Table of Contents
अध्याय 3
व्यावसायिक पर्यावरण
अधिगम उद्देश्य
इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप–
- व्यावसायिक पर्यावरण के महत्त्व का वर्णन कर सकेंगे;
- व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ समझा सकेंगे;
- व्यावसायिक पर्यावरण के विभिन्न आयामों का वर्णन कर सकेंगे;
- भारत में आर्थिक पर्यावरण एवं वाणिज्य तथा उद्योग पर सरकार की नीति के प्रभाव का विश्लेषण कर सकेंगे।
एक रिक्शा चालक कैसे उद्यमी बना
आज का दिन एक नियमित दिन की तरह ही था। रिक्शा चालक धर्मवीर कम्बोज दिल्ली की सड़कों पर सवारी ले जा रहा था कि उसके साथ एक भयानक दुर्घटना घटी। यह जानकर कि वह अपने काम पर वापस नहीं जा पाएगा, उसने हरियाणा के यमुनानगर ज़िले में अपने मूल गाँव लौटने का फैसला किया ताकि नया जीवन शुरू कर सके। किसी भी तरह के तकनीकी प्रशिक्षण के अभाव में और स्कूली शिक्षा छोड़ने के कारण रोज़गार के अवसर उसके लिए कठिनाई उत्पन्न कर रहे थे।
वह सही प्रेरणा और अवसर की तलाश में था। राजस्थान के जयपुर, अजमेर और पुष्कर क्षेत्रों के बाहरी इलाके की यात्रा के दौरान एेसा ही एक अवसर उसके हाथ आया, जहाँ धर्मवीर ने काम कर रहे कई महिला स्वयं सहायता समूहों को देखा। महिलाओं का हंसबेरी लड्डू बनाने की प्रक्रिया में जुटे होना एक आम दृश्य था। हालांकि यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल प्रतीत होती है, परंतु हाथों से पत्थर के स्लैब पर हंसबेरी को कसना एक दर्दनाक व्यायाम था। मशीनें उपलब्ध थीं जो हंसबेरी को संसाधित कर सकती थीं लेकिन उनमें से कोई भी लागत अनुकूल साबित नहीं हुई थीं। उद्योग पैमाने पर काफी छोटा था और मालिकों के लिए मशीनों को खरीदना और उन्हें उपयोग में रखना असंभव था। धर्मवीर ने फलों और सब्जी प्रसंस्करण मशीनों को न केवल सस्ती बनाने के तरीकों के बारे में सोचना शुरू किया, बल्कि आकस्मिक स्वास्थ्य खतरों से महिला श्रमिकों को मुक्त कराने का भी बीड़ा उठाने का प्रयास किया। उन्हें पता था कि उनके रास्ते में कई समस्याएं आएंगी, लेकिन उन्हें चुनौती देने और उन्हें दूर करने के लिए जीवन में उनका आदर्श वाक्य था- "संघर्ष ही सबसे बड़ी कामयाबी है। अगर आगे बढ़ना है तो पीछे नहीं देखना है।"
मार्च 2005 में उनकी मशीन का पहला प्रोटोटाइप तैयार हुआ। हालांकि मशीन के अत्यधिक गरम होने के कारण एक अप्रत्याशित समस्या उत्पन्न हुई। इस समस्या को खत्म करने के लिए निरंतर परीक्षण किए गए लेकिन समस्या दूसरे प्रोटोटाइप में बरकरार रही। लेकिन धर्मवीर ने भी हार नहीं मानी। आखिरकार उन्होंने अपने तीसरे प्रोटोटाइप में अति ताप की समस्या का सफलतापूर्वक निदान कर लिया। यह प्रोटोटाइप G.I.A.N. (North) द्वारा खरीदा गया और एक प्रायोगिक आधार पर केन्या भेजा गया। फीडबैक के आधार पर, G.I.A.N. ने उनसे उन प्रावधानों को शामिल करने के लिए कहा जो इसे पोर्टेबल बनाते थे, जिसमें फोल्डबल पैरों को शामिल करना शामिल था। चौथी मशीन में उन्होंने निष्कर्षण प्रक्रिया के दौरान मशीन से रस के प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए एक चाकू भी शामिल किया।
जिस मशीन को धर्मवीर ने विकसित किया, वह इस तरह अद्वितीय है कि उसमें फल या सब्जी के बीज को नुकसान पहुँचाए बिना विभिन्न प्रकार के उत्पादों को संसाधित करने की क्षमता है।
स्रोत– नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एन.आई.एफ.) - भारत (www.nif.org.in)
विषय प्रवेश
उपरोक्त उदाहरण यह बताता है कि किस प्रकार एक रिक्शा चालक के अथक प्रयास से एक नवाचार उत्पाद तैयार हुआ। यह उदाहरण हमें बताता है कि यदि हम मानसिक तौर पर ठान लें तो कोई भी कार्य कठिन नहीं है। धर्मवीर ने किस प्रकार अपनी समस्त सीमाओं को पार करते हुए न केवल एक नवाचार प्रक्रिया जो जन्म दिया बल्कि अपनी शारीरिक परिस्थितियों से समझौता किये बगैर एक सफल उद्यमी बन कर दिखाया। यह उदाहरण यह भी दर्शाता है कि किस प्रकार एक नवाचार प्रक्रिया का प्रभाव संपूर्ण उद्योग की उत्पादन क्षमता पर पड़ता है जिससे उस उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की गुणवत्ता में वृद्धि आती है। किसी व्यवसाय की सफलता केवल उसके आंतरिक प्रबंध पर ही निर्भर नहीं करती बल्कि बहुत से बाह्य तत्वों पर भी निर्भर करती है, उदाहरणार्थ सरकार के निर्णय एवं कार्यवाही, उपभोक्ता, अन्य व्यावसायिक इकाइयाँ तथा सी.एस.ई. जैसे गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.)। हम इस अध्याय में कुछ महत्त्वपूर्ण बाह्य शक्तियों (अथवा पर्यावरण परिस्थितियाँ) एवं उनका व्यावसायिक उद्यमों के परिचालन पर प्रभाव के बारे में अध्ययन करेंगे।
व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ
व्यावसायिक पर्यावरण शब्द से अभिप्राय सभी व्यक्ति, संस्थान एवं अन्य शक्तियों की समग्रता से है जो व्यावसायिक उद्यम से बाहर हैं लेकिन इसके परिचालन को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। एक लेखक ने इसको इस प्रकार से प्रस्तुत किया है, "यदि संपूर्ण जगत को लें और उसमें से संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले उप-समूह को अलग कर दें तो, जो शेष रह जाता है वह पर्यावरण कहलाता है।" अतः आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, तकनीकी एवं अन्य शक्तियाँ जो व्यवसाय से हटकर कार्य करती हैं, पर्यावरण के भाग हैं। इसी प्रकार से उपभोक्ता अथवा प्रतियोगी इकाइयाँ एवं सरकार, उपभोक्ता समूह, प्रतियोगी न्यायालय, मीडिया एवं अन्य संस्थान जो किसी व्यावसायिक इकाई के बाहर कार्यरत हैं पर्यावरण के घटक होते हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह व्यक्ति, संस्थान एवं शक्तियाँ यद्यपि इसकी सीमाओं से बाहर स्थित होती हैं फिर भी किसी व्यावसायिक उद्यम को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। उदाहरण के लिए सरकार की आर्थिक नीतियाँ, तीव्र तकनीकी परिवर्तन, राजनैतिक अनिश्चितता, ग्राहकाें के फैशन एवं रुचि में परिवर्तन एवं बाज़ार में बढ़ती हुई प्रतियोगिता, सभी एक व्यावसायिक इकाई के कार्य को कई महत्त्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित करते हैं। सरकार यदि करों में वृद्धि करती है तो इससे वस्तुएँ मँहगी हो जाएँगी। तकनीकी सुधार से वर्तमान उत्पाद अप्रचलित हो सकते हैं। राजनैतिक अनिश्चितता निवेशकों के मन में भय पैदा कर सकती है। फैशन एवं उपभोक्ताओं की रुचि में परिवर्तन से बाज़ार में वर्तमान उत्पादों के स्थान पर नये उत्पादों की माँग हो सकती है। बाज़ार में प्रतियोगिता में वृद्धि व्यावसायिक इकाइयों के लाभ को घटा सकती है।
व्यावसायिक पर्यावरण के संबंध में उपरोक्त वर्णन के आधार पर इसकी निम्न विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं–
(क) बाह्य शक्तियों की समग्रता–व्यावसायिक पर्यावरण व्यावसायिक इकाइयों के बाहर की सभी चीजों के कुल योग को कहते हैं तथा इसकी प्रकृति सामूहिक होती है।
(ख) विशिष्ट एवं साधारण शक्तियाँ– व्यावसायिक पर्यावरण में विशिष्ट एवं साधारण दोनों शक्तियाँ सम्मिलित होती हैं। विशिष्ट शक्तियाँ (जैसे- निवेशक, ग्राहक, प्रतियोगी एवं आपूर्तिकर्ता) अलग-अलग उद्यमों को उनके दिन-प्रतिदिन के कार्यों में प्रत्यक्ष रूप से एवं तुरंत प्रभावित करती हैं। इस प्रकार से किसी एक फर्म को अप्रत्यक्ष रूप से ही प्रभावित कर सकती हैं।
(ग) आंतरिक संबंध–व्यावसायिक वातावरण के विभिन्न तत्व अथवा भाग एक-दूसरे से घनिष्ट रूप से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए लोगों की जीवन अवधि में वृद्धि एवं स्वास्थ्य पर ध्यान देने के संबंध में बढ़ती जागरुकता के कारण कई स्वास्थ्य उत्पाद एवं सेवाएँ, जैसे- डाइट कोक, चर्बी रहित खाद्य तेल एवं स्वास्थ्य स्थल की माँग में वृद्धि हुई है। नवीन स्वास्थ्य उत्पाद एवं सेवाओं ने लोगों की जीवन शैली को ही बदल दिया है।
(घ) गतिशील प्रकृति–व्यावसायिक पर्यावरण गतिशील होता है। यह तकनीकी सुधार के रूप में उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं के रूप में या फिर बाज़ार में नयी प्रतियोगिताओं के रूप में बदलता रहता है।
(ङ) अनिश्चितता–व्यावसायिक पर्यावरण अधिकांशतः अनिश्चित होता है क्योंकि भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता विशेषतः तब जबकि पर्यावरण में बड़ी तेजी से परिवर्तन आ रहे हैं, जैसे सूचना तकनीकी अथवा फैशन उद्योग में।
(च) जटिलता– क्योंकि व्यावसायिक पर्यावरण में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न होने वाले अनेक पारस्परिक संबंधित एवं गतिशील स्थितियों अथवा शक्तियों से सम्मिलित होती हैं, इसलिए तुरंत यह समझना कठिन हो जाता है कि वर्तमान पर्यावरण किन तत्वों से बना है। दूसरे शब्दों में पर्यावरण एक जटिल तथ्य है जिसको अलग-अलग हिस्सों में समझना सरल है लेकिन समग्र रूप में समझना कठिन है। उदाहरण के लिए यह जानना कठिन है कि बाज़ार में किसी उत्पाद की माँग में परिवर्तन पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, तकनीकी अथवा विधियक तत्वों का किस सीमा तक प्रभाव पड़ेगा।
(छ) तुलनात्मकता–व्यावसायिक पर्यावरण एक तुलनात्मक अवधारणा है क्योंकि यह भिन्न-भिन्न देशों में एवं भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग होता है। इसी प्रकार से साड़ियों की माँग भारत में काफी अधिक हो सकती है जबकि फ्रांस में यह न के बराबर है।
व्यावसायिक पर्यावरण का महत्त्व
मनुष्य के समान व्यावसायिक उद्यम का अलग से कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्रत्येक व्यावसायिक इकाई अपने आप में कोई द्वीप नहीं होती। इसका अपने पर्यावरण के तत्व एवं शक्तियों के मध्य अस्तित्व है। वहीं यह सुरक्षित रहता है एवं इसका विकास होता है। अलग-अलग इकाइयाँ इन शक्तियों को बदलने अथवा इन पर नियंत्रण के लिए या तो बहुत थोड़ा कुछ कर सकती हैं अथवा फिर कुछ नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त इनके पास और कोई विकल्प नहीं है या तो यह इनके अनुरूप कार्य करें अथवा अपने आपको इनके अनुरूप ढाल लें। व्यवसाय के प्रबंधक यदि पर्यावरण को भली-भाँति समझते हैं तो यह अपनी इकाइयों से बाहर की शक्तियों की न केवल पहचान कर सकेंगे एवं उनका मूल्यांकन कर सकेंगे बल्कि उनके प्रतिकार स्वरूप आचरण भी कर सकेंगे। व्यावसायिक प्रबंधक व्यावसायिक पर्यावरण के महत्त्व एवं इसके संबंध में ज्ञान की निम्न बिंदुओं के आधार पर विवेचना कर सकेंगे।
(क) संभावनाओं/अवसरों की पहचान करने एवं पहल करने के लाभ–अवसरों से अभिप्राय सकारात्मक बाह्य रुझान अथवा परिवर्तनों से है जो किसी भी फर्म के परिचालन में सहायक होंगे। पर्यावरण व्यवसाय की सफलता के अनेक अवसर प्रदान करती है। यदि अवसर की प्रारंभ में ही पहचान हो जाती है तो कोई भी व्यावसायिक फर्म अपने प्रतियोगियों से पहले ही इसका लाभ उठा सकती है। उदाहरण के लिए मारुति उद्योग छोटी कार बाज़ार के शीर्ष पर आ गया क्योंकि यह प्रथम संगठन था जिसने पेट्रोल की बढ़ती कीमतों एवं विशाल भारतीय मध्यम वर्ग के पर्यावरण में छोटी कार की आवश्यकता को पहचान लिया था।
(ख) खतरे की पहचान एवं समय से पहले चेतावनी में सहायक–खतरों से अभिप्राय उन बाह्य पर्यावरण रुझान एवं परिवर्तनों सेे है जो फर्म के परिचालन में बाधक हो सकते हैं। अवसरों के साथ-साथ पर्यावरण अनेक खतरों का स्रोत होता है। पर्यावरण के प्रति यदि प्रबंधक सचेत हैं तो वह समय रहते खतरों को पहचान सकते हैं जो कि पूर्व चेतावनी है। उदाहरण के लिए यदि कोई भारतीय फर्म यह पाती है कि एक विदेशी बहुराष्ट्रीय इकाई भारतीय बाज़ार में कोई पूरक वस्तु लेकर आती है तो यह समय से पहले चेतावनी है। इस सूचना के आधार पर भारतीय फर्म अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार कर, उत्पादन लागत में कमी कर, आक्रामक विज्ञापन कर तथा अन्य एेसे कदम उठाकर खतरे का सामना करने के लिए अपने आपको तैयार कर सकती है।
(ग) उपयोगी संसाधनों का दोहन–पर्यावरण व्यवसाय संचालन के विभिन्न संसाधनों का स्रोत है। व्यावसायिक उद्यम किसी भी प्रकार की गतिविधियों में लिप्त हो यह अपने पर्यावरण से वित्त, मशीनें, कच्चा माल, बिजली एवं पानी आदि विभिन्न संसाधनों को जुटाते हैं जो इसके आगत हैं। पर्यावरण के अंग वित्तपोषक, सरकार एवं आपूर्तिकर्त्ता व्यावसायिक इकाई को बदले में कुछ पाने की इच्छा से इन संसाधनों को उपलब्ध कराने का निर्णय लेते हैं। व्यावसायिक उद्यम पर्यावरण को अपने उत्पाद प्रदान करते हैं, जैसे- ग्राहकों के लिए वस्तु एवं सेवाएँ, सरकार को कर, निवेशकों के वित्त निवेश पर प्रतिफल आदि। क्योंकि पर्यावरण उद्यम के लिए आगत अथवा संसाधनों का स्रोत है एवं उत्पादों के लिए निर्गमन का स्थान इसलिए यह उचित ही है कि उद्यम अपनी एेसी नीति निर्धारित करे। यह आवश्यक संसाधनों को प्राप्त कर सके जिससे कि यह उन संसाधनों को पर्यावरण की चाहत के अनुसार निर्गत में परिवर्तित कर सके। यह भली-भाँति तभी हो सकता है जबकि यह समझ लिया जाए कि पर्यावरण क्या दे सकता है।
(घ) तीव्रता से हो रहे परिवर्तनों का सामना करना–आज व्यावसायिक पर्यावरण अधिक गतिशील हो रहा है जिसमें तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। परिवर्तन उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना कि इसकी गति। बाज़ार में उथल-पुथल, ब्रांड के प्रति कम आकर्षण, बाज़ार का वर्ग अथवा उपवर्गों में विभाजन, ग्राहकों की बढ़ती हुई माँगें, तकनीकी में तीव्रता से हो रहे परिवर्तन एवं उत्कृष्ट वैश्विक प्रतियोगिता कुछ एेसे नमूने हैं जो आज के व्यावसायिक पर्यावरण का वर्णन करते हैं। सभी आकार एवं प्रकार के उद्यमों को और अधिक गतिशील पर्यावरण का सामना करना पड़ रहा है। इन महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए प्रबंधकों को पर्यावरण को समझना चाहिए एवं उसकी जाँच करनी चाहिए तथा उचित कार्यवाही विकसित करनी चाहिए।
(ङ) नियोजन एवं नीति निर्धारण में सहायता– क्योंकि पर्यावरण व्यावसायिक उद्यम के लिए अवसर भी है तथा खतरा भी इसकी समझ एवं इसका विश्लेषण करके निर्णय लेने (नीति संबंधित) के लिए भविष्य के मार्ग निर्धारण (नियोजन) अथवा दिशा-निर्देश का आधार बन सकता है। उदाहरण के लिए बाज़ार में नयी फर्मों के प्रवेश, जिसका अर्थ हुआ और अधिक प्रतियोगिता के कारण उद्यम पुनः विचार करेगा कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए।
(च) निष्पादन में सुधार–और अंत में पर्यावरण के संबंध में जानना इससे जुड़ा है कि क्या इसका उद्यम के परिचालन पर वास्तव में कोई प्रभाव पड़ेगा। उत्तर में हम कह सकते हैं कि हाँ इससे उद्यम के परिचालन में अंतर आएगा। कई अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी उद्यम का भविष्य पर्यावरण में जो घटित हो रहा है उससे घनिष्टता से जुड़ा है। उद्यम जो अपने पर्यावरण पर निरंतर निगरानी रखते हैं तथा उपयुक्त व्यावसायिक क्रियाएँ करते हैं, वे होते हैं जो न केवल अपने वर्तमान निष्पादन में सुधार लाते हैं बल्कि बाज़ार में दीर्घकाल तक सफल रहते हैं।
पर्यावरण के आयाम
व्यावसायिक पर्यावरण के आयाम अथवा तत्वों में आर्थिक सामाजिक, तकनीकी, राजनैतिक एवं विधियक/कानूनी सम्मिलित हैं जो एक उद्यम के निर्णय लेने एवं निष्पादन में सुधार के लिए प्रासंगिक माने जाते हैं विशिष्ट पर्यावरण के विपरीत यह तत्व साधारण पर्यावरण का वर्णन करते हैं जो अधिकांश रूप से एक ही समय में कई उद्यमों को प्रभावित करते हैं। प्रत्येक उद्यम का प्रबंध के इन आयामों में अरुचि के स्थान पर इनके संबंध में जागरूक रहने से अधिक लाभ होगा। उदाहरण के लिए वैज्ञानिक शोध ने एक एेसी तकनीक को खोज निकाला है जिससे एक एेसे ऊर्जा सक्षम रोशनी बल्ब को बनाना संभव हुआ है जो एक मानक बल्ब की तुलना में बीस गुणा अवधि तक चलता है। जनरल इलेक्ट्रिक एवं फिलिप्स के वरिष्ठ प्रबंधकों ने यह माना कि यह खोज उनकी इकाइयों की वृद्धि एवं लाभप्रदता को प्रभावित करेगी। इसलिए उन्होंने इस अनुसंधान की प्रगति पर ध्यान रखा तथा इसके निष्कर्षों से लाभ उठाया। साधारण व्यावसायिक पर्यावरण के विभिन्न तत्वों का संक्षेप में नीचे वर्णन किया गया है–
चित्र 3.1–व्यावसायिक पर्यावरण के घटक।
आर्थिक पर्यावरण के कुछ पहलू
- निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र की तुलनात्मक भूमिका के रूप में अर्थव्यवस्था का वर्तमान ढाँचा
- वर्तमान एवं स्थिर मूल्यों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दर में वृद्धि तथा प्रति व्यक्ति आय
- बचत एवं निवेश की दर
- विभिन्न मदों के आयात एवं निर्यात की मात्रा
- भुगतान शेष एवं विदेशी मुद्रा संचय में परिवर्तन
- कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन का रुझान
- परिवहन एवं संप्रेषण सुविधाओं का विस्तार
- अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति
- सार्वजनिक ऋण (आंतरिक एवं बाह्य)
- निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में नियोजित व्यय
(ख) सामाजिक पर्यावरण–सामाजिक पर्यावरण में सामाजिक शक्तियाँ सम्मिलित हैं जैसे- रीति-रिवाज़, मूल्य, सामाजिक बदलाव, व्यवसाय से समाज की अपेक्षाएँ आदि। रीतियाँ सामाजिक आचरण को परिभाषित करती हैं जो कि दशाब्दियों और शताब्दियों से चली आ रही हैं। उदाहरण के लिए भारत में दीपावली, ईद, क्रिसमस, गुरुपर्व जैसे त्योहारों का मनाना कार्ड कंपनियों, मिष्ठान भंडारों, दर्ज़ी एवं अन्य संबद्ध व्यवसायों को सार्थक वित्तीय अवसर प्रदान करता है। मूल्यों से अभिप्राय उन अवधारणाओं से है जिन्हें समाज सम्मान से देखता है। भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, समान अवसर एवं राष्ट्रीय एकता प्रमुख मूल्यों के उदाहरण हैं जिन्हें हम सभी संजोकर रखना चाहते हैं। व्यवसाय के शब्दों में यह मूल्य बाज़ार में चयन की छूट, समाज के प्रति व्यवसाय के उत्तरदायित्व एवं भेदभाव रहित रोज़गार प्रथा को जन्म देते हैं। सामाजिक बदलाव से व्यवसाय को विभिन्न अवसर मिलते हैं एवं खतरे होते हैं। उदाहरण के लिए स्वास्थ्य एवं फिटनेस आज बड़ी संख्या में शहरी लोगों में लोकप्रिय हो रहा है। इससे जैविक खाद्य पदार्थ, डायट पेय पदार्थ, जिम, मिनरल वाटर एवं भोजन के पूरक जैसे पदार्थों की माँग पैदा हो गई हैं। लेकिन इस प्रवृत्ति से अन्य उद्योगों के व्यवसाय जैसे-डेरी उत्पाद, तंबाकू एवं शराब को हानि हुई है।
सामाजिक पर्यावरण के कुछ पहलू
- उत्पादों में नव प्रवर्तन, जीवन शैली, पेशागत बँटवारा एवं उपभोक्ता आंदोलन के प्रति अभिवृत्ति।
- जीवन गुणवत्ता से सरोकार
- जीवन में आकांक्षाएँ
- श्रम-शक्ति से अपेक्षाएँ
- श्रम-शक्ति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
- जन्म दर एवं मृत्यु दर
- जनसंख्या में परिवर्तन
- शैक्षणिक पद्धति एवं साक्षरता दर
- उपभोग की आदतें
- परिवार की संरचना
क्रियाकलाप 1
सामाजिक पर्यावरण
किन्हीं एेसे दस परिवारों से संपर्क करें जिनसे आप परिचित हैं। पाँच वर्ष की उनकी उपभोग संबंधी आदतों में परिवर्तन का पता लगाएँ। व्यावसायिक इकाइयों के कार्यों पर इन परिवर्तनों के प्रभाव का विश्लेषण करें।
(ग) प्रौद्योगिकीय पर्यावरण–प्रौद्योगिकीय पर्यावरण में वैज्ञानिक एवं नवीनता से जुड़ी वे शक्तियाँ सम्मिलित हैं जो कि वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन के नये तरीके तथा व्यवसाय परिचालन की नयी पद्धतियाँ एवं तकनीक उपलब्ध कराती हैं। उदाहरण के लिए वर्तमान में कंप्यूटर एवं इलेक्ट्रॉनिक्स में प्रौद्योगिकीय प्रगति ने कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों के विज्ञापन के तरीकों को बदल दिया गया है। अब यह सीडी रोम के कंप्यूटरीकृत सूचना बूथ एवं इंटरनेट/वर्ल्ड वाइड वैब मल्टीमीडिया पेज द्वारा उत्पादों के सद्गुणों को दर्शाना सामान्य हो गया है। इसी प्रकार से फुटकर विक्रेताओं का आपूर्तिकर्ताओं से सीधे संबंध हो गया है जो आवश्यकतानुसार माल के समाप्त होने पर पुनः आपूर्ति कर देते हैं। विनिर्माता के पास लोचपूर्ण विनिर्माण प्रणालियाँ हैं। हवाई कंपनियों के पास इंटरनेट एवं वर्ल्ड वाइड वैब पेज हैं जिनके माध्यम से ग्राहक अपने उड़ान के समय, गंतव्य स्थान एवं किराए की व्यवस्था कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त लेज़र, रोबोट, जीव तकनीकी, खाद्य परीक्षक, औषधि, दूरसंचार एवं कृत्रिम ईंधन, जैसे वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हो रहे नित नए परिवर्तन ने कई उद्यमों को अवसर प्रदान किए हैं तथा खतरे पैदा किए हैं। वैक्यूम ट्यूब से ट्राँजिस्टर, भाप रेलवे इंजन से डीजल एवं विद्युत चालित इंजन, फाउंटेन पेन से बॉलप्वाइंट पेन, प्रोपैलर हवाई जहाजों से जेट तथा टाइपराइटर से कंप्यूटर आधारित शब्द प्रक्रियण की माँग में स्थानांतरण भी नए व्यवसाय के उत्तरदायी एवं कारण रहे हैं।
(घ) राजनैतिक पर्यावरण–राजनैतिक पर्यावरण में देश में सामान्य स्थिरता एवं शांति तथा चुनी गई सरकार के प्रतिनिधियों का व्यवसाय के प्रति विशिष्ट दृष्टिकोण जैसी राजनैतिक परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं। व्यवसाय की सफलता में राजनैतिक स्थितियों का महत्त्व स्थाई राजनैतिक स्थितियों के अंतर्गत व्यावसायिक क्रियाओं के पूर्वानुमान में होता है। दूसरी ओर राजनैतिक अशांति एवं कानून व्यवस्था में खतरे के कारण व्यावसायिक क्रियाओं में अनिश्चितता आ सकती है या इस प्रकार से राजनैतिक स्थिरता अर्थव्यवस्था के विकास के लिए दीर्घ अवधि परियोजनाओं में निवेश के लिए व्यवसायियों में आत्मविश्वास पैदा करती है। राजनैतिक अस्थिरता इस विश्वास को हिला सकती है। इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों का व्यवसाय के प्रति दृष्टिकोण का व्यवसाय पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
राजनैतिक वातावरण के कुछ पहलू
- वस्तु एवं सेवाओं के सभी निर्यातों पर सेवा कर की समाप्ति
- देश का संविधान
- वर्तमान राजनैतिक प्रणाली
- व्यवसाय एवं आर्थिक समस्याओं के राजनीतिकरण की मात्रा
- राजनैतिक दलों पर हावी विचारधारा एवं मूल्य
- राजनैतिक नेतृत्व की प्रकृति एवं राजनीतिज्ञों का व्यक्तित्व
- राजनैतिक नैतिकता का स्तर
- राजनैतिक संस्थान जैसे सरकार एवं संबद्ध एजेंसियाँ।
- जिस दल की सरकार है उसकी विचारधारा एवं कार्य
- व्यवसाय में सरकारी हस्तक्षेप की सीमा एवं प्रकृति
- हमारे देश के अन्य देशों के साथ संबंधों की प्रकृति
(ङ) विधिक पर्यावरण–विधिक पर्यावरण में सरकार द्वारा पारित विभिन्न विधेयक, सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी प्रशासनिक आदेश, न्यायालयों के फैसले तथा केंद्र, राज्य अथवा स्थानीय के प्रत्येक स्तर पर नियुक्त विभिन्न कमीशन एवं एजेंसियों के निर्णय सम्मिलित हैं। प्रत्येक उद्यम के प्रबंध के लिए देश के कानून का पालन करना अनिवार्य है। इसीलिए व्यवसाय के श्रेष्ठ परिचालन के लिए सरकार द्वारा पास किए गए नियमों का पर्याप्त ज्ञान अपेक्षित है। कानूनों के पालन न करने पर व्यावसायिक इकाई कानून के चंगुल में फँस सकती है। भारत में व्यवसाय करने के लिए निम्न ज्ञान का बड़ा महत्त्व है जैसेकि संविधान के प्रावधान, कंपनी अधिनियम, 2013; औद्योगिक (विकास एवं नियमक) अधिनियम, 1951; विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम एवं आयात एवं निर्यात अधिनियम (नियंत्रण अधिनियम) 1947; कारखाना अधिनियम, 1948; श्रम संघ अधिनियम, 1926; कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923; औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947; उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986; क्षतिपूर्ति अधिनियम 2002 तथा संसद द्वारा समय-समय पर संशोधित (अन्य विधिक अधिनियम) विधिक पर्यावरण के प्रभाव को उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए सरकारी नियमों के उदाहरण से समझाया जा सकता है। उदाहरण के लिए शराब का विज्ञापन करना निषेध है। सिगरेट के विज्ञापन में तथा इनके डिब्बी पर संवैधानिक चेतावनी "सिगरेट के सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है", को दिया जाता है। इसी प्रकार से छोटे बच्चे के खाद्य पदार्थ के विज्ञापन में संभावित क्रेताओं को यह अवश्य सूचित किया जाता है कि ‘स्तन पान’ सर्वोत्तम है। इन सभी नियमों का विज्ञापनकर्ताओं को पालन करना होता है।
भारत में आर्थिक पर्यावरण
भारत में आर्थिक पर्यावरण में उत्पादन के साधनों एवं धन के वितरण से संबंध रखने वाले वे विभिन्न समष्टि स्तर के तत्व सम्मिलित हैं जिनका व्यवसाय एवं उद्योग पर प्रभाव पड़ता है। ये तत्व हैं–
(क) देश के आर्थिक विकास की स्थिति
(ख) आर्थिक ढाँचे का मिश्रित अर्थव्यवस्था स्वरूप जिसमें सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों की भूमिका होती है।
(ग) सरकार की आर्थिक नीतियाँ जिनमें औद्योगिक, मौद्रिक एवं राजस्व से संबंधित नीतियाँ सम्मिलित हैं।
(घ) आर्थिक नियोजन जिसमें पंचवर्षीय योजनाएँ, वार्षिक बजट आदि सम्मिलित हैं।
(ङ) आर्थिक सूचकांक जैसे- राष्ट्रीय आय, आय का वितरण, सकल घरेलू उत्पाद की दर एवं उसमें वृद्धि, प्रतिव्यक्ति आय, व्यक्तिगत आय का उपयोग, बचत एवं निवेश की दर, आयात-निर्यात की राशि, भुगतान शेष आदि।
(च) ढाँचागत तत्व जैसे- वित्तीय संस्थान, बैंक, परिवहन के साधन, संदेश वाहन की सुविधाएँ आदि।
भारत में व्यावसायिक उद्यम अपने कार्य संचालन पर आर्थिक पर्यावरण के महत्त्व एवं प्रभाव को स्वीकार करता है। लगभग सभी कंपनियों के चेयरपर्सन वार्षिक रिपोर्ट में देश के सामान्य आर्थिक पर्यावरण तथा उनकी कंपनियों पर इसके प्रभाव के मूल्यांकन पर ध्यान देते हैं।
भारत में व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही निरंतर बदल रहा है जिसका मुख्य कारण सरकार की नीतियाँ हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय–
(क) भारतीय अर्थव्यवस्था मूलतः कृषि एवं ग्रामीण प्रकृति की थी।
(ख) कार्य योग्य जनसंख्या का 70 प्रतिशत कृषि में लगा था।
(ग) 80 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती थी।
(घ) उत्पादन में असंगत एवं निम्न उत्पादकता की तकनीकी का उपयोग होता था।
(ङ) चहुँ ओर छूत की बीमारियाँ फैली थी तथा मृत्यु दर बहुत ऊँची थी। कोई ठीक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली नहीं थी।
देश की आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए जिनमें प्लाई उद्योग पर राज्य का नियंत्रण, केंद्रीय नियोजन एवं निजी क्षेत्र के महत्त्व को कम करना सम्मिलित थे। भारत के विकास के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे–
(क) उच्च जीवन स्तर, बेरोज़गारी एवं गरीबी के लिए तीव्र आर्थिक विकास को प्रारंभ करना;
(ख) आत्मनिर्भरता एवं भारी आधारभूत उद्योगों पर जोर देते हुए एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार तैयार करना;
(ग) आय एवं धन की असमानता को कम करना;
(घ) समानता पर आधारित समाजवादी विकास को अपनाना तथा व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के शोषण को रोकना।
आर्थिक नियोजन के अनुरूप ही सरकार ने ढाँचागत उद्योगों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र को प्रमुख भूमिका सौंपी जब कि निजी क्षेत्र को उपभोक्ता की वस्तुओं के विकास का उत्तरदायित्व सौंपा। उसी समय सरकार ने निजी क्षेत्र के उद्यमों के कार्यकलापों पर बहुत सी रोक लगाई एवं नियम तथा नियंत्रण लागू किए। यद्यपि भारत को आर्थिक नियोजन को अपनाने के मिश्रित परिणाम निकले। बहुत अच्छी फसल के बाद भी 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने गंभीर विदेशी मुद्रा का संकट, उच्च राजकीय घाटा तथा मूल्य वृद्धि की समस्या आई।
आर्थिक सुधारों के अंग के रूप में भारत सरकार ने जुलाई, 1991 में नयी औद्योगिक नीति की घोषणा की।
इस नीति की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं–
(क) सरकार ने अनिवार्य लाइसेंसिग के वर्ग में उद्योगों की संख्या घटाकर छः कर दी।
(ख) कई उद्योग जो सार्वजनिक क्षेत्र के लिए निश्चित किए गए थे अब उन्हें मुक्त कर दिया गया। सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कार्यनीतिक/सामरिक महत्त्व के चार उद्योगों तक सीमित कर दिया गया।
(ग) विनिवेश को कई सार्वजनिक क्षेत्र के औद्योगिक उद्यमों में लागू कर दिया गया।
(घ) विदेशी पूँजी की नीति को उदार बनाया गया। विदेशी समता भागीदारी को बढ़ा दिया गया एवं कई क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 100 प्रतिशत की छूट दे दी गई।
(ङ) विदेशी कंपनियों के साथ प्रौद्योगिकी समझौतों के लिए स्वचल की छूट दे दी गई।
(च) भारत में विदेशी निवेश के प्रवर्तन एवं उसके प्रचालन के लिए विदेशी निवेश प्रवर्तन बोर्ड एफ. आई. पी. बी. (FIPB) की स्थापना की गई।
बड़े औद्योगिक घरानों की औद्योगिक इकाइयों के विकास एवं विस्तार के रास्ते की अड़चनों को दूर करने के लिए उपयुक्त कदम उठाए गए। लघु पैमाने के क्षेत्र को सभी प्रकार की सहायता का आश्वासन दिया तथा इनको आवश्यक मान्यता दी गई।
सार यह है कि यह नीति लाइसेंस प्रणाली के बंधन से उद्योग को मुक्त करना चाहती है (उदारीकरण), सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को बड़ी मात्रा में कम करना चाहती है (निजीकरण) तथा भारत के औद्योगिक विकास में विदेशी निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन देना चाहती है (वैश्वीकरण)।
उदारीकरण– आर्थिक सुधारों का लक्ष्य भारतीय व्यवसाय एवं उद्योग को अनावश्यक नियंत्रण एवं प्रतिबंधों से मुक्त कराना था। यह लाइसेंस-परमिट राज की समाप्ति का संकेत था। भारतीय उद्योग में निम्न उदारीकरण के संबंध में है–
जून 1991 का संकट
- संकट की स्थिति की प्रमुख विशेषताएँ जिनके कारण सरकार ने आर्थिक सुधारों की घोषणा की इस प्रकार थीं–
- गंभीर राजस्व संकट जिसमें 1990-91 में राजस्व घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.6 प्रतिशत तक पहुँच गया।
- आंतरिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 50 प्रतिशत था तथा केंद्रीय सरकार के एकत्रित कुल राजस्व का 39 प्रतिशत ब्याज के भुगतान में ही चला गया।
- 1980-81 के मूल्यों को आधार मान कर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 1988-89 में 10.5 प्रतिशत के उच्चतम स्तर से गिरकर 1.4 प्रतिशत पर आ गई।
- कुल कृषि उत्पादन, अनाज उत्पादन एवं औद्योगिक उत्पाद को क्रमशः 2.8 प्रतिशत, 5.3 प्रतिशत एवं 0.1 प्रतिशत की नकारात्मक विकास दर थी।
- थोक मूल्य सूचकांक एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (औद्योगिक कर्मचारियों के लिए) पर आधारित मूल्य वृद्धि दर 13-14 प्रतिशत तक पहुँच गई।
- विदेशी व्यापार घट गया, आयात (डॉलर में) 19.4 प्रतिशत एवं निर्यात में 1.5 प्रतिशत की दर से गिरावट आई।
- अमरीकन डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत में 26.7 प्रतिशत की कमी आई।
- जून 1991 में विदेशी मुद्रा कोष इतने नीचे स्तर पर आ गया कि यह एक सप्ताह के आयात का भुगतान करने के लिए भी अपर्याप्त था। गैर प्रवासी भारतीय अपनी जमा को बड़ी तेजी से निकाल रहे थे।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का विश्वास बुरी तरह से डोल गया तथा केवल एक वर्ष में ही साख AAA से घट कर BB+ (साख निगरानी पर) के स्तर पर आ गई।
- सरकार अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय देनदारी को चुकाने में असर्मथता के कगार पर थी तथा स्थिति की माँग थी कि इस स्थिति से बचने के लिए तुरंत नीतिगत कार्यवाही की जाए। मई 1991 में सरकार को अपने खजाने से 20 टन सोना भारतीय स्टेट बैंक को पट्टे पर देना पड़ा जिससे कि वह इसका छः महीने पश्चात् पुनः क्रय के विकल्प को रखकर विक्रय कर सके। इसके अतिरिक्त भारतीय रिजर्व बैंक ने 47 टन सोना बैंक अॉफ इंग्लैंड के पास गिरवी रखने की अनुमति दे दी जिससे कि 60 करोड़ डॉलर का ऋण लिया जा सके।
(क) थोड़े से उद्योगों को छोड़कर अधिकांश में लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करना;
(ख) व्यावसायिक कार्यों के पैमाने के संबंध निर्णय लेने की स्वतंत्रता अर्थात् व्यावसायिक गतिविधियों के विस्तार अपनाकर संकुचन पर कोई प्रतिबंध नहीं;
(ग) वस्तु एवं सेवाओं के स्थानांतरण में प्रतिबंधों को हटा लेना;
(घ) वस्तु एवं सेवाओं के मूल्यों के निर्धारण की स्वतंत्रता;
(ङ) कर की दरों में कमी तथा अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक नियंत्रणों को उठा लेना;
(च) आयात एवं निर्यात की प्रक्रिया का सरलीकरण; एवं
(छ) भारत में विदेशी पूँजी तथा प्रौद्योगिकी आकर्षित करने को सरल बनाना।
निजीकरण–नए आर्थिक सुधारों का लक्ष्य राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया में निजी क्षेत्र की भूमिका में बढ़ोतरी करना तथा सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कम करना था। भारतीय योजनाकारों ने अब तक विकास की जिस नीति का अनुसरण किया था उसको उलट दिया गया। इसको प्राप्त करने के लिए सरकार ने 1991 की नयी औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका की पुनः व्याख्या की, सार्वजनिक क्षेत्र के लिए योजनाबद्ध विनिवेश की नीति अपनाई तथा घाटे में चल रही तथा बीमार इकाइयों को औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्संरचना बोर्ड को सौंपने का निर्णय लिया गया। विनिवेश का अर्थ है- निजी क्षेत्र के उद्यमों को निजी क्षेत्र को हस्तांतरित करना। इसके परिणामस्वरूप निजी उद्यमों में सरकार की हिस्सेदारी कम हो जाएगी। यदि यह हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से अधिक है तो इसके कारण उद्यम का स्वामित्व एवं प्रबंध का निजी क्षेत्र को हस्तांतरण हो जाएगा।
संकट के प्रमुख शीघ्र सुधार कार्यक्रम
- आर्थिक संकट के प्रबंधन के लिए कुछ प्रमुख कदम जो प्रारंभ में ही उठा लिए गए थे इस प्रकार हैं–
- 1991-92 में (1990-91 की तुलना में) राजस्व घाटे में लगभग 7,700 करोड़ रुपए की कटौती के लिए राजस्व में सुधार।
- जुलाई 1991 में नयी औद्योगिक नीति की घोषणा जिसमें अधिक सक्षम एवं प्रतियोगी औद्योगिक अर्थव्यवस्था के उद्देश्य को लेकर विनियमन का प्रावधान किया गया।
- उन 18 उद्योगों को छोड़कर जो कि उच्च निर्णायक एवं पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथा उच्च आयात मूलक थे अन्य सभी औद्योगिक परियोजनाओं के लिए औद्योगिक लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई। लगभग 80 प्रतिशत उद्योगों में लाइसेंस की अनिवार्यता को समाप्त किया गया।
- बड़ी कंपनियों को अपनी क्षमता में वृद्धि एवं विविधता के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता को समाप्त करने के लिए MRTP एक्ट में संशोधन किया गया।
- बुनियादी एवं मूल उद्योगों के नौ क्षेत्रों को, जो कि पहले सार्वजनिक क्षेत्र के लिए निर्धारित थे, निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
- प्राथमिक उद्योगों की एक विस्तृत शृंखला में विदेशी समता भागीदारी की सीमा 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 प्रतिशत कर दी गई।
- बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के प्रस्तावों पर बातचीत के लिए निवेश के प्रस्तावों को हरी झंडी देने के कार्य में तेजी लाने के लिए विदेशी निवेश प्रर्वतन बोर्ड (FIPB) की स्थापना की।
- 1-3 जुलाई, 1991 के बीच रुपए का 18 प्रतिशत से अवमूल्यन कर दिया गया। इसके समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 20 महीनों के बीच 230 करोड़ डॉलर का उद्यत उधार लिया जिसको अक्टूबर 1991 में तय किया गया।
- अप्रैल, 1992 में विश्व बैंक से 500 मिलियन डॉलर का संरचनात्मक समयोजन ऋण लिया गया तथा जनवरी-सितंबर, 1999 के बीच अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से 1.3 बिलियन डॉलर का ऋण लिया गया।
- अक्टूबर 1991 में विदेशों में रखे कोषों के प्रत्यावर्तन के लिए भारतीय विकास बांड योजना एवं निरापदता प्रारंभ की गई जिसके अनुसार 1991-92 में 2 बिलियन डॉलर से भी अधिक का प्रत्यावर्तन हुआ।
- बैंक अॉफ इंग्लैंड तथा बैंक अॉफ जापान के पास गिरवी रखे सोने को वापस लाया गया।
- आयात नियंत्रण एवं साख संकुचन के उपायों को जारी रखना
- आयात पर शासित लाइसेंस प्रणाली के स्थान पर निर्यात से आय से संबंद्ध स्वतंत्र रुपए पर से आयात व्यापार की छूट (एक्जिम स्क्रिप्स)। इस उपाय से भारतीय विदेशी व्यापार में स्व संतुलक को लागू करने की संभावना थी।
- उदार विनिमय दर प्रबंध प्रणाली (LERMS) लागू करना जिसके अंतर्गत दोहरी विनिमय दर प्रणाली की स्थापना की गई जिसमें से एक दर बाज़ार में प्रभावी है।
- अधिकांश पूँजीगत वस्तुओं, कच्चा माल, अर्धनिर्मित माल एवं घटक पर आयात लाइसेंस को समाप्त कर दिया गया। अग्र लाइसेंस प्रणाली को काफी हद तक सरल कर दिया गया।
- प्रारंभ में उठाए गए कदमों ने भविष्य की आर्थिक सुधारों की दिशा तय कर दी। उपर्युक्त उपाय सुधार प्रक्रिया का अंग बनी रही।
वैश्वीकरण–वैश्वीकरण का अर्थ है-विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का एकजुट हो जाना जिससे एक सम्मिलित वैश्विक अर्थव्यवस्था का उदय होगा। 1991 तक भारत सरकार ने आयात की मात्रा तथा राशि दोनों के सख्त नियमन की नीति अपनाई थी। यह नियमन (क) आयात लाइसेंस (ख) कराें के द्वारा प्रतिबंध एवं (ग) मात्रा संबंधी प्रतिबंध के संबंध में थे। व्यापार के उदारीकरण को लक्ष्य रखकर किए गए नए आर्थिक सुधारों का ध्येय आयात को उदार बनाना, कर ढाँचे को युक्तिसंगत बनाकर निर्यात में वृद्धि करना एवं विदेशी विनिमय के संबंध में सुधार करना था जिससे कि देश शेष विश्व से अलग-थलग न प\ड़ जाए। वैश्वीकरण से विश्व अर्थव्यवस्था के विभिन्न देशों में पारस्परिक लेन-देन तथा एक-दूसरे पर निर्भरता में वृद्धि होगी। यदि कोई व्यावसायिक इकाई दूर के भौगोलिक बाज़ार में अपने ग्राहक की सेवा करना चाहता है तो उसके लिए अब भौतिक भौगोलिक दूरी अथवा राजनैतिक सीमाएँ कोई बाधा नहीं हैं। यह सब प्रौद्योगिकी में ते.जी से हो रहा विकास तथा सरकार की उदार व्यापार संबंधी नीति के कारण संभव हुआ। 1991 की नीति के माध्यम से भारत सरकार ने देश को वैश्वीकरण की राह पर डाल दिया।
एक वास्तविक वैश्विक अर्थव्यवस्था
एक वास्तविक वैश्विक अर्थव्यवस्था का अर्थ है- एक सीमा रहित विश्व जिसमें–
(क) देशों के बीच वस्तु एवं सेवाओं का स्वतंत्र प्रवाह है;
(ख) देशों के बीच पूँजी का स्वतंत्र प्रवाह;
(ग) सूचना एवं प्रौद्योगिकी का स्वतंत्र प्रवाह;
(घ) देशों के बीच लोगों का स्वतंत्र रूप से आना-जाना;
(ङ) विवादों के निपटान के लिए समान रूप से स्वीकार्य तंत्र;
(च) वैश्विक शासित परिप्रेक्ष्य।
क्रियाकलाप 2
वैश्वीकरण
एेसी पाँच भारतीय कंपनियों की सूची बनाएँ जिनका आज विश्वव्यापी परिचालन है। उनके द्वारा विक्रय किए जा रहे प्रमुख उत्पाद तथा वह देश जहाँ वह अपना कारोबार कर रही हैं का पता लगाइए।
विमुद्रीकरण
भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को एक घोषणा की, जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था से गहरा संबंध है। दो सर्वाधिक मूल्यवर्ग, 500 रु. तथा 1,000 रु. के नोट तत्काल प्रभाव से विमुद्रित कर दिए गए अर्थात् कुछ विशिष्ट सेवाओं, जैसे–उपयोगिता बिलों का भुगतान को छोड़कर इन नोटों की विधि मान्यता समाप्त कर दी गई। इससे 86 प्रतिशत चलन मुद्रा अवैध हो गई। भारत के लोगों को अवैध मुद्रा बैंकों में जमा करानी प\ड़ी तथा साथ ही नकद निकासी पर प्रतिबंध भी लगाए गए। दूसरे शब्दों में, घरेलू मुद्रा तथा बैंक जमाओं की परिवर्तनीयता पर प्रतिबंध लगाए गए।
विमुद्रीकरण के उद्देश्य थे – भ्रष्टाचार को रोकना, आतंकी गतिविधियों हेतु प्रयुक्त होने वाले उच्च मूल्य वर्ग के नकली नोटों को रोकना तथा विशेष रूप से कालेधन के संचय को रोकना जो उस आय द्वारा बनाया गया है जो कर अधिकारियों के समक्ष घोषित नहीं की गई।
विशेषताएँ
1. विमुद्रीकरण को कर प्रशासन उपाय के रूप में देखा गया। घोषित आय से उत्पन्न रोकड़ धारिता को नए नोटों के बदले तुरंत बैंकों में जमा करा दिया गया। परंतु काला धन रखने वालों को अपनी गैर-अभिलेखित सम्पत्ति की घोषणा करनी पड़ी तथा जुर्माने की दर से कर भुगतान करना पड़ा।
2. विमुद्रीकरण की व्याख्या सरकार द्वारा किए गए उस उपाय के रूप में की जा सकती है जो यह संकेत करता है कि कर अपवंचन को लेते समय तक सहन अथवा स्वीकार नहीं किया जाएगा।
3. विमुद्रीकरण से बचतों को भी औपचारिक वित्तीय तंत्र में दिशा मिली। यद्यपि बैंकिंग तंत्र में जमा किया गया अधिकांश रोकड़ निकाल लिया जाना था, परंतु बैंकों द्वारा कुछ नई जमा योजनाएँ प्रस्तुत की गईं जिनसे कम ब्याज दरों पर आधार ऋण उपलब्ध कराना जारी रखा जाएगा।
4. कम रोकड़ अर्थव्यवस्था का निर्माण, विमुद्रीकरण की एक अन्य विशेषता है, अर्थात् अधिक बचतों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली की ओर दिशा प्रदान करना तथा कर अनुपालन में सुधार करना। यद्यपि इसके विरुद्ध यह तर्क दिए जाते हैं कि डिजिटल लेन-देनों हेतु ग्राहकों द्वारा सैल फोनों का इस्तेमाल तथा व्यापारियों द्वारा बिक्री केंद्र मशीनों का इस्तेमाल आवश्यक होता है। जिसके लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी ज़रूरी होती है। विरोधस्वरूप, ये दोष इस समझ से प्रतिभारित हो जाते हैं कि ये लोगों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में सहायता करते हैं, जिससे वित्तीय बचत बढ़ती है तथा कर अपबंधन कम होता है।
व्यवसाय एवं उद्योग पर सरकारी नीतियों में परिवर्तन का प्रभाव
सरकार की उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति का व्यवसाय एवं उद्योग की व्यावसायिक इकाइयों के कार्यों पर समुचित प्रभाव पड़ा है। सरकार की नीतियों में परिवर्तन के कारण भारतीय निगमत क्षेत्र के सामने अनेक चुनौतियाँ आ गई हैं। इन चुनौतियों का वर्णन नीचे दिया गया है–
(क) प्रतियोगिता में वृद्धि–औद्योगिक लाइसेंस के नियमों में परिवर्तन एवं विदेशी फर्मों के प्रवेश के परिणामस्वरूप भारतीय फर्मों के लिए प्रतियोगिता में वृद्धि हुई है विशेष रूप से सेवा उद्योग, जैसे– दूर संचार, हवाई सेवा, बैंक सेवा, बीमा इत्यादि में जो कि पहले सार्वजनिक क्षेत्र में थे।
(ख) अधिक अपेक्षा रखने वाले ग्राहक– आज ग्राहकों की दावेदारी बढ़ गई है क्योंकि आज उनको पूरी जानकारी है। बाज़ार में बढ़ी हुई प्रतियोगिता ग्राहकों को श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु एवं सेवाओं के क्रय में बहुत अधिक चयन के अवसर प्रदान करती है।
(ग) प्रौद्योगिकी पर्यावरण में ते.जी से परिवर्तन–प्रतियोगिता में वृद्धि फर्मों को बाज़ार में टिके रहने एवं बढ़ने के नए-नए तरीकों के विकास के लिए बाध्य करती है। नयी तकनीक के कारण मशीन, प्रक्रिया उत्पाद एवं सेवाओं में सुधार संभव हुआ है। ते.जी से बदलता प्रौद्योगिक पर्यावरण छोटी फर्मों के सामने कठिन चुनौतियाँ पैदा करता है।
डिजिटाइजेशन ने मोटे तौर पर समाज के तीन वर्गों को प्रभावित किया है – निर्धन, जो मुख्य रूप से डिजिटल अर्थव्यवस्था से बाहर हैं; कम धनवान लोग, जो डिजिटल अर्थव्यवस्था का भाग बन रहे हैं तथा जन-धन खातों व रूपे कार्डों के अंतर्गत आ चुके हैं और धनवान लोग, जो डिजिटल लेन-देनों से पूरी तरह अभिज्ञ हैं।
(घ) परिवर्तन की आवश्यकता–1991 से पूर्व के युग के नियमों से बंधे पर्यावरण में; फर्मों की नीतियाँ एवं कार्य स्थायी हो सकते थे। 1991 के पश्चात् बाज़ार शक्तियाँ अधिक उग्र हो गई हैं, परिणामस्वरूप उद्यमों को अपने प्रचालन में निरंतर संशोधन करना होगा।
(ङ) मानव संसाधनों के विकास की आवश्यकता–भारतीय उद्यम अपर्याप्त प्रशिक्षित कर्मचारियों के कारण लंबे समय से हानि उठा रहा है। नयी बाज़ार परिस्थितियों की माँग उच्च क्षमतावान एवं अधिक प्रतिबद्ध लोगों की है। इसलिए मानव संसाधनों के विकास की आवश्यकता है।
(च) बाज़ार अभिविन्यास–पहले व्यावसायिक इकाइयाँ उत्पादन करती थीं और उसके पश्चात् बाज़ार में बिक्री करती थीं। दूसरे शब्दों में उनके कार्य उत्पादन मूलक थे। ते.जी से परिवर्तित विश्व में, बाज़ार मूलक स्थिति की ओर बदलाव है कि फर्म पहले बाज़ार का अध्ययन करते हैं और उसके अनुरूप ही वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
स्रोत-आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17
(छ) सार्वजनिक क्षेत्र को बजटीय समर्थन का अभाव–पिछले वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के परिव्यय के वित्तीयन के लिए केंद्रीय सरकार का बजटीय समर्थन कम हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ने यह समझ लिया कि यदि इन्हें अस्तित्व में रहना है एवं विकास करना है तो उन्हें और अधिक कुशल होना होगा तथा इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपने संसाधन जुटाने होंगे।
कुल मिलाकर सरकार की नीतियों में परिवर्तन विशेषतः उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण सकारात्मक रहा है क्योंकि भारतीय व्यवसाय एवं उद्योग ने नयी अर्थव्यवस्था के अनुपालन में भारी स्थिति स्थापन दिखाई है। भारतीय उद्यमों ने प्रतियोगिता की चुनौतियों का सामना करने के लिए युक्तियाँ विकसित की हैं एवं व्यावसायिक प्रक्रिया एवं पद्धति अपनाई है। वह अब अधिक ग्राहक केंद्रित हो गए हैं तथा ग्राहकों से संबंध एवं उनकी संतुष्टि में सुधार ला रहे हैं।
मुख्य शब्दावली
व्यावसायिक पर्यावरण ।। प्रौद्योगिकीय पर्यावरण ।। संभावनाएँ
विधिक पर्यावरण ।। खतरे ।। उदारीकरण ।। आर्थिक पर्यावरण
निजीकरण ।। राजनैतिक ।। वैश्वीकरण ।। सामाजिक पर्यावरण
सारांश
व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ
व्यावसायिक पर्यावरण से अभिप्राय सभी व्यक्तियों, संस्थानों एवं अन्य शक्तियों की समग्रता से है जो कि व्यवसाय के बाहर हैं लेकिन जो इसके प्रचालन को काफी क्षमता से प्रभावित करते हैं। व्यावसायिक पर्यावरण की विशेषताएँ हैं–
(क) बाह्य शक्तियों की समग्रता
(ख) विशिष्ट एवं सामान्य शक्तियाँ
(ग) पारस्परिक संबंध
(घ) गतिशीलता
(ङ) अनिश्चतता
(च) जटिलता एवं
(छ) तुलनात्मकता
व्यावसायिक पर्यावरण का महत्त्व
व्यावसायिक पर्यावरण एवं इसकी समझ महत्त्वपूर्ण हैः (क) अवसरों की पहचान के लिए एवं पहल करने के लाभ (ख) संकट की पहचान करने में सहायक एवं पूर्व चेतावनी संकेत (ग) तीव्र परिवर्तन का सामना करना (घ) नियोजन एवं नीति में सहायक (ङ) निष्पादन में सुधार
व्यावसायिक पर्यावरण के आयाम
व्यावसायिक पर्यावरण के पाँच आयाम हैं आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, राजनैतिक एवं विधिक। आर्थिक पर्यावरण में जो तत्व सम्मिलित हैं वे हैं- ब्याज की दर, मूल्य वृद्धि दर, लोगों की व्यय योग्य आय में परिवर्तन, शेयर बाज़ार के सूचकांक एवं रुपए का मूल्य। सामाजिक पर्यावरण में सम्मिलित हैं- सामाजिक शक्तियाँ जैसे- रीति रिवाज, मूल्य, सामाजिक परिवर्तन, व्यवसाय से समाज की अपेक्षाएँ आदि। प्रौद्योगिकी पर्यावरण में सम्मिलित हैं- वैज्ञानिक सुधार एवं नवीनता जो वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन के नए मार्ग तथा व्यवसाय के संचालन के लिए नयी पद्धतियाँ एवं तकनीक की व्यवस्था करना। राजनैतिक पर्यावरण में सम्मिलित हैं- राजनैतिक परिस्थितियाँ, जैसे कि देश में सामान्य स्थिरता एवं शान्ति तथा सरकार के चुने हुए प्रतिनिधियों का व्यवसाय के प्रति विशेष आग्रह। विधिक पर्यावरण में सम्मिलित हैं- सरकार द्वारा पारित विभिन्न अधिनियम, सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी प्रशासनिक आदेश, न्यायालय के फैसले, एवं केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार अथवा स्थानीय निकायों के स्तर पर विभिन्न कमीशन एवं एजेंसियों द्वारा लिए गए निर्णय।
भारत में आर्थिक पर्यावरण
भारत में आर्थिक पर्यावरण में व्यवसाय एवं उद्योग को प्रभावित करने वाले, धन के उत्पादन एवं वितरण के साधनों से जुड़े समष्टि परक के विभिन्न कारक सम्मिलित हैं। सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप भारत में आर्थिक पर्यावरण में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् से अनवरत परिवर्तन आ रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति पर देश की आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए, जैसे मुख्य उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण, केंद्रीय योजनाएँ एवं निजी क्षेत्र का घटता महत्त्व। इन उपायों के 1991 तक मिश्रित परिणाम सामने आए जब भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर विदेशी मुद्रा संकट, उच्च राजकीय घाटा एवं अच्छी फसल के बाद भी मूल्यों में वृद्धि की प्रवृत्ति का सामना करना पड़ा।
उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण
आर्थिक सुधारों के भाग के रूप में भारत सरकार ने जुलाई, 1991 में एक नयी औद्योगिक नीति की घोषणा की जो लाइसेंस प्रणाली के बंधन से उद्योग को मुक्त करना चाहती थी, सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कम करना (निजीकरण) चाहती थी, एवं औद्योगिक विकास में विदेशी निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना (वैश्वीकरण) चाहती थी।
सरकारी नीतियों में परिवर्तन का व्यवसाय एवं उद्योग पर प्रभाव
सरकार की उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति का व्यवसाय एवं उद्योग के कार्य संचालन पर निश्चित प्रभाव पड़ा है जो इस रूप में है–
(क) उत्पादन में वृद्धि (ख) ग्राहकों की अपेक्षाओं में वृद्धि (ग) प्रौद्योगिकी पर्यावरण में तीव्र परिवर्तन (घ) परिवर्तन की आवश्यकता (ङ) मानव संसाधनों के विकास की आवश्यकता (च) बाज़ार मूलक एवं (छ) सार्वजनिक क्षेत्र को बजटीय समर्थन का मिलना। नए आर्थिक पर्यावरण में भारतीय उद्यमों ने प्रतियोगिता की चुनौती का सामना करने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यूह-रचना को विकसित किया है।
अभ्यास
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. व्यापार वातावरण को परिभाषित करें।
2. व्यापार वातावरण की समझ कैसे व्यापार के प्रदर्शन को बेहतर करने में सहायक होती है?
3. उदाहरण देकर समझाएँ कि एक व्यापारिक फर्म व्यापार वातावरण का गठन करने वाले कई अंतर संबंधित कारकों के भीतर काम करती है।
4. कृष्णा फर्निशर्स मार्ट ने वर्ष 1954 में अपना परिचालन शुरू किया। परिचालन में अपने मूल डिजाइन और दक्षता के कारण कृष्णा फर्निशर्स बाजार में अग्रणी साबित हुआ। उनके उत्पादों की बाजार में लगातार माँग थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने क्षेत्र में नए प्रवेशकों की वजह से अपनी बाजार हिस्सेदारी में कमी देखी। फर्म ने अपने परिचालनों की समीक्षा करने का फैसला किया। उन्होंने पाया कि प्रतिस्पर्धा को पूरा करने के लिए उन्हें बाजार के रुझानों का अध्ययन और विश्लेषण करने की आवश्यकता होगी और फिर उत्पादों को डिजाइन और विकसित करना होगा। कृष्णा फर्निशर्स मार्ट के संचालन पर कारोबारी माहौल में बदलाव के किन्हीं दो प्रभावों की सूची बनाएँ।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. व्यावसायिक उद्यमों के लिए व्यापारिक वातावरण को समझना क्यों महत्वपूर्ण है? टिप्पणी करें।
2. निम्नलिखित की व्याख्या करेंः
(क) उदारीकरण (ख) निजीकरण (ग) वैश्वीकरण
3. व्यवसाय और उद्योग पर सरकारी नीति परिवर्तन के प्रभाव की संक्षेप में चर्चा करें।
4. राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय (एन.डी.एल.) केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक पायलट परियोजना है। यह परियोजना एकल खिड़की सुविधा के माध्यम से शिक्षा संसाधनों के वर्चुअल भंडार के ढांचे को विकसित करने की दिशा में काम करती है। यह शोधकर्ताओं सहित सभी शिक्षार्थियों को प्रत्येक स्तर पर निःशुल्क समर्थन प्रदान करती है। व्यापारिक वातावरण के संबंधित घटक की विवेचना करें।
5. ब्याज दरों, निजी संपत्ति और अचल संपत्ति पर विमुद्रीकरण के प्रभाव की विवेचना करें।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. आप व्यापारिक वातावरण को कैसे परिभाषित करेंगे? उदाहरण के साथ, सामान्य और विशिष्ट वातावरण के बीच अंतर बताएँ।
2. तर्क दीजिए कि एक व्यवसायी की सफलता अपने वातावरण से कैसे प्रभावित होती है?
3. व्यापार वातावरण के विभिन्न आयामों के बारे में उदाहरण सहित बताएँ।
4. भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को विमुद्रीकरण की घोषणा की जिसके परिणामस्वरूप उसी आधी रात से ₹ 500 और ₹ 1,000 के नोट वैध मुद्रा नहीं रह गए। घोषणा के बाद भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ₹ 500 और ₹ 2,000 मूल्य के नए मुद्रा नोट जारी किए गए। इस कदम के परिणामस्वरूप प्वाइंट अॉफ सेल मशीन, ई-वेल्ट्स, डिजिटल कैश और कैशलेस लेन-देन के अन्य तरीकों के बारे में जागरूकता में काफी वृद्धि हुई। इसके अलावा, मौद्रिक लेन-देन और प्रकटीकरण में पारदर्शिता में वृद्धि के कारण कर संग्रह के रूप में सरकारी राजस्व में वृद्धि हुई।
(क) उपरोक्त संदर्भ में व्यापारिक पर्यावरण के आयामों का आकलन करें।
(ख) विमुद्रीकरण की विशेषताएँ बताएँ।
5. औद्योगिक नीति, 1991 के तहत सरकार द्वारा कौन-से आर्थिक परिवर्तन शुरू किए गए थे? व्यापार और उद्योग पर इनका क्या प्रभाव रहा?
6. निम्नलिखित की आवश्यक विशेषताएँ क्या हैं-
(क) उदारीकरण (ख) निजीकरण (ग) वैश्वीकरण