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उमाशंकर जोशी

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जन्मः  सन् 1911, गुजरात में

प्रमुख रचनाएँः विश्व शांति, गंगोत्री, निशीथ, प्राचीना, आतिथ्य, वसंत वर्षा, महाप्रस्थान, अभिज्ञा (एकांकी); सापनाभारा, शहीद (कहानी); श्रावणी मेणो, विसामो (उपन्यास); पारकांजण्या (निबंध); गोष्ठी, उघाड़ीबारी, क्लांतकवि, म्हारासॉनेट, स्वप्नप्रयाण (संपादन)

सन् 1947 से संस्कृति पत्रिका का संपादन

निधनः  सन् 1988

 तंग आ गया हूँ / बड़ों की अल्पता से / जी रहा हूँ / देख कर छोटों की बड़ाई

बीसवीं सदी की गुजराती कविता और साहित्य को नयी भंगिमा और नया स्वर देनेवाले उमाशंकर जोशी का साहित्यिक अवदान पूरे भारतीय साहित्य के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। उनको परंपरा का गहरा ज्ञान था। कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् और भवभूति के उत्तररामचरित का उन्होंने गुजराती में अनुवाद किया। एेसे अनुवाद गुजराती साहित्य की अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाने वाले थे। बतौर कवि उमाशंकर जी ने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा, आम ज़िंदगी के अनुभव से परिचित कराया और नयी शैली दी। जीवन के सामान्य प्रसंगों पर सामान्य बोलचाल की भाषा में कविता लिखने वाले भारतीय आधुनिकतावादियों में अन्यतम हैं जोशी जी। कविता के साथ-साथ साहित्य की दूसरी विधाओं में भी उनका योगदान बहुमूल्य है, खासकर साहित्य की आलोचना में। निबंधकार के रूप में गुजराती साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं। उमाशंकर जोशी उन साहित्यिक व्यक्तित्व में हैें जिनका भारत की आज़ादी की लड़ाई से रिश्ता रहा। आज़ादी की लड़ाई के दौरान वे जेल भी गए।

यहाँ प्रस्तुत कविता छोटा मेरा खेत खेती के रूपक में कवि-कर्म के हर चरण को बाँधने की कोशिश के रूप में पढ़ी जा सकती है। कागज़ का पन्ना, जिस पर रचना शब्दबद्ध होती है, कवि को एक चौकोर खेत की तरह लगता है। इस खेत में किसी अंधड़ (आशय भावनात्मक आँधी से होगा) के प्रभाव से किसी क्षण एक बीज बोया जाता है। यह बीज-रचना विचार और अभिव्यक्ति का हो सकता है। यह मूल रूप कल्पना का सहारा लेकर विकसित होता है और इस प्रक्रिया में स्वयं विगलित हो जाता है। उससे शब्दों के अंकुर निकलते हैं और अंततः कृति एक पूर्ण स्वरूप ग्रहण करती है, जो कृषि-कर्म के लिहाज़ से पुष्पित-पल्लवित होने की स्थिति है। साहित्यिक कृति से जो अलौकिक रस-धारा फूटती है, वह क्षण में होने वाली रोपाई का ही परिणाम है। पर यह रस-धारा अनंत काल तक चलने वाली कटाई (उत्तम साहित्य कालजयी होता है और असंख्य पाठकों द्वारा असंख्य बार पढ़ा जाता है) से भी कम नहीं होती है। खेत में पैदा होने वाला अन्न कुछ समय के बाद समाप्त हो जाता है, किंतु साहित्य का रस कभी चुकता नहीं।

बगुलों के पंख कविता एक सुंदर दृश्य की कविता है। सौंदर्य का अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कवियों ने कई युक्तियाँ अपनाई हैं, जिसमें से सबसे प्रचलित युक्ति है–सौंदर्य के ब्यौरों के चित्रात्मक वर्णन के साथ अपने मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का वर्णन। वस्तुगत और आत्मगत के संयोग की यह युक्ति पाठक को उस मूल सौंदर्य के काफ़ी निकट ले जाती है। जोशी जी की इस कविता में एेसा ही है। कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफ़ेद बगुलों को देखता है। वे कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साँझ की श्वेत काया के समान प्रतीत होेते हैं। यह दृश्य इतना नयनाभिराम है कि कवि और सब कुछ भूलकर उसी में अटका-सा रह जाता है। वह इस माया से अपने को बचाने की गुहार लगाता है। क्या यह सौंदर्य से बाँधने और बिंधने की चरम स्थिति को व्यक्त करने का एक तरीका है? प्रस्तुत दोनों कविताओं का गुजराती से हिंदी रूपांतरण रघुवीर चौधरी और भोलाभाई पटेल ने किया है।

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छोटा मेरा खेत

छोटा मेरा खेत चौकोना

कागज़ का एक पन्ना,

कोई अंधड़ कहीं से आया

क्षण का बीज वहाँ बोया गया।

 

कल्पना के रसायनों को पी

बीज गल गया निःशेष;

शब्द के अंकुर फूटे,

पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

 

झूमने लगे फल,

रस अलौकिक,

अमृत धाराएँ फूटतीं

रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।

 

रस का अक्षय पात्र सदा का

छोटा मेरा खेत चौकोना।

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बगुलों क पंख

नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,

चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।

कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,

तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।

हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।

उसे कोई तनिक रोक रक्खो।

वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें

नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।

 

अभ्यास

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 कविता के साथ

1. छोटे चौकोने खेत को कागज़ का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?

2. रचना के संदर्भ में अंध और बीज क्या हैं?

3. रस का अक्षयपात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?

4. व्याख्या करें-

1. शब्द के अंकुर फूटे,

पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

2. रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।


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 कविता के आसपास

1. शब्दों के माध्यम से जब कवि दृश्यों, चित्रों, ध्वनि-योजना अथवा रूप-रस-गंध को हमारे एेन्द्रिक अनुभवों में साकार कर देता है तो बिंब का निर्माण होता है। इस आधार पर प्रस्तुत कविता से बिंब की खोज करें।

2. जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो, रूपक कहलाता है। इस कविता में से रूपक का चुनाव करें।

 

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 कला की बात

बगुलों के पंख कविता को पढ़ने पर आपके मन में कैसे चित्र उभरते हैं? उनकी किसी भी अन्य कला माध्यम में अभिव्यक्ति करें।

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