न प्रकार की सूचनाएँ होती हैं। इस दृष्टिकोण से दीर्घकालिक स्मृति के कई प्रकार होते हैं। उदाहरण के लिए, दीर्घकालिक स्मृति का एक प्रमुख वर्गीकरण, घोषणात्मक (declarative) एवं प्रक्रियामूलक (procedural) (कभी-कभी अघोषणात्मक) स्मृतियाँ है। सभी सूचनाएँ जिनमें तथ्य, नाम, तिथि; जैसे- रिक्शा के तीन पहिए होते हैं, भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, मेेंढक उभयचर प्राणी है, तथा आप और आपके मित्र का एक ही नाम है, घोषणात्मक स्मृति के अंग हैं। दूसरी ओर, प्रक्रियामूलक स्मृति उन स्मृतियों से संबंधित है जिनमें किसी कार्य को पूरा करने के लिए कुछ कौशल की आवश्यकता होती है; जैसे- साइकिल चलाना, बास्केटबॉल खेलना, चाय बनाना इत्यादि। घोषणात्मक स्मृति से संबंधित तथ्यों का शाब्दिक वर्णन किया जा सकता है जबकि प्रक्रियामूलक स्मृति को सहजता से वर्णित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए, आप यह तो बता सकते हैं कि क्रिकेट कैसे खेला जाता है, लेकिन यदि कोई पूछे कि साइकिल कैसे चलाई जाती है तो यह बताना आपके लिए कठिन होता है।

टलविंग (Tulving) ने एक अन्य वर्गीकरण सुझाया कि घोषणात्मक स्मृति घटनापरक (episodic) या आर्थी (semantic) स्मृति के रूप में वर्गीकृत की जा सकती है।

घटनापरक स्मृति में जीवन चरित सेे संबंधित सूचनाएँ होती हैं। हमारे निजी जीवन से संबंधित स्मृतियाँ घटनापरक स्मृति बनाती हैं, इसलिए सामान्यतया इनका सांवेगिक स्वरूप होता है। आप जब कक्षा में प्रथम आए तो आपको कैसा लगा? या आपका मित्र आपसे गुस्सा हुआ या उसने आपसे कुछ कहा जब आपने अपना वादा पूरा नहीं किया? यदि इस तरह की घटनाएँ वास्तव में आपके जीवन में घटित हुई हों तो संभवतः आप इन सभी प्रश्नों का सही उत्तर देने में समर्थ होंगे। इस तरह के अनुभवों को भूलना सरल नहीं होता, किंतु यह भी सत्य है कि बहुत सारी घटनाएँ जीवन में लगातार होती रहती हैं जिसमें सभी को हम याद नहीं रखतेे। दुःखद एवं कष्टप्रद अनुभवों को हम उतना नहीं याद रखते जितना सुखद अनुभवों को।

बॉक्स 7.2 दीर्घकालिक स्मृति वर्गीकरण

दीर्घकालिक स्मृति का अध्ययन एक रोचक विषय है तथा शोधकर्ताओं ने कई नवीन तथ्यों को उद्घाटित किया है। निम्न विवरण मानव स्मृति की जटिल एवं गत्यात्मक प्रकृति को प्रदर्शित करते हैं।

क्षणदीप स्मृतियाँ:यह एेसी घटनाओं की स्मृतियाँ होती हैं जोे बहुत आश्चर्यचकित और उद्दीप्त करने वाली होती हैं। एेसी स्मृतियाँ बहुुत विशद होती हैं। यह ठीक उसी तरह होती हैं जैसा कि किसी आधुनिक कैमरे से लिया गया फोटो। आप बटन दबाइए और एक मिनट के बाद वह चित्र आपके सामने होता है। आप जब चाहें उस चित्र को देख सकते हैं। क्षणदीप स्मृतियाँ किसी विशेष स्थान, तिथि व समय से जुुड़े एेसे चित्रों की होती हैं जो हमारी स्मृति में लगभग स्थिर हो जाती हैं। संभवतः लोग इस प्रकार की स्मृतियों को बनाने का अधिक प्रयास करते हैं, तथा उसके विस्तृत गुणों पर अधिक प्रकाश डालतेे हैं जिसके कारण गहन स्तर का प्रक्रमण हो जाता है एवं पुनरुद्धार के लिए अधिक संकेत प्राप्त हो जाते हैं।

जीवनचरित स्मृति:यह व्यक्तिगत जीवन से संबंधित स्मृतियाँ होती हैं जो पूरे जीवन में समान रूप से वितरित नहीं होती हैं। हमारे जीवन में कुछ काल दूसरे काल की अपेक्षा अधिक स्मृतियाँ उत्पन्न करते हैं। जैसे कि प्रांरभिक बाल्यावस्था विशेषतः प्रथम 4 से 5 वर्ष के आयु की स्मृतियाँ हम नहीं बता पातेे हैं। इसे बाल्यावस्था स्मृतिलोप कहते हैं। प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था के तुरंत बाद अर्थात् 20 के दशक में स्मृतियों की संख्या में नाटकीय वृद्धि होती है। संभवतः घटनाओं की सांवेगिकता, नवीनता एवं महत्त्व का इसमें योगदान होता है। वृद्धावस्था के दौरान जीवन के हाल ही के वर्षों की स्मृतियाँ सबसे अधिक होती हैं। हालाँकि 30 वर्ष की आयु के आसपास कुछ स्मृतियों में अवनति प्रारंभ हो जाती है।

निहित स्मृतियाँ:नवीन अध्ययनों से यह प्रदर्शित हुआ है कि कुछ स्मृतियाँ व्यक्ति की चेतन अभिज्ञा से बाहर रहती हैं। निहित स्मृतियाँ वे स्मृतियाँ हैं जिनके प्रति व्यक्ति अनभिज्ञ होता है तथा जो स्वचालित रूप से पुनरुद्धत होती हैं। यदि कोई व्यक्ति टंकण जानता है तो वह यह भी जानता है कि कौन से अक्षर कुंजीपटल पर हैं। यदि कुंजीपटल के चित्र में रिक्त कुंजी दी जाए तो कई टंकक सही कुंजी नहीं बता पाते। निहित स्मृतियाँ हमारी अभिज्ञा की सीमाओं से बाहर होती हैं। दूसरे शब्दों में, हम नहीं जानते कि हमारे स्मृतिकोष में कोई अनुभव संचित है या नहीं, तथापि निहित स्मृतियाँ हमारे व्यवहारों को प्रभावित करती रहती हैं। इस प्रकार की स्मृति उन मरीज़ों में पाई गईं, जिन्हें मस्तिष्क में चोटें लगी थीं। उनको कुछ सामान्य शब्दों की एक सूची दिखाई गई। कुछ मिनट के पश्चात् मरीज़ों से सूची के शब्द पूछे गए तो वे नहीं बता पाए। किंतु दो अक्षरों को देकर उनसे बनने वाले शब्दों के लिए उन्हें उकसाया गया तो मरीज़ शब्दों का प्रत्याह्वान कर सके। जिन लोगों की स्मृतियाँ सामान्य होती हैं उनमें भी निहित स्मृतियाँ पाई जाती हैं।


आर्थी स्मृति सामान्य ज्ञान एवं जागरूकता की स्मृति है। सभी प्रकार के संप्रत्यय, विचार तथा तर्कसंगत नियम आर्थी स्मृति में संचित होते हैं। उदाहरणार्थ, अर्थगत स्मृति के कारण ही हम ‘अहिंसा’ का अर्थ याद रख पाते हैं या हम यह भी याद कर पाते हैं कि 2+6=8 होता है, या नयी दिल्ली का STD कोड 011 है या ‘कीताब’ में ‘ई’ की मात्रा गलत है। घटनापरक स्मृति की भाँति हम इसमें तिथि नहीं याद रख पातेे। जैसे कि आप यह याद नहीं रख पाते कि कब आपने ‘अंहिसा’ का अर्थ जाना या किस तिथि को यह जाना कि कर्नाटक की राजधानी बैंगलूर है। चूँकि घटनापरक स्मृति तथ्यों, विचारों तथा सामान्य ज्ञान एवं जागरूकता से संबंधित होती है, इसलिए इसकी सामग्री भाव-तटस्थ होती है। अतः इसकी विस्मृति नहीं होती। दीर्घकालिक स्मृति के विविध अन्य वर्गीकरणों के लिए बॉक्स 7.2 देखें।

क्रियाकलाप 7.2

  1. विद्यालय के अपने प्रांरभिक दिनों को याद कीजिए। उन दिनों में घटित हुई दो अलग-अलग घटनाओं को लिखिए जो आपको सजीव रूप से याद हों। प्रत्येक घटना को अलग-अलग कागज़ पर लिखिए।
  2. कक्षा 11 के प्रथम माह के बारे में सोचिए। उस माह जो घटनाएँ घटित हुई उनमें से दो के बारे में अलग-अलग लिखिए जो आपको सजीव रूप से याद हों। प्रत्येक के लिए अलग कागज़ प्रयोग कीजिए।
घटनाओं की लंबाई, अनुभूत संवेग एवं संगति के आधार पर इनकी तुलना कीजिए।


क्रियाकलाप 7.3

निम्नलिखित वाक्यों को अलग-अलग कार्ड पर लिखिए। अपने से निचली कक्षा के विद्यार्थियों को यह खेल खेलने के लिए आमंत्रित कीजिए। उसे अपनी मेज़ की दूसरी ओर सामने बिठाइए। उसे बताइए कि ‘‘इस खेल में आपको कुछ कार्ड एक-एक करके धीरे-धीरे से दिखाए जाएँगे। आपको प्रत्येक कार्ड पर लिखे प्रत्येक प्रश्न को ध्यानपूर्वक पढ़ना है तथा उसका उत्तर ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में देना है।’’

दिए गए उत्तरों को लिखिए।

  1. क्या यह शब्द बड़े अक्षरों में लिखा है? BELT
  2. क्या यह शब्द हाल शब्द से तुकबंदी करता है? चाल
  3. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? ------ विद्यालय में पढ़ते हैं? विद्यार्थी
  4. क्या यह शब्द सोना शब्द से तुकबंदी करता है? सोहर
  5. क्या यह शब्द अंग्रेज़ी के बड़े अक्षरों में लिखा है? bread
  6. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? मेरे चाचा का पुत्र मेरा------- है। चचेरा भाई
  7. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? मेरा-----एक सब्जी है। घर
  8. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? ------- एक फर्नीचर है। आलू
  9. क्या यह शब्द अंग्रेज़ी के बड़े अक्षरों में लिखा है? TABLE
  10. क्या यह शब्द बंदूक शब्द से तुकबंदी करता है? संदूक
  11. क्या यह शब्द अंग्रेज़ी के बड़े अक्षरों में लिखा है? marks
  12. क्या यह शब्द पुस्तक शब्द से तुकबंदी करता है? महान
  13. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? बच्चे-----खेलना पसंद करते हैं। खेल
  14. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? लोग प्रायः-----से बाल्टी में मिलते हैं। मित्रों
  15. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? मेरी कक्षा -----से भरी हुई है। कमीज़ों
  16. क्या यह शब्द नीचे दिए गए वाक्य में सही बैठता है? मेरी माँ मुझे पर्याप्त जेब-----देती हैं।  खर्च

कार्ड पढ़ने के बाद विद्यार्थियों से उन शब्दों का प्रत्याह्वान करने के लिए कहिए जिनके बारे में प्रश्न पूछे गए थे। याद किए गए शब्दों को लिख लीजिए। प्रश्न में वांछित प्रक्रमण के आधार पर संरचनात्मक, स्वानिमिक एवं शब्दार्थपरक प्रकार से प्रत्याह्वान किए गए शब्दों की संख्या लिख लीजिए। अपने अध्यापक के साथ परिणामों की विवेचना कीजिए।


बॉक्स 7.3 स्मृति मापन की विधियाँ

स्मृति का मापन प्रायोगिक रूप से कई प्रकार से किया जा सकता है। चूँकि कई प्रकार की स्मृतियाँ होती हैं, अतः एक विधि जो एक स्मृति का अध्ययन करने के लिए उपयुक्त होती है वह दूसरे प्रकार की स्मृति का अध्ययन करने के लिए अनुपयुक्त हो सकती है। स्मृति मापन की प्रमुख विधियाँ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैंः

(अ) मुक्त प्रत्याह्वान अथवा पुनःस्मरण एवं प्रत्यभिज्ञान (तथ्य/घटना से संबंधित स्मृति मापन हेतु)ः मुक्त प्रत्याह्वान विधि में प्रतिभागियों को कुछ शब्द प्रस्तुत किए जाते हैं जो उन्हें याद करने होते हैं और कुछ समय के बाद उन्हें शब्दों को किसी भी क्रम में प्रत्याह्वान करने को कहा जाता है। जितना अधिक वे पुनःस्मरण कर पाते हैं उतनी अच्छी उनकी स्मृति मानी जाती है। प्रत्यभिज्ञान विधि में प्रतिभागी याद किए हुए शब्दों को अपरिचित शब्दों (जिसे उसने पहले नहीं देखा) के साथ देखता है, और उसका काम उनमें से याद किए गए शब्दों को पहचानना होता है। जो जितना अधिक याद किए गए शब्दों को पहचान लेता है उसकी स्मृति उतनी अच्छी होती है।

(ब) वाक्य सत्यापन कार्य (आर्थी स्मृति मापन हेतु)ः जैसाकि आपने अभी तक पढ़ा है कि आर्थी स्मृति किसी प्रकार के विस्मरण के अधीन नहीं होती, क्योंकि इसमें वह सामान्य ज्ञान सम्मिलित होता है जो हमारे पास होता है। वाक्य सत्यापन कार्य में प्रतिभागियों को यह बताना होता है कि दिए हुए वाक्य सही हैं या गलत। जितनी तीव्र गति से प्रतिभागी उत्तर देता है, उतनी अच्छी तरह से सूचना धारित होती है, जो वाक्यों को सत्यापित करने के लिए आवश्यक होती है (आर्थी ज्ञान का मापन करने के लिए इस क्रिया का उपयोग कैसे किया जाए, उसके लिए क्रियाकलाप 7.3 देखें)।

(स) प्राथमिक लेप (उन सूचनाओं का मापन करने के लिए जिन्हें हम शाब्दिक रूप से नहीं बता सकते):हम कई प्रकार की सूचनाओं को संचित करते हैं जिन्हें हम शाब्दिक रूप से वर्णित नहीं कर सकते हैं। उदाहरणार्थ, साइकिल चलाने या सितार बजाने के लिए आवश्यक सूचना। इसके अलावा वे सूचनाएँ भी हम संचित करते हैं जिनके प्रति हम अनभिज्ञ होते हैं, जिसे निहित स्मृति भी कहते हैं। प्राथमिक लेप विधि में प्रतिभागियों को शब्दों की एक सूची दिखाई जाती है; जैसे- बंदरगाह, अस्पताल, फुर्तीला इत्यादि। फिर उन्हें इन शब्दों के कुछ अंश; जैसे- बंद, अस्प, फुर दूसरे शब्दों के अंश, जिन्हें प्रतिभागियों ने पहले से नहीं देखा है, के साथ मिलाकर दिखाए जाते हैं। प्रतिभागी पहले देखे हुए शब्दों के अंश को अनदेखे शब्दों के अंश की तुलना में शीघ्रता से पूरा करते हैं। पूछे जाने पर अक्सर वे इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं तथा यह कहते हैं कि उन्होंने केवल अंदाज से इसे पूरा किया है।


स्मृति में ज्ञान का संगठन एवं प्रतिनिधान

इस खंड में हम यह देखेंगे कि दीर्घकालिक स्मृति में सूचनाएँ किस प्रकार संगठित होकर एक प्रारूप धारण करती हैं। चूँकि दीर्घकालिक स्मृति में वृहद् मात्रा में सूचनाएँ होती हैं जिनका उपयोग हम कुशलतापूर्वक करते हैं, अतः यह जानना बहुत उपयोगी होगा कि हमारा स्मृति तंत्र किस प्रकार से इन सूचनाओं को संगठित करता है जिससे कि सही समय पर सही सूचना हमें प्राप्त हो जाती है। यहाँ इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि दीर्घकालिक स्मृति में सूचना-संगठन से संबंधित बहुत से विचार उन प्रयोगों से प्राप्त परिणामों के आधार पर हैं जो आर्थी पुनरुद्धार कार्यों के उपयोग से प्राप्त हुए हैं। संभवतः आप इस बात से सहमत होंगे कि आर्थी स्मृति की सामग्री के पुनःस्मरण में कोई त्रुटि नहीं हो सकती। यदि कोई व्यक्ति यह जानता है कि पक्षी उड़ते हैं तो वह कभी इस प्रश्न का गलत उत्तर नहीं देगा कि - क्या पक्षी उड़ते हैं? उत्तर हमेशा सहमति में होगा। किंतु लोग उन प्रश्नों का उत्तर देने में भिन्न-भिन्न समय ले सकते हैं जिनमें आर्थी निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। क्या पक्षी उड़ते हैं? इस प्रश्न का उत्तर देने में कोई व्यक्ति एक सेकण्ड से ज़्यादा का समय नहीं लेगा किंतु यदि यह पूछा जाए कि क्या पक्षी जानवर हैं? तो उत्तर देने में समय लग सकता है। इस तरह के प्रश्नों का उत्तर देने में लोगों को कितना समय लगता है, इसके आधार पर दीर्घकालिक स्मृति में संगठन के स्वरूप का अनुमान लगाया गया है।

दीर्घकालिक स्मृति में ज्ञान-प्रतिनिधान की सबसे महत्वपूर्ण इकाई संप्रत्यय है। संप्रत्यय (concepts) उन वस्तुओं और घटनाओं के मानसिक संवर्ग हैं जो कई प्रकार से एक दूसरे के समान हैं।

एक बार जब संप्रत्यय बन जाते हैं तो वह वर्गों में संगठित हो जाते हैं। वर्ग स्वयं ही एक संप्रत्यय है किंतु इनका प्रकार्य दूसरे संप्रत्ययों में सामान्य विशेषताओं के आधार पर सामान्यताएँ संगठित करना है। उदाहरणार्थ, आम शब्द एक वर्ग है क्योंकि भिन्न-भिन्न प्रकार के आमों को इस एक वर्ग में रख सकते हैं, तथा साथ ही यह एक संप्रत्यय भी है जो फल की श्रेणी में आता है। संप्रत्यय स्कीमा में भी संगठित होते हैं, जो एक मानसिक ढाँचा होता है तथा जो इस वस्तु जगत के बारे में हमारे ज्ञान एवं अभिग्रह का प्रतिनिधान करते हैं। उदाहरणार्थ, हमारे पास बैठक का एक स्कीमा हो सकता है जो हमें बताता है बैठक में क्या-क्या चीज़ें हो सकती हैं (जैसे सोफा, मेज़, तस्वीरें आदि) और हमें उन्हें बैठक में कहाँ ढूँढ़ना चाहिए।

अभी तक हमने संप्रत्यय को ज्ञान के मूलभूत स्तर के रूप में जाँचा जहाँ वह दीर्घकालिक स्मृति में निरूपित होता है, तथा वर्ग और स्कीमा के विचारों को जाना, जहाँ संप्रत्यय प्राथमिक स्तर पर संगठित होते हैं। आइए, देखें कि दीर्घकालिक स्मृति में उच्च स्तर पर संप्रत्यय का संगठन कैसे होता है?

सन् 1969 में एलन कोलिन्स (Allan Collins) एवं रॉस क्विुलियन (Ross Quillian) ने एक एेतिहासिक शोधपत्र प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने बताया कि दीर्घकालिक स्मृति में सूचना श्रेणीबद्ध रूप से संगठित होती है तथा उसकी एक जालीदार संरचना होती है। इस संरचना के तत्वों को निष्पंद बिंदु कहा जाता है। निष्पंद बिंदु संप्रत्यय होते हैं किंतु इनके बीच के संबंध को नामपत्रित संबंध कहते हैं जो संप्रत्ययों के गुणधर्म या श्रेणी सदस्यता दर्शाते हैं।

दीर्घकालिक ज्ञान की इस प्रस्तावित जालीदार संरचना की पुष्टि के लिए प्रयोगों के प्रतिभागियों से कुछ वाक्यों को सत्यापित करने को कहा गया, जैसे ‘केनेरी एक पक्षी है’ (उत्तर हाँ/नहीं में था) या ‘केनेरी एक जानवर है’। ये सामान्यतः वर्ग समावेश के कथन थे, इनमें ‘केनेरी’ शब्द कर्ता (शायद आप जानते हैं कि यह एक पक्षी है) तथा ‘एक पक्षी है’ विधेय है। इन प्रयोगों से जो समीक्षात्मक निष्कर्ष मिला, वह यह था कि जैसे-जैसे विधेय किसी वाक्य में कर्ता से पदानुक्रम में दूर होता गया, लोगों ने सही या गलत बताने में अधिक समय लिया। अर्थात लोगों ने पहले कथन की तुलना में कि ‘केनेरी एक पक्षी है’ दूसरे कथन को कि ‘केनेरी एक जानवर है’, जाँचने में अधिक समय लिया। क्योंकि पक्षी एक पास की उच्च श्रेणी है जिसमें केनेरी को रखा जा सकता है जबकि जानवर एक एेसी उच्च श्रेणी है जो केनेरी के संप्रत्यय से दूर एवं परोक्ष है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, हम सभी सूचनाओं को एक निश्चित स्तर पर संचित कर सकते हैं जो ‘उस श्रेणी के सभी सदस्यों पर लागू होती है तथा निचले क्रमिक स्तर पर इसे अधिक दोहराने की आवश्यकता नहीं पड़ती।’ यह एक उच्चस्तरीय संज्ञानात्मक लाघव (cognitive economy) को सुनिश्चित करती है जिसका तात्पर्य यह है कि दीर्घकालिक स्मृति की क्षमता का अधिकाधिक एवं कुशलतापूर्वक तथा कम से कम व्यतिरिक्तता में उपयोग किया जा सकता है।

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चित्र 7.2 : जालीदार श्रेणीबद्ध मॉडल

अभी तक हमने संप्रत्यय की दीर्घकालिक स्मृति में ज्ञान-प्रतिनिधान की एक इकाई के रूप में चर्चा की है तथा यह देखा कि किस प्रकार से संप्रत्यय संगठित होते हैं। क्या इसका तात्पर्य यह है कि कोई भी ज्ञान केवल शब्दों के प्रारूप में ही संकेतित होता है या कूट संकेतन अन्य प्रकारों से भी हो सकता है? यह दिखाया जा चुका है कि सूचना प्रात्यक्षिक रूप में या प्रतिमाओं के रूप में संकेतित की जा सकती है। प्रतिमा किसी भी प्रतिनिधान का स्थूल रूप है जो किसी वस्तु के प्रात्यक्षिक गुणधर्म को बताती है। यदि आपके सामने ‘विद्यालय’ शब्द बोला जाए तो आपके सामने अपने विद्यालय की प्रतिमा उभर कर आएगी। वास्तव में, सभी मूर्त वस्तुएँ (तथा संप्रत्यय) कुछ प्रतिमाएँ उत्पन्न करती हैं जिन्हें हम शाब्दिक एवं चाक्षुष रूप से संकेतित करते हैं। इसे द्वि-संकेत परिकल्पना (dual-code-hypothesis) कहते हैं जिसे मूलतः पैवियो (Paivio) ने प्रतिपादित किया था। इस परिकल्पना के अनुसार, मूर्त संज्ञाएँ एवं मूर्त वस्तुओं से संबंधित सूचनाएँ प्रतिमाओं के रूप में संकेतित एवं संचित की जाती हैं जबकि अमूर्त संप्रत्ययों से संबंधित सूचनाएँ शाब्दिक एवं वर्णनात्मक कोड धारण कर लेती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपसे पक्षी का वर्णन करने को कहा जाए तो सर्वप्रथम आप उसकी एक प्रतिमा का निर्माण करेंगे एवं उसके आधार पर पक्षी का वर्णन करेंगे। किंतु दूसरी ओर, ‘सत्यता’ या ‘ईमानदारी’ जैसे संप्रत्ययों के अर्थ के साथ, उस प्रकार से अनुषंगी प्रतिमाएँ नहीं होंगी। इसलिए, जो भी सूचना शाब्दिक तथा प्रतिमा के रूप में संकेतित की जाती है उसका अधिक आसानी से पुनः स्मरण किया जा सकता है।

बॉक्स 7.4 स्मृति निर्माण:प्रत्यक्षसाक्षी एवं असत्य स्मृतियाँ

प्रत्यक्षसाक्षी स्मृति

कोर्ट में आपराधिक मामलों की कार्यवाही का यदि आपको कुछ अनुमान है तो आप जानते होंगे कि दोषी के प्रति प्रत्यक्ष का साक्ष्य सबसे विश्वसनीय साक्ष्य माना जाता है। 1970 के दशक के मध्य में लॉफ्टस (Loftus) और उनके सहकर्मियों के द्वारा किए गए प्रयोगों ने यह प्रदर्शित किया कि प्रत्यक्षसाक्षी की स्मृति में कई दोष हो सकते हैं।

लॉफ्टस ने अपने सरल प्रयोग में प्रतिभागियों को कार-दुर्घटना की एक पि.ηल्म दिखाई और बाद में प्रश्न इस प्रकार से पूछा जो कि घटना के कूट संकेतन में बाधा पहुँचाने वाला था। एक प्रश्न था, ‘‘कारें कितनी तीव्र गति से जा रही थीं जब दोनों ने एक-दूसरे को भीषण टक्कर दी और चकनाचूर कर दिया।’’ एक दूसरा प्रश्न पूछा कि कारें किस गति से जा रही थीं जब दोनों एक-दूसरे के संपर्क में आईं। जिनसे चकनाचूर वाला पहला प्रश्न पूछा गया था उन्होंने कारों की गति का अनुमान 40.8 मील प्रति घंटा लगाया, जबकि दूसरे प्रश्न वाले प्रतिभागियों ने 31.8 मील प्रति घंटा बताया। स्पष्टतः प्रश्न पूछे जाने के तरीके ने स्मृति में परिवर्तन कर दिया। दिग्भ्रमित करने वाले प्रश्नों में घटना अधिलिखित थी। इस प्रयोग से और अन्य प्रयोगों के परिणाम से लॉफ्टस ने यह स्पष्ट प्रदर्शित किया कि स्मृति में विभिन्न प्रकार की त्रुटियाँ हो सकती हैं। कुछ त्रुटियाँ दिग्भ्रमित प्रश्नों के कारण, तो कुछ घटना की भावात्मक प्रकृति के कारण हो सकती हैं। चूँकि दुर्घटना या हिंसा की घटनाएँ तीव्र संवेग उत्पन्न करती हैं और प्रत्यक्षसाक्षी इतना अभिभूत हो जाता है कि कूट संकेतन के समय छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देता।

असत्य स्मृति

नवीन शोधों से एक रोचक घटना सामने आई है जिसे मिथ्या स्मृति कहा जाता है। जो घटनाएँ कभी घटित नहीं हुईं उनकी स्मृति भी शक्तिशाली कल्पनाशीलता से उत्पन्न कराई जा सकती है। आप आश्चर्यचकित हो गए होंगे। आइए, गैरी (Garry), मैनिंग (Manning) एवं लॉफ्टस के द्वारा 1996 में किए गए एक एेसे प्रयोग के माध्यम से मिथ्या स्मृति की विशेषताओं को समझें।

अपने प्रयोग के प्रतिभागियों के सामने उन्होंने कुछ घटनाओं की सूची दी जो उनके जीवन में घटित हो सकती थीं। प्रयोग के प्रथम चरण में उन्होंने यह जाना कि बचपन की घटनाओं को यथासंभव याद करके बताएँ कि क्या वास्तव में इनमें से कोई घटना उनके जीवन में घटी थी। दो सप्ताह बाद उन्हें प्रयोगशाला में पुनः बुलाकर उन घटनाओं की कल्पना करने या चाक्षुष प्रत्यक्षण करने को कहा जैसे कि वे घटनाएँ वास्तव में उनके जीवन में घटित हुई हों। विशेषकर उन घटनाओं के लिए यह क्रिया करवाई जिनके घटित होने की संभाव्यता बहुत कम थी। यह प्रयोग का दूसरा चरण था। अंत में, तीसरे चरण में प्रयोगकर्ताओं ने बहाना बनाया कि पहले चरण में घटनाओं की मूल्यांकन सूची उनसे खो गई है, अतः वे फिर से सूची लेकर मूल्यांकन करें कि उनमें से किन घटनाओं की उनके जीवन में घटित होने की संभाव्यता है। रोचक बात यह थी कि पहले चरण में जो घटनाएँ निम्न मूल्यांकित की गई थीं और जिनको चाक्षुष प्रत्यक्षण तथा कल्पना करने को कहा गया था अब उनका उच्च मूल्यांकन किया गया था। प्रतिभागियों ने बताया कि वे घटनाएँ उनके जीवन में वास्तव में घटित हुई थीं। इस परिणाम से यह संकेत मिलता है कि स्मृतियाँ उत्पन्न कराई जा सकती हैं तथा कल्पना स्फीति के द्वारा आरोपित की जा सकती हैं। यह एक एेसा परिणाम है जो स्मृति की प्रक्रियाओं को एक उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।


सूचना को प्रतिमा के रूप में संकेतित तथा संचित करने के कारण मानसिक प्रतिरूप विकसित होते हैं। बहुत-से प्रतिदिन के क्रियाकलापों में मानसिक प्रतिरूप की आवश्यकता पड़ती है। उदाहरणार्थ, किसी सड़क पर दिशा निर्देश का पालन करना, साइकिल के पुर्जों को जोड़ना या किसी पाकशास्त्र की किताब में दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए कोई व्यंजन बनाना। इन सभी में शाब्दिक वर्णन से देशिक मानसिक प्रतिरूप बनते हैं। अतः, मानसिक प्रतिरूप वह विश्वास है जो हमारे वातावरण की संरचना से संबंधित होते हैं तथा शाब्दिक वर्णन एवं मूर्त प्रतिमाओं की मदद से बनते हैं।

स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया के रूप में

यदि स्मृति प्रक्रिया के प्रारंभिक अन्वेषण को देखें तो संभवतः आप इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि स्मृति मूलतः संचित सामग्री से पुनरुत्पादन की प्रक्रिया है। यह दृष्टिकोण एबिंगहास (Ebbinghaus) एवं उनके अनुयायिओं का था जिन्होंने स्मृति में संचित की जाने वाली सूचना की मात्रा पर बल दिया तथा संचित एवं पुनरुत्पादित सामग्री का मिलान करके उसकी परिशुद्धता की जाँच की। यदि पुनरुत्पादित सामग्री और संचित सामग्री में कुछ विचलन पाया जाता है तो वह त्रुटि एवं स्मृति की विफलता मानी जाती है। स्मृति में भंडारण का यह लक्षण यह प्रदर्शित करता है कि स्मृति सीखी हुई सामग्री को दीर्घकालिक स्मृति में संग्रहित करने की एक निष्क्रिय घटना मात्र है। इस स्थिति को सन् 1930 के दशक के प्रारंभिक दिनों में बार्टलेट (Bartlett) ने चुनौती दी जिनका मानना था कि स्मृति एक सक्रिय प्रक्रिया है और जो कुछ भी हम संचित करते हैं उसमें निरंतर परिवर्तन और संशोधन होते रहते हैं। जो कुछ भी हम याद करते हैं वह इस बात से प्रभावित होता है कि हम कैसे उद्दीपक सामग्री को अर्थ प्रदान करते हैं और एक बार जब उसे स्मृति तंत्र में भेज देते हैं तो वह अन्य संज्ञानात्मक क्रियाओं से अलग नहीं रह सकती।

सारांश यह है कि बार्टलेट ने स्मृति को रचनात्मक प्रक्रिया माना है न कि पुनरुत्पादक प्रक्रिया। अर्थपूर्ण सामग्री यथा, कहानियाँ, गद्य, दंतकथाएँ इत्यादि का उपयोग करते हुए बार्टलेट ने यह समझने का प्रयास किया कि किस प्रकार कोई विशिष्ट स्मृति व्यक्ति के ज्ञान, लक्ष्यों, अभिप्रेरणा, वरीयता तथा अन्य मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होती है। उन्होंने सरल प्रयोग किए जिनमें पहले उपरोक्त प्रकार की सामग्री को प्रतिभागी पढ़ते थे, फिर 15 मिनट के अंतराल के बाद जो पढ़ा था उसका प्रत्याह्वान करते थे। बार्टलेट ने क्रमिक पुनरुत्पादन विधि का प्रयोग किया जिसमें प्रतिभागी याद की हुई सामग्री को भिन्न-भिन्न समयांतरालों पर प्रत्याह्वान करते थे। इन क्रमिक पुनरुत्पादनों में उनके प्रतिभागियों ने कई प्रकार की ‘गलतियाँ’ कीं जिसे बार्टलेट ने स्मृति की रचनात्मक प्रक्रिया को समझने के लिए उपयोगी माना। उनके प्रतिभागियों ने मूल पाठ को अपने ज्ञान के ज़्यादा अनुकूल बनाने के लिए परिवर्तित कर दिया, अनावश्यक वर्णनों की व्याख्या की, मुख्य कथावस्तु को विस्तृत किया तथा सामग्री को पूर्ण रूप से बदल दिया ताकि वह अधिक तार्किक एवं समनुगत लगे।

इस प्रकार के परिणामों की व्याख्या हेतु बार्टलेट ने स्कीमा शब्द का उपयोग किया जिसका तात्पर्य ‘भूतपूर्व अनुभवों और प्रतिक्रियाओं का एक सक्रिय संगठन था’। स्कीमा भूतपूर्व अनुभवों और ज्ञान का एक संगठन है जो आने वाली नयी सूचना के विश्लेषण, भंडारण तथा पुनरुद्धार को प्रभावित करता है। अतः स्मृति एक रचनात्मक सक्रिय प्रक्रिया है जहाँ सूचनाएँ व्यक्ति के पूर्व ज्ञान, समझ एवं प्रत्याशाओं के अनुसार संकेतित एवं संचित की जाती हैं।

विस्मरण के स्वरूप एवं कारण

हममें से सबने लगभग प्रतिदिन विस्मरण एवं उसके परिणामों का अनुभव किया होगा। हम भूलते क्यों हैं? क्या जो सामग्री हमने दीर्घकालिक स्मृति में रखी थी वह खो गई? या हमने उसे अच्छी तरह से याद नहीं किया? या हमने सूचना का सही तरीके से कूट संकेतन नहीं किया? या भंडारण के समय इसमें कुछ तोड़-मरोड़ हो गई और गलत स्थान पर संचित कर दी गई? विस्मरण को समझने के लिए कई सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं और हम उनका पुनरावलोकन करेंगे जो संभावित हैं तथा जिन पर समुचित ध्यान दिया गया है।

हर्मन एबिंगहास ने विस्मरण के स्वरूप को समझने के लिए सर्वप्रथम क्रमिक प्रयास किया। उन्होंने निरर्थक शब्दांशों की सूची (जो व्यंजन-स्वर-व्यंजन अक्षरों से बना था तथा जिन्हें CVC ट्राईग्राम कहा गया जैसे NOK या SEP इत्यादि) को याद किया। उस सूची को भिन्न-भिन्न समयांतरालों पर पुनः याद किया तथा प्रत्येक बार प्रयासों की संख्या का मापन किया। उन्होंने पाया कि विस्मरण के क्रम का एक निश्चित प्रारूप होता है जो आप चित्र 7.3 में देख सकते हैं।

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चित्र 7.3:एबिंगहास का विस्मरण वक्र

जैसा कि ग्राफ से प्रतीत होता है कि विस्मरण की दर प्रारंभिक 9 घंटों में, विशेषतः प्रारंभिक पहले घंटे में सबसे ज़्यादा है। उसके बाद गति धीमी हो जाती है तथा कई दिनों के बाद भी ज़्यादा नहीं भूला गया है। यद्यपि एंबिगहास के प्रयोग प्रारंभिक अन्वेषण थे तथा बहुत परिष्कृत भी नहीं थे, तथापि स्मृति शोधों को इसने कई महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया है। अब यह सर्वसम्मति से माना जाता है कि शुरू में स्मृति में तीव्र ह्रास होता है, उसके बाद अवनति बहुत क्रमिक और धीमी गति से होती है। आइए, विस्मरण की व्याख्या हेतु प्रतिपादित मुख्य सिद्धांतों का अवलोकन करें।

चिह्न ह्रास के कारण विस्मरण

चिह्न ह्रास (अनुपयोग का सिद्धांत भी कहलाता है) विस्मरण का सर्वप्रथम सिद्धांत है। इसकी अवधारणा है कि स्मृति केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में कुछ संशोधन करती है जो मस्तिष्क में होने वाले शारीरिक परिवर्तन हैं जिन्हें स्मृति चिह्न कहा जाता है। जब इन चिह्नों का लंबे समय तक उपयोग नहीं होता है, तो ये धूमिल हो जाते हैं और हमें प्राप्त नहीं होते हैं। कई कारणों से यह सिद्धांत अपर्याप्त माना जाता है। यदि स्मृति अनुपयोग के कारण स्मृति चिह्नों का ह्रास होता है तो जो लोग याद करने के बाद सो जाते हैं, उनमें जागने वाले लोगों की अपेक्षा अधिक विस्मरण होना चाहिए क्योंकि निद्रा के दौरान स्मृति चिह्नों का उपयोग नहीं होता। परिणाम इसके बिलकुल विपरीत पाए गए हैं। याद करने के बाद जागने वालों में याद करने के बाद सो जाने वालों की अपेक्षा अधिक विस्मरण पाया गया।

चूँकि चिह्न ह्रास का सिद्धांत विस्मरण की पर्याप्त रूप से व्याख्या नहीं कर पाया, इसलिए शीघ्र ही एक नए सिद्धांत ने इसका स्थान ले लिया जिसके अनुसार नयी सूचना जो दीर्घकालिक स्मृति में प्रवेश करती है वह पूर्वसंचित सामग्री के प्रत्याह्वान में बाधा पहुँचाती है। अतः विस्मरण का मुख्य कारण अवरोध है।

अवरोध के कारण विस्मरण

यदि विस्मरण चिह्न ह्रास के कारण नहीं है तो यह क्यों होता है? विस्मरण का सिद्धांत जो संभवतः सबसे अधिक प्रभावकारी है वह अवरोध का सिद्धांत है। इसके अनुसार स्मृति भंडार में संचित विभिन्न सामग्री के बीच अवरोध के कारण विस्मरण होता है। इस सिद्धांत के अनुसार सीखने और याद करने में विभिन्न पदों के बीच साहचर्य स्थापित होता है और एक बार साहचर्य स्थापित हो जाने के बाद यह स्मृति में अक्षत रहता है। व्यक्ति बहुत सारे साहचर्य अर्जित करते रहते हैं और ये बिना किसी आपसी द्वंद्व के स्वतंत्र रूप से स्मृति में रहते हैं। तथापि पुनरुद्धार के समय इनमें अवरोध उत्पन्न होता है क्योंकि भिन्न-भिन्न साहचर्यों में पुनरुद्धार के लिए प्रतिस्पर्धा होती है। एक सरल क्रिया से अवरोध की यह प्रक्रिया स्पष्ट हो जाएगी। अपने मित्र से निरर्थक शब्दांशों की दो अलग-अलग सूची (सूची A एवं सूची B) एक के बाद एक याद करने को कहिए। थोड़ी देर के बाद सूची A के निरर्थक शब्दांशों का प्रत्याह्वान करवाइए। यदि सूची A को दोहराते समय सूची B के कुछ शब्दों का भी प्रत्याह्वान किया जाता है तो यह इसलिए होता है क्योंकि सूची B को याद करते समय जो साहचर्य स्थापित हुआ था, वह सूची A को याद करते समय बने साहचर्य में अवरोध उत्पन्न करता है।

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विस्मरण में दो प्रकार के अवरोध उत्पन्न होते हैं। अवरोध अग्रलक्षी (आगे की ओर चलने वाले) हो सकते हैं, तात्पर्य यह है कि जो क्रिया आपने पहले सीखी है वह बाद में सीखी गई क्रिया को याद करने में अवरोध उत्पन्न करती है, या ये पूर्वलक्षी (पीछे की ओर चलने वाले) हो सकते हैं, तात्पर्य यह है कि जब आपको पहले सीखी गई क्रिया का प्रत्याह्वान करने में कठिनाई हो, जो किसी नयी सामग्री के अधिगम के कारण हो सकती है। दूसरे शब्दों में, अग्रलक्षी अवरोध में पूर्व अधिगम, पश्चात अधिगम के प्रत्याह्वान में अवरोध पहुँचाता है जबकि पूर्वलक्षी अवरोध में पश्चात अधिगम, पूर्व अधिगम सामग्री के प्रत्याह्वान में अवरोध पहुँचाता है। उदाहरणार्थ, यदि आप अंग्रेज़ी जानते हाें और प्.ाΡेंηच सीखने में कठिनाई महसूस कर रहे हों तो यह अग्रलक्षी अवरोध के कारण है। दूसरी ओर, यदि आप अंग्रेज़ी के शब्द, जो प्.ाΡेंηच शब्द के पर्याय हों, का प्रत्याह्वान नहीं कर पा रहे हैं, तो यह पूर्वलक्षी अवरोध का उदाहरण है। अग्रलक्षी एवं पूर्वलक्षी अवरोध को प्रदर्शित करने के लिए जो प्रायोगिक अभिकल्प प्रयुक्त होते हैं, उसे सारणी 7.1 में प्रस्तुत किया गया है।

पुनरुद्धार असफलता के कारण विस्मरण

विस्मरण न केवल एक समय के बाद स्मृति चिह्नों के ह्रास के कारण होता है (जैसा अनुपयोग सिद्धांत सुझाता है) या प्रत्याह्वान के समय स्वतंत्र रूप से संचित साहचर्यों के बीच प्रतिद्वंद्विता के कारण होता है (जैसा अवरोध सिद्धांत सुझाता है), बल्कि प्रत्याह्वान के समय पुनरुद्धार के संकेतों के अनुपस्थित रहने या अनुपयुक्त होने के कारण भी होता है। पुनरुद्धार के संकेत वे साधन हैं जो हमें स्मृति में संचित सूचनाओं को पुनः प्राप्त करने में मदद करते हैं। यह विचार टलविंग (Tulving) और उनके साथियों द्वारा प्रतिपादित किया गया था, जिन्होंने यह दिखाने के लिए कई प्रयोग किए कि स्मृति की सामग्री अक्सर हमें इसलिए नहीं प्राप्त होती, क्योंकि पुनरुद्धार के संकेत प्रत्याह्वान के समय या तो अनुपस्थित होते हैं या अनुपयुक्त।

बॉक्स 7.5 दमित स्मृतियाँ

कुछ लोगों को अभिघातज अनुभव होते हैं। अभिघातज अनुभव संवेगात्मक रूप से दुखदायी होते हैं। सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) के अनुसार एेसे अनुभव अचेतन मन में दमित कर दिए जाते हैं और स्मृति में पुनरुद्धार के लिए प्राप्त नहीं होते हैं। यह एक एेसा दमन है जिसमें दर्दनाक, धमकी वाली और उलझन वाली स्मृतियाँ चेतना के बाहर रखी जाती हैं।

कुछ लोगों में अभिघातज अनुभव के कारण मनोवैज्ञानिक स्मृतिलोप हो सकता है। कुछ लोग संकट की स्थिति का अनुभव करते हैं और इस तरह की घटनाओं से बिलकुल समायोजन नहीं कर पाते हैं। जीवन के कठिन यथार्थ के प्रति वे अपनी आँखें, कान और मन को बंद करके उनसे मानसिक रूप से पलायन कर जाते हैं। यह सामान्यीकृत स्मृतिलोप के रूप में परिणत हो जाता है। इसका परिणाम एक विकार के रूप में होता है जो फ्.यूग अवस्था कहलाती है। जो व्यक्ति इस अवस्था का शिकार होता है वह एक नयी पहचान, नया नाम, पता इत्यादि अपना लेता है। इनके दो व्यक्तित्व होते हैं और एक को दूसरे व्यक्तित्व के बारे में कुछ भी पता नहीं होता।

विस्मरणशीलता या दबाव एवं अति दुश्चिंता के कारण स्मृतिनाश बहुत असामान्य नहीं है। बहुत सारे महत्वाकांक्षी एवं कठिन परिश्रम करने वाले विद्यार्थी परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं और घंटों पढ़ाई करते हैं। लेकिन जब परीक्षा में प्रश्नपत्र मिलता है तो बहुत अधिक घबरा जाते हैं और जो कुछ भी उन्होंने अच्छी तरह से तैयार किया था उसे भूल जाते हैं।


क्रियाकलाप 7.4

नीचे शब्दों की दो सूचियाँ दी गई हैं। पहली सूची को इस तरह याद कीजिए कि आप सभी शब्दों को बिना किसी त्रुटि के प्रत्याह्वान कर सकें। अब दूसरी सूची लीजिए और उसे सभी शब्दों के सही प्रत्याह्वान की कसौटी तक याद कीजिए। अब सूचियों के बारे में भूल जाइए और एक घंटे तक कुछ और पढ़िए। अब पहली सूची के शब्दों को प्रत्याह्वान कीजिए और उन्हें लिखिए। सही प्रत्याह्वान किए गए शब्दों की कुल संख्या तथा गलत प्रत्याह्वान किए गए शब्दों की कुल संख्या को लिखिए।

सूची 1

बकरी भेड़ तेंदुआ

सियार बंदर ऊँट

खच्चर हिरन गिलहरी

घोड़ा चीता भेड़िया

साँप खरगोश तोता

सूची 2

सूअर हाथी गधा

कबूतर कोबरा बाघ

मैना शेर बछड़ा

भालू लोमड़ी कौआ

भैंस चूहा

अपने एक मित्र का सहयोग लीजिए और उससे सूची 1 के शब्दों को उपरोक्त कसौटी तक याद करने का अनुरोध कीजिए। इसके बाद उससे एक गाना गाने का तथा अपने साथ एक प्याली चाय पीने का अनुरोध कीजिए। उसे लगभग एक घंटे तक बातचीत में व्यस्त रखिए। फिर उसे पहले याद किए गए शब्दों को लिखने का अनुरोध कीजिए।

अपने प्रत्याह्वान की अपने मित्र द्वारा किए गए प्रत्याह्वान के साथ तुलना कीजिए।


आइए, इसे एक उदाहरण की सहायता से समझें। मान लीजिए कि आपने सूची में कुछ शब्द; जैसे- झोपड़ी, बर्रे, मकान, सोना, ताँबा, चींटी इत्यादि जो कि छः श्रेणियों से संबंधित हैं (यथा, रहने का स्थान, कीटों का नाम, धातु का प्रकार इत्यादि) को याद किया। यदि कुछ देर के बाद आपको उसका प्रत्याह्वान करने को कहा जाए तो आप उनमें से कुछ का पुनःस्मरण तो कर पाएँगे लेकिन यदि दूसरे पुनःस्मरण प्रयास में आपको श्रेणियों का नाम भी बता दिया जाए तो आपको प्रतीत होगा कि आपने पूरा पुनःस्मरण कर लिया है। इसमें श्रेणी के नाम पुनरुद्धार के संकेतों का काम करते हैं। श्रेणी नाम के अलावा जिस भौतिक संदर्भ में आप याद करते हैं वह भी एक प्रभावी पुनरुद्धार संकेत प्रदान करता है।

स्मृति वृद्धि

हम सब एक उत्कृष्ट स्मृति तंत्र की कामना करते हैं जो सुदृढ़ और विश्वसनीय हो। कौन एेसी स्थितियों का सामना करना चाहेगा जिसमें स्मृति की विफलता के कारण उलझन और दुशि्ंचता हो? स्मृति से संबंधित विभिन्न प्रक्रियाओं को जानने के बाद आप अवश्य ही यह जानना चाहेंगे कि हम अपनी स्मृति को कैसे सुधार सकते हैं। स्मृति सुधार की बहुत सारी युक्तियाँ हैं जिन्हें स्मृति-सहायक संकेत कहा जाता है। इनमें से कुछ प्रतिमाओं के उपयोग पर ज़ोर देते हैं तो कुछ अधिगम सामग्री के स्वयं-निर्मित संगठन पर। आइए, इन युक्तियों और स्मृति सुधार के अन्य सुझावों पर दृष्टि डालें तथा इनका पुनरावलोकन करें।

प्रतिमाओं के उपयोग से स्मृति-सहायक संकेत

इस प्रकार की स्मृति सुधार विधि में याद की जाने वाली सामग्री तथा उसके इर्द-गिर्द सुस्पष्ट प्रतिमाओं की रचना की जाती है। इनमें से दो प्रमुख विधियाँ जो प्रतिमाओं का रोचक उपयोग करती हैं वे हैं:मुख्य शब्द विधि तथा स्थान विधि ।

(अ) मुख्य शब्द विधि:मान लीजिए कि आपको अंग्रेज़ी आती है और आप अन्य किसी विदेशी भाषा को सीखना चाहते हैं, तो अंग्रेज़ी का कोई शब्द जिसकी ध्वनि उस विदेशी भाषा के शब्द से मिलती-जुलती हो, उसकी पहचान कर लीजिए। यही अंग्रेज़ी शब्द मुख्य शब्द की तरह कार्य करेगा। उदाहरणार्थ, आपको स्पैनिश भाषा का शब्द Pato याद करना है जिसका अर्थ है बत्तख, तो आप अंग्रेज़ी का Pot शब्द ले सकते हैं। फिर मुख्य शब्द Pot और याद किए जाने वाले शब्द Pato, दोनों को एक अंतःक्रिया करते हुए कल्पना कीजिए कि एक पानी के बर्तन (Pot) में एक बत्तख (Pato, स्पैनिश शब्द) है। विदेशी भाषा को सीखने की यह विधि रटने की विधि से अधिक अच्छी होती है।

(ब) स्थान विधि:स्थान विधि का उपयोग करने के लिए याद किए जाने वाले पदों को पहले वस्तुओं की दृष्टि प्रतिमा के रूप में एक स्थान में व्यवस्थित कीजिए। एक क्रम में पदों को याद रखने में यह विधि बहुत उपयोगी है। इसके लिए पहले उन वस्तुओं और स्थानों की कल्पना कीजिए जिनके क्रम से आप भली-भाँति परिचित हों, फिर जिन वस्तुओं को आप याद रखना चाहते हैं उन्हें एक-एक स्थान से संबंधित कीजिए। उदाहरणार्थ, बाज़ार जाते समय आपको ब्रेड, अंडा, टमाटर, साबुन याद रखना है तो आप मन में सोचिए कि ब्रेड और अंडा रसोईघर में, टमाटर मेज़ पर और साबुन स्नानघर में रखा है। जब आप बाज़ार पहुँचें तो अपने रसोईघर से स्नानघर तक मानसिक रूप से चलिए और जिन वस्तुओं को खरीदना है उसका पुनः स्मरण करते जाइए।

संगठन के उपयोग से स्मृति-सहायक संकेत

संगठन का तात्पर्य याद की जाने वाली सामग्री में एक क्रम सुनिश्चित करना है। इस प्रकार के स्मृति-सहायक संकेत लाभदायक होते हैं क्योंकि संगठन के समय जो ढाँचा आप बनाते हैं वह पुनरुद्धार का कार्य सरल कर देता है।

(अ) खंडीयन विधि:अल्पकालिक स्मृति का उल्लेख करते समय हमने देखा कि किस प्रकार खंडीयन से अल्पकालिक स्मृति की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इसमें कई छोटी-छोटी इकाइयों को मिलाकर एक बड़ा खंड बनाया जाता है। खंड बनाने के लिए छोटी इकाइयों को जोड़ने के संगठन के कुछ सिद्धांतों को जानना आवश्यक है। अतः अल्पकालिक स्मृति की क्षमता को बढ़ाने वाले नियंत्रण तंत्र के अलावा खंडीयन का उपयोग स्मृति सुधार के लिए भी किया जा सकता है।

(ब) प्रथम अक्षर तकनीक:प्रथम अक्षर तकनीक को प्रयुक्त करने के लिए, याद किए जाने वाले प्रत्येक शब्द के पहले अक्षर को लेकर उससे एक शब्द या वाक्य बनाया जाता है। उदाहरणार्थ, इंद्रधनुष के रंगों को VIBGYOR की तरह याद किया जाता है, जिसमें V=बैंगनी (violet), I=जामुनी (indigo), B=नीला (blue), G=हरा (green), Y=पीला (yellow), O=नारंगी (orange) और R=लाल (red)।

हाल के वर्षों में स्मृति-सहायक संकेतों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि ये बहुत सरल हैं तथा शायद स्मृति कार्यों की जटिलताओं और याद करने में होने वाली कठिनाइयों का न्यूनानुमान करते हैं। कई मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति सुधार के लिए स्मृति-सहायक संकेतों की तुलना में अधिक बोधगम्य उपागम बताए हैं। इसमें स्मृति सुधार के लिए स्मृति प्रक्रियाओं के ज्ञान पर बल दिया गया है। आइए, हम इनमें से कुछ सुझावों को देखें।

आवश्यक रूप से करने योग्य बातें :

(अ) गहन स्तर का प्रक्रमण कीजिए:यदि आप किसी सूचना को अच्छी तरह से याद करना चाहते हैं तो गहन स्तर का प्रक्रमण कीजिए। क्रैक एवं लॉकहार्ट ने यह प्रदर्शित किया है कि सूचना के सतही गुणों पर ध्यान देने के बजाय उसके अर्थ के रूप में प्रक्रमण किया जाए तो अच्छी स्मृति होती है। गहन स्तर के प्रक्रमण में सूचना से संबंधित जितना संभव हो एेसे प्रश्न पूछे जाएँ जो उसके अर्थ तथा संबंधों से जुड़े हों। इस प्रकार नयी सूचना आपके पूर्वस्थापित ज्ञान तथा दृष्टिकोण का एक हिस्सा बन जाएगी, और इसके याद रहने की संभाव्यता बढ़ जाएगी।

(ब) अवरोध घटाइए:जैसा कि हमने पढ़ा है अवरोध विस्मरण का प्रमुख कारण है अतः जितना संभव हो सके इसे दूर रखने का प्रयास कीजिए। आपको पता है कि जब बिलकुल समान सामग्री एक साथ सीखी जाती है तो अवरोध सबसे ज़्यादा होता है। इससे बचिए और अपने अध्ययन के विषयों को इस प्रकार व्यवस्थित कीजिए कि आप एक के बाद एक समान विषय को याद न करें। बल्कि पूर्व अभ्यास से असंबंधित किसी अन्य विषय को याद कीजिए। यदि यह संभव न हो तो अपने अधिगम-अभ्यासों का वितरण कीजिए। इसका तात्पर्य यह है कि अवरोध को कम से कम करने के लिए अपने अध्ययन के दौरान में बीच-बीच में आराम कीजिए।

(स) पर्याप्त पुनरुद्धार संकेत रखिए:जब आप कुछ याद कर रहे हों तो उस सामग्री में निहित कुछ पुनरुद्धार संकेतों को पहचानिए और अपने पढ़ने या याद करने की सामग्री के अंशों को इनसे जोड़िए। पूरी सामग्री की तुलना में संकेतों को याद रखना सरल होता है और सामग्री तथा संकेतों के बीच जो संबंध आप बनाते हैं वह पुनरुद्धार की प्रक्रिया को बढ़ाएगा।

थामस (Thomas) और रॉबिन्सन (Robinson) ने अधिक याद रखने में विद्यार्थियों की मदद के लिए एक और युक्ति का विकास किया जिसे वे P Q R S T विधि कहते हैं, जिसमें प्रत्येक अक्षर क्रमशः पूर्व-अवलोकन (Preview), प्रश्न करना (Question), पढ़ना (Read), स्वतः जोर से पढ़ना (Self-recitation) और परीक्षण (Test) करने का द्योतक है। पूर्व-अवलोकन का तात्पर्य किसी भी अध्याय की पूरी सामग्री पर एक सरसरी दृष्टि डालना तथा उससे अवगत होना है। प्रश्न करने से तात्पर्य अध्याय में से प्रश्न करना एवं उसका उत्तर खोजना है। अब पढ़ना शुरू कीजिए और जिन प्रश्नों को आपने उठाया है उनके उत्तर ढूँढ़िए। पढ़ने के बाद जो कुछ भी आपने पढ़ा है उसे लिखिए और अंत में अपना परीक्षण स्वयं कीजिए कि आप कितना समझ पाए हैं।

अंत में आपको सावधान एवं सतर्क करना आवश्यक है। एेसी कोई भी विधि नहीं है जो याद करने से संबंधित सारी समस्याओं का निवारण कर सके तथा रातों-रात स्मृति में सुधार कर दे। अपनी स्मृति को सुधारने के लिए आपको कई कारकों की ओर ध्यान देना होगा जो आपकी स्मृति को प्रभावित करते हैं; जैसे- आपका स्वास्थ्य, आपकी रुचि एवं अभिप्रेरणा, याद की जाने वाली सामग्री से आपका परिचय इत्यादि। इसके साथ-साथ स्मृति सुधार युक्तियों को सामग्री की प्रकृति के अनुसार उपयोग करना भी आपको सीखना होगा।

प्रमुख पद

खंडीयन, संज्ञानात्मक लाघव, संप्रत्यय, नियंत्रण प्रक्रिया, द्वि-संकेतन, प्रतिध्वन्यात्मक स्मृति, कूट संकेतन, घटनापरक स्मृति, विस्तृत पूर्वाभ्यास, फ्.यूग अवस्था, सूचना प्रकमण उपागम, अनुरक्षण पूर्वाभ्यास, असत्य संसूचक, स्मृति निर्माण, स्मृति-सहायक संकेत, स्कीमा, आर्थी स्मृति, क्रमिक पुनरुत्पादन, कार्यकारी स्मृति


सारांश

  • स्मृति में तीन अंतःसंबंधित प्रक्रियाएँ, कूट संकेतन, भंडारण एवं पुनरुद्धार सम्मिलित हैं।
  • कूट संकेतन का तात्पर्य आने वाली सूचना को इस प्रकार पंजीकृत करना है कि वह स्मृति तंत्र के अनुरूप हो, भंडारण और पुनरुद्धार का तात्पर्य क्रमशः सूचना को एक समय तक रखना तथा फिर पुनः चेतना में लाना है।
  • स्मृति का अवस्था मॉडल स्मृति प्रक्रियाओं की तुलना कंप्यूटर से करता है तथा इसके अनुसार स्मृति में आने वाली सूचना का तीन भिन्न अवस्थाओं - संवेदी स्मृति, अल्पकालिक स्मृति एवं दीर्घकालिक स्मृति - में प्रक्रमण होता है।
  • स्मृति के प्रक्रमण स्तर दृष्टिकोण के अनुसार सूचना का किसी भी स्तर-संरचनात्मक, ध्वन्यात्मक या आर्थी स्तर पर कूट संकेतन हो सकता है। यदि कोई सूचना आर्थी स्तर, जो सबसे गहन स्तर है, पर विश्लेषित एवं संकेतित होती है तो यह धारण क्षमता को बेहतर करती है।
  • दीर्घकालिक स्मृति का वर्गीकरण कई प्रकार से किया गया है। घोषणात्मक एवं प्रक्रियात्मक स्मृति एक मुख्य वर्गीकरण है तथा दूसरा वर्गीकरण है घटनापरक एवं आर्थी स्मृति।
  • दीर्घकालिक स्मृति में सामग्री संप्रत्यय, श्रेणियों एवं प्रतिमाओं के रूप में प्रस्तुत होती है तथा श्रेणीबद्ध रूप से संगठित होती है।
  • स्मृति एक पुनरुत्पादक ही नहीं बल्कि रचनात्मक प्रक्रिया भी है। हम जो कुछ भी संचित करते हैं उसमें व्यक्ति के पूर्व ज्ञान और स्कीमा के अनुसार परिवर्तन एवं संशोधन होते हैं।
  • विस्मरण किसी समयावधि तक संचित सामग्री की हानि से संबंधित है। किसी सामग्री को सीखने के तुरंत बाद सबसे अधिक क्षति होती है, बाद में यह क्षति धीमी गति से होती है।
  • विस्मरण चिह्नों के ह्रास तथा अवरोध के कारण होता है। पुनरुद्धार के समय पर्याप्त संकेतों के अभाव में भी विस्मरण हो सकता है।
  • स्मृति-सहायक संकेत स्मृति में सुधार लाने के लिए होते हैं। कुछ संकेत प्रतिमा पर तो कुछ सीखी जाने वाली सामग्री के संगठन पर बल देते हैं।


समीक्षात्मक प्रश्न

  1. कूट संकेतन, भंडारण और पुनरुद्धार का क्या तात्पर्य है?
  2. संवेदी, अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक स्मृति तंत्र से सूचना का प्रक्रमण किस प्रकार होता है?
  3. अनुरक्षण एवं विस्तृत पूर्वाभ्यास में क्या अंतर है?
  4. घोषणात्मक एवं प्रक्रियामूलक स्मृतियों में क्या अंतर है?
  5. दीर्घकालिक स्मृति में श्रेणीबद्ध संगठन क्या है?
  6. विस्मरण क्यों होता है?
  7. अवरोध के कारण विस्मरण, पुनरुद्धार से संबंधित विस्मरण से किस प्रकार भिन्न है?
  8. ‘स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया है’ से क्या तात्पर्य है?
  9. स्मृति-सहायक संकेत क्या हैं? अपनी स्मृति सुधार के लिए एक योजना के बारे में सुझाव दीजिए?


परियोजना विचार

  1. अपने जीवन की कोई घटना जो बहुत स्पष्ट रूप से आपको याद हो उसे पुनःस्मरण करें और लिखें। उस घटना में जो अन्य लोग सम्मिलित थे, यथा, भाई/बहन, माता-पिता/रिश्तेदार, उन्हें भी लिखने को कहें। दोनों के प्रत्याह्वान की तुलना कीजिए तथा समानता और भिन्नता ढूँढ़ने का प्रयास कीजिए।
  2. अपने मित्र को एक कहानी सुनाइए। फिर एक घंटे बाद उससे लिखने को कहिए। उससे वही कहानी, जो उसने लिखी है, दूसरे को सुनाने को कहिए। एेसा तब तक कीजिए जब तक आपको मूल कहानी के पाँच भाषांतरण प्राप्त न हो जाएँ। विभिन्न भाषांतरणों की तुलना कीजिए और स्मृति की रचनात्मक प्रक्रियाओं को पहचानिए।