Abhyasan Part-1-001


अध्याय 5

संगठन

अधिगम उद्देश्य

इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप–

  • संगठन अवधारणा को परिभाषित कर सकेंगे;
  • संगठन प्रक्रिया की व्याख्या कर सकेंगे;
  • संगठन के महत्त्व का वर्णन कर सकेंगे;
  • कार्यात्मक संगठन का अर्थ, गुण एवं दोषों की व्याख्या कर सकेंगे;
  • प्रभागीय संगठन का अर्थ, गुण एवं दोषों की व्याख्या कर सकेंगे।
  • औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन का अर्थ, गुण व दोषों की व्याख्या कर सकेंगे।
  • औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अंतर कर सकेंगे।
  • औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अंतर कर सकेंगे।
  • अधिकार अंतरण तथा विकेंद्रीकरण अवधारणा को समझा सकेंगे।
  • अधिकार अंतरण तथा विकेंद्रीकरण के महत्त्व को समझा सकेंगे।
  • अधिकार अंतरण तथा विकेंद्रीकरण में अंतर कर सकेंगे।


आगे बढ़ने का मार्ग, विप्रो!

यह अभी तक पूर्णतया वहाँ नहीं पहुँच पाई है लेकिन लक्ष्य निश्चित रूप से इसकी पहुँच के दायरे में है। भारत की विशालतम इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी समाधान संभरक में से एक ‘विप्रो टेक्नोलॉजीज़’ ‘आई. बी. एम.’ तथा ‘एेस्सेंचर’ की भाँति अपने प्रयत्नों से विश्व की सबसे विशाल एवं सर्वाधिक सफल ‘टेक्नोलॉजी सर्विसेज़ कंपनियों’ में सम्मिलित होने वाली है।

विप्रो जो वर्तमान में 45,000 व्यक्तियों को रोज़गार प्रदान करती है, की विकास दर 30 प्रतिशत वार्षिक होने वाली है। ‘‘मैं नहीं समझता कि 1,50,000 या 2,00,000 व्यक्तियों की वृद्धि कोई अपराजेय चुनौती है।’’ प्रेमजी सभापति (चेयरमैन) विप्रो। उनका विश्वास है कि ‘एस्सेंचर’ जैसी कंपनियाँ जब दो वर्षों में 20,000 व्यक्तियों की वृद्धि कर सकती हैं तो हमारी विकास परियोजना असंभव नहीं है।

पुनः संरचित विप्रो का ग्राहकोन्मुखी उन्नति दर लक्ष्य, भूमंडल का विशाल संगठन बनने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम समझा गया।

पिछले कुछ महीनों में विप्रो स्वयं ही उत्पादन की कुछ इकाइयों जैसे- टेलीकम्यूनीकेशन, इंजीनीयरिंग, वित्तीय सेवाओं आदि में सहायक कंपनियों में विभक्त हो गई। प्रत्येक सहायक कंपनी की वार्षिक आय लगभग 300 मिलियन डॉलर है तथा वह अपनी लेखा पुस्तकों एवं कार्मिक तथा प्रशासन कार्यो में आत्मनिर्भर है।

विप्रो केंद्रीकृत प्रबंध व्यवस्था से विकेंद्रीकृत प्रबंध व्यवस्था में परिवर्तित हो चुकी है। विकास का उत्तरदायित्व, प्रत्येक इकाई के प्रबंध का है।

प्रेमजी ने कहा "हमने अपने संगठन के स्तर में परिवर्तन करने का प्रयत्न किया तथा हमने अपनी व्यावसायिक अकांक्षाओं को उच्च श्रेणी की जिम्मेदारियाँ देकर शक्तिशाली बनाया। हमने सभी स्तरों के कार्यकर्ताओं को हटा दिया।"

विप्रो सेवादाता से उत्पाद विकासक की ओर भी अग्रसर हो रहा है। आज इसके साझेदार दूसरी कंपनियों के साथ इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी उत्पाद के विकास में अनुभव तथा नाम को मान्यता दिलाने के लिए प्रयत्नशील हैं।   


विषय प्रवेश

जब योजनाएँ तैयार कर ली जाती हैं तथा उद्देश्यों को सुनिश्चित कर लिया जाता है तो आगामी कदम उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संसाधनों को संगठित करना होता है। नियोजन प्रक्रिया में निर्धारित लक्ष्यों को पाने में संगठन के कार्य को ढाँचाबद्ध करना तथा गतिशील व्यावसायिक पर्यावरण को अपनाना जटिल समस्या होती है। उद्यम की क्रियाएँ इस प्रकार संगठित हों कि योजनाएँ आसानी से लागू की जा सकें।

योजनाओं को सफल बनाने के लिए कुछ बिन्दु जैसे-उन संसाधनों का जिनकी आवश्यकता हो सकती है तथा उनका परिनियोजन ताकि उनका प्रभावपूर्ण उपयोग हो सके, को समझना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कार्य का प्राप्य-कार्य में रूपांतर, कार्य-शक्ति को समर्थ बनाना ताकि वह इन कार्यों को पूरा कर सकें, इन सभी को समझना तथा उपयुक्त तरीके से करना आवश्यक होता है।

विप्रो का विश्व में सफल टेक्नोलॉजी कंपनी के रूप में उभकर आना प्रमाण है कि वे अपने लक्ष्य की ओर जिस प्रकार बढ़े, उससे यह बात सिद्ध होती है कि योजनाओं को लागू करने में संगठन की एक मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

विप्रो ने एेसा क्या किया जो आज वह विश्वव्यापी दिग्गजों में एक दावेदार शक्ति बन चुकी है? क्या विप्रो से कुछ सबक सीखने चाहिएँ?

विप्रो ने अपने आपको इस तरह से संगठित किया कि अन्य लक्ष्यों पर ग्राहक अनुस्थापन हावी हो गया तथा उत्पादन रेखा के आधार पर विविधता देखने को मिली। प्रबंध सोपानी के संबंधों में इस प्रकार सुधार किया गया कि वे लक्ष्य के अनुकूल हों। प्रबंध का संगठन कार्य यह भरोसा दिलाता है कि प्रयास नियोजन में दिए गए लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर निर्देशित होते हैं कि संसाधनों का उपयुक्त उपयोग किया जाए तथा व्यक्तिगण सामूहिक हितों के लिए एकत्रित होकर प्रभावी ढंग से काम करें। इस प्रकार यह प्रभावपूर्ण प्रबंध के संदर्भ हैं ताकि संगठन कार्य अपना महत्त्व हासिल कर सके। योजनाओं को कार्यरूप में परिणत करने का यह एक साधन है।

संगठन कार्य, संगठन जन-संरचना का निर्माण करने में नेतृत्व करता है। जिसमें भूमिकाओं का रूपांकन समिति होता है जिसे उपयुक्त निपुण व्यक्तियों द्वारा भरा जाता है तथा इन भूमिकाओं को निभाने के लिए आपसी संबंध को समझाया जाता है ताकि कर्त्तव्य पूरा करने में भ्रम की स्थिति न बन सके। यह कर्मचारी वर्ग में केवल उत्पादन सहयोग के लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि अधिकार की सीमा के स्पष्टीकरण के लिए भी आवश्यक है तथा परिणाम के उत्तरदायित्व तथा क्रियाओं के तार्किक वर्गीकरण के लिए भी आवश्यक है।

अर्थ

संगठन संरचना कैसे की जाती है इसे हम एक उदाहरण की सहायता से समझ सकते हैं। क्या कभी आपने यह सोचा है कि विद्यालय का उत्सव (फेस्ट) कैसे इतनी उत्साह से मनाते हैं? तथा यह सब कैसे संभव होता है। इसके पीछे वह सब कैसे होता है जिसकी आप इच्छा करते हैं? यह संपूर्ण कार्य, ग्रुपों में विभाजित किया जाता है तथा प्रत्येक ग्रुप जैसे- खाद्य समिति, सजावट समिति, टिकट समिति आदि को अपने-अपने कार्य क्षेत्र में काम करने के लिये प्रेरित किया जाता है। यह संपूर्ण कार्य एक प्रभारी के नेतृत्व में होता है जो उसके लिए उत्तरदायी होता है। सभी ग्रुपों में आपसी तालमेल बनाये रखने तथा प्रत्येक ग्रुप को अपने द्वारा किये जाने वाले कार्यों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए सामंजस्य स्थापित किया जाता है। ये सभी क्रियाएँ संगठन कार्य का ही अंग होती हैं।

संगठन निश्चित रूप से मानवीय प्रयासों में सामंजस्य स्थापित करने तथा संसाधनों को जोड़ने तथा दोनों को एकत्रित करने में लागू होता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में उनका उपयोग हो सके।

संगठन को, बतौर एक प्रक्रिया जो योजनाओं को, कार्य के स्पष्टीकरण, कार्यशैली संबंध तथा संसाधनों को प्रभावपूर्ण ढंग से काम पर लगाकर लागू करता है तथा चिह्नित एवं इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त करता है, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

संगठन प्रक्रिया में कदम

इच्छित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु संगठन प्रक्रिया में कुछ कदमों की शृंखला को ध्यान में रखना आवश्यक है। एक उदाहरण की सहायता से संगठन को समझने का प्रयत्न करेंगे कि संगठन कैसे बनाया जाता है? कल्पना करो कि 12 छात्र ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में पुस्तकालय के लिए काम करते हैं।

एक शाम छात्रों से नवीन प्रकाशित माल तथा अलमारियों को उतारने तथा रद्दी (कागज़ों तथा पैकिंग सामग्री) को निपटाने के लिए कहा गया। यदि सभी छात्र अपनी इच्छानुसार कार्य करेंगे तो एक असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। यदि उनमें से एक छात्र, छात्रों को विभिन्न ग्रुपों में विभक्त करे, काम का बँटवारा करे, हर ग्रुप को कार्य तथा उसकी मात्रा को सौंपे तथा उनके आपसी संबंधों में मधुरता की भावना को जागृत करे तो कार्य शीघ्र भी होगा तथा अच्छा भी।


संगठन की अवधारणा

"संगठन एक प्रक्रिया है जो कार्य को समझने तथा वर्गीकरण करने, अधिकार अंतरण को परिभाषित करने तथा मनुष्यों को अत्यधिक कार्य कुशलता के साथ, लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिए संबंध स्थापित करता है।"

लूइस एेलन

"संगठन एक एेसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उपक्रम के कार्यों को परिभाषित एवं वर्गीकृत किया जाता है और उन्हें विभिन्न व्यक्तियों को सौंपकर उनके अधिकार संबंधों को निश्चित किया जाता है।"

थ्यो हेमैन 


विचारणीय

आपके विद्यालय में पाठ्यचर्या के अतिरिक्त क्रियाकलापों के लिए बहुत सी समितियाँ जैसे- ड्रामैटिक सोसाइटी, क्विज़ क्लब, इकोनॉमिक सोसाइटी, डिबेटिंग (वाद-विवाद) सोसाइटी आदि अवश्य होंगी। उन्हें देखो तथा सूचीबद्ध करो कि उन्होंने किस प्रकार श्रम-विभाजन करके अपने क्रियाकलापों को संगठित किया है तथा किस प्रकार कार्य की रिपोर्टिंग के लिए संसूचना शृंखला तथा स्तर को अपनाया है। जो प्रक्रिया आपने पढ़ी है उससे इसमें कितनी समानता है।

उपरोक्त विवरण से संगठन प्रक्रिया के निम्नलिखित कदम उजागर होते हैं–

(क) कार्य की पहचान तथा विभाजन– संगठन प्रक्रिया का सर्वप्रथम कदम पूर्व निर्धारित योजनाओं की पहचान करना तथा कार्य का विभाजन करना है। कार्य का विभाजन इस प्रकार किया जाता है कि कार्य करने में पुनरावृत्ति न हो तथा काम का बोझ सभी कर्मचारियों में विभाजित हो जाए।

(ख) विभागीकरण–जब कार्य को छोटी

-छोटी तथा प्रबंधकीय क्रियाओं में विभक्त कर दिया जाता है, तो उनमें से जो क्रियाएँ समान प्रकृति की हैं उनका साथ-साथ समूहन किया जाता है। इस प्रकार का निर्धारण विशिष्टीकरण को सरल बनाता है। इस समूहबद्ध करने की क्रिया को विभागीकरण कहते हैं। विभागों की रचना कुछ लक्षणों को आधार मानकर की जा सकती है। उनमें से कुछ अति प्रचलित आधार जैसे- क्षेत्र (उत्तर, दक्षिण, पश्चिम आदि) तथा उत्पाद (उपकरण, वस्त्र, प्रशाधन आदि) हो सकते हैं।

(ग) कर्त्तव्यों का निर्धारण–विभिन्न कर्मचारियों का कार्य निर्धारण अति आवश्यक है। जब एक बार विभागों का निर्माण कर दिया जाता है तो प्रत्येक कार्य एक व्यक्ति के सुपुर्द कर दिया जाता है। इसके उपरांत विभिन्न कार्यों को प्रत्येक विभाग के सदस्यों में उनकी निपुणता तथ सक्षमता के आधार पर आवंटित कर दिया जाता है। एक व्यक्ति की योग्यता तथा कार्य की प्रकृति में सुमेल स्थापित करना प्रभावी निष्पादन के लिए अति आवश्यक है। कार्य आवंटन में यह भी अति आवश्यक है कि सबसे अच्छा काम करने के लिए सर्वोत्तम उपयुक्त व्यक्ति का ही चुनाव किया जाए।

(घ) वृतांत (रिपोर्टिंग) संबंध स्थापन– केवल कार्य का आवंटन मात्र ही पर्याप्त नहीं होता। प्रत्येक कर्मचारी को यह ज्ञात होना चाहिए कि उसे किससे आदेश प्राप्त करने हैं तथा वह किसके प्रति जवाबदेह है। इस प्रकार का स्पष्ट संबंध स्थापन, कर्मचारियों का सोपानिक ढाँचा तैयार करने में सहायता करता है तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करने में भी सहायता देता है।

संगठन का महत्त्व

संगठन कार्यों का निष्पादन उद्यम के परिवर्तन को गतिशील व्यावसायिक पर्यावरण के अनुरूप बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। संगठन कार्य का महत्त्व वास्तविक रूप में तभी बनता है जब यह उद्यम के चालू रहने तथा विकास में सहायता करता है तथा विभिन्न चेतावनियों का सामना करने के लिए समर्थ बनाता है। वास्तव में किसी व्यवसाय द्वारा कार्यों को पूरा करने तथा लक्ष्यों को सफलतापूर्वक पाने के लिए आवश्यक है कि संगठन कार्य को सही तरीके से किया जाए। किसी भी व्यावसायिक उद्यम में संगठन की निर्णायक भूमिका होती है जो निम्नलिखित बिन्दु उजागर करते हैं–

(क) विशिष्टीकरण के लाभ– संगठन, कार्यबल में विभिन्न क्रियाओं के नियमानुसार आवंटन में मार्गदशक का कार्य करता है। कर्मचारियों द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से काम का बोझ कम होता है तथा उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है। लगातार एक ही कार्य को करने की पुनरावृत्ति से कर्मचारी अनुभव प्राप्त करते हैं तथा दक्षता की ओर अग्रसर भी होते हैं।

(ख) कार्य करने में संबंधों का स्पष्टीकरण– कार्य करने में संबंधों का स्पष्टीकरण संप्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किसने किसको रिपोर्ट करनी है, यह एक-एक करके बतलाता है। यह सूचना तथा अनुदेशों के स्थानान्तरण में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम के निर्माण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्व को निर्धारित किया जा सके तथा एक व्यक्ति द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अंतरण किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

(ग) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग– संगठन के द्वारा सभी द्रव्यात्मक या भौतिक तथा वित्तीय एवं मानव संसाधनों का यथोचित उपयोग संभव होता है। काम का उपयुक्त आवंटन, काम की लीपा-पोती से बचाता है तथा संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग को संभव बनाता है। काम के दोहरेकरण से दूर रखता है जिससे प्रयासों तथा संसाधनों के अपव्यय को कम किया जा सकता है तथा संदेहों की रोकथाम में सहायता संभव होती है।

(घ) परिवर्तनों का अनुकूलन–संगठन प्रक्रिया व्यावसायिक इकाइयों को व्यावसायिक पर्यावरण परिवर्तनों में समायोजित होने की अनुमति प्रदान करता है। यह संगठन संरचना में प्रबंधकीय स्तर का उपयुक्त परिवर्तन तथा आपसी संबंधों के संशोधनों में पारगमन का मार्ग प्रशस्त करता है। यह संगठन परिवर्तनों के बावजूद भी जीवित रहने तथा उन्नति करते रहने संबंधी, आवश्यकता की पूर्ति करता है।

(ङ) प्रभावी प्रशासन–संगठन कार्यों तथा तत्ससंबंधित कर्त्तव्यों का स्पष्ट विवरण देता है। यह असमंजस तथा पुनरावृत्ति से बचाता है। कार्यकरण में स्पष्ट संबंध स्थापित होने से कार्य का निष्पादन ठीक प्रकार से होता है। संगठन का प्रबंध सुगम होता है तथा प्रशासन प्रभावपूर्ण रूप में कार्य करता है।

(च) कार्मिकों का विकास–संगठन, प्रबंधकों में सृजनात्मकता को बढ़ावा देता है। प्रबंधकों द्वारा अपने अधीनस्थों को दैनिक कार्यों के अधिकार अंतरण से उनका कार्य भार हल्का हो जाता है। अधिकार अंतरण द्वारा कार्यभार कम करना केवल इसीलिए आवश्यक नहीं है कि एक व्यक्ति की कार्यक्षमता सीमित है बल्कि इससे प्रबंधकों को कार्य करने के नये तरीकों को विकसित करने का ज्ञान प्राप्त होता है। इससे उन्हें कंपनी की प्रतियोगी अवस्था को सुदृढ़ बनाने तथा नवीनीकरण के लिए नये क्षेत्र तथा विकास के लिए सुअवसर प्राप्त होते हैं। अधिकार अंतरण अधीनस्थ कर्मचारियों को चुनौतियों का प्रभावपूर्ण ढंग से मुकाबला करने तथा अपनी सामर्थ्य को समझने में सहायता प्रदान करता है।

विचारणीय

संगठन कार्य को विशिष्टीकरण की ओर अग्रसर करता है। लेकिन इसमें एक ही कार्य को बार-बार करते रहने से नीरसता, तनाव, ऊब तथा अनुपस्थिति आदि बातों के जन्म लेने का भय बना रहता है। इन बातों के सुधार के लिए प्रबंधक क्या उपाय कर सकता है?

(छ) विकास एवं विस्तार–संगठन एक उद्यम को वर्तमान तौर तरीकों से नये आयामों में परिवर्तित होने में सहायता करता है। संगठन उद्यमों में कार्य स्थिति तथापि भागों में वृद्धि करता है तथा उत्पादन क्रियाओं में विभिन्नता लाता है, चालू कार्य क्षेत्रों में नये भौगोलिक भू-भागों को जोड़ता है। जिससे ग्राहकों, विक्रय तथा लाभ में वृद्धि होती है।

इस प्रकार संगठन एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से प्रबंधक उद्यम में व्याप्त अव्यवस्थाओं को मिटा सकते हैं तथा कर्मचारियों में काम अथवा उत्तरदायित्व संबंधी झगड़ों को कम कर सकते हैं तथा सामूहिक कार्य भावना के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार कर सकते हैं।

संगठन ढाँचा

संगठन ढाँचा, संगठन प्रक्रिया का परिणाम है। एक प्रभावी संगठन एक उद्यम की लाभदायकता में वृद्धि करता है। एक उद्यम को, एक आदर्श संगठन ढाँचे की आवश्यकता उसके आकार में वृद्धि या जटिलताओं में बढ़ोतरी होने पर महसूस होती है। केवल वे उद्यम इसके अपवाद हैं जो एक दीर्घकालीन विशिष्ट ढाँचा बनाकर आगे बढ़ते हैं। फिर भी यह समझ लेना अति आवश्यक है कि एेसी स्थिरता उपक्रम के लिए अहितकर साबित हो सकती हैं तथा परिवर्तन न करने पर यह उपक्रम या तो बन्द हो जाता है या इसकी वृद्धि में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है।

बतौर संगठन विकास, नये कार्यों के उद्गमन तथा सोपानिकी ढाँचे में वृद्धि हो जाने से सामंजस्य कठिन हो जाता है। अतः एक संस्थान को सुगमता पूर्वक कार्य करने तथा पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना करने के लिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि वह ढाँचे पर ध्यान दे।

‘पीटर ड्रकट’ एक उपयुक्त संगठन ढाँचे के महत्त्व पर जोर देकर कहते हैं कि "संगठन ढाँचा एक अनिवार्य माध्यम है तथा अनुपयुक्त ढाँचा व्यवसाय की कार्य निष्पत्ति को भयंकर हानि पहुँचा सकता है या इसे समाप्त ही कर देता है।"

संगठन ढाँचे को बतौर एक रचना जिसके अंतर्गत प्रबंधकीय तथा संचालन संबंधी कार्यों का निष्पादन किया जाता है। इसमें मनुष्यों के कार्य तथा संसाधनों का संबंध स्पष्ट किया जाता है। यह मानवीय, भौतिक तथा वित्तीय संसाधनों में परस्पर संबंध तथा समन्वय स्थापित करने की अनुमति प्रदान करता है तथा व्यावसायिक संस्थान को वाँछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सामर्थ्यवान बनाता है। एक फर्म का संगठन ढाँचा एक संगठन चार्ट द्वारा दिखलाया गया है।

प्रबंध का विस्तार, संगठन ढाँचे को विस्तृत रूप प्रदान करता है। प्रबंध के विस्तार से तात्पर्य एक पर्यवेक्षक द्वारा अपने, कितने अधीनस्थों का प्रभावपूर्ण ढंग से पर्यवेक्षण किया जा सकता है। ढाँचे में यह प्रबंध के स्तर का निर्धारण करता है। एक व्यावसायिक उपक्रम का उपयुक्त संगठन ढाँचा संप्रेषण प्रवाह को निर्बाध होने का अश्वासन देता है तथा संचालन पर अच्छा नियंत्रण बनाए रहता है।

संगठन उपक्रम को एेसा ढाँचा प्रदान करता है जिससे वह एक एकीकृत इकाई के रूप में विभागों तथा व्यक्तियों के उत्तरदायित्व को नियमित तथा समन्वित करने में सामर्थ्यवान होता है। इसे उदाहरण की सहायता से समझते हैं।

सुनीता ने अपनी ट्रैवल एजेंसी खोली। उनकी ट्रैवल एजेंसी की सफलता ग्राहक और ट्रैवल एजेंसी के कर्मचारियों के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संबंध पर निर्भर करती है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने संचालन, बिक्री और प्रशासन जैसे कार्यों के आधार पर एजेंसी के पूरे कार्य को तीन उपमहाद्वीपों में विभाजित कर दिया है। संचालन में ट्रैवल काउंसलर, आरक्षण और टिकट और ग्राहक देखभाल शामिल है। बिक्री में लेखा कार्यकारी शामिल हैं। प्रशासन में बुक कीपर, कैशियर और उपयोगिता कर्मी शामिल हैं। कार्यों के आधार पर काम के इस विभाजन के परिणामस्वरूप प्राधिकरण और ज़िम्मेदारी 

की रेखा निर्दिष्ट करने वाली संगठनात्मक संरचना हुई है।

संगठन ढाँचों के प्रकार

संगठनों द्वारा अपनाये गए संगठन ढाँचों के रूप उनकी प्रकृति तथा क्रियाओं के रूपों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। संगठनीय ढाँचों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है जो निम्नांकित हैं–

1. कार्यात्मक संगठन ढाँचा

2. प्रभागीय संगठन ढाँचा


कार्यात्मक संगठन ढाँचा

कार्यात्मक ढाँचे की संरचना समस्त कार्य को बड़े-बड़े कार्यात्मक विभागों में वर्गीकृत करके की जाती है। अर्थात् समान प्रकृति के सभी कार्यों को संगठन के एक भाग में रखकर एक समन्वयकर्ता अध्यक्ष के अधीन कर दिया जाता है। सभी विभाग समन्वय प्रधान को रिपोर्ट करते हैं। उदाहरण के रूप में एकनिर्मायक प्रतिष्ठान में मुख्य कार्य का विभाजन उत्पादन, क्रय, विपणन, लेखा तथा कार्मिकों के रूप में होगा। ये विभाग आगे उपवर्गों में विभाजित किये जा सकते हैं। इस प्रकार कार्यात्मक संगठन एक संगठनात्मक नमूना है जिसके समूह समान अथवा एक रूप होते हैं या संबंधित कार्य साथ-साथ होते हैं।

गुण–कार्यात्मक संगठन ढाँचे के बहुत से गुण हैं। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण निम्नांकित हैं–

(क) कार्यात्मक ढाँचा व्यावसायिक विशिष्टीकरण की ओर प्रेरित करता है क्योंकि विशिष्ट कार्य पर ही बल दिया जाता है। यह मानव शक्ति के उपयोग में दक्षता को प्रोत्साहित करता है क्योंकि कर्मचारी विभाग के अंतर्गत एक ही कार्य को करते हैं तथा अपनी कार्यविधि को उन्नतशील बनाते हैं

(ख) विभाग के अंतर्गत सामंजस्य तथा नियंत्रण उन्नतशील होते हैं क्योंकि एक ही कार्य बार-बार किया जाता है।

(ग) यह प्रबंधकीय तथा संचालन संबंधी कौशल में बढ़ोतरी करने में सहायता करता है जिसका परिणाम अधिक लाभदायक होता है।

(घ) पुनरावृत्ति को कम करता है जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक बचत तथा लागत कम होती है।

(ङ) यह कर्मचारियों के प्रशिक्षण को आसान बनाता है क्योंकि काम का दायरा छोटा ही होता है।

(च) सभी कार्यों पर पूर्णतः ध्यान दिया जाता है।

दोष– कार्यात्मक संगठन ढाँचे के कुछ दोष भी हैं। एक संगठन को इसे अपनाने से पहले उन्हें निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं–

img 5.1

(क) कार्यात्मक संगठन ढाँचे में कार्याध्यक्ष द्वारा बतलाये गए कार्यों की अपेक्षा संस्थान के अन्य सभी उद्देश्यों पर कम ध्यान दिया जाता है। यह विधि कार्य प्रभुत्व की ओर ले जाती है जबकि किसी विशेष कार्य के महत्त्व पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। संगठनात्मक हित की अपेक्षा विभागीय हित पर ध्यान केंद्रित करना दो या अधिक विभागों के तालमेल में बाधा खड़ी कर सकती है।

(ख) संगठन के बढ़ जाने से विभागों की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है इसके कारण सही समन्वय नहीं हो पाता तथा निर्णयों में भी विलंब हो जाता है।

(ग) जब दो या अधिक विभागों के हित अनुकूल न हों तो हितों का झगड़ा होना स्वाभाविक ही होता है। उदाहरणस्वरूप– विक्रय विभाग की ग्राहक चाह, डिजाइन पर बल देना, उत्पादन में परेशानियाँ खड़ी कर सकता है। इस प्रकार के मतभेद संगठनात्मक हितों की पूर्ति में बाधक हो सकते हैं। अंतर्विभागीय झगड़े भी, स्पष्ट उत्तरदायित्व पृथक्करण के अभाव में, खड़े हो सकते हैं।

(घ) इससे अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जैसा कि एक ही चातुर्य तथा ज्ञान के आधार पर मनुष्यों में संकीर्ण सापेक्ष महत्त्व पनप सकता है। जिससे किसी अन्य विचारधारा को महत्त्व देने में कठिनाई हो सकती है। कार्यप्रधान उच्च प्रबंध स्तरीय प्रशिक्षण नहीं पाते क्योंकि वे विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।

उपयुक्तता– यह उन संस्थानों के लिए अति उपयुक्त है जो आकार में बहुत बड़े हैं तथा जहाँ क्रियाओं में विविधता है तथा संचालन में उच्च कोटि के विशिष्टीकरण की आवश्यकता है।

प्रभागीय संगठन ढाँचा

बहुत से विशाल संगठनों ने जो विविध प्रकार की गतिविधियों में लिप्त हैं, अपने आप को सरल तथा मूलभूत कार्यात्मक ढाँचे से अलग प्रभागीय संगठन ढाँचे में पुनर्गठित किया है। जो उनकी गतिविधियों के लिए अधिक उपयोगी है। इस संगठन के ढाँचे का रूप उन उद्यमों के लिए वास्तव में सही हैं जो एक से अधिक उत्पादों की बाज़ार में पूर्ति करते हैं। इसका कारण यह है कि प्रत्येक संगठन बहुत से सजातीय कार्यों को संपन्न करता है तथा विभिन्न प्रकार के उत्पादों में विविधता लाता है क्योंकि उठती हुई महान जटिलताओं से सहयोग करने के लिए अधिक विकसित ढाँचागत डिजाइन की आवश्यकता होती है। प्रभागीय ढाँचे में पृथक व्यावसायिक इकाई अथवा प्रभाग का संगठन ढाँचा समाविष्ट होता है। प्रत्येक इकाई में प्रभागीय प्रबंधक होता है जो कार्य के निष्पादन का उत्तरदायी होता है तथा इकाई पर उसका अधिपत्य होता है। जनशक्ति का वर्गीकरण विभिन्न निर्मित उत्पादों के आधार पर किया जाता है। प्रत्येक प्रभाग में बहुत से कार्य होते हैं जैसे- उत्पादन, विपणन, वित्त, क्रय आदि और सभी संयुक्त लक्ष्य की प्राप्ति हेतु साथ-साथ काम करते हैं। प्रत्येक प्रभाग अपने आप में सक्षम होता है जिससे उत्पादन से संबंधित सभी कार्यों में निपुणता विकसित 

होती है। दूसरे शब्दों में, हर प्रभाग, कार्यात्मक ढाँचे की ओर अभिमुख होता हुआ प्रतीत होता है। प्रभाग से बाहर किसी विशेष उत्पाद के संदर्भ में कार्य भिन्न हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक प्रभाग लाभ के केंद्र के रूप में कार्य करता है जबकि प्रभाग का प्रधान, प्रभाग के लाभ अथवा हानि के लिए उत्तरदायी होता है। उदाहरण के लिए एक विशाल कंपनी के प्रसाधन, वस्त्र आदि प्रभाग हो सकते हैं।

गुण–प्रभागीय संगठन में बहुत से गुण होते हैं जिनमें से कुछ मुख्यगुण निम्नांकित हैं–

(क) प्रभाग अध्यक्ष की, उत्पाद विशेषीकरण, उसकी प्रवीणता को विकसित करते हैं जिससे वे उच्च पदों (स्थानों) पर पदोन्नति के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि वे किसी विशेष उत्पाद से संबंधित सभी कार्यों का अभ्यास कर लेते हैं।

(ख) प्रभाग अध्यक्ष लाभ के लिए जवाबदेह होते हैं। किसी भी प्रभाग से संबंधित लागत तथा आज की गणना आसानी से की जा सकती है तथा उसे निर्धारित की जा सकती है और इससे कार्य निष्पादन गणना को सही आधार मिल जाता है। यह उत्तरदायित्व निश्चित में भी सहायता करता है। यदि किसी प्रभाग का कार्य संतोषजनक नहीं होता है तो समुचित सुधारात्मक कार्यवाही भी की जा सकती है।

(ग) एक स्वायत्त (स्वतन्त्र) इकाई होने के कारण प्रत्येक प्रभाग शीघ्र निर्णय ले सकता है। अतः लचीलापन तथा पहल को प्रोत्साहन मिलता है।

(घ) नयी उत्पादन इकाई प्रारंभ करने के लिए केवल प्रभाग प्रधान तथा कर्मचारियों की नियुक्ति मात्र की आवश्यकता होती है। इसमें वर्तमान इकाइयों की तरफ से कोई विघ्न या बाधा नहीं आती और विकास तथा उन्नति के लिए सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।

दोष–प्रभागीय संगठन ढाँचे के कुछ दोष भी हैं। उनमें से कुछ निम्नांकित हैं–

(क) विभिन्न प्रभागों में कोषों के आवंटन को लेकर झगड़े हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कोई विशेष प्रभाग, अन्य प्रभागों की कीमत पर अधिकलाभ की कोशिश कर सकता है।

img 5.2

संभागीय एवं कार्यात्मक ढाँचे का संगठनात्मक चार्ट

(ख) इसमें काम की बार-बार दोहराई हो जाने से लागत मूल्य बढ़ सकता है। जब प्रत्येक प्रभाग से एक ही कार्य कराने के लिए अलग सामग्री दी जाएगी तो लागत मूल्य तो बढ़ेगा ही।

(ग) किसी विशेष प्रभाग को यह पर्यवेक्षणार्थ प्रबंधक अधिकारों के साथ नियुक्त करते हैं। इस प्रकार प्रबंधक अधिकार तो पाते हैं लेकिन अपने आप को स्वतंत्र रूप में स्थापित करने के चक्कर में संगठन के हितों को भुला देते हैं।

उपयुक्तता–प्रभागीय संगठन ढाँचा उन व्यावसायिक इकाइयों के लिए उपयुक्त है जहाँ विभिन्न प्रकार के उत्पादों का बड़ी भारी मात्रा में उत्पादन किया जाता है तथा जहाँ विभिन्न प्रकार के संसाधनों को प्रयोग में लाया जाता है। जब एक संगठन आगे बढ़ता है तथा वह कर्मचारी की संख्या बढ़ाना चाहता है तो अधिक विभाग बनाकर नये प्रकार के स्तर का प्रबंध लाना चाहता है, तो वह प्रभागीय संगठन ढाँचा ही अपनाएगा। इस संदर्भ में नीचे कार्यात्मक ढाँचा संगठन तथा प्रभागीय ढाँचा संगठन की तुलना द्वारा इसे और अधिक स्पष्ट रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यवसाय गतिशील पर्यावरण में काम करते हैं तथा वे उद्यम जो अपने आपको बदले हुए वातावरण के अनुकूल नहीं ढाल पाते, चालू रह पाने में असमर्थ होते हैं। अतः प्रबंध के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपने नियोजन तथा उद्देश्यों की लगातार पुनरावृत्ति करता रहे तथा उद्यम के संगठनात्मक ढाँचे में समय-समय पर यदि आवश्यक हो तो उसमें भी सुधार करता रहे। संगठनात्मक ढाँचा उपक्रम के उद्देश्यों की उपलब्धियों के लिए सदैव सहायक होना चाहिए तथा पहल करने के लिए सुअवसर देने वाला होना चाहिए, ताकि कार्मिकों का सहयोग अधिकतम तथा प्रभावपूर्ण हो सके।

तुलनात्मक अवलोकन– कार्यात्मक संगठन ढाँचा तथा प्रभागीय संगठन ढाँचे की तुलना

img 5.3


ओ. एन. जी. सी. की संगठन रूपरेखा

1999.png

स्रोत–www.ongc.com/archives1

औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन

सभी संगठनों में कर्मचारियों का मार्गदर्शन, नियमों तथा कार्य-विधियों द्वारा होता है। उद्यम को सही तरीके से चलाने के लिए कार्य विवरण तथा नियम, और कार्यविधियाँ जो प्रक्रिया से संबंधित हैं स्पष्ट रूप से एक क्रम में समझाई गई होनी चाहिए। यह औपचारिक संगठन के माध्यम से होता है।

औपचारिक संगठन से तात्पर्य किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए प्रबंधकों द्वारा तैयार किये गए ढाँचे से है। यह अधिकार तथा उत्तरदायित्व की सीमाओं का स्पष्टीकरण करता है तथा संगठनात्मक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विभिन्न क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करता है।

औपचारिक संगठन में ढाँचा कार्यात्मक अथवा प्रभागीय कोई भी हो सकता है। औपचारिक संगठन को उसके लक्षणों के माध्यम से भली-भाँति समझा जा सकता है जो निम्नलिखित हैं–

(क) यह विभिन्न प्रकार के कार्यों की स्थिति तथा उनके आपसी संबंधों की प्रकृति का स्पष्टीकरण करता है। यह स्पष्ट करता है कि कौन किसको रिपोर्ट करेगा।

(ख) यह योजनाओं में निर्दिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने का साधन है। क्योंकि उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक नियम तथा कार्यविधि इसके अंतर्गत दिए हुए होते हैं।

(ग) औपचारिक संगठन द्वारा विभिन्न प्रभागों के प्रयासों को समन्वित, अन्तः संबंध तथा एकीकृत किया जाता है।

(घ) संगठन बिना किसी परेशानी के अपना कार्य आसानी से करता रहे इसीलिए इसकी रचना उच्च-स्तरीय प्रबंध द्वारा विचार विमर्श के बाद ही की जाती है।

(ङ) कर्मचारियों के आपसी संबंधों की अपेक्षा इस संगठन में कार्य निष्पादन पर अधिक बल दिया जाता है।

औपचारिक संगठन

"औपचारिक संगठन, कार्यों की समुचित ढंग से परिभाषित पद्धति है जिसमें प्रत्येक के अधिकार, उत्तरदायित्व तथा जवाबदेही की निश्चित परिमाप होती है।"

लूइस एलेंन

"जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाएँ समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए जान-बूझकर समान्वित की जाती है तो उसे औपचारिक संगठन कहते हैं।"

चेस्टर बर्नार्ड

गुण–औपचारिक संगठन में बहुत से गुण पाए जाते हैं, उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण हैं–

(क) इसमें उत्तरदायित्व को निर्धारित करना आसान होता है क्योंकि आपसी संबंध स्पष्ट रूप से समझाए हुए होते हैं।

(ख) इसमें भ्रम की स्थिति नहीं पाई जाती क्योंकि प्रत्येक सदस्य के कर्त्तव्य एक-एक करके बतलाए हुए होते हैं। इससे पुनरावृत्ति भी नहीं होती।

(ग) आदेश शृंखला के स्थापन से आदेश की एकता बनी रहती है।

(घ) कार्य संचालन की सुनिश्चितता तथा प्रत्येक कर्मचारी द्वारा किये जाने वाले कार्य की उन्हें जानकारी होने से कार्य का संपादन प्रभावपूर्ण ढंग से होता है।

(ङ) इससे संगठन में स्थायित्व आता है। कर्मचारियों के व्यवहार को भी आसानी से ज्ञात किया जा सकता है क्योंकि उनके मार्गदर्शन के लिए स्पष्ट नियम होते हैं।

दोष–औपचारिक संगठन की निम्नलिखित सीमाएँ हैं–

(क) औपचारिक संगठन में आदेश की शृंखला का पालन करना पड़ता है जिससे कार्यविधिक विलंब के कारण, निर्णय लेने में अधिक समय लगता है।

img 5.4

(ख) संगठन की अवाँछित पद्धतियाँ रचनात्मक प्रतिभा को समुचित मान्यता नहीं दे पातीं क्योंकि निर्धारित कठोर नीतियाँ किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होने देतीं।

(ग) किसी भी संगठन में सभी मानवीय संबंधों को समझ पाना कठिन होता है। क्योंकि ये ढाँचे और कार्य पर अधिक बल देते हैं। अतः औपचारिक संगठन से किसी संस्थान के कार्य करने की सही तस्वीर सामने नहीं आ पाती।

अनौपचारिक संगठन

काम करते समय व्यक्तियों में आपसी तालमेल अनायास ही स्थापित होना तथा कर्मचारियों में सामाजिक संबंधों का तंत्र उदय होना, अनौपचारिक संगठन कहलाता है।

अनौपचारिक संगठन का जन्म औपचारिक संगठन से होता है, जब व्यक्ति अधिकारिक तौर पर बतलाई गई भूमिकाओं से परे आपस में मेल-मिलाप से कार्य करते हैं। जब कर्मचारी स्वतंत्रतापूर्वक संपर्क बनाते हैं तो उन्हें किसी कठोर औपचारिक संगठन की ओर नहीं धकेला जा सकता। बल्कि वे मैत्रीपूर्ण व सहयोगपूर्ण विचारों से एक ग्रुप बनाने की ओर झुकते हैं यह उनके आपसी हितों की अनुरूपता को प्रकट करता है। उदाहरण के तौर पर एक सामान्य हितों वाले व्यक्तियों का एक ग्रुप जो रविवार के दिन क्रिकेट खेलता है, एक कैफेटेरिया में कॉफी पीने के लिए एकत्रित होता है। वे नाटकीय क्रिया कलापों में अभिरुचि रखते हैं। अनौपचारिक संगठन के कोई लिखित नियम नहीं होते हैं। इसका कोई क्षेत्र अथवा रूप भी निश्चित नहीं होता हैं तथा न ही इसकी कोई संप्रेषण की निश्चित रूपरेखा होती है। औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठनों की तुलना के लिए दी गई सारणी-3 के द्वारा यह और अधिक स्पष्ट हो जाएगा कि इन दोनों में आपस में क्या अंतर्भेद हैं।

अनौपचारिक संगठन के निम्नलिखित लक्षणों की सहायता से इसे और भली-भाँति समझा जा सकता है।

लक्षण–

(क) अनौपचारिक संगठन का अभ्युदय कर्मचारियों के व्यक्तिगत अंतः क्रिया के परिणाम- स्वरूप औपचारिक संगठन में से होता है।

(ख) अधिकारिक तौर पर निर्धारित किये गए नियम अथवा नियंत्रणों की अपेक्षा ग्रुप नियमों से ही व्यावहारिक मानकों का अभ्युदय होता है।

(ग) स्वतंत्र संप्रेषण का चैनल बिना सूचना की विशिष्ट दिशा के ग्रुप के सदस्यों द्वारा विकसित होते हैं।

अनौपचारिक संगठन

"वह संगठन अनौपचारिक है जिसमें आपसी संबंध अज्ञानवश संयुक्त उद्देश्यों के लिए बनते हैं।"

चेस्टर बनोई

"अनौपचारिक संगठन व्यक्तिगत तथा सामाजिक संबंधों का एक तंत्र है जो न तो औपचारिक संगठन द्वारा बनाया जाता है और न ही आवश्यक है। इसका जन्म/उदय व्यक्तियों के स्वैच्छिक रूप से एक दूसरे से सहयोग करने से होता है।"

कीथ डैविस

(घ) यह प्रबंध द्वारा सोच विचार के बाद न बनकर सहज ही स्वतः बन जाता है।

(ङ) इसका कोई निश्चित ढाँचा या रूप नहीं है। बल्कि यह सदस्यों के मध्य एक सामाजिक संबंधों का मनौवैज्ञानिक तंत्र है।

गुण–अनौपचारिक संगठन के बहुत से लाभ हैं लेकिन उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण हैं जो नीचे दिए गए हैं–

(क) संप्रेषण के निर्धारित नियमों को नहीं माना जाता। अतः अनौपचारिक संगठन में सूचनाएँ शीघ्र पहुँचती हैं तथा उनकी प्रतिपुष्टि भी शीघ्र ही हो जाती है।

(ख) सदस्यों की सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करता है तथा समान मतों के लोगों को खोज निकालने की अनुमति प्रदान करता है। यह उनकी कार्य सन्तुष्टि में वृद्धि करता है तथा संगठन में अपनत्व की भावना को जागृत करता है।

(ग) यह संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में, औपचारिक संगठन की कमियों को दूर करने में, सहायता करता है। उदाहरण के तौर पर कर्मचारियों द्वारा योजनाओं तथा नीतियों के प्रति प्रतिक्रिया को अनौपचारिक तंत्र (नेटवर्क) द्वारा परखा जा सकता है।

दोष–अनौपचारिक संगठन के कुछ दोष भी हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं–

(क) अनौपचारिक संगठन जब अफवाहें फैलाता है तो यह एक विघटनकारी ताकत बन जाता है। यह औपचारिक संगठन के विपरीत कार्य कर सकता है।

(ख) यदि अनौपचारिक संगठन विरोध करता है तो प्रबंधन परिवर्तनों को लागू करने में असमर्थ रहता है। इस प्रकार का प्रतिरोध या तो विलंब करा देता है या प्रतिबंधित करा देता है।

(ग) यह सदस्यों को ग्रुप आकांक्षाओं के अनुरूप चलने के लिए बाध्य करता है। यह हानिकारक हो सकता है यदि ग्रुप द्वारा बनाये गए मानदंड संगठनजन्य हितों के विरुद्ध होते हैं।

अनौपचारिक संगठन को एकदम समाप्त नहीं किया जा सकता। अतः संस्थान के हित में, इसके अस्तित्व को मान्यता दी जाए तथा मनुष्यों द्वारा किये गए क्रियाकलापों को पहचाना जाए। एेसे समूहों के ज्ञान का उपयोग संगठन की उन्नति तथा सहयोग के लिए किया जा सकता है। एेसे समूह उपयोगी संप्रेषण सुलभ करा सकते हैं। दोनों के वाद-विवाद में पड़ने की अपेक्षा प्रबंधकों को चाहिए कि औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों, प्रकार के संगठनों का युक्तिपूर्ण उपयोग करें ताकि संगठन का कार्य सुगमतापूर्वक चल सके।

अंतरण

एक प्रबंधक चाहे वह कितना ही सक्षम हो लेकिन फिर भी सभी कार्यों का निष्पादन वह स्वयं नहीं कर सकता। काम का आकार उसे स्वयं पूरा करने में अक्षम बना देता है। परिणामस्वरूप उसे संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, उद्देश्यों को केंद्रीकृत करने के लिए तथा यह आश्वासित करने के लिए कार्य निश्चित रूप से पूर्ण होगा, उसे अधिकारों का अंतरण निश्चित ही करना चाहिए।

अंतरण से तात्पर्य एक उच्च पदासीन अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारी को ऊँची से नीची स्थिति की ओर अधिकार प्रत्यायोजन है। यह संस्थान के दक्षतापूर्ण संचालन के लिए पूर्व अपेक्षित होता है क्योंकि यह प्रबंधक को अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों को समय देने के लिए अवसर प्रदान करता है। यह अधीनस्थों को मान्यता देने की उनकी इच्छा तथा अधिक उत्साह से कार्य करने की उनकी अभिलाषा की भी सम्पूर्ति करता है। तथा अवसर प्रदान करता है।

अंतरण

"अंतरण एक एेसी प्रक्रिया है जिसे अपनाकर प्रबंधक अपने कार्यों को इस प्रकार विभाजित करता है जिससे कि वह संपूर्ण कार्य के केवल उस भाग का निष्पादन करे जिसे केवल वह स्वयं ही, संगठन में अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण, प्रभावशाली ढंग से, कर सकता है और इस प्रकार वह शेष कार्य को पूरा कराने के लिए आप लोगों की सहायता प्राप्त करता है।"

लूइस एेलन

"अधिकार अंतरण से केवल इतना ही आशय है कि अपने अधीनस्थों को निश्चित सीमाओं के अंतर्गत कार्य करने का अधिकार प्रदान किया जाता है।"

थ्यो हेमैन

अंतरण एक प्रबंधक के कार्य क्षेत्र में वृद्धि करता है। बिना अधिकार अंतरण उसके क्रियाकलाप केवल उसमें स्वयं के द्वारा किए गए कार्यों तक ही सीमित रह जाएँगे। अंतरण अधित्याग या पदत्याग नहीं है। अधिकार अंतरण के उपरांत भी प्रबंधक कार्य की जबावदेही से नहीं बच सकता अर्थात् किसी अधीनस्थ को कार्य अंतरण के उपरांत भी वही उसके संपादन के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त, अधीनस्थ का अंतरित अधिकार वापस लिया जा सकता है तथा किसी अन्य व्यक्ति को पुनः अंतरित किया जा सकता है। इस प्रकार अधिकार अंतरण के उपरांत भी प्रबंधक कार्य संपादन के लिए उतना ही उत्तरदायी होता है जितना वह अधिकार अंतरण से पूर्व उत्तरदायी था।

अधिकार अंतरण के तत्व

लूइस एेलन के अनुसार अंतरण से तात्पर्य उत्तरदायित्व तथा अधिकार को दूसरों के सुपुर्द करने तथा निष्पादन हेतु जिम्मेदारी सृजन से है।

लुइस एेलन के कथन का विस्तारपूर्वक अध्ययन करने से अधिकार अंतरण के निम्नलिखित तत्व प्राप्त होते हैं–

(क) अधिकार– अधिकार से तात्पर्य एक व्यक्ति के उस अधिकार से है जिसके आधार पर वह अपने अधीनस्थों को नियंत्रित करता है तथा अपने पद के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कार्यवाही करता है। अधिकार की धारणा निर्धारित सोपान शृंखला से प्रारंभ होती है जो संगठन की विभिन्न स्थितियों तथा स्तरों को जोड़ती है।

औपचारिक संगठन में एक व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्थिति के अनुसार अधिकार प्राप्त होते हैं। उसकी स्थिति अनुसार अधिकार बढ़कर उच्च स्तर तक के हो सकते हैं तथा घटकर निगम के निम्न स्तर तक जा सकते हैं। अतः अधिकारों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है। उच्चाधिकारी को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर अधिकार प्राप्त होते हैं।

अधिकार संबंध संस्थान में प्रबंधक के अपने कार्यबल को उचित आज्ञाकारिता तथा निर्देशन पर कानून व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक होते हैं। अधिकार अंतरण द्वारा उच्चाधिकारी एवं अधीनस्थ के बीच संबंध तभी स्थापित होते हैं जब उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को अपने निर्णयों के विषय में इस आशा से कि वह कार्य को सही तरीके से पूरा करेगा तथा अधीनस्थ उस कार्य को बतलाई गई विधि से जो उच्चाधिकारी ने समझाई थी कार्यान्वित करता है। कार्य का उचित रूप से उच्चाधिकारी के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है कि वह अधिकार अंतरण करने में किन-किन सावधानियों को प्रयोग में लाता है।

अधिकार अंतरण उन निर्णयों को लेने का अधिकार प्रदान करता है जो प्रबंधीय स्थितियों में निहित हैं कि व्यक्ति क्या करते हैं तथा उनसे क्या करने की अपेक्षा की जाती है।

2216.png

चित्र 5.1-अधिकार अंतरण न करने से निर्णय लेने में विलम्ब होता है।

यहाँ यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि अधिकार अंतरण संगठन की कानून, व्यवस्था तथा नियमों से बँधा हुआ होता है जो इसके क्षेत्र को सीमावद्ध करते हैं। लेकिन फिर भी हम प्रबंधकीय पदानुक्रम (सोपानिकी) में जितना ऊपर की ओर चलेंगे, अधिकारों का क्षेत्र उतना ही अधिक बढ़ता जाता है।

(ख) उत्तरदायित्व–एक अधीनस्थ कर्मचारी के लिए दिए गए कार्य का भली-भांति निष्पादन करना उसका आवश्यक उत्तरदायित्व है। इसका अभ्युदय उच्चाधिकारी तथा अधीनस्थ के संबंध से होता है। क्योंकि एक अधीनस्थ अपने अधिकारी द्वारा बतलाये गए कार्यों को पूरा करने के लिए बाध्य होता है। उत्तरदायित्व ऊपर की ओर प्रवाहित होता है क्योंकि एक अधीनस्थ सदैव अपने उच्चाधिकारी के प्रति उत्तरदायी होता है।

उत्तरदायित्व तथा अधिकार के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब किसी कर्मचारी को उत्तरदायित्व सौंपा जाता है तो उस कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक अधिकारों को भी निश्चित रूप से उसे दिया जाना चाहिए। अतः एक प्रभावी भारार्पण के लिए यह आवश्यक है कि जो उत्तरदायित्व सुपुर्द किया गया है उसी के अनुरूप अधिकार भी दिए जाने चाहिए। यदि उत्तरदायित्व से स्वीकृत अधिकार की मात्रा अधिक है तो अधिकार का दुरुपयोग होगा। यदि अधिकार से उत्तरदायित्व की मात्रा अधिक है तो संबंधित व्यक्ति अप्रभावी हो जाता है।

2245.png



चित्र 5.2-कार्य निष्पादन के लिए उत्तदेयता का पैदा होना आवश्यक है।

(ग) उत्तरदेयता या जवाबदेही–निसंदेह अधिकार अंतरण एक कर्मचारी को अपने उच्चाधिकारी के प्रति काम करने की सामर्थ्य देता है लेकिन फिर भी जवाबदेही अभी भी उच्चाधिकारी की ही बनी रहती है।

जवाबदेही से तात्पर्य अεंतम परिणाम का उत्तर देने योग्य होने से है। यदि एक बार अधिकार अंतरित हो जाता है तथा उत्तरदायित्व स्वीकार कर लिया जाता है तो भी कोई जवाबदेही से इंकार नहीं कर सकता। इसका न तो भारार्पण ही संभव है और न ही इसका प्रवाह ऊपर की ओर होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि भारार्पण की दशा में अधीनस्थ कर्मचारी ही अपने अधिकारी को कार्य को सही तरीके से पूरा करने के लिए जवाबदेह होता है। इससे यह प्रकट होता है कि अधीनस्थ कर्मचारी को कार्य के सही संपादन के संदर्भ में अपने प्रबंधक को आश्वस्त करना होता है। सामान्य तौर पर निरंतर प्रतिपुष्टि द्वारा कार्य के पूर्ण करने को लिए दबाव बनाया जाता है। अधीनस्थ कर्मचारी से यह आज्ञा की जाती है कि वह अपनी कार्यवाही की घटनाओं/परिणामों अथवा भूलों के विषय में बतलाएगा।

सभी फाइलें निश्चित रूप से मेरे द्वारा अनुमोदित होनी चाहिए।

अंत में यह कहा जा सकता है कि अधिकार अंतरित होता है तो उत्तरदायित्व समझ लिया जाता है। जवाबदेही थोपी, आरोपित की जाती है। जवाबदेही अधिकार अंतरण से आती है तथा जवाबदेही, उत्तरदायित्व से आती है। सारणी-3 अधिकार अंतरण के तत्वों को संक्षेप में उजागर करती है।

अंतरण का महत्त्व

अंतरण, अपने प्रबंधक के निमित्त एक अधीनस्थ द्वारा कार्य करने का भरोसा दिलाता है। यह कार्यभार कम करता है तथा उसे (प्रबंधक) अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अधिक समय दिलाता है। प्रभावी अंतरण के गुण इस प्रकार हैं–

(क) प्रभावी प्रबंध–प्रबंधकों द्वारा अपने कर्मचारियों को अधिक अधिकार देकर अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अधिक समय मिल जाता है। अपने दैनिक कार्यक्रमों से मुक्ति पाकर नये क्षेत्रों में अधिक उत्कृष्टता पूर्ण कार्य करने के सुअवसर भी प्राप्त होते हैं।

(ख) कर्मचारियों का विकास–अंतरण के परिणामस्वरूप कर्मचारियों को अपनी प्रतिभा का उपयोग करने के लिए अधिक सुअवसर प्राप्त होते हैं तथा उनकी प्रतिभा को और अधिक विकास मिल जाता है। इससे उनकी निपुणता विकसित होती है तथा वे एेसे कार्यों को करने में सामर्थ्यवान हो जाते हैं जो जटिल प्रकृति के होते हैं और वे अपने भविष्य को उन्नतिशील भी बना लेते हैं। अतः अंतरण आने वाले समय के लिए सुयोग्य प्रबंधकों का निर्माण करता है। अंतरण कर्मचारियों को उनकी प्रतिभा का उपयोग करने, अनुभव प्राप्त करने और अपने आपको उच्च पदों पर आसीन होने में सहायता करता है तथा बल प्रदान करता है।

आप परियोजना के प्रभारी है यदि आवश्यकता हो तो सेवा में प्रस्तुत (हाजिर) हूँ

(ग) कर्मचारियों को प्रेरणा–अंतरण कर्मचारियों की प्रतिभा को विकसित करता है। इसके कुछ मनोवैज्ञानिक लाभ भी हैं। जब एक उच्च पद पर आसीन अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कार्य सौपता है तो यह केवल कार्य का विभाजन मात्र ही नहीं है बल्कि उच्चाधिकारी का अपने अधीनस्थ में विश्वास तथा अधीनस्थ कर्मचारी की अपने उच्चाधिकारी के प्रति वचनबद्धता होती है। उत्तरदायित्व एक कर्मचारी में आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है तथा भरोसे में सुधार लाता है। वह अपने आप को प्रोत्साहित महसूस करता है तथा आगे भी अपने कार्य निष्पादन को उन्नतिशील बनाने का प्रयत्न करता है।

img 5.5

(घ) विकास का सरलीकरण–अधिकार अंतरण एक संगठन में उसकी वृद्धि होने में सहायता प्रदान करता है। इसके द्वारा ऊँचे पदों पर नया काम, करने के लिए तुरंत कार्यबल मिल जाता है। नये उत्पाद को प्रारंभ करने के लिए प्रशिक्षित तथा अनुभवी कर्मचारी महत्त्वपूर्ण कार्यों को संपन्न करने के लिए समर्थ होते हैं। जो वर्तमान कार्य पद्धति को नये रूप में आसानी से परिवर्तित कर देेते हैं।

(ङ) प्रबंध सोपानिकी (पदानुक्रम) का आधार–अधिकार अंतरण अधिकारी- अधीनस्थ संबंध बनाता है। जो प्रबंध पदानुक्रम का आधार है। यह अधिकार के प्रवाह का क्रम है जो बतलाता है कि किसे किसको सूचना देनी है। जिस सीमा तक अधिकारों का अंतरण किया जाता है काम पर संगठन में उसी सीमा तक वे प्रभावी होते हैं।

(च) उत्तम सामंजस्य–अधिकार अंतरण के तत्व जैसे–अधिकार, उत्तरदायित्व उत्तरदेयता, क्षमता कर्त्तव्यों और जवाबदेही जो संगठन में विभिन्न स्तरों से संबंधित होते हैं, व्यक्त करने में सहायता करते हैं। इससे कर्त्तव्यों की लीपापोती तथा पुनरावृत्ति को रोकती है क्योंकि प्रत्येक स्तर पर क्या काम करना है इसकी स्पष्ट व्याख्या की हुई होती है। इस प्रकार का स्पष्टीकरण विभिन्न विभागों, स्तरों तथा प्रबंध के कार्यों में प्रभावी सामंजस्य स्थापित करने में सहायता करता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है अंतरण प्रभावी संगठन का मूलभूत तत्व है।

विकेंद्रीकरण

बहुत से संगठनों में सभी निर्णयों को लेने में शीर्ष स्तरीय प्रबंध की मुख्य भूमिका होती है। जबकि अन्य संगठनों में यह अधिकार प्रबंध के निम्नतम स्तर को भी दिया जाता है। जिन उपक्रमों में निर्णय लेने का अधिकार केवल मात्र शीर्ष स्तरीय प्रबंध को ही होता है वे केंद्रीकृत संगठन कहलाते हैं। जबकि उन संगठनों में जहाँ इस प्रकार के निर्णयों को लेने में निम्न स्तर तक के प्रबंध को भागीदार बनाया जाता है विकेंद्रीकृत संगठन कहते हैं।

विकेंद्रीकरण

"विकेंद्रीकरण से तात्पर्य केवल केंद्रीय बिन्दुओं पर ही प्रयोग किए जाने वाले अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को व्यवस्थित रूप से निम्न स्तरों को सौपने से हैं।"

लुइस एलन

"हर, वह कदम जो अधीनस्थों की भूमिका के महत्त्व को बढ़ाता है, विकेंद्रीकरण कहलाता है तथा हर, वह कदम जो इसको घटाता है, केंद्रीकरण कहलाता है।"

हैनरी फेयॉल  


एच. सी. एल. में नवाचार

विश्व का सर्वाधिक अधुनातन प्रबंध भारत में, एच. सी. एल. टेक्नॉलोजीज़ अपने कर्मचारियों को सशक्त बना रहा है तथा व्यवसाय में भविष्य की ओर मार्ग प्रशस्त कर रहा है। फॉर्च्यून, 4 अप्रैल, 2006

यहाँ पर प्रत्येक कर्मचारी अपने बॉस (अधिपुरुष का आँकलन करता है तथा बॉस अपने बॉस का आँकलन करता है। और वे 1-5 के पैमाने (मापदंड) के 18 प्रश्नों को लेकर अन्य तीन कंपनियों के प्रबंधकों को चुन सकते हैं। यह 360 डिग्री वाला मूल्यांकन असमान्य नहीं है, किंतु एच. सी. एल. के सभी परिणामों को अॉनलाइन प्रेषित करना है। ताकि प्रत्येक कर्मचारी देख सके। जोकि पहले नहीं सुना था।

बात यहीं खत्म नहीं होती है। प्रत्येक एच. सी. एल. कर्मचारी किसी भी समय पर एक इलेक्ट्रॉनिक ‘टिकट’ बनाकर कोई संदेश भेज सकते हैं जो कंपनी के काम के लिए अपेक्षित हो सकती है। आश्चर्यजनक ही क्लोजूड (बंद) किया जा सकता है। श्री नायर (विनीत नायर भारत के एच. सी. एल. टेक्नालोजीज़ (रिसर्च) के 30,000 कर्मचारियों के प्रेसीडेंट हैं।) इतने सतर्क हैं कि प्रबंधक कर्मचारियों के एेसी अतरंगता न बनाएँ तो टिकट बनाने या बंद करने के बारे में हो। प्रबंधकों का इस बात से अंशतः मूल्यांकन किया जाता है कि उनके विभाग ने कितने-अधिक और बेहतर टिकट तैयार किए हैं।

इसके अतिरिक्त कोई भी कर्मचारी किसी भी विषय पर एक प्रश्न या टिप्पणी ‘यू’ एंड ‘आई’ (आप और मैं) नामक एक सार्वजनिक प्रक्रम में प्रेषित कर सकता है। प्रत्येक माह में लगभग 400 आते हैं और ये सभी प्रश्न व उत्तर इंटरनेट में प्रेषित किए जाते हैं।

वे कहते हैं, "मैं एक एेसी कंपनी चाहता हूँ कि जो मेरे कर्मचारियों को किसी अन्य की तुलना में सर्वोत्तम सेवाएँ प्रदान करे।" इसके साथ ही उनका दृढ़ विश्वास है कि यह भविष्य में एच. सी. एल. को दिशानिर्देश प्रदान करेगा जो मेरे पास ऊपर से नहीं बल्कि नीचे आधार से प्राप्त होगा। प्रारंभिक संकेत यह सुझाते है कि उनकी रणनीति नीचे (आधार) से प्राप्त होगा। प्रारंभिक संकेत यह सुझाते है कि उनकी रणनीति काम कर ही है। श्री नायर लगभग एक वर्ष से प्रेसीडेंट है और बहुत ही उत्तेजना से भरपूर जिन्होंने अधिकतर नवाचारों को क्रियान्वित किया है। लेकिन वे कहते हैं कि इस दौरान संघर्षण दर गिर कर आधी रह गई है। एच. सी. एल. के नवाचार केवल प्रबंधकीय नहीं हैं। कंपनी का लक्ष्य ग्राहकों के साथ व्यावसायिक प्रक्रम प्रबंध में काम करते हुए उनको रणनीतिक सहभागी बनना है और इसे दूररस्थ संरचना प्रबंधन द्वारा करना है वह एक व्यवसाय जो भारत में अग्रणी हो, एेसा नायर का कहना है। ए. एम. डी. (रिसर्च) के साथ रणनीति ने सफलता पाई है जो एक छत्रक (शामियाणा) उपभोक्ता है जिसके लिए उपर्युक्त कथित व्यवसाय किया गया है।

एक अन्य उपभोक्ता सिसको (रिसर्च) है जो एक दस वर्षीय उपभोक्ता है जिसके साथ एच. सी. एल. अब एक अन्य नवाचार भागित जोखिम स्वरूप को अंगीकरण कर रहा है फरवरी से एच. सी. एल. सिसको के एक उत्पाद के लिए अभियांत्रिकी हेतु पूर्णतः जिम्मेदार है। यह भुगतान आधारित प्राप्ति है कि उत्पादन कितना बढ़िया बिकता है। अभियांत्रिकी में सभी नवाचारों में नायर की विनम्रता एक सक्षम प्रबंधन पूँजी के रूप में प्रकट होती है।

डेविड किर्कपैट्रिक के लेख से अधिग्रहीत

स्रोत–www.indianembassy.org/newsite/News/US%20Media/2006/115.asp      


विकेंद्रीकरण से तात्पर्य उस विधि से है जिसमें निर्णय लेने का उत्तरदायित्व सोपानिक क्रम में विभिन्न स्तरों में विभाजित किया जाता है। सरल शब्दों में विकेंद्रीकरण का अर्थ संगठन के प्रत्येक स्तर पर अधिकार अंतरण करना होता है। निर्णय लेने का अधिकार निम्नतम स्तर तक के प्रबंध को दिया जाता है जहाँ पर वास्तविक रूप में कार्य होना है। दूसरे शब्दों में निर्णय लेने का अधिकार आदेश की शृंखला में नीचे तक दिया जाता है।

जब निम्न स्तर द्वारा लिये गए निर्णयों की संख्या अधिक होती है तथा वे निर्णय महत्त्वपूर्ण भी होते हैं तो एेसा संगठन महानतम् विकेंद्रीकृत कहलाता है।

केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण

जैसा कि वर्तमान में बहुत सी सुव्यस्थित व्यावसायिक संस्थाओं की दशा को दृष्टिपात करने से आभास होता है कि केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण दोनों संबंधित मदें हैं।

यदि निर्णय लेने का अधिकार केवल उच्च स्तरीय प्रबंधन को ही होता है तो वह संगठन केंद्रीकृत कहलाता है, यदि यही अधिकार अंतरित कर दिया जाता है तो विकेंद्रीकृत कहलाता है। पूर्ण केंद्रीकरण तभी कहलाता है जब प्रबंध में निर्णय लेने का अधिकार केंद्रीय रूप से उत्तराधिकार सोपानिकी में केवल शीर्ष स्तर के प्रबंधकों को ही होता है। इस प्रकार की संरचना प्रबंध सोपानिकी की आवश्कयता को अनावश्यक कर देती है। पूर्ण विकेंद्रीकरण में सभी अधिकारों का अंतरण निम्न स्तर के कर्मचारियों को कर दिया जाता है और इस प्रकार इसमें उच्चस्तरीय प्रबंध की आवश्यकता अनावश्यक हो जाती है। दोनों ही अवस्थाएँ व्यवहार्य नहीं हैं।

कोई भी संस्था कभी भी न तो पूर्णरूपेण केंद्रीकृत हो सकती है और न ही कभी पूर्णरूपेण विकेंद्रीकृत हो सकती है। जब कोई संस्था आकार तथा जटिलताओं की ओर अग्रसर होती है तो यह देखा गया है कि वे संस्थाएँ निर्णयों में विकेंद्रीकरण को अपनाती हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि बड़े-बड़े संस्थानों में जहाँ कर्मचारियों को प्रत्यक्ष तथा अतिनिकट से कार्य संचालन में आलिप्त किया जाता है उनका ज्ञान तथा अनुभव उन उच्चस्तरीय प्रबंधकों से कहीं अधिक होता है जो संस्थान से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए होते हैं।

अतः इन दोनों प्रकार के। (केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण) कार्यविधियों में आपस में संतुलन स्थεापत करने की आवश्यकता है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक संस्थान में केंद्रीकरण तथा विकेंद्रीकरण दोनों प्रकार देखने को मिलते हैं।

महत्त्व

विकेंद्रीकरण प्रबंधकीय सोपानकी में निम्नस्तर के कर्मचारियों को अधिकार हस्तांतरित करने से कहीं अधिक है। यह मान्यता है कि यह कार्यवाही केवल चुनिन्दा अधिकारों के अंतरण में ही अपनाई जाती है। तथा इस पर भी विश्वास कर लिया जाता है कि लोग योग्य हैं, सामर्थवान हैं तथा भरोसेमन्द भी हैं। वे उनके निर्णयों को प्रभावपूर्ण विधि से लागू कर सकते हैं। इस प्रकार यह विचारधारा, निर्णयकर्ताओं की स्वायत्त शासन की इच्छा को स्वीकृति प्रदान करती है। तथापि यह आवश्यक है कि प्रबंध इस बात का ध्यान रखे कि निर्णयों का चुनाव इस प्रकार किया जाए कि कौन-कौन से निर्णय एेसे हैं जिन्हें निम्नस्तर तक स्थानांतरित किया जाए तथा वे कौन-कौन से निर्णय हैं जिन्हें उच्च स्तर पर ही रखा जाए। अधिकार अंतरण तथा विकेंद्रीकरण में आपसी अंतर्भेदों को सारणी द्वारा प्रतिपादित किया गया है–

विकेंद्रीकरण एक आधारभूत कदम है जिसके महत्त्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है–

(क) अधीनस्थों में पहल भावना का विकास– विकेंद्रीकरण, अधीनस्थों में आत्मविश्वास तथा भरोसे की भावना को जागृत करता है। यह इसलिए कि जब निम्नस्तरीय प्रबंधकों को स्वयं के निर्णयों से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है तो वे अपने निर्णयों के अनुसार कार्य करते हैं। वे इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि यह एक चेलेंज है जो उन्हें ही स्वीकार करना है तथा उन्हें ही उसका समाधान भी निकालना है। विकेंद्रीकरण से एेसे प्रतिभावान कार्यकारियों की खोज में भी सहायता मिलती हैं जो भविष्य में अच्छा नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं।

(ख) भविष्य के लिए प्रबंधकीय प्रतिभा का विकास–कर्मचारियों में कार्य संबंधी चातुर्थ बढ़ाने तथा संगठन में पदोन्नति पाने में औपचारिक प्रशिक्षण बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है लेकिन किसी भी कार्य को स्वतंत्र रूप से अपन हाथ में लेकर उसे करने से जो अनुभव प्राप्त किया जाता है वह भी किसी प्रकार कम नहीं होता है। विकेंद्रीकरण से योग्य तथा दक्षता प्राप्त लोगों को अपनी प्रतिभा को सिद्ध करने का सुअवसर प्रदान किया जाता है जिनको कि भविष्य में पदोन्नति देकर अधिक जटिल कार्यों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया जा सके। इस प्रकार यह प्रबंधकीय शिक्षा का एक माध्यमे है तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों को अपने जीवन में विविध प्रकार की अवस्थाओं में अपने व्यक्तित्व को उपयोग में लाने का सुअवसर भी देता है।

(ग) शीघ्र निर्णय–प्रबंध सोपानकी को संप्रेषण शृंखला के रूप में देखा जा सकता है। केंद्रीकृत संगठन में सूचनाओं का प्रवाह धीमा होता है क्योंकि प्रत्येक निर्णय उच्च पदस्थ अधिकारियों द्वारा लिया जाता है तथा उसे कई-स्तरों से गुजरना होता है तथा उसकी प्रतिक्रिया में भी समय लगता है। इससे निर्णय लेने की गति धीमी हो जाती है तथा एक संस्थान के लिए गतिशील संचालन गतिविधियों को अपनाना कठिन होता है। इसके विपरीत विकेंद्रीकरण में निर्णय कार्य स्थल पर ही लिए जाते हैं तथा उच्च अधिकारियों या अन्य स्तरों से किसी प्रकार की अनुमति या स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है, अतः प्रक्रिया अधिक गतिशील होती है। विकेंद्रीकृत में सूचनाओं को लम्बे रास्ते से नहीं गुजरना पड़ता है अतः उनमें विकृत होने की संभावना कम ही होती है।

(घ) शीर्ष प्रबंध को राहत–इसमें अधीनस्थ कर्मचारियों के क्रियाकलापों के प्रत्यक्ष रूप से पर्यवेक्षण आदि में उच्चाधिकारियों को राहत मिल जाती है क्योंकि वे अपने कार्य को निर्धारित सीमाओं के अंदर जो उच्चाधिकारियों द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं कार्य करते हैं। प्रत्यक्ष निरीक्षण के स्थान पर नियंत्रण की अन्य विधियों जैसे ‘विनियोग पर आय’ का निर्धारण आदि अपनाई जाती हैं। विकेंद्रीकरण में शीर्ष प्रबंध के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण कामों के करने के लिए अधिक समय मिल जाता है जिससे वे अधिक महत्त्वपूर्ण नीतियों तथा संचालन संबंधी निर्णयों को अच्छी तरह ले लेते हैं। वास्तव में विकेंद्रीकरण सर्वोत्तम है जब निम्नस्तरीय प्रबंधंन द्वारा लिए हुए निर्णयों के निरीक्षण की आवश्यकता कम होती है।

img5.6

विचारणीय

यदि आप एक प्रबंधक हैं तो क्या यह जानते हुए भी कि निर्णय लेने वाले अधिकारियों में बिखराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है, विकेंद्रीकरण लागू करेंगे?

(ङ) विकास को सरल बनाता है– विकेंद्रीकरण, निम्नस्तरीय प्रबधंकों तथा प्रभागीय अथवा विभागीय मुख्याधिकारियों को महानतम् स्वायत्ता प्रदान करता है। इस प्रकार उन्हें अपने विभागों के अनुकूल सर्वोत्तम विधि से कार्य करने का सुअवसर देता है तथा विभागीय प्रतियोगिता के लिए प्रोत्साहित करता है। परिणामस्वरूप प्रत्येक विभाग द्वारा सर्वोत्तम कार्य करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलने से उत्पादन में वृद्धि होती है तथा संगठन अधिक लाभ कमाने की स्थिति में होता है। आगे चलकर इस लाभ से आसानी से संगठन का विस्तार किया जा सकता है।

विकेंद्रीकरण - एक शक्ति

मकनेल का नाम औषधीय उत्पादों के निर्माण तथा विक्रय के क्षेत्र में 1879 से सम्मिलित हो गया है, जब से रोबर्ट मकनेल ने पेनसीलवानिया में औषधियों की पहली फुटकर दुकान खोली थी। निर्धारित औषधियों के उत्पादक के रूप में बढ़ते हुए यूनाइटेड स्टेट्स में 1933 में मकनेल लैबोरेटरीज निगम की स्थापना हुई तथा 1959 में ‘जोहनसन एण्ड जोहनसन’ पारिवारिक कंपनी की सदस्य बन गई। मकनेल कंज़्यूमर हैल्यकेयर ने कनाडा में 1980 में ‘जोहनसन एण्ड जोहनसन’ सुविधा जो गल्फ, ओनटेरियो में थी के साथ कार्य प्रारंभ किया। मकनेल कंज़्यूमर हैल्यकेयर (अनिर्धारित औषधाीय उत्पाद) जो गल्फ ओनटेरियो में है जोहनसन एण्ड जोहनसन परिवार कंपनी कनाडा की सदस्य है।

एक महत्त्वपूर्ण अंतर जो ‘जोहनसन एण्ड जोहनसन’ तथा अन्य कंपनियों में प्रायः पाया जाता है तथा एक सबसे बड़ी हमारी शक्ति-विकेंद्रीकृत प्रबंध की अवधारणा है।

एक बहुत बड़े मल्टी-बिलियन डॉलर कंपनी के संचालन के बजाए, ‘जोहनसन एण्ड जोहनसन’ कंपनी की 190 छोटी-छोटी कंपनियाँ हैं। प्रत्येक कंपनी का ध्यान विशिष्ट दवाओं अथवा उत्पाद विशेष विक्रय अधिकार (फ्रेंचाइज) तथा/अथवा भौगोलिक क्षेत्र पर केंद्रित होता है। जिससे प्रत्येक संबंधित उत्पादक को विकास के अनेक विकल्प होते हैं।

विकेंद्रीकरण के माध्यम से हम बड़े उद्यमों के लाभों तथा छोटे उद्यमों की तीव्र गति व ध्यान केन्द्रित करने दोनों को सम्मिलित करते हैं। विकेंद्रीकरण प्रत्येक कंपनी को उसके ग्राहकों के निकट लाता है। कर्मचारियों तथा ग्राहकों से छोटे से छोटे मार्ग से संप्रेषण साधता है तथा प्रतिभा के विकास में तीव्र गति से सहायक होता है।

‘जोहनसन एण्ड जोहनसन’- मेर्क कंज़्यूमर फार्मास्यूटिकल कंपनी का संचालन भी हमारी वुडलॉन रोड फैसिलिटी जो गल्फ में है, से होता है।

स्रोत–http://www.mcneilcanada.com/eng/eco07pg1.shtml 


(च) श्रेष्ठ नियंत्रण–विकेंद्रीकरण से प्रत्येक स्तर पर कार्य निष्पादन के मूल्यांकन का अवसर मिलता है जिससे प्रत्येक विभाग व्यक्तिगत रूप से उनके परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया जा सकता है। संगठन के उद्देश्यों की उपलब्धि किस सीमा तक हुई या समस्त उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रत्येक विभाग कितना सफल हो सका इसका भी निर्धारण किया जा सकता है। सभी स्तरों से प्रतिपुष्टि द्वारा भिन्नताओं का विश्लेषण करने तथा सुधारने में सहायता मिलती है। विकेंद्रीकरण में निष्पादन की जवाबदेही एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए संतुलन अंक कार्ड तथा प्रबंध सूचना विधि आदि श्रेष्ठ नियंत्रण विधियों का आविष्कार हुआ है। विकेंद्रीकरण निष्पादन मापन विधि में नवपरिवर्तन करने के लिए प्रबंधकों को बाध्य करता है।

अन्त में इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाए कि विकेंद्रीकरण के लाभों के बावजूद भी इसका उपयोग बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। क्योंकि यदि विभिन्न विभाग अपनी स्वेच्छा से निर्णय लेना प्रारंभ कर देंगे तो यह संगठन के हित में नहीं होगा तथा संगठन का विघटन तक भी हो सकता है। मुख्य नीति निर्धारण क्षेत्रों में विकेंद्रीकरण सदैव केंद्रीकरण से संतुलित ही होना चाहिए।


मुख्य शब्दावली

संगठन ।। कार्यात्मक ढाँचा ।। अंतरण ।। अनौपचारिक संगठन।।  उत्तरदेयता ।। विकेंद्रीकरण।। औपचारिक संगठन।।  विभागीकरण ।।केंद्रीकरण  ।। उत्तरदायित्व ।। संगठनात्मक ढाँचा ।। प्रभागीय ढाँचा ।। अधिकार। । प्रबंध का विस्तार


सारांश

संगठन

संगठन एक प्रक्रिया है जिसमें समूहों की क्रियाओं की व्याख्या करना तथा उनमें सत्ता संबंधों को स्थापित करना है।

प्रक्रिया

संगठन प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम सम्मिलित हैं–

(क) पहचान तथा कार्यविभाजन (ख) विभागीकरण (ग) कर्तव्यों का आवंटन (निर्धारण) (घ) वृतांत संबंधों की स्थापना

महत्त्व

संगठन को महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह कार्य विभाजन वृतान्त संबंधों की स्पष्टता, संसाधनों का अधिकतम उपयोग, विकास, उत्तर प्रशासन तथा सृजनात्मकता का नेतृत्व करता है।

संगठनात्मक ढाँचा

संगठनात्मक ढाँचा एक रूपरेखा है जिसके अंतर्गत प्रबंधकीय तथा संचालन कार्यों को पूरा किया जाता है। यह कार्यात्मक तथा प्रभागीय हो सकते हैं।

प्रबंध का फैलाव

किसी उच्च अधिकारी के अंतर्गत अधीनस्थों की संख्या।

कार्यात्मक संगठन

कार्यों के आधार पर सामूहिक क्रियाएँ। इस ढाँचे के गुण-विशिष्टीकरण, उत्तम नियंत्रण, प्रबंधकीय दक्षता तथा कर्मचारियों के प्रशिक्षण में सुगमता है। इसके दोष-कार्यात्मक प्रभुत्व हितों के झगड़े, प्रबंधंकीय विकास में रुकावट तथा दृढ़ता।

प्रभागीय ढाँचा

उत्पादन पर आधारित विभागीय क्रियाएँ। गुण-एकीकरण, उत्पाद विशिष्टता, वृहत्तर उत्तर देयता, लचीलापन, उत्तर सामंजस्य तथा अधिक पहल। दोष- विभागीय झगड़े, मँहगा, संगठनात्मक हितों की उपेक्षा, महाप्रबंधकों की आवश्यकताओं में वृद्धि।

औपचारिक संगठन

औपचारिक संगठनों की रूपरेखा, प्रबंधकों द्वारा संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तैयार की जाती है। इसके गुण- उत्तरदायित्व का स्थायीकरण, भूमिकाओं की स्पष्टता, आदेश की एकता तथा लक्ष्यों का निष्पादन। दोष-कार्यविधिक विलम्ब, अनुपयुक्त सृजनात्मकता का मान्यता तथा सीमित क्षेत्र।

अनौपचारिक संगठन

कार्य में संलग्न लोगों के परस्पर क्रियाकलापों से रूपधारण करता है। गुण-तीव्र गति, सामाजिक माँग की पूर्ति, औपचारिक संगठन की कमियों को दूर करना दोष–विघटनकारी ताकत, परिवर्तन विरोधी तथा सामूहिक हितों को प्रधानता।

अंतरण

उच्चाधिकारयों से अधीनस्थों को अधिकारों का अंतरण। इसके तीन तत्व हैं- अधिकार, उत्तरदायित्व तथा उत्तरदेयता।

अंतरण का महत्त्व

यह प्रभावपूर्ण प्रबंध में कर्मचारी विकास में, अभिप्रेरणा में, उन्नति में तथा सामंजस्य में सहायक होता है।

विकेंद्रीकरण से आशय संपूर्ण संगठन में अधिकार अंतरण से है।

विकेंद्रीकरण का महत्त्व

प्रबंधकीय प्रतिमा के विकास में सहायक, शीघ्र निर्णय लेना, शीर्ष प्रबंध के भार में कमी, पहल शक्ति का विकास, उन्नति तथा उत्तम नियंत्रण।        


अभ्यास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. सामाजिक संबंधों के समीकरण की पहचान करें, जो काम पर बातचीत के कारण सहजता से उत्पन्न होते हैं।

2. ‘प्रबंधन के विस्तार’ शब्द का क्या अर्थ है?

3. कोई भी दो परिस्थितियाँ बताएँ जिनके तहत कार्यात्मक संरचना उचित विकल्प साबित होगी।

4. एक कार्यात्मक संरचना का चित्रण करें।

5. एक कंपनी का दिल्ली में पंजीकृत कार्यालय है, गुड़गांव में विनिर्माण इकाई और फरीदाबाद में विपणन और बिक्री विभाग है। कंपनी उपभोक्ता उत्पादों का निर्माण करती है। कंपनी को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किस प्रकार की संगठनात्मक संरचना अपनानी चाहिए?

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. संगठन की प्रक्रिया में कौन-कौन से कदम हैं?

2. अधिकार अंतरण के तत्वों पर चर्चा करें।

3. अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन का समर्थन कैसे करता है?

4. क्या एक बड़े आकार के संगठन को पूरी तरह से केंद्रीकृत अथवा विकेंद्रीकृत किया जा सकता है? अपना सुझाव दीजिए।

5. विकेंद्रीकरण निम्नतम स्तर पर अधिकार अंतरण का विस्तार कर रहा है। टिप्पणी करें।

6. नेहा जूता निर्माण एक कारखाना चलाती है। व्यवसाय अच्छी तरह से चल रहा है और वह चमड़े के बैग के साथ-साथ पश्चिमी औपचारिक पहनावे में विविधता से विस्तार करना चाहती है। इससे उन्हें कामकाजी महिलाओं के बीच अपनी व्यावसायिक इकाई का विपणन करने में मदद मिलेगी। आप इस विस्तारित संगठन के लिए किस प्रकार की संरचना की सिफारिश करेंगे और क्यों?

7. उत्पादन प्रबंधक ने फोरमैन से प्रतिदिन 200 इकाइयों का लक्ष्य उत्पादन हासिल करने के लिए कहा, लेकिन वह उन्हें दुकान विभाग से उपकरण और सामग्रियों की माँग करने का अधिकार नहीं देता है। क्या उत्पादन प्रबंधक फोरमैन को दोषी ठहरा सकता है, यदि वह वांछित लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम नहीं है? कारण बताओ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. प्रभावी संगठन अधिकार अंतरण के लिए प्रतिनिधिमंडल को क्यों जरूरी माना जाता है?

2. विभागीय संरचना क्या है? इसके फायदे और उद्धरणों पर चर्चा करें।

3. केंद्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के बीच अंतर करें।

4. एक कार्यात्मक संरचना एक विभाजन संरचना से अलग कैसे है?

5. एक कंपनी, जो खिलौनों का एक लोकप्रिय ब्रांड बनाती है, अच्छी बाजार प्रतिष्ठा का आनंद ले रही है। इसमें विभिन्न विभागों, जैसे - उत्पादन, विपणन, वित्त, मानव संसाधन एवं अनुसंधान और विकास के साथ-साथ एक कार्यात्मक संगठनात्मक संरचना है। हाल ही में अपने ब्रांड नाम का उपयोग करने और नए व्यावसायिक अवसरों को भुनाने के लिए यह इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की नई शृंखला लाने पर विचार कर रही है, जिसके लिए एक नया बाजार उभर रहा है। इस स्थिति में कौन-सी संगठन संरचना अपनाई जानी चाहिए? कंपनी को जो कदम उठाने चाहिए, उससे लाभ प्राप्त करने के संदर्भ में ठोस कारण दें।

6. 1945 में ब्रिटिश प्रमोटरों द्वारा स्थापित सिलाई मशीन बनाने वाली एक कंपनी पूर्णतः औपचारिक संगठन कार्य संस्कृति का पालन करती है। निर्णय लेने में देरी से बहुत सी समस्याएँ आ रही हैं। नतीजतन यह बदलते कारोबारी माहौल को अनुकूलित करने में सक्षम नहीं है। कार्य बल भी प्रेरित नहीं है क्योंकि वे औपचारिक चैनलों को छोड़कर अपनी शिकायतों को दूर नहीं कर सकते हैं, जिसमें लालफीताशाही शामिल है। कर्मचारी टर्नओवर उच्च है। बदली परिस्थितियों और कारोबारी माहौल के कारण इसका बाजार हिस्सा भी घट रहा है। आपको कंपनी को सुझाव देने हैं कि वह अपने संगठनिक ढाँचे में क्या बदलाव करे ताकि सामना की जा रही समस्याओं को दूर किया जा सके। आपके द्वारा सुझाए गए परिवर्तनों से प्राप्त लाभों के संदर्भ में कारण दें।

7. सौंदर्य प्रसाधन विनिर्माण वाली एक कंपनी, जिसने व्यवसाय में प्रतिष्ठित स्थिति का आनंद लिया है और अपने आकार को आवश्यकतानुसार बढ़ाया भी है, का कारोबार 1991 तक बहुत अच्छा था लेεंकन उसके बाद नए उदारीकृत माहौल ने इस क्षेत्र में कई एम.एन.सी. के प्रवेश को देखा। नतीजतन कंपनी की बाजार हिस्सेदारी में कमी आई। कंपनी ने अत्यधिक केंद्रीकृत व्यापार मॉडल का पालन किया था जिसमें निदेशक और मंडल प्रमुख सूक्ष्म निर्णय तक लेते थे। 1991 से पहले इस व्यापार मॉडल ने कंपनी को बहुत अच्छी तरह से सेवा दी थी क्योंकि उपभोक्ताओं के पास कोई विकल्प नहीं था। लेकिन अब कंपनी सुधार के दबाव में है। कंपनी की बाजार हिस्सेदारी को बनाए रखने के लिए कंपनी को किस संगठन संरचना में परिवर्तन करना चाहिए? आपके द्वारा सुझाए गए परिवर्तन कंपनी की मदद कैसे करेंगे? ध्यान रखें कि कंपनी एफ.एम.सी.जी. क्षेत्र से है।