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अध्याय 12

उपभोक्ता संरक्षण


अधिगम उद्देश्य

इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप–

► उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्व को बता सकेंगे;

► भारत में उपभोक्ता संरक्षण के कानूनी ढाँचे का संक्षेप में वर्णन कर सकेंगे;

► भारत में उपभोक्ता के अधिकारों का वर्णन कर सकेंगे;

► उपभोक्ता दायित्वों का उल्लेख कर सकेंगे;

► उपभोक्ता संरक्षण की विधियों का संक्षेप में वर्णन कर सकेंगे;

► उपभोक्ता के हितों के संरक्षण में उपभोक्ता संगठनों और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कर सकेंगे।


ग्राहक की समस्या को नज़रअंदाज करने पर उपभोक्ता मंच ने एस.बी.आई. पर लगाया जुर्माना

अब, अगर आपको एटीएम से पैसे नहीं मिलते हैं, तो इसे बैंक के हिस्से पर सेवा में कमी माना जाएगा, जिसके कारण जुर्माना भी लगाया जा सकता है। एेसे ही एक मामले में, बैंक सेवा में कमी मानते हुए भारतीय स्टेट बैंक पर ₹2,500 का जुर्माना लगाया गया है। बैंक के अधिकारियों का मानना है कि यह संभव है कि बैंक पर एटीएम में सेवा की कमी के कारण दंड लगाया गया। संभवतः यह पहला मामला है। वकील राजीव अग्रवाल 25, 26 और 30 अप्रैल, 2017 को धन निकासी के लिए एस.बी.आई. एटीएम पर गए थे। 4 मई, 2017 को उन्होंने उपभोक्ता मंच में याचिका दायर की थी।

उपभोक्ता मंच में बैंक ने एक अद्वितीय तर्क दिया। बैंक ने मंच को बताया कि हालांकि एटीएम इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ चलता है, इसलिए जब उपयोगकर्ता एटीएम का उपयोग करते हैं, उस समय वह सीधे हमारे ग्राहक नहीं होते हैं, इसलिए यदि एटीएम से पैसा नहीं निकलता, तो इसे सेवा में कमी के रूप में नहीं माना जा सकता।

इस पर फोरम ने कहा कि बैंक हर साल ग्राहक से एटीएम शुल्क लेता है और फिर इस तर्क का मतलब नहीं रह जाता कि वह बैंक का ग्राहक नहीं है। मंच ने बैंक के तर्क को पूरी तरह से खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने फोरम के सामने साक्ष्य के रूप में धन निकासी के समय की फोटो और वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की। फोरम ने स्वीकार किया कि उपभोक्ता कई बार धन निकासी के लिए एटीएम जाते हैं और हर बार ‘नकदी उपलब्ध नहीं’ का संदेश आना सेवा में कमी है।

मंच ने याचिका स्वीकार कर ली। दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद, फोरम ने आदेश दिया कि यदि बैंक ग्राहक को एटीएम सेवा प्रदान नहीं करेगा, तो उसे सेवा में कमी माना जाएगा। फोरम ने 30 दिनों के भीतर बैंक को शिकायतकर्ता द्वारा मानसिक उत्पीड़न के लिए ₹1500 और न्यायिक व्यय के लिए ₹1000 का भुगतान करने का आदेश दिया।

स्रोत- https://dailypost.in/news/consumer-forum-fines-sbi-ignoring-customers/

उपर्युक्त घटना उन अनेक समस्याओं में से एक है जिनका उपभोक्ता वस्तु एवं सेवाओं का क्रय कर उपयोग एवं उपभोग के समय सामना करते हैं। यह घटना उपभोक्ताओं को विक्रेता के विभिन्न प्रकार से शोषण से संरक्षण प्रदान करने के लिए समुचित कानूनी संरक्षण प्रदान करने पर प्रकाश डालती है। क्या आपने कभी सोचा है कि यदि उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान नहीं किया गया तो उनकी क्या दुर्दशा होगी? क्या आज व्यवसाय उपभोक्ता हितों की अनदेखी कर सकता है? उपभोक्ता संरक्षण अध्ययन का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बनकर उभरा जो उपभोक्ता एवं व्यवसाय दोनों के समान रूप से उपयोगी है।

विषय प्रवेश

स्वतंत्र बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में ‘उपभोक्ता बादशाह होता है।’ पहले के कैविट एम्पटर अर्थात् ‘क्रेता स्वयं चौकन्ना रहे’ के सिद्धांत का स्थान अब कैविट वैंडिटर अर्थात् ‘विक्रेता को सावधान रहना चाहिए’ ने ले लिया है। जैसे-जैसे प्रतियोगिता में वृद्धि हो रही है एवं बिक्री तथा बाज़ार में हिस्सा बढ़ाने का प्रयत्न हो रहा है वैसे-वैसे निर्माता एवं सेवा प्रदत्तकर्ता दोषपूर्ण एवं असुरक्षित उत्पाद, मिलावट, झूठा एवं गुमराह करने वाला विज्ञापन, जमाखोरी, कालाबाज़ारी आदि चालाकी, शोषण एवं व्यापार के अनुचित तरीके अपनाने का लालच कर सकते हैं। इसका अर्थ हुआ कि उपभोक्ता को असुरक्षित उत्पादों से जो जोखिम हो सकती है, मिलावटी खाने के सामान से स्वास्थ्य खराब हो सकता है, गुमराह करने वाले विज्ञापन अथवा नकली उत्पादों के द्वारा धोखाधड़ी हो सकती है तथा विक्रेताओं द्वारा अधिक कीमत वसूलने, जमाखोरी अथवा कालाबाज़ारी आदि के कारण ऊँची कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसीलिए उपभोक्ताओं को विक्रेताओं के इन कार्यों से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है।

आइए अब उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्व पर चर्चा करें

उपभोक्ता संरक्षण का महत्त्व

उपभोक्ता संरक्षण की कार्य सूची बहुत विस्तृत है। इसमें उपभोक्ताओं को उनके अधिकार एवं उत्तरदायित्वों के संबंध में शिक्षित करना ही सम्मिलित नहीं है बल्कि उनकी शिकायतों के निवारण में सहायता प्रदान करना भी सम्मिलित है। इसके लिए उपभोक्ता के हितों को सुरक्षा के लिए केवल कानूनी व्यवस्था ही पर्याप्त नहीं है बल्कि आवश्यकता इसकी भी है कि उपभोक्ता अपने हितों की रक्षा एवं प्रवर्तन के लिए एकजुट हो जाएँ एवं उपभोक्ता समितियों का गठन करें। वैसे उपभोक्ता संरक्षण का व्यवसाय के लिए भी विशेष महत्त्व है।

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शीतल पेय में अशुद्धता के लिए हर्जाना

उपभोक्ताओं का दृष्टिकोण

उपभोक्ताओं की दृष्टि से, उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्व को निम्न बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है–

(i) उपभोक्ता की अज्ञानता– उपभोक्ताओं में व्यापक रूप से अपने अधिकारों की अज्ञानता एवं उनको प्राप्त सहायता को ध्यान में रखते हुए उनको इन सबके संबंध में शिक्षा देना आवश्यक हो जाता है जिससे कि उनमें जागरुकता पैदा हो।

(ii) असंगठित उपभोक्ता– उपभोक्ताओं को उपभोक्ता संगठन के रूप में संगठित हो जाना चाहिए जो उनके हितों का ध्यान रखेंगे। यद्यपि भारत में इस दिशा में कार्यरत उपभोक्ता संगठन हैं लेकिन जब तक यह संगठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उनके प्रवर्तन के लिए पर्याप्त सक्षम न हो जाएँ उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

(iii) उपभोक्ताओं का चौतरफा शोषण– उपभोक्ताओं का दोषपूर्ण एवं असुरक्षित वस्तुओं में मिलावट, झूठा एवं गुमराह करने वाला विज्ञापन, जमाखोरी, कालाबाज़ारी जैसे झूठे, शोषण करने वाले एवं अनुचित व्यापार व्यवहार के द्वारा शोषण किया जा सकता है। उपभोक्ताओं का विक्रेताओं की इन गलत तरीकों के विरुद्ध संरक्षण की आवश्यकता है।

व्यवसाय की दृष्टि से

व्यवसाय के उपभोक्ताओं के संरक्षण एवं उनकी पर्याप्त संतुष्टि पर जोर देने की आवश्यकता है। निम्न कारणों से इसका महत्त्व है–

(i) व्यवसाय का दीर्घ अवधिक हित– आज का जागरूक व्यवसायी यह भली-भाँति समझता है कि उपभोक्ता की संतुष्टि दीर्घ अवधि में उन्हीं के हित में है। ग्राहक यदि संतुष्ट है तो वह न केवल बार-बार माल खरीदेगा बल्कि संभावित ग्राहकों के लिए भी प्रतिपोषक का कार्य करेगा जिससे व्यवसाय के ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होगी। इसीलिए व्यावसायिक फर्मों को ग्राहक की संतुष्टि के द्वारा लम्बी अवधि में अधिकतम लाभ प्राप्त करने का लक्ष्य सामने रखना चाहिए।

(ii) व्यवसाय समाज के संसाधनों का उपयोग करता है– व्यावसायिक संगठन उन संसाधनों का उपयोग करते हैं जिनपर समाज का अधिकार है। इसीलिए एेसे उत्पादों की आपूर्ति एवं उन सेवाओं को प्रदान करने का दायित्व है जो जनता के हित में है तथा जिससे जनता के विश्वास को ठेस नहीं पहुँचे।

(iii) सामाजिक उत्तरदायित्व– व्यवसाय का विभिन्न हितार्थी समूहों के प्रति सामाजिक दायित्व है। व्यवसायिक संगठन ग्राहकों को माल की बिक्री कर एवं सेवाएँ प्रदान कर धन कमाता है। इस प्रकार से उपभोक्ता व्यवसाय में हित रखने वाले बहुत से समूहों में से एक महत्त्वपूर्ण समूह है और दूसरे हित रखने वाले समूहों के समान इनके हितों का भी ध्यान रखना आवश्यक है।

(iv) नैतिक औचित्य– उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखना तथा उनके किसी भी प्रकार का शोषण न करना व्यवसाय का नैतिक कर्तव्य है। इसीलिए व्यवसाय को दोषपूर्ण एवं असुरक्षित उत्पाद, मिलावट, झूठे एवं गुमराह करने वाले विज्ञापन, जामखोरी, कालाबाज़ारी आदि जैसे झूठे, शोषण करने वाले एवं अनुचित व्यापार क्रियाओं से बचना चाहिए।

(v) सरकारी हस्तक्षेप– यदि कोई व्यवसाय शोषण करने वाला व्यापार कर रहा है तो वह सरकारी हस्तक्षेप एवं कार्यवाही को आमंत्रण दे रहा है। इससे कंपनी की छवि को हानि पहुँचती है और छवि पर धब्बा लगता है। इसीलिए उचित यही रहेगा कि व्यावसायिक संगठन स्वेच्छापूर्वक ग्राहकों की आवश्यकताओं एवं हितों का भली-भाँति ध्यान रखने वाला कार्य करें।

उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उपभोक्ताओं को संरक्षण देने वाले कई कानून बनाए हैं। अब हम इनमें से कुछ कानूनों पर चर्चा करेंगे।

उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण

भारत के कानूनी ढाँचे में एेसे कई कानून हैं जो उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करते हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के खण्ड (4) के अनुसार सभी नागरिकों को यथासम्भव आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध करवाना अनिवार्य है। एेसे नियमनों की व्याख्या नीचे की गई है।

1. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986– उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा करता है एवं उनका प्रवर्तन करता है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को दोषपूर्ण वस्तुओं, घटिया स्तर की सेवाओं, अनुचित व्यापार क्रियाओं तथा अन्य प्रकार के शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंर्तगत तीन स्तरीय तंत्र की स्थापना का प्रवधान है जिसमें जिला फोरम, राज्य कमीशन एवं राष्ट्रीय कमीशन सम्मिलित हैं। इसमें प्रत्येक जिला, राज्य एवं सर्वोच्च स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों के गठन का प्रावधान है।

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कदाचार एवं शोषण के विरुद्ध संरक्षण

2. प्रंसविदा अधिनियम, 1982– यह अधिनियम शर्तें निर्धारित करता है जिनके अनुसार किसी अनुबंध के पक्षों में जो वायदे किए हैं उनको पूरा करने के लिए वे बाध्य होंगे। यह अधिनियम अनुबंध को तोड़ने पर इससे जुड़े पक्षों को उपलब्ध प्रतिकार का निर्धारण करता है।

3. वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930– यह अधिनियम क्रेताओं को उस स्थिति में कुछ संरक्षण प्रदान करता है जबकि उन्होंने जो वस्तुएँ खरीदी हैं वह घोषित अथवा गर्भित शर्त अथवा आश्वासन के अनुरूप न हों।

4. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955– यह अधिनियम आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण पर नियंत्रण, इनके मूल्यों की वृद्धि की प्रवृति को रोकने तथा इनके समान वितरण को सुनिश्चित करता है। इस कानून में अनुचित लाभ कमाने वाले जमाखोर एवं कालाबाज़ारियों की समाज विरोधी कार्यवाहियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भी प्रावधान है।

5. कृषि उत्पाद (श्रेणीकरण एवं चिह्नांकन) अधिनियम, 1937– यह अधिनियम कृषि उत्पादों एवं पशुओं के लिए उत्पादों की श्रेणियों के मानक निर्धारित करता है। यह मानकाें के उपयोग को शासित करने के लिए शर्तें तय करता है तथा कृषि उत्पादों के श्रेणीकरण, चिह्नांकन एवं पैकिंग के लिए प्रक्रिया भी तय करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत जो गुणवत्ता का चिह्न निर्धारित किया है उसे ‘एगमार्क’ कहते हैं जो कि कृषि विपणन का एक संक्षिप्त नाम है।

6. खाद्य मिलावट अवरोध अधिनियम, 1954– यह अधिनियम खाद्य पदार्थों में मिलावट पर अंकुश लगाता है एवं जनसाधारण के स्वास्थ्य के हित में शुद्धता सुनिश्चित करता है।

7. माप तौल मानक अधिनियम, 1976– इस अधिनियम की धाराएँ उन वस्तुओं पर लागू नहीं होती हैं जिनका वज़न, माप, संख्यानुसार विक्रय अथवा वितरण किया जाता है। यह उपभोक्ताओं को कम तौलने अथवा मापने के अनुचित आचरण के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।

8. ट्रेड मार्क अधिनियम, 1999– इस अधिनियम ने व्यापार एवं वाणिज्य चिह्न अधिनियम 1958 को समाप्त कर उसका स्थान ले लिया है। यह अधिनियम उत्पादों पर धोखा धड़ी वाले चिह्नों के उपयोग पर रोक लगाता है। इस प्रकार से उपभोक्ताओं को एेसे उत्पादों से संरक्षण प्रदान करता है।

9. प्रतियोगिता अधिनियम, 2002– यह अधिनियम एकाधिकार एवं प्रतिरोध व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969 को भंग कर उसका स्थानापन्न करता है। यह अधिनियम व्यावसायिक इकाइयों द्वारा बा\ज़ार में प्रतियोगिता में अड़चनें डालने वाले कार्य करने पर उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करता है।

10. भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986– भारतीय मानक ब्यूरो की स्थापना इस अधिनियम के अंतर्गत की गई है। ब्यूरो की दो मुख्य क्रियाएँ हैं– वस्तुओं के लिए गुणवत्ता मानक निश्चित करना एवं बी.आई.एस. प्रमाणीकरण योजना के माध्यम से उनका प्रमाणीकरण करना। निर्माता अपने उत्पादों पर आई.एस.आई. (ISI) चिह्न तभी प्रयोग कर सकते हैं जबकि यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि वस्तुएँ निर्धारित गुणवत्ता के मानकों के अनुरूप हैं। ब्यूरो ने एक शिकायत प्रकोष्ठ की भी स्थापना की है जहाँ उपभोक्ता उन वस्तुओं की गुणवत्ता की शिकायत कर सकते हैं जिन पर आई.एस.आई (ISI) चिह्न अंकित है।

इन सभी कानूनों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम है जिसमें उपभोक्ता के छः अधिकारों का प्रावधान है तथा उपभोक्ताओं को क्रय की गई वस्तुओं एवं लाभ उठाई गई सेवाओं में यदि कोई कमी है तो उसकी शिकायत को दूर करने में सहायता करता है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986

यह अधिनियम उपभोक्ता के हितों को उनकी शिकायतों के शीघ्र एवं बिना किसी व्यय के निवारण कर संरक्षण एवं प्रवर्तन की व्यवस्था करता है।

अधिनियम का क्षेत्र बहुत व्यापक है। ये व्यावसायिक इकाइयाँ ब\ड़ी हैं अथवा छोटी, निजी क्षेत्र में हैं अथवा सार्वजनिक क्षेत्र में अथवा सहकारी क्षेत्र में, उत्पादक हैं अथवा व्यापारी तथा वस्तुओं की आपूर्ति करती हैं अथवा सेवाएँ प्रदान करती हैं यह सभी पर लागूू होता है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को शक्ति प्रदान करने एवं उनके हितों की रक्षार्थ कुछ अधिकार प्रदान करता है।

उपभोक्ताओं के अधिकार

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ताओं के लिए छः अधिकारों का प्रावधान है इस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना उपभोक्ताओं के विभिन्न अधिकारों के प्रवर्तन एवं संरक्षण के लिए की जाती हैं। यह अधिकार निम्नलिखित हैं–

1. सुरक्षा का अधिकार– उपभोक्ता को उन वस्तु एवं सेवाओं के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार है जो उसके जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं। उदाहरण के लिए जो बिजली उपकरण अवस्तरीय उत्पादों से बनाए जाते हैं अथवा जो सुरक्षा के मानकों के अनुरूप नहीं हैं, गंभीर रूप से चोट पहुँचा सकते हैं। इसलिए उपभोक्ताओं को शिक्षित किया जाता है कि वह आई.एस.आई. (ISI) मार्का बिजली उपकरणों का ही प्रयोग करें क्योंकि इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि यह उत्पाद गुणवत्ता के मानदंडों को पूरा कर रहा है।

2. सूचना का अधिकार– उपभोक्ता को उस वस्तु के संबंध में पूरा जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जिसका वह क्रय करना चाहता है जिसमें उसके घटक, निर्माण तिथि मूल्य, मात्रा, उपयोग के लिए दिशानिर्देश आदि सम्मिलित हैं। इसी कारण भारत में कानूनन निर्माताओं को सभी सूचनाएँ उत्पाद के पैकेज एवं लेबल पर देनी होती हैं।

3. चयन का अधिकार– उपभोक्ता को प्रतियोगी मूल्य पर उपलब्ध विभिन्न उत्पादों में से चयन का अधिकार है इसका अर्थ है कि विपणनकर्ताओं को अलग-अलग गुणवत्ता, ब्रांड मूल्य एवं आकार की वस्तुओं को बाज़ार में बिक्री हेतु लाना चाहिए तथा उपभोक्ता को इनमें से अपनी पसंद की वस्तु के चयन का अधिकार होना चाहिए।

4. शिकायत का अधिकार– उपभोक्ता यदि वस्तु एवं सेवा से संतुष्ट नहीं है तो उसे शिकायत दर्ज कराने तथा उसकी सुनवाई का अधिकार है। इसी के कारण कई समझदार व्यावसायिक इकाइयों ने अपने स्वयं के शिकायत एवं उपभोक्ता सेवा कक्ष की स्थापना कर ली है। कई उपभोक्ता संगठन भी इस दिशा में कार्य कर रहे हैं तथा उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतें दूर करने में सहायता कर रहे हैं।

5. क्षतिपूर्ति का अधिकार– यदि वस्तु अथवा सेवा अपेक्षा के अनुरूप नहीं निकलती तो उपभोक्ता को उससे मुक्ति पाने का अधिकार है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ता को कई प्रकार से क्षतिपूर्ति का प्रावधान है जैसे वस्तु को बदल देना, उत्पाद के दोषों को दूर करना, हानि अथवा क्षति पहुँचने पर उसकी पूर्ति करना आदि।

6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार– उपभोक्ता को पूरे जीवन ज्ञान प्राप्ति एवं पूरी सूचना प्राप्त करने का अधिकार है उसे इसका ज्ञान होना चाहिए कि यदि वस्तु अथवा सेवा आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं है तो उसकी किस प्रकार से क्षतिपूर्ति की जाएगी तथा उसके क्या अधिकार होंगे? कई उपभोक्ता संगठन एवं कुछ समझदार व्यवसाय इस संबंध में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं को यह अधिकार प्रदान कर उन्हें बेईमान/चालाक, शोषणकर्ता एवं अनुचित व्यापार आचरण करने वाले विक्रेताओं से लड़ने के लिए सशक्त बनाता है। प्रदर्श में दिखाया गया है कि किस प्रकार से एक जलपान गृह के स्वामी पर एक पानी की बोतल की अधिक कीमत वसूलने पर जुर्माना किया गया था।

उपभोक्ता अधिकार, उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने में स्वयं में प्रभावी सिद्ध नहीं हो सकते। उपभोक्ता संरक्षण तभी हो सकता है जबकि उपभोक्ता अपने दायित्वों को समझें।

बोतलबंद पानी की अधिक कीमत वसूलने पर जुर्माना

पूर्वी दिल्ली के एक रेस्टोरेंट के मालिक को एक ग्राहक को 5,000 रुपए जुर्माने के रूप में भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। इस ग्राहक से बोतलबंद पानी के 34 रुपए वसूले गये जबकि इसकी अधिकतम फुटकर कीमत 12 रुपए थी। यह जुर्माना एेसे समय पर लगाया गया है जबकि उपभोक्ता अदालतें उन दुकानदारों की खबर ले रही हैं जो निर्धारित मूल्य से अधिक वसूल कर रहे हैं। हाल ही के एक अहम फैसले में राज्य उपभोक्ता कमीशन ने इसी प्रकार के मामले में सिनेमा घरों पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया। पूर्वी जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष ए.के.जैन. तथा सदस्य मीना सक्सेना एवं मुकेश मिश्रा ने मालिक की क्षतिपूर्ति का यह फैसला दिया। इसमें कड़कड़डूमा कॉम्पलैक्स में ज़ायका बाज़ार को निर्धारित कीमत से अधिक कीमत वसूलने पर क्षतिपूर्ति का निर्देश दिया । फोरम ने कहा "वर्तमान शिकायत निरूलाज़ बनाम अंकित जैन के मामले में राज्य उपभोक्ता कमीशन के फैसले की सीमा में आता है। जिसमें कहा गया है कि कोई भी व्यापारी अथवा सेवा प्रदान करने वाला किसी भी पैक की गई वस्तु पर छपे हुए अधिकतम फुटकर मूल्य (MRP) से अधिक वसूल नहीं कर सकता यदि वस्तु पैक की हुई ही बेची गई है।" रेस्टोरेंट के मालिक को इस गलत आचरण को समाप्त करने का आदेश देते हुए फोरम ने कहा कि पैक की हुई वस्तु का (MRP) एम.आर.पी. से अधिक राशि वसूलना देश के कानून के विरुद्ध है। गोयल ने पिछले वर्ष नवम्बर में एक रेस्टोरेंट से एक्वाफिना बोतलबंद पानी खरीदा जिसका उसे 34 रुपए जिसमें चार रुपए वैट (VAT) के सम्मिलित थे भुगतान करने को कहा गया जबकि बोतल पर (MRP) 12 रुपए छपा हुआ था।

स्रोत- www.corecentre.org

उपभोक्ता के दायित्व

एक उपभोक्ता को वस्तु एवं सेवाओं का क्रय, उपयोग एवं उपभोग करते समय निम्न उत्तदायित्वों को ध्यान में रखना चाहिए–

(i) बाज़ार में उपलब्ध विभिन्न वस्तु एवं सेवाओं के संबंध में जानकारी रखें जिससे कि बुद्धिमत्तापूर्ण चुनाव किया जा सके।

(ii) केवल मानक वस्तुओं को ही खरीदें क्योंकि यह गुणवत्ता का विश्वास दिलाता है। इसीलिए बिजली के सामान पर (ISI) चिह्न, खाद्य उत्पादों पर (FPO) तथा आभूषणों पर (Hallmark) हॉलमार्क देखें।

(iii) वस्तु एवं सेवाओं से जुड़ी जोखिमों के संबंध में जाने, निर्माता के दिशा निर्देर्शों का पालन करें तथा उत्पादों का ध्यान से उपयोग करें।

(iv) मूल्य, शुद्ध वज़न, उत्पादन एवं उपयोग करने योग्य अंतिम तिथि की सूचना के लिए लेबल को ध्यान से पढ़ें।

(v) यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके साथ सही व्यवहार हो अपनी दृढ़ता का परिचय दें।

(vi) लेन-देन में ईमानदारी बरतें। केवल कानून सम्मत वस्तु एवं सेवाओं को ही खरीदें तथा कालाबाज़ारी, जमाखोरी जैसे अनुचित आचरणों को निरुत्साहित करें।

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विभिन्न उत्पादों की गुणवत्ता बताने वाले चिह्न

(vii) वस्तु एवं सेवाओं के खरीदने पर नकद प्राप्ति रसीद माँगे।

(viii) यदि क्रय की गई वस्तुओं अथवा सेवाओं की गुणवत्ता में कमी है तो उचित उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराएँ।

(ix) उपभोक्ता परिषद् का गठन करें जो उपभोक्ता शिक्षण उनके हितों को सुरक्षित रखने में सक्रिय रूप से भाग लेंगे।

(x) पर्यावरण का ध्यान रखें। कूड़ा कचरा फैलाने एवं प्रदूषण फैलाने से बचें।

उपभोक्ता की अपने अधिकार एवं दायित्वों के प्रति जागरूकता उन कई रास्तों में से एक रास्ता है जिसके द्वारा उपभोक्ता संरक्षण संभव है। वैसे इस उद्देश्य की प्राप्ति के दूसरे मार्ग भी हैं।

उपभोक्ता संरक्षण के तरीके एवं साधन

एेसी कई विधियाँ हैं। जिनके द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।

1. व्यवसाय द्वारा स्वयं नियमन– विकसित व्यावसायिक इकाइयाँ यह समझती हैं कि उपभोक्ताओं को भली-भाँति सेवा प्रदान करना उनके अपने दीर्घकालीन हित में है। सामाजिक उत्तरदायित्व को मानने वाली इकाइयाँ अपने ग्राहकों से लेन-देन करते समय नैतिक मानक एवं व्यवहार का पालन करती हैं। कई फर्मों ने अपने ग्राहक की शिकायत एवं समस्याओं के समाधान के लिए अपनी स्वयं की उपभोक्ता सेवा एवं शिकायत कक्षों की स्थापना की हैं।

2. व्यावसायिक संगठन– व्यापार, वाणिज्य एवं व्यवसाय संगठनों जैसे भारतीय वाणिज्य एवं औद्योगिक महासंघ (FICCI) एवं भारतीय उद्योगों का संगठन (CII) ने अपनी आचार संहिता बनायी हुई है जिनमें अपने सदस्यों के लिए दिशानिर्देश होते हैं कि वह अपने ग्राहकों से कैसे व्यवहार करें।

3. उपभोक्ता जागरूकता– एक उपभोक्ता जो अपने अधिकार एवं उपलब्ध राहत के संबंध में भली-भाँति जानता है वह इस स्थिति में होगा कि किसी भी प्रकार के अनुचित आचरण अथवा आवांच्छनीय रूप से शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज उठा सके। इसके साथ-साथ यदि वह अपने दायित्वों को समझता है तो इससे वह अपने हितों की रक्षा कर सकेगा। इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा ‘‘जागो ग्राहक जागो’’ नामक जागरूकता मुहिम चलायी गयी है। जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों एवं दायित्वों के प्रति सजग करना है।

4. उपभोक्ता संगठन– उपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के संबंध में शिक्षित करने तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह संगठन व्यावसायिक इकाइयों को अनुचित आचरण एवं उपभोक्ताओं के शोषण से दूर रहने के लिए बाध्य कर सकते हैं।

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उपभोक्ता जागरूकता

5. सरकार– सरकार विभिन्न कानून बना कर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा कर सकती हैं। उदाहरण के लिए भारत सरकार द्वारा जनहित के लिए देशीय उपभोक्ता हेल्प लाइन टॉल फ्री नं. 1800114000 स्थापित किया गया है। जिसका उपयोग उपभोक्ताओं द्वारा प्रातः 9ः30 बजे से लेकर सायं 05ः30 बजे तक किया जा सकता है। भारत के कानूनी ढाँचे में एेसे कई कानून हैं जो उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करते हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण कानून उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 है। इस कानून में उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करने के लिए तीन स्तरीय तंत्र का प्रावधान है जो इस प्रकार हैं– जिला स्तर, राज्य स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर। इन तीन स्तरीय तंत्र के अंतर्गत शिकायत निवारण पद्धति का नीचे वर्णन किया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शिकायत निवारण एजेंसियाँ

उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण के लिए कार्यवाही करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर तीन स्तरीय तंत्र की स्थापना की व्यवस्था है जिन्हें क्रमशः जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, राज्य उपभोक्ता निवारण कमीशन एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण कमीशन कहते हैं। इन्हें संक्षेप में जिला फोरम, राज्य कमीशन कहते हैं। इन्हें संक्षेप में जिला फोरम, राज्य कमीशन एवं राष्ट्रीय कमीशन के संक्षिप्त नामों से पुकारा जाता है। राष्ट्रीय कमीशन की स्थापना केंद्रीय सरकार करती है, तो राज्य कमीशन एवं जिला फोरम की स्थापना प्रत्येक राज्य एवं जिलों में संबंधित राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

इन निदान एजेंसियों की संरचना एवं कार्यप्रणाली के अध्ययन से पहले आइए देखें कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता की क्या परिभाषा दी है तथा कौन इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज करा सकता है।

उपभोक्ता– सामान्यतः एक उपभोक्ता का अर्थ उस व्यक्ति से लगाया जाता है जो वस्तुओं का उपयोग करता है अथवा उपभोग करता है या फिर सेवाओं का लाभ उठाता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार उपभोक्ता को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है–

(क) वह व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले कोई माल खरीदता है जिसका भुगतान कर दिया हो अथवा भुगतान का वचन दिया हो अथवा उसका आंशिक भुगतान कर दिया हो तथा आंशिक भुगतान का वचन दिया हो अथवा उसका भुगतान अस्थगित या विलंबित भुगतान विधि के अनुसार करने का वचन दिया हो।

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(ख) वह व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले किन्हीं सेवाओं को भाड़े पर प्राप्त करता है या उपयोग करता है तथा जिसका भुगतान कर दिया हो अथवा करने का वचन दिया हो अथवा उसका आंशिक भुगतान कर दिया हो तथा आंशिक भुगतान का वचन दिया हो अथवा उसका भुगतान स्थगित या विलंबित विधि के अनुसार करने का वचन दिया हो। इसमें एेसी सेवाओं से लाभान्वित होने वाला व्यक्ति भी सम्मिलित है, जिसने पहले वाले व्यक्ति की अनुमति से सेवाओं का उपयोग किया है लेकिन इसमें वह व्यक्ति सम्मिलित नहीं है जो इन सेवाओं को किसी व्यापार के उद्देश्य से प्राप्त करता है।

शिकायत कौन कर सकता है– किसी भी उपयुक्त उपभोक्ता फोरम के समक्ष शिकायत निम्न के द्वारा की जा सकती है–

(i) कोई भी उपभोक्ता स्वयं शिकायत दर्ज करवा सकता है, इसके लिए उसे पेशेवर वकील की सेवाओं की आवश्यकता नहीं है।

(ii) कोई पंजीकृत उपभोक्ता;

(iii) केंद्रीय सरकार अथवा कोई भी राज्य सरकार;

(iv) उन अनेक समान हित रखने वाले उपभोक्ताओं की ओर से कोई एक अथवा एक से अधिक उपभोक्ता एवं

(v) किसी मृतक उपभोक्ता के कानूनी उत्तराधिकारी अथवा प्रतिनिधि

(vi) उपभोक्ता अधिनियम संरक्षण 1986 के खण्ड-2 (ब) अंतर्गत शिकायतकर्ता।

आइए अब देखें कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत तीन स्तरीय व्यवस्था किस प्रकार से उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करती है।

1. जिला फोरम– भारत में जिला फोरम है, जिला फोरम में एक प्रधान तथा दो दूसरे सदस्य होते हैं जिनमें से एक महिला होनी चाहिए। इन सभी की नियुक्ति संबंधित राज्य सरकार करती है। शिकायत किसी भी उपयुक्त जिला फोरम के पास की जा सकती है यदि वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि सहित 20 लाख रुपए से अधिक नहीं है। शिकायत प्राप्ति के पश्चात् जिला फोरम शिकायत को उस पक्ष को भेजेगा जिसके विरुद्ध शिकायत की गई है। यदि आवश्यक हुआ तो वस्तु अथवा उसके नमूने को परीक्षण हेतु प्रयोगशाला को भेजा जायेगा। जिला फोरम प्रयोगशाला से प्राप्त जाँच रिपोर्ट को ध्यान में रखकर तथा संबंध विरोधी पक्षकार का तर्क सुनकर आदेश पारित करेगा। यदि पीड़ित पक्षकार जिला फोरम के आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह आदेश पारित होने के पश्चात् तीस दिन के भीतर राज्य कमीशन के समक्ष अपील कर सकता है।

2. राज्य कमीशन– भारत में 36 राज्य कमीशन हैं, प्रत्येक राज्य स्तरीय आयोग में एक प्रधान तथा कम-से-कम दो सदस्य जिनमें एक महिला होनी चाहिए। इनकी नियुक्ति संबंद्ध राज्य सरकार करती है। उपयुक्त राज्य कमीशन को शिकायत की जा सकती है यदि वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि सहित 20 लाख रुपए से अधिक हो लेकिन 1 करो\ड़ से अधिक न हो। जिला फोरम के आदेश के विरुद्ध अपील भी राज्य कमीशन के समक्ष की जा सकती है। शिकायत प्राप्ति के पश्चात् राज्य स्तरीय आयोग शिकायत को उस पक्षकार को भेजेगी जिसके विरुद्ध शिकायत की गई है। यदि आवश्यक हुआ तो वस्तु अथवा उसका नमूना प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेजा जाएगा। राज्य कमीशन प्रयोगशाला की जाँच रिपोर्ट का अध्ययन कर तथा विरोधी पक्षकार का तर्क सुनकर आदेश पारित करेगा। यदि पीड़ित पक्ष राज्य कमीशन के आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह आदेश के पश्चात् 30 दिन के भीतर राष्ट्रीय कमीशन के समक्ष अपील कर सकता है।

3. राष्ट्रीय कमीशन– राष्ट्रीय कमीशन के अधिकार क्षेत्र में पूरा देश आता है। राष्ट्रीय कमीशन का एक प्रधान होता है तथा कम से कम चार दूसरे सदस्य होते हैं जिनमें से एक महिला होनी चाहिए। इनकी नियुक्ति केंद्रीय सरकार करती है। राष्ट्रीय कमीशन में शिकायत तभी की जा सकती है जबकि वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि सहित 1 करोड़ रुपए से अधिक हो। राष्ट्रीय कमीशन के समक्ष राज्य कमीशन के आदेश के विरुद्ध भी अपील की जा सकती है। राष्ट्रीय कमीशन शिकायत को विरोधी पक्षकार को भेजेगा। यदि आवश्यक हुआ तो वस्तु अथवा उसके नमूने को प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेजा जाएगा। प्रयोगशाला की जाँच रिपोर्ट का अध्ययन तथा विरोधी पक्षकार का तर्क सुनकर पारित करेगा।

राष्ट्रीय कमीशन द्वारा पारित आदेश उसके मूल अधिकार क्षेत्र में आता है तथा इसकी अपील उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है। इसका अर्थ हुआ कि केवल तब ही अपील भारत के उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है जबकि वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि को मिलाकर 1 करोड़ रुपए से अधिक हो तथा पीड़ित पक्षकार राष्ट्रीय कमीशन के आदेश से संतुष्ट नहीं हो। जिस मामले पर फैसला जिला फोरम ने लिया है उसकी अपील राज्य स्तरीय आयोग के समक्ष की जा सकती है उसके पश्चात् राज्य आयोग के आदेश को राष्ट्रीय आयोग के समक्ष चुनौती दी जा सकती है लेकिन उसके पश्चात् कोई विकल्प नहीं है।

कुछ फैसले

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत एक उपभोक्ता किसी भी दोषपूर्ण वस्तु की आपूर्ति करने पर अथवा अपर्याप्त सेवा प्रदान करने पर निर्माता अथवा विक्रेता के विरुद्ध शिकायत कर सकता है।

जोस फिलिप मैम्पीलिल बनाम सर्वश्री प्रीमियर अॉटोमोबाइल्स लि. एवं अन्य में अपीलकर्ता (उपभोक्ता) ने एक डीजल कार खरीदी थी। जो दोषपूर्ण पायी गई। प्रतिवादी (निर्माता एवं व्यापारी) ने कार के दोषों को दूर नहीं किया। जिला फोरम द्वारा नियुक्त कमीशनर को कार में अनेक दोष मिले। परिणामस्वरूप जिला फोरम ने बिना लागत के कार की मरम्मत करने एवं इंजन बदलने का आदेश दिया। राज्य आयोग ने इंजन बदलने के निर्देश को छोड़कर शेष आदेश को बरकरार रखा।

शशिकांत कृषनयी डोल बनाम शिकशन प्रसारक मंडली में राष्ट्रीय आयोग ने माना कि तरणताल में सुरक्षा के मूल उपाय का न होना सेवा की अपर्याप्तता है। एक विद्यालय का तरणताल था तथा जनसाधारण उसका उपयोग कुछ फीस देकर कर सकते थे। विद्यालय ने शीतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिवरों का आयोजन किया (लड़कों को तैराकी का प्रशिक्षण देने के लिए) तथा इसके लिए एक प्रशिक्षक की भी व्यवस्था की। दोषारोपण यह था कि प्रशिक्षक की लापरवाही से लड़का डूब गया तथा उसकी मृत्यु हो गई। विद्यालय ने इसका उत्तरदायित्व लेने से इंकार कर दिया। प्रशिक्षक का कहना था कि युवा लड़कों को तैराकी का प्रशिक्षण देने का उसको पर्याप्त अनुभव था। मृतक के डूबने पर प्रशिक्षक ने उसे तुरंत पानी से निकाला, उसके पेट से पानी निकाला तथा उसे कृत्रिम सांस दी और उसके पश्चात् उसे डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने उसे नजदीक के अस्पताल ले जाने के लिए सलाह दी जहाँ ल\ड़के की मृत्यु हो गई। राज्य आयोग ने विद्यालय एवं प्रशिक्षक को मृतक को सेवा प्रदान करने में कमी के लिए दोषी माना। अपील करने पर राष्ट्रीय आयोग ने आदेश को बरकरार रखा।

स्रोत- www.indiainfoline.com

उपलब्ध राहत

उपभोक्ता अदालत यदि शिकायत की यथार्थता से संतुष्ट है तो यह विरोधी पक्ष को निम्न में से एक अथवा एक से अधिक निर्देश दे सकती है।

(i) वस्तु के दोष अथवा सेवा में कमी को दूर करना।

(ii) दोषपूर्ण वस्तुओं के स्थान पर दोषमुक्त नयी वस्तु देना।

(iii) वस्तु अथवा सेवाओं के लिए किए गए भुगतान की वापसी करना।

(iv) विरोधी पक्ष की लापरवाही के कारण उपभोक्ता को होने वाली हानि अथवा चोट के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में उचित राशि का भुगतान करना।

(v) उचित परिस्थितियों में दंडस्वरूप क्षति का भुगतान करना।

(vi) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापारिक क्रियाओं को रोकना तथा उनकी पुनरावृत्ति न होने देना।

(vii) खतरनाक वस्तुओं की बिक्री न करना।

(viii) विक्रय के लिए रखी गई हानिकारक वस्तुओं को वापस लेना।

(ix) खतरनाक वस्तुओं का उत्पादन नहीं करना तथा हानिकारक सेवाएँ प्रदान करने से बचना।

(x) कोई राशि (जो कि दोषपूर्ण वस्तु अथवा अपर्याप्त सेवाओं के मूल्य के 5 प्रतिशत से कम न हो) का भुगतान करना जो कि उपभोक्ता कल्याण कोष अथवा अन्य किसी संगठन/व्यक्ति के पास जमा की जाए जिसका प्रयोग निर्धारित रूप में हो।

(xi) गुमराह करने वाले विज्ञापन के प्रभाव को समाप्त करने के लिए संशोधित विज्ञापन जारी करना।

(xii) उचित पक्ष को पर्याप्त लागत का भुगतान करना।

प्रदर्श में कुछ एेसे मामले से संबंधित फैसले दिए हैं जिनमें उपभोक्ता अदालत में दोषपूर्ण वस्तु एवं अपर्याप्त सेवाओं के विरुद्ध शिकायत की गई थी।

CERS ने रेलवे के विरुद्ध मुकदमा जीता

उपभोक्ता शिक्षण एवं अनुसंधान समिति (CERS), अहमदाबाद एवं एक वरिष्ठ युगल द्वारा दायर मुकदमें में उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, अहमदाबाद शहर ने रेलवे को लापरवाही के लिए उत्तरदायी ठहराया तथा युगल को 2,000 रुपए का भुगतान मानसिक कष्ट के लिए एवं 3,000 रुपए का भुगतान लागत के लिए करने का निर्देश दिया।

मनमोहन सिंह एवं उनकी पत्नी कमलेश ने 2 दिसंबर 2001 को नई दिल्ली से कानपुर सेंट्रल शताब्दी एक्सप्रेस की यात्रा के लिए अहमदाबाद से रेलवे यात्रा एवं आरक्षण टिकट खरीदी। टिकट पर विस्तृत वर्णन जैसे कोच संख्या, यात्रा तिथि आदि पढ़ने में नहीं आ रही थी। इसीलिए मजबूरन उन्होंने नई दिल्ली से कानपुर की यात्रा के लिए एक और टिकट खरीदी। उन्होंने पहली टिकट की राशि वापिस माँगी। लेकिन, जैसा फोरम ने लिखा, इसके लिए उन्हें बहुत कष्ट सहना पड़ा। यद्यपि युगल ने वापसी के भुगतान को उनके अहमदाबाद के घर के पते पर भेजने के लिए लिखा था फिर भी रेलवे ने उसे उनके दिल्ली के पते पर भेज दिया। उन्होंने सी.ई.आर.एस. (CERS) से सहायता माँगी।

सी.ई.आर.एस. (CERS) ने उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम अहमदाबाद शहर में रेलवे के विरुद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2 (1) (जी) एवं 2 (1) (0) के अंतर्गत शिकायत की। सी.ई.आर.एस. (CERS) का दावा था कि दो वरिष्ठ नागरिकों को रेलवे द्वारा प्रदत्त अपर्याप्त सेवा के कारण मानसिक उत्पीड़न हुआ। रेलवे का तर्क था कि अन्य बातों के अतिरिक्त टिकट के रद्द कर दिये जाने के पश्चात् यह फोरम के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गया, कानून की दृष्टि से युगल उपभोक्ता नहीं थे, शिकायत समय अवरुद्ध थी तथा राशि की वापसी के लिए शिकायत को सुनने के लिए रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल उचित फोरम है।

लेकिन फोरम का मानना था कि युगल को जो कष्ट सहना पड़ा वह रेलवे की अपर्याप्त सेवा है तथा आदेश दिया कि युगल ने जो मानसिक कष्ट सहा है उसके लिए 2,000 रुपए तथा 3,000 रुपए लागत के रूप में भुगतान किया जाए। फोरम ने राशि की वापसी के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया जिसके लिए उसने कहा कि, "इसका फैसला केवल रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल करेगा।"

स्रोत- www.corecentre.org

उपभोक्ता संगठनों एवं गैर सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका

भारत में उपभोक्ता के संरक्षण एवं प्रवर्तन के लिए कई उपभोक्ता संगठन एवं गैर सरकारी संगठनों (NGOs) की स्थापना की गई है। गैर सरकारी संगठन एेसे गैर लाभ संगठन हैं जो लोगों के कल्याण के प्रवर्तन के लिए हैं। इनका अपना संविधान होता है तथा सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। उपभेक्ता संगठन एवं गैर सरकारी संगठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षार्थ कई कार्य करते हैं। ये इस प्रकार हैं–

(i) प्रशिक्षण कार्यक्रम, सैमीनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन कर जनसाधारण को उपभोक्ताओं के अधिकारों के संबंध में शिक्षित करना।

(ii) उपभोक्ता की समस्याओं, कानूनी रिपोर्ट देना, राहत तथा हित में कार्यों के संबंध में ज्ञान प्रदान करने के लिए पाक्षिक एवं अन्य प्रकाशनों का प्रकाशन करना।

(iii) प्रतियोगी ब्रांड के गुणों की तुलनात्मक जाँच के लिए प्रमाणित प्रयोगशालाओं में उपभोक्ता उत्पादों की जाँच कराना तथा उपभोक्ताओं के लाभ के लिए इनके परिणामों को प्रकाशित करना।

(iv) बेईमान, शोषणकर्ता एवं अनुचित व्यापारिक क्रियाएँ करने वाले विक्रेताओं का प्रतिवाद करना एवं उनके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करना।

(v) सहायता प्रदान कर, कानूनी सलाह देकर कानूनी निदान के लिए उपभोक्ता को कानूनी सहायता प्रदान करना।

(vi) उपभोक्ताओं की ओर से उपयुक्त उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराना।

(vii) उपभोक्ता अदालतों में किसी व्यक्ति के हित में नहीं बल्कि जनसाधारण के हित में मुकदमा करने में पहल करना।

कुछ महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता संगठन एवं गैर-सरकारी संघटन (NGOs) उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं अथवा उनका प्रवर्तन कर रहे हैं वे निम्नलिखित हैं–

(i) उपभोक्ता समंवय परिषद्, दिल्ली।

(ii) कॉमन कॉज, दिल्ली।

(iii) उपभोक्ता शिक्षण हितार्थ स्वयंसेवी संगठन (VOICE), दिल्ली।

(iv) उपभोक्ता शिक्षण एवं अनुसंधान केेंद्र(CERC), अहमदाबाद।

(v) उपभोक्ता संरक्षण परिषद् (CPC), अहमदाबाद।

(vi) कंज्यूमर गाइडैंस सोसाइटी अॉफ इंडिया, (CGSI) मुंबई।

(vii) मुंबई ग्राहक पंचायत, मुंबई।

(viii) कर्नाटक उपभोक्ता सेवा समिति, बैंगलोर।

(ix) उपभोक्ता संगठन, कोलकाता।

(x) कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी, (CUTS) जयपुर

प्रदर्श दर्शाता है कि किस प्रकार से एक CERS युगल एक उपभोक्ता संगठन की सहायता से रेलवे द्वारा अपर्याप्त सेवा प्रदान करने पर उसके विरुद्ध मुकदमें में जीत प्रदान करने में सफल रहा।

मुख्य शब्दावली

उपभोक्ता संरक्षण           उपभोक्ता अधिकार             उपभोक्ता दायित्व

निवारण                        श्रेणी (ग्रेड)                            मानक

सारांश

उपभोक्ता संरक्षण का महत्त्व– उपभोक्ताओं के लिए उपभोक्ता संरक्षण का महत्त्व इसलिए है क्योंकि उपभोक्ता अज्ञानी हैं, असंगठित हैं एवं विक्रेता उनका शोषण करते हैं। उपभोक्ता व्यवसाय के लिए संरक्षण इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि (i) यह दीर्घ अवधि में भी व्यवसाय के हित में है, (ii) व्यवसाय समाज के संसाधनों का उपयोग करते हैं (iii) यह व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व है (iv) इसका नैतिकता की दृष्टि से औचित्य है (v) इससे व्यवसाय के कार्य संचालन में सरकारी हस्तक्षेप से बचा जा सकता है।

उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण– भारतीय कानूनी ढाँचा में उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए कई कानून सम्मिलित हैं। वे हैं (i) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986, (ii) प्रसंविदा अधिनियम, 1982 (iii) वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 (iv) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (v) कृषि उत्पाद (श्रेणीकरण एवं चिह्नांकन) अधिनियम, 1937 (vi) खाद्य मिलावट अधिनियम, 1954 (vii) भार एवं माप मानक अधिनियम, 1976 (viii) ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 (ix) प्रतियोगिता अधिनियम, 2002 (x) भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 1986 ।

उपभोक्ता के अधिकार– उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ता को छः अधिकार दिए गए हैं। ये हैं– (i) सुरक्षा का अधिकार (ii) सूचना का अधिकार (iii) चयन का अधिकार (iv) शिकायत का अधिकार (v) शिकायत निवारण का अधिकार (vi) उपभोक्ता शिक्षण का अधिकार।

उपभोक्ता के दायित्व– वस्तु एवं सेवाओं के क्रय-विक्रय एवं उपभोग के समय अधिकारों के साथ-साथ उपभोक्ता को अपने दायित्वों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

उपभोक्ता संरक्षण के मार्ग एवं माध्यम– उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को पाने के लिए कई तरीके हैं, इनमें सम्मिलित हैैं– (i) व्यवसाय का स्वयं नियमन (ii) व्यवसाय संगठन (iii) उपभोक्ता जागरुकता (iv) उपभोक्ता संगठन (v) सरकार।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत निवारण एजेंसियाँ– उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में जिला स्तर, राज्य स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर तीन स्तरीय प्रवर्तन व्यवस्था का प्रावधान है। इन्हें जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग कहा जाता है। इस अधिनियम द्वारा उपभोक्ता को कई प्रकार की राहत दी गई है। उपर्युक्त उपभोक्ता अदालत वस्तुओं के दोषों को दूर करने में, दोषपूर्ण उत्पाद के स्थान पर दूसरी वस्तु देने, वस्तु के मूल्य को लौटाने का आदेश दे सकती है।

उपभोक्ता संगठन एवं गैर सरकारी संगठन NGOs– भारत में कई उपभोक्ता संगठन एवं गैर-सरकारी संगठन (NGOs) उपभोक्ताओं के संरक्षण एवं उनके हितों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाते हैं। 



अभ्यास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. किस उपभोक्ता अधिकार के अंतर्गत एक व्यापारिक फर्म को उपभोक्ता शिकायत कक्ष स्थापित करना आवश्यक है?

2. कृषि उत्पादों के लिए कौन-सा गुणवत्ता प्रमाणीकरण चिन्ह उपयोग किया जाता है?

3. राज्य आयोग में दायर किए जा सकने वाले मामलों का अधिकार क्षेत्र क्या है?

4. सी.पी.ए. के तहत उपभोक्ताओं को उपलब्ध दो राहत बताएँ।

5. उत्पाद मिश्र के घटक का नाम दें, जो ग्राहकों को सूचना का अधिकार का प्रयोग करने में मदद करता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा में भारत सरकार द्वारा पारित विभिन्न अधिनियमों पर संक्षिप्त चर्चा करें।

2. उपभोक्ता के दायित्व क्या हैं?

3. उपभोक्ता अदालत में शिकायत कौन दर्ज कर सकता है?

4. एफ.एस.एस.ए.आई. (भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण) ने होटलों और अन्य खाद्य दुकानों को प्रस्तावित किया कि वे अपनी व्यंजन सूची में प्रत्येक खाद्य सामग्री में प्रयोग किए जाने वाले तेल/वसा का विवरण दें। इस प्रस्ताव के द्वारा किस उपभोक्ता अधिकार को सशक्त किया जा रहा है? नाम बताएँ और व्याख्या करें।

5. सी.पी.ए. के अनुसार उपभोक्ता कौन है?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. व्यापार के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण के महत्व की व्याख्या करें।

2. उपभोक्ता के अधिकारों और दायित्वों की व्याख्या करें।

3. उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को किन विभिन्न तरीकों से हासिल किया जा सकता है? इस संबंध में उपभोक्ता संगठनों और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका की व्याख्या करें।

4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ताओं को उपलब्ध निवारण तंत्र की व्याख्या करें।

5. उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और संवर्धन में उपभोक्ता संगठनों और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका की व्याख्या करें।

6. श्रीमती माथुर ने जनवरी 2018 में एक कपड़ा धुलाई की दुकान में जैकेट भेजा। जैकेट की कीमत ₹ 4,500 थी। उन्होंने पहले भी शाइन ड्राई क्लीनर्स को अपना जैकेट ड्राईक्लीन के लिए भेजा था और जैकेट को अच्छी तरह से साफ भी किया गया था। हालांकि, इस बार उन्होंने देखा कि उनके जैकेट में स.फेद निशान थे। ड्राई क्लीनर को सूचित करने के बाद, श्रीमती माथुर को एक पत्र प्राप्त हुआ जो जैकेट पर आए स.फेद धब्बों की पुष्टि करता था जो जैकेट को ड्राईक्लीन करने के बाद आए थे। उन्होंने ड्राई क्लीनर से कई बार संपर्क किया और अपने स.फेद धब्बों वाले जैकेट के लिए मुआवजे का अनुरोध किया लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

उपभोक्ता अदालत के हस्तक्षेप पर, शाइन ड्राई क्लीनर्स धब्बेदार जैकेट के लिए श्रीमती माथुर को ₹2,500 की क्षतिपूर्ति करने पर सहमत हुआ।

(i) पहली बार श्रीमती आर्थर द्वारा किस अधिकार का प्रयोग किया गया था?

(ii) उस अधिकार की नाम सहित व्याख्या करें जिसने श्रीमती माथुर को मुआवजे का लाभ उठाने में मदद की।

(iii)उपर्युक्त मामले में श्रीमती माथुर द्वारा कौन-सी उपभोक्ता उत्तरदायित्व पूरा किया गया?

(iv)उपभोक्ताओं द्वारा ग्रहण किए जाने वाले कोई अन्य दो उत्तरदायित्व बताएँ।

परियोजना

1. अपने शहर के एक उपभोक्ता संगठन का भ्रमण करें। इसके द्वारा किए गए विभिन्न कार्यों को सूचीबद्ध करें।

2. समाचार-पत्रों से कुछ उपभोक्ता मामलों और इन पर आए निर्णयों की कतरनें एकत्र करें।

नोट