अध्याय 2

बाज़ार संतुलन 

यह अध्याय, अध्याय 2 तथा 4 की नींव पर आधारित है, जिनमें हमने उपभोक्ता तथा फर्म के व्यवहार को कीमत–स्वीेकारक के रूप में अध्ययन किया है। अध्याय 2 में हमने देखा कि किसी वस्तु के लिए एक व्यक्ति विशेष की माँग वक्र हमें वस्तु की उस मात्रा को बताती है, जिसे एक उपभोक्ता विभिन्न कीमतों पर खरीदने को इच्छुक हैं, जबकि कीमत दी हुई है। बाज़ार माँग वक्र हमें बताती है कि समस्त उपभोक्ता मिलकर विभिन्न कीमतों पर वस्तु की कितनी मात्रा खरीदने के इच्छुक हैं, जबकि प्रत्येक के लिए कीमत दी हुई है। अध्याय 4 में हमने देखा कि एक व्यक्तिगत फर्म का पूर्ति वक्र हमें एक वस्तु की उस मात्रा को बताता है जिसे कि एक लाभ-अधिकतम करने वाली फर्म विभिन्न कीमतों पर बेचने को इच्छुक होगी, जबकि कीमत दी हुई है तथा बाज़ार पूर्ति वक्र हमें विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की उस मात्रा को बताती है, जिसे सभी फर्में सम्मिलित रूप से पूर्ति करने की इच्छुक होंगी, जबकि प्रत्येक फर्म के लिए कीमत दी हुई है।

इस अध्याय में हम उपभोक्ताओं तथा फर्मों दोनों के व्यवहार को सम्मिलित करके माँग-पूर्ति विश्लेषण द्वारा बाज़ार संतुलन तथा किस कीमत पर संतुलन होगा, का अध्ययन करेंगे। हम संतुलन पर माँग तथा पूर्ति में शिफ्टों के प्रभावों का भी परीक्षण करेंगे। अध्याय के अंत में हम माँग-पूर्ति विश्लेषण के कुछ अनुप्रयोगों को भी देखेंगे।

5.1 संतुलन, अधिमाँग, अधिपूर्ति

एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में स्वहित के उद्देश्यों से कार्य करने वाले क्रेता तथा विक्रेता होते हैं। अध्याय 2 तथा 4 में आपने देखा कि उपभोक्ताओं का उद्देश्य अपने-अपने अधिमान को अधिकतम करना तथा फर्माें का उद्देश्य अपने-अपने लाभों को अधिकतम करना है। संतुलन की अवस्था में उपभोक्ता तथा फर्म दोनों के उद्देश्य संगत होते हैं।

संतुलन को एक एेसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ बाज़ार में सभी उपभोक्ताओं तथा फर्माें की योजनाएँ सुमेलित हो जाती हैं और बाज़ार रिक्त हो जाता है। संतुलन की स्थिति में जिस कुल मात्रा का विक्रय करने की सभी फर्में इच्छुक हैं; वह उस मात्रा के बराबर होता है जिसे बाज़ार में सभी उपभोक्ता खरीदने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, बाज़ार पूर्ति, बाज़ार माँग के बराबर होती है। एेसी स्थिति में बाज़ार रिक्त हो जाता है और न ही फर्म और न ही उपभोक्ता विचलित होना चाहते हैं। जिस कीमत पर संतुलन स्थापित होता है उसे संतुलन कीमत कहते हैं तथा इस कीमत पर खरीदी तथा बेची गई मात्रा संतुलन मात्रा कहलाती है। अतः (p*,q*) एक संतुलन है यदि pD (p*) = qS (p*)

जहाँ p* संतुलन कीमत को तथा qD (p*) और qS (p*), p* कीमत पर क्रमशः वस्तुओं के बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति को दर्शाते हैं।

यदि किसी कीमत पर बाज़ार पूर्ति, बाज़ार माँग से अधिक है, तो उस कीमत पर बाज़ार में अधिपूर्ति कहलाती है तथा यदि उस कीमत पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति से अधिक है, तो उस कीमत पर बाज़ार में अधिमाँग कहलाती है। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन को वैकल्पिक रूप में शून्य अधिमाँग-शून्य अधिपूर्ति स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जब कभी बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग के समान नहीं हो और इसलिए बाज़ार में संतुलन नहीं हो, तो कीमत में परिवर्तन की प्रवृत्ति होगी।

अगले दो खंडों में हम यह समझने का प्रयत्न करेंगे कि इस परिवर्तन की व्युत्पत्ति कैसे हुई है।

संतुलन से बाह्य व्यवहार

एड्म स्मिथ के समय (1723-1790) से यह मान्यता रही है कि जब भी बाज़ार में असंतुलन होता है, तो पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक ‘अदृश्य हाथ’ कीमतों में परिवर्तन कर देता है। हमारी अंतर्दृष्टि भी यह कहती है कि अदृश्य हाथ, अधिमाँग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि तथा अधिपूर्ति की स्थिति में कीमतों में कमी करेगा। संपूर्ण विश्लेषण में हमारी यह मान्यता रहेगी कि इस ‘अदृश्य हाथ’ की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके अतिरिक्त हम यह भी मानेंगे कि इस प्रक्रिया के द्वारा ‘अदृश्य हाथ’ संतुलन स्थापित करता है। यह मान्यता इस पुस्तक में सभी चर्चाओं में रहेगी।

5.1.1 बाज़ार संतुलनः फर्मों की स्थिर संख्या

आपको याद होगा, अध्याय 2 में हमने कीमत–स्वीकारक उपभोक्ताओं के लिए बाज़ार माँग वक्र तथा अध्याय 4 में कीमत–स्वीकारक फर्माें की स्थिर संख्या की मान्यता पर बाज़ार पूर्ति वक्र की व्युत्पत्ति की है। इस खण्ड में फर्मों की स्थिर संस्था के आधार पर इन दो वक्रों की सहायता से यह देखेंगे कि पूर्ति तथा माँग शक्तियाँ किस प्रकार बाज़ार में संतुलन के निर्धारण के लिए एक साथ कार्य करती है। हम यह भी अध्ययन करेंगे कि किस प्रकार माँग तथा पूर्ति वक्रों में शिफ्ट के कारण संतुलन कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन होता है।

रेखाचित्र 5.1 स्थिर संख्या फर्माें वाले एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन दर्शाता है। यहाँ किसी वस्तु के लिए SS बाज़ार पूर्ति वक्र को तथा DD बाज़ार माँग वक्र को दर्शाता है। बाज़ार पूर्ति वक्र SS वस्तु की उस मात्रा को दर्शाता है, जिसकी पूर्ति विभिन्न कीमतों पर फर्में करने की इच्छुक होती हैं और माँग वक्र DD उस मात्रा को दर्शाता है, जिसकी माँग विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता करने के इच्छुक हैं।

ग्राफीय रूप में संतुलन एक बिन्दु है, जहाँ बाज़ार पूर्ति वक्र बाज़ार माँग वक्र को परिच्छेदित करता है, क्योंकि यह वह बिन्दु है जिस पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति के बराबर है। किसी भी अन्य बिन्दु पर या तो अधिपूर्ति है या अधिमाँग है। यह देखने के लिए कि किसी दी हुई कीमत पर बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग के बराबर न होने पर क्या होता है, आइए रेखाचित्र 5.1 पर दृष्टि डालें, जहाँ किसी भी कीमत पर समानता नहीं होती।

फर्मों की स्थिर संख्या की स्थिति में बाज़ार संतुलनः बाज़ार माँग वक्र DD तथा बाज़ार पूर्ति वक्र SS प्रतिच्छेदन बिन्दु संतुलन दर्शाता है। संतुलन मात्रा q* है तथा संतुलन कीमत p* है। p* की तुलना में अधिक कीमत पर अधिपूर्ति होगी तथा p* की तुलना में कम कीमत पर अधिमाँग होगी।

रेखाचित्र 5.1 में यदि प्रचलित कीमत p1 है, तो बाज़ार माँग q1 है, जबकि बाज़ार पूर्ति q1 है अतः बाज़ार में q'1 q1 के बराबर अधिमाँग है। कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में या तो पूर्ण रूप से असमर्थ हैं अथवा इसे अपर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर पाते हैं, वे p1 से अधिक कीमत चुकाने को तत्पर होंगे। बाज़ार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी अन्य बातें समान रहने पर जैसे-जैसे कीमत में वृद्धि होती है, माँग की मात्रा में गिरावट आती है, पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है तथा बाज़ार एक एेसे बिन्दु की ओर अग्रसर होता है, जहाँ फर्म द्वारा विक्रय करने के लिए इच्छित मात्रा उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाली इच्छित मात्रा के बराबर होती है। p* पर एक फर्म के पूर्ति निर्णय उपभोक्ताओं के माँग निर्णय से मेल खाते हैं। इसी प्रकार यदि प्रचलित कीमत p2 है, तो उस कीमत पर बाज़ार पूर्ति (q2) बाज़ार माँग (q'2) से अधिक है जो q'2q2 के बराबर अधिपूर्ति को दर्शाती है। एेसी स्थिति में, कुछ फर्में अपनी इच्छित मात्रा के अनुरूप विक्रय करने में असमर्थ होंगी। अतः वे अपनी कीमत घटाएँगी। अन्य बातें समान रहने पर, जैसे-जैसे कीमत घटती है, वस्तु की माँगी गई मात्रा में वृद्धि होती है, पूर्ति की मात्रा घटती है तथा p* कीमत पर फर्म अपना इच्छित उत्पादन बेच पाती है, क्योंकि इस कीमत पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति के बराबर है। इसलिए p* संतुलन कीमत है और उससे संबंधित मात्रा q* संतुलन मात्रा है।

संतुलन कीमत तथा मात्रा के निर्धारण को अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिए आइए, एक उदाहरण लेते हैंः

उदाहरण 5.1

आइए, एक एेसे बाज़ार का उदाहरण लेते हैं जिसमें समान गुणवत्ता वाले गेहूँ का उत्पादन करने वाले समरूपी1 खेत हों। मान लीजिए गेहूँ के लिए बाज़ार माँग वक्र तथा बाज़ार पूर्ति वक्र निम्न प्रकार हैं–

qD = 200 p क्योंकि 0 < p < 200

= 0 क्योंकि p > 200

qs = 120 + p क्योंकि p > 10

= 0 क्योंकि 0 < p < 10

जहाँ qD तथा qS गेहूँ के लिए (किलोग्राम में) क्रमशः माँग तथा पूर्ति को दर्शाते हैं तथा p गेहूँ की प्रति किलोग्राम कीमत रुपयों में दर्शाता है। क्योंकि संतुलन कीमत पर बाज़ार रिक्त हो जाता है। हम बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति को बराबर करके संतुलन कीमत (p* द्वारा प्रदर्शित) ज्ञात करते हैं तथा (p*) के लिए हल करते हैं।

qD (p*) = qs (p*)

200 p* = 120 + p*

आँकड़ों को पुनः व्यवस्थित करके

2p* = 80

p* = 40

1 यहाँ समरूपी से हमारा अर्थ है कि सभी खेतों की लागत संरचना समान है।

अतः गेहूँ की संतुलन कीमत 40 रुपये प्रति किलोग्राम है। संतुलन कीमत को माँग अथवा पूर्ति वक्र के समीकरण में प्रतिस्थापित करके संतुलन मात्रा (q* द्वारा दर्शायी गई ) प्राप्त की जाती है चूँकि संतुलन की अवस्था में, माँग तथा पूर्ति दोनों की मात्रा बराबर होती हैं।

qD = q* = 200 40 = 160

वैकल्पिक रूप से,

qs = q* = 120 + 40 = 160

अतः संतुलन मात्रा 160 किलोग्राम है।

p* की तुलना में कम कीमत पर, मान लो, p1 = 25,

qD = 200 25 = 175

qS = 120 + 25 =145

अतः p1 = 25 पर, qD > qS जिससे अभिप्राय है कि इस कीमत पर अधिमाँग है। बीजगणितीय रूप में, अधिमाँग (ED) इस प्रकार दर्शाया जा सकता है–

ED (p) = qD qs

= 200 p (120 + p)

= 80 2p

ध्यान दीजिए, उपर्युक्त अभिव्यक्ति से स्पष्ट है कि p* (= 40) से कम किसी भी कीमत के लिए, अधिमाँग सकारात्मक होगी। इसी प्रकार, p* से अधिक कीमत पर, मान लो p2 = 45

qD = 200 45 = 155

qs = 120 + 45 = 165

अतः इस कीमत पर qS > qD अर्थात् अधिपूर्ति है। बीजगणितीय रूप में, अधिपूर्ति (ES) इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है–

ES (p) = qS qD

= 120 + p (200 p)

= 2 p 80

ध्यान दीजिए, उपर्युक्त अभिव्यक्ति से यह स्पष्ट है कि p* (= 40) से अधिक किसी भी कीमत के लिए, अधिपूर्ति सकारात्मक होगी।

अतः p* से अधिक किसी भी कीमत पर अधिपूर्ति तथा p* से कम किसी भी कीमत पर अधिमाँग होगी।

श्रम बाज़ार में मज़दूरी निर्धारण

यहाँ हम माँग-पूर्ति विश्लेषण के द्वारा एक पूर्णतः प्रतिस्पर्धी बाज़ार संरचना में मजदूरी निर्धारण के सिद्धांत की संक्षिप्त में विवेचना करेंगे। एक श्रम बाज़ार तथा वस्तुओं के बाज़ार में मूलभूत अंतर पूर्ति तथा माँग के स्रोत के संदर्भ में है। श्रम बाज़ार में श्रम की पूर्ति करने वाले घर-परिवार हैं तथा श्रम की माँग फर्मों से आती है, जबकि वस्तुओं के बाज़ार में स्थिति इसकेे बिल्कुल विपरीत है। यहाँ यह इंगित करना महत्त्वपूर्ण है कि श्रम का अभिप्राय, श्रमिकों द्वारा किए गए कार्य के घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से। मज़दूरी दर का निर्धारण श्रम के लिए माँग तथा पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिंदु पर होता है, जहाँ श्रम की माँग तथा पूर्ति संतुलन में हो। अब हम देखेंगे कि मज़दूर की माँग तथा पूर्ति वक्र कैसे दिखाई देते हैं।

एक अकेली फर्म द्वारा श्रम की माँग की जाँच के लिए हम यह मान लेते हैं कि श्रम, उत्पादन का अकेला परिवर्ती कारक है और श्रम बाज़ार में पूर्ण प्रतिस्पर्धा है तथा इसका यह अर्थ है कि प्रत्येक फर्म के लिए मज़दूरी दर दी हुई है। जिस फर्म के विषय में हम चर्चा कर रहे हैं, वह भी स्वभाव से पूर्ण प्रतिस्पर्धी है तथा लाभ-अधिकतम करने के उद्देश्य से उत्पादन करती है। हम यह भी मान कर चलते हैं कि फर्म की उपलब्ध प्रौद्योगिकी पर ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम लागू होता है।

लाभ–अधिकतमकर्ता होने के कारण फर्म सदा, उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी, जिस पर श्रम की अन्तिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने के अतिरिक्त लागत मज़दूरी दर (w) है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमांत उत्पाद L तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमांत संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमांत संप्राप्ति तथा सीमांत उत्पाद के गुणनफल के बराबर है। इसे श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पादL कहते हैं। अतः फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है जहाँ,

w = श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद

तथा श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद = सीमांत संप्राप्ति × श्रम का सीमांत उत्पाद

क्योंकि हम एक पूर्णतः प्रतिस्पर्धी फर्म का अध्ययन कर रहे हैं, सीमांत संप्राप्ति वस्तुa की कीमत के बराबर है तथा इस स्थिति में श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य के बराबर है।

जब तक श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मज़दूरी दर से अधिक है, फर्म श्रम की एक अतिरिक्त इकाई का उपयोग करके अधिक लाभ अर्जित कर सकती है तथा यदि श्रम उपयोग के किसी भी स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मज़दूरी दर की तुलना में कम है, तो फर्म श्रम की एक इकाई कम करके अपने लाभ में वृद्धि कर सकती है।

ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम की मान्यता पर फर्म मज़दूरी दी गई = श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य पर ही सदैव उत्पादन करती है, इसका यह अभिप्राय है कि श्रम के लिए माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली है। यह समझाने के लिए कि एेसा क्यों है, आइए मान लेते हैं कि किसी मज़दूरी दर w1 पर श्रम के लिए माँग l1 है। अब मान लीजिए कि मज़दूरी दर बढ़कर w2 हो जाती है। मज़दूरी-श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य में समानता बनाए रखने के लिए श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य में भी वृद्धि होनी चाहिए, वस्तु की कीमत स्थिरb रहते हुए। यह तभी सम्भव है, जब श्रम के सीमांत उत्पाद में वृद्धि हो, जिससे अभिप्राय है कि श्रम की ह्रासमान सीमांत उत्पादकता के कारण कम श्रम का उपयोग किया जाये। अतः ऊँची मज़दूरी दर पर कम श्रम की माँग होती है, जिसके परिणामस्वरूप माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली हो जाती है।

व्यक्तिगत फर्मों की माँग वक्रों से बाज़ार माँग वक्र ज्ञात करने के लिए हम साधारणतः विभिन्न मज़दूरी की दरों पर व्यक्तिगत फर्मों द्वारा श्रम की माँग को जोड़ देते हैं। यद्यपि प्रत्येक फर्म मज़दूरी बढ़ने पर कम श्रम की माँग करती है, बाज़ार माँग वक्र भी नीचे की ओर प्रवणता वाली होती है।

मज़दूरी एक एेसे बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ श्रम माँग तथा श्रम पूर्ति वक्र एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित करते हैं।

aअध्याय 4 में पूर्ण प्रतिस्पर्धी फर्म के लिए सीमांत संप्राप्ति, कीमत के बराबर होती है।

माँग पक्ष के अन्वेषण के पश्चात् अब हम पूर्ति पक्ष पर आते हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि किसी दी हुई मज़दूरी दर पर कितनी श्रम-पूर्ति की जानी चाहिए, इसका निर्धारण घर-परिवार करते हैं। उनके पूर्ति का निर्णय अनिवार्य रूप से आय तथा अवकाश के बीच एक चयन है। एक ओर, व्यक्ति अवकाश में रहना चाहता है क्योंकि वे कार्य को बोझिल मानते हैं तथा दूसरी ओर वे आय को महत्त्व देते हैं, जिसके लिए उन्हें कार्य करना पड़ता है।

अतः अवकाश का आनंद उठाने तथा अधिक घंटों तक कार्य करने के मध्य एक अदला-बदली होती है। एक व्यक्ति-विशेष के श्रम पूर्ति वक्र की व्युत्पत्ति के लिए, हम मान लेते हैं कि किसी मज़दूरी दर w1 पर एक व्यक्ति l1 श्रम इकाइयों की पूर्ति करता है। अब मान लीजिए कि मज़दूरी दर बढ़कर W2 हो जाती है। मज़दूरी दर में इस वृद्धि के दो प्रभाव होंगेः पहला, मज़दूरी दर में वृद्धि के कारण अवकाश की अवसर लागत में वृद्धि होगी, जो अवकाश को अधिक महँगा बना देगी। अतः व्यक्ति-विशेष अवकाश में रहना कम पसंद करेगा। इसके परिणामस्वरूप, वे अधिक घंटे कार्य करेंगे। दूसरा, मज़दूरी दर में w2 तक वृद्धि के कारण व्यक्ति की क्रय शक्ति में वृद्धि हो जाती है। अतः वह अवकाशजनित क्रियाओं पर अधिक खर्च करना चाहेगा। इन दोनों प्रभावों में से जो अधिक प्रबल होगा, मज़दूरी दर में वृद्धि का अंतिम प्रभाव उसी पर निर्भर करेगा। कम मज़दूरी दर पर प्रथम प्रभाव, द्वितीय प्रभाव से प्रबल रहता है तथा इसलिए व्यक्ति की इच्छा मज़दूरी दर में प्रत्येक वृद्धि के साथ अधिक श्रम की पूर्ति करने की होगी। परन्तु ऊँची मज़दूरी दर पर द्वितीय प्रभाव, प्रथम प्रभाव से प्रबल रहता है तथा व्यक्ति-विशेष मज़दूरी दर में प्रत्येक वृद्धि पर कम श्रम की पूर्ति करेगा। इस प्रकार हमें पीछे की ओर झुकने वाला विशिष्ट श्रम पूर्ति वक्र प्राप्त होती है, जो यह दर्शाती है कि एक निश्चित मज़दूरी दर तक मज़दूरी में प्रत्येक वृद्धि के साथ श्रम की पूर्ति में वृद्धि होती है। इस मज़दूरी दर के बाद, मज़दूरी दर में प्रत्येक वृद्धि से श्रम की पूर्ति घट जाएगी। तथापि, श्रम का बाज़ार पूर्ति वक्र, जिसे हम विभिन्न मज़दूरी दर पर व्यक्तियों की पूर्ति को जोड़ कर प्राप्त करते हैं, ऊपर की ओर प्रवणता लिए होगी, क्योंकि ऊँची मज़दूरी पर भी कुछ व्यक्ति कम कार्य करने के इच्छुक होंगे, अधिक व्यक्ति श्रम की अधिक पूर्ति करने के लिए आकर्षित होंगे?

एक ऊपर की ओर प्रवणता वाली पूर्ति वक्र तथा नीचे की ओर प्रवणता वाली माँग वक्र द्वारा संतुलन मज़दूरी दर उस बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ ये दोनों वक्र एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित करते हैं; दूसरे शब्दों में, वहाँ परिवारों द्वारा श्रम की पूर्ति फर्मों द्वारा श्रम की माँग के बराबर होती है। यह निम्नलिखित आरेख में दर्शाया गया है।

bचूँकि फर्म पूर्ण प्रतिस्पर्धी है, अतः एेसा माना जाता है कि यह वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है।

माँग तथा पूर्ति में शिफ्ट

ऊपर के खंड में हमने बाज़ार संतुलन का अध्ययन इस मान्यता के साथ किया कि उपभोक्ताओं की रुचियों तथा अधिमानों, संबंधित वस्तुओं की कीमतें, उपभोक्ताओं की आय, प्रौद्योगिकी, बाज़ार का आकार, उत्पादन में प्रयोग होने वाली आगतों की कीमतें आदि स्थिर रहती हैं। तथापि, इनमें से एक अथवा अधिक कारकों में परिवर्तनों के साथ या तो पूर्ति वक्र अथवा माँग वक्र अथवा दोनों ही संतुलन कीमत तथा मात्रा को प्रभावित करते हुए शिफ्ट हो सकते हैं। यहाँ हम पहले एक सामान्य सिद्धांत का विकास करेंगे, जो संतुलन पर इन शिफ्टों का प्रभाव बताएगा और तत्पश्चात् संतुलन पर उपर्युक्त कुछ कारकों में परिवर्तनों के प्रभावों की विवेचना करेंगे।

माँग शिफ्ट

रेखाचित्र 5.2 पर विचार कीजिए, जिसमें फर्मों की संख्या स्थिर होने पर माँग शिफ्ट का प्रभाव दर्शाया गया है। यहाँ आरंभिक संतुलन बिन्दु E है, जहाँ बाज़ार माँग वक्र DD0 तथा बाज़ार पूर्ति वक्र SS0 एक-दूसरे को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती हैं कि q0 तथा p0 क्रमशः संतुलन मात्रा तथा कीमत को दर्शाते हैं।

मान लीजिए कि बाज़ार माँग वक्र, पूर्ति वक्र के SS0 पर स्थिर रहने पर दायीं ओर DD2 पर शिफ्ट हो जाता है, जैसा कि पैनल (a) में दर्शाया गया है। यह शिफ्ट बताता है कि किसी भी कीमत पर माँगी गई मात्रा पहले से अधिक है। इसलिए p0 कीमत पर अब बाज़ार में q0q''0 के बराबर अधिमाँग है। इस अधिमाँग के कारण कुछ व्यक्ति ऊँची कीमत पर भुगतान करने को तैयार होंगे और कीमत में बढ़ने की प्रवृत्ति होगी। नया संतुलन G बिन्दु पर होगा जहाँ संतुलन मात्रा q2, q0 से अधिक है और संतुलन कीमत p2, p0 से अधिक है।


माँग में शिफ्ट: आरंभ में, बाज़ार संतुलन E पर है। माँग के दायीं ओर शिफ्ट के कारण नया संतुलन G पर है, जैसा कि पैनल (a) में दर्शाया गया है तथा बायीं ओर शिफ्ट के कारण नया संतुलन F पर है, जैसा कि पैनल (b) में दर्शाया गया है। दायीं ओर शिफ्ट के साथ संतुलन मात्रा तथा कीमत में वृद्धि होती है, जबकि बायीं ओर शिफ्ट के साथ संतुलन मात्रा तथा कीमत में गिरावट आती है।

इसी प्रकार, जैसा पैनल (b) में दर्शाया गया है, यदि माँग वक्र DD1 पर बायीं ओर शिफ्ट हो जाता है, तो किसी भी कीमत पर माँग की मात्रा शिफ्ट से पहले की तुलना में कम होगी। अतः आरंभिक संतुलन कीमत p0 पर अब बाज़ार में q'0q0 के बराबर अधिपूर्ति है, जिसके कारण कुछ फर्में अपनी वस्तु की कीमत कम कर देंगी ताकि वे वस्तु की इच्छित मात्रा का विक्रय कर सकें। नया संतुलन बिन्दु F पर है, जिस पर माँग वक्र DD1 तथा पूर्ति वक्र SS0 परस्पर प्रतिच्छेद करते हैं तथा परिणामस्वरूप संतुलन कीमत p1,p0 की तुलना में कम है एवं मात्रा q1,q0 से कम है। ध्यान दीजिए कि जब माँग वक्र शिफ्ट होती है, तो संतुलन कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन की दिशा समान है।

एक सामान्य सिद्धांत के विकास के पश्चात्, अब हम यह समझने के लिए कुछ उदाहरण लेते हैं कि किस प्रकार पूर्व चर्चित कारकों में परिवर्तन के कारण माँग वक्र तथा संतुलन मात्रा और संतुलन कीमत प्रभावित होते हैं, जिनका वर्णन अध्याय 2 में भी किया गया है। विशेष रूप से हम उपभोक्ता की आय में वृद्धि तथा उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि के संतुलन पर प्रभाव का विश्लेषण करेंगे।

मान लीजिए, उपभोक्ताओं के वेतन में वृद्धि के कारण उनकी आय में वृद्धि हो जाती है। यह संतुलन को किस प्रकार प्रभावित करेगी? आय में वृद्धि के कारण उपभोक्ता को कुछ वस्तुओं पर अधिक पैसा खर्च करना पड़ सकता है। किंतु, द्वितीय अध्याय में हमने देखा कि उपभोक्ता आय में वृद्धि होने पर निम्नस्तरीय वस्तुओं पर कम व्यय करेंगे, जबकि एक सामान्य वस्तु के लिए, जहाँ सभी वस्तुओं की कीमत तथा उपभोक्ता की रुचि तथा अधिमान स्थिर हैं, प्रत्येक कीमत वृद्धि पर हम वस्तु की माँग में वृद्धि की अपेक्षा करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप बाज़ार माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाएगी। यहाँ हम कपड़े जैसी एक सामान्य वस्तु का उदाहरण लेते हैं, जिसकी माँग उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि के साथ बढ़ती है तथा इसके कारण माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाती है। तथापि, इस आय वृद्धि का पूर्ति वक्र पर कोई भी प्रभाव नहीं होता, जो केवल फर्मों की प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित कारकों में अथवा उत्पादन लागत में कुछ परिवर्तनों के कारण शिफ्ट होता है। अतः पूर्ति वक्र पुनः अपरिवर्तित रहती है। रेखाचित्र 5.2 (a) में माँग वक्र में DD0 से DD2 तक शिफ्ट द्वारा दर्शाया गया है, किंतु पूर्ति वक्र SS0 पर पुनः अपरिवर्तित रहता है। रेखाचित्र से यह स्पष्ट है कि नए संतुलन पर कपड़ों की कीमत अधिक है तथा माँगी गई व बेची गई मात्रा भी अधिक है।

अब हम दूसरा उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए, किसी कारणवश बाज़ार में वस्त्रों के उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है। अन्य बातें अपरिवर्तित रहने पर, जैसे-जैसे उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि होती है, वस्त्रों की माँग में प्रत्येक कीमत पर वृद्धि होगी। अतः माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाएगा। परंतु उपभोक्ताओं की संख्या में यह वृद्धि पूर्ति वक्र पर कोई भी प्रभाव नहीं डालती, क्योंकि पूर्ति वक्र केवल फर्मों के व्यवहार संबंधित प्राचलों में परिवर्तन अथवा फर्माें की संख्या में वृद्धि के कारण ही शिफ्ट हो सकता है, जैसा कि अध्याय 4 में बताया गया है। इसे रेखाचित्र 5.2 (a) द्वारा पुनः दर्शाया जा सकता है जिसमें माँग वक्र DD0, DD2 पर दायीं ओर शिफ्ट होती है, जबकि पूर्ति वक्र SS0 पर अपरिवर्तित है। यह रेखाचित्र स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि नये संतुुलन बिन्दु G पर, पुराने संतुलन बिन्दु E की तुलना में कीमत तथा मात्रा, माँग एवं पूर्ति में वृद्धि होती है।

पूर्ति शिफ्ट

रेखाचित्र 5.3 में हम पूर्ति वक्र में शिफ्ट का प्रभाव संतुलन कीमत तथा मात्रा पर देखते हैं। मान लीजिए, आरंभ में बिन्दु E पर बाज़ार संतुलन में है, जहाँ बाज़ार माँग वक्र DD0 बाज़ार पूर्ति वक्र SS0 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करता है कि संतुलन कीमत p0 तथा संतुलन मात्रा q0 है।

अब मान लीजिए कि किसी कारण बाज़ार पूर्ति वक्र SS2 पर बायीं ओर शिफ्ट होता है और माँग वक्र अपरिवर्तित रहता है, जैसा कि पैनल (a) में दर्शाया गया है। इस शिफ्ट के कारण प्रचलित कीमत p0 पर बाज़ार में q''0q0 के बराबर अधिमाँग होगी। कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, अधिक कीमत भुगतान करने के इच्छुक होंगे तथा बाज़ार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी। बिन्दु G पर नया संतुलन प्राप्त होगा, जहाँ पूर्ति वक्र SS2 माँग वक्र DD0 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करता है कि p2 कीमत पर q2 मात्रा खरीदी तथा बेची जाएगी। इसी प्रकार, पूर्ति वक्र दाँयी ओर शिफ्ट होती है, जहाँ वस्तु का अधिपूर्ति q0q'0 के बराबर होगी, जैसा कि पैनल (b) में दर्शाया गया है। इस अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्में अपनी वस्तु की कीमत गिरा देंगी तथा F पर नया संतुलन होगा, जहाँ पूर्ति वक्र SS1 माँग वक्र DD0 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती है कि p1 नई बाज़ार कीमत है, जिस पर q1 मात्रा खरीदी व बेची जाती है। ध्यान दीजिए कि जब भी पूर्ति वक्र शिफ्ट होती है, कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन की दिशाएँ विपरीत होती हैं।


पूर्ति में शिफ्टः आरंभ में, बाज़ार संतुलन E पर है। पूर्ति वक्र के बायीं ओर शिफ्ट के कारण नया संतुलन बिन्दु G है, जैसा कि पैनल (a) में दर्शाया गया है और दायीं ओर शिफ्ट के कारण नया संतुलन बिन्दु F पर है, जैसा कि पैनल (b) में दर्शाया गया है। दायीं ओर शिफ्ट के साथ संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है तथा कीमत घटती है, जबकि बायीं ओर शिफ्ट के साथ संतुलन मात्रा घटती है तथा कीमत में वृद्धि होती है।

अब इस समझ के साथ हम संतुलन कीमत तथा मात्रा के व्यवहार का विश्लेषण करते हैं, जब बाज़ार के विभिन्न पहलुओं में परिवर्तन होता है। यहाँ हम संतुलन पर आगत कीमतों में वृद्धि तथा फर्मों की संख्या में वृद्धि के प्रभाव पर विचार करेंगे।

आइए, एक एेसी स्थिति पर विचार करते हैं, जहाँ अन्य सभी चीज़ें स्थिर रहती हैं और वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त किसी आगत की कीमत में वृद्धि होती है। इस आगत के प्रयोग करने वाली फर्मों के उत्पादन की सीमांत लागत में वृद्धि होगी। इसलिए प्रत्येक कीमत पर बाज़ार पूर्ति पहले से कम होगी। अतः पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाती है। रेखाचित्र 5.3 (a) में इसे पूर्ति वक्र के SS0 से SS2 तक शिफ्ट द्वारा दर्शाया गया है, परन्तु आगत कीमत में इस वृद्धि का उपभोक्ताओं की माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह आगतों की कीमत पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर नहीं करती। अतः माँग वक्र अपरिवर्तित रहती है। रेखाचित्र 5.3 (a) में इसे DD0 पर माँग वक्र को अपरिवर्तित रख कर दर्शाया गया है। परिणामस्वरूप पूर्व संतुलन की तुलना में अब बाज़ार कीमत में वृद्धि होती है तथा उत्पादित मात्रा कम हो जाती है।

इसके पश्चात् हम फर्मों की संख्या में वृद्धि के प्रभाव की विवेचना करते हैं। चूँकि प्रत्येक कीमत पर अब अधिक फर्में वस्तु की पूर्ति करेंगी, पूर्ति वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाएगी, परन्तु माँग वक्र पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं होता है। इस उदाहरण को रेखाचित्र 5.3 (b) द्वारा दर्शाया जा सकता है, जहाँ पूर्ति वक्र SS0 से SS1 पर शिफ्ट हो जाती है, जबकि माँग वक्र DD0 पर अपरिवर्तित रहती है। रेखाचित्र से, हम कह सकते हैं कि वस्तु की कीमत में कमी होगी तथा प्रारंभिक स्थिति की तुलना में उत्पादित मात्रा में वृद्धि होगी।

माँग तथा पूर्ति का एक साथ शिफ्ट

जब माँग तथा पूर्ति वक्रों में एक साथ शिफ्ट होता है, तब क्या होता है? एक साथ शिफ्ट चार सम्भावित प्रकार से हो सकता हैः

(i) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों का दायीं ओर शिफ्ट।

(ii) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों का बायीं ओर शिफ्ट।

(iii) पूर्ति वक्र का बायीं ओर तथा माँग वक्र का दायीं ओर शिफ्ट।

(iv) पूर्ति वक्र का दायीं ओर तथा माँग वक्र का बायीं ओर शिफ्ट।

संतुलन कीमत तथा मात्रा का प्रभाव सभी चार स्थितियों में, तालिका 5.1 में दर्शाया गया है। तालिका की प्रत्येक पंक्ति उस दिशा को बताती है, जिसमें प्रत्येक संभव माँग तथा पूर्ति वक्रों में एक साथ शिफ्ट संयोग के लिए, संतुलन कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन होगा। दृष्टांत के लिए, तालिका की द्वितीय पंक्ति से हम यह कह सकते हैं कि माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर शिफ्ट के कारण, संतुलन मात्रा में निश्चित रूप से वृद्धि होती है, परन्तु संतुलन कीमत में वृद्धि हो सकती है, अथवा गिरावट हो सकती है अथवा वह अपरिवर्तित भी रह सकती है। वास्तविक दिशा जिसमें कीमत परिवर्तित होगी, वह शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करेगी। शिफ्ट के परिमाण में परिवर्तन करके, इस स्थिति के लिए आप स्वयं जाँच करें।

पहले दो स्थितियों में, जो तालिका की पहली दो पंक्तियों में दर्शाए गए हैं, संतुलन मात्रा पर प्रभाव स्पष्ट है, परन्तु संतुलन कीमत में परिवर्तन किसी भी दिशा में हो सकता है जो शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करेगा। अगले दो स्थितियों में, जो तालिका की अन्तिम दो पंक्तियों में दर्शाए गए हैं, कीमत पर प्रभाव स्पष्ट है जबकि मात्रा पर प्रभाव दोनों वक्रों में शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

यहाँ हम स्थिति (ii) तथा स्थिति (iii) के लिए आरेखीय चित्रण दे रहे हैं। रेखाचित्र 5.4 में तथा अन्य को, पाठकों के अभ्यास के लिए छोड़ देते हैं।

तालिका 5.1ः एक साथ शिफ्ट का संतुलन पर प्रभाव

माँग में शिफ्ट पूर्ति में शिफ्ट मात्रा कीमत
बायीं ओर
दायीं ओर
बायीं ओर
दायीं ओर
बायीं ओर
दायीं ओर
दायीं ओर
बायीं ओर
कमी 
वृद्धि
वृद्धि कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है
वृद्धि कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है
वृद्धि कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है
वृद्धि कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है
कमी 
वृद्धि

माँग तथा पूर्ति में एक साथ शिफ्टः आरंभ में संतुलन E पर है, जहाँ माँग वक्र DD0 तथा पूर्त्ति वक्र SS0 एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित करती हैं। पैनल (a) में माँग व पूर्ति वक्र दोनों दायीं ओर शिफ्ट होती हैं, कीमत अपरिवर्तित रहती है किंतु यह उच्च संतुलन मात्रा पर होती है। पैनल(b) में पूर्ति वक्र दायीं ओर तथा माँग वक्र बायीं ओर शिफ्ट होती है, मात्रा अपरिवर्तित रहती है किन्तु यह निम्न कीमत संतुलन पर होती है।

रेखाचित्र 5.4 (a) में हम देखते हैं कि माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट के कारण संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है, जबकि संतुलन कीमत अपरिवर्तित रहती है और रेखाचित्र 5.4 (b) में माँग वक्र के बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र के दाहिनी ओर स्थानांतरण के कारण संतुलन मात्रा समान रहती है, जबकि कीमत घट जाती है।

5.1.2 बाज़ार संतुलनः निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन

पिछले खंड में बाज़ार संतुलन का अध्ययन इस मान्यता पर किया गया कि फर्माें की संख्या स्थिर है। इस खंड में हम बाज़ार संतुलन का अध्ययन करेंगे, जब फर्में निर्बाध रूप से बाज़ार में प्रवेश तथा बहिर्गमन कर सकती है। सरलता के लिए यहाँ हम मान लेते हैं कि बाज़ार में सभी फर्में समरूप हैं।

प्रवेश तथा बहिर्गमन की मान्यता से क्या अभिप्राय है? इस मान्यता से अभिप्राय है कि उत्पादन में बने रहकर संतुलन में कोई भी फर्म न अधिसामान्य लाभ अर्जित करती है और न हानि उठाती है। दूसरे शब्दों में, संतुलन कीमत फर्माें की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी।

यह देखने के लिए कि एेसा क्यों है, मान लीजिए प्रचलित बाज़ार कीमत पर प्रत्येक फर्म अधिसामान्य लाभ अर्जित कर रही है। अधिसामान्य लाभ अर्जित करने की संभावना नई फर्माें को आकर्षित करेगी। जैसे ही कई फर्में बाज़ार में प्रवेश करती हैं, पूर्ति वक्र दाहिने ओर को शिफ्ट हो जाती है, लेकिन माँग अपरिवर्तित रहती है। इसके फलस्वरूप बाज़ार कीमत गिर जाती है। जैसे हीं कीमतें गिरती हैं, अधिसामान्य लाभ समाप्त हो जाते हैं। इस बिन्दु पर जहाँ सभी फर्में बाज़ार में सामान्य लाभ अर्जित कर रही है, किसी और फर्म के प्रवेश के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होगा। इसी प्रकार, यदि प्रचलित कीमत पर फर्में सामान्य से कम लाभ अर्जित कर रही हैं, तो कुछ फर्में बहिर्गमन कर जाएँगी, जिससे कीमत में वृद्धि होगी और प्रत्येक फर्म के लाभ बढ़कर सामान्य लाभ के स्तर पर आ जाएँगे। इस बिन्दु पर और अधिक फर्म बहिर्गमन करने की इच्छुक नहीं होगी क्योंकि यहाँ सभी फर्में सामान्य लाभ अर्जित कर रही होंगी। अतः प्रवेश तथा बहिर्गमन के द्वारा प्रत्येक फर्म प्रचलित बाज़ार कीमत पर सदैव सामान्य लाभ अर्जित करेगी।

पिछले अध्याय में हमने देखा कि जब तक कीमत न्यूनतम औसत लागत से अधिक है, फर्में अधिसामान्य लाभ अर्जित करेंगी तथा न्यूनतम औसत लागत से कम कीमतों पर सामान्य से कम लाभ प्राप्त करेंगी। अतः न्यूनतम औसत लागत से अधिक कीमतों पर नई फर्में प्रवेश करेंगी तथा न्यूनतम औसत लागत से कम कीमतों पर विद्यमान फर्में बहिर्गमन करेंगी। फर्माें की न्यूनतम औसत लागत के बराबर कीमत स्तर होने पर, प्रत्येक फर्म साधारण लाभ अर्जित करेगी तथा नई फर्में बाज़ार में प्रवेश के लिए आकर्षित नहीं होंगी। विद्यमान फर्में बाज़ार से बहिर्गमन भी नहीं करेंगी क्योंकि वे इस बिन्दु पर उत्पादन करने में कोई हानि नहीं उठा रही हैं, अतः बाज़ार में यही कीमत प्रचलित होगी।

सभी के लिए खुला

अतः फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि बाज़ार कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी, अर्थात्

p = न्यूनतम औसत लागत

प्रवेश तथा बहिर्गमन सहित कीमत निर्धारणः निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन के साथ पूर्णतः प्रतिस्पर्धी बाज़ार में, संतुलन कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है तथा संतुलन मात्रा बाज़ार माँग वक्र DD तथा कीमत रेखा p = न्यूनतम औसत लागत के प्रतिच्छेदन पर निर्धारित होती है।

उपरोक्त का यह अभिप्राय है कि संतुलन कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। संतुलन में इसकी मात्रा पर बाज़ार माँग द्वारा पूर्ति की मात्रा निर्धारित होगी तभी ये दोनों बराबर होती हैं। ग्राफीय रूप से इसे रेखाचित्र 5.5 में दर्शाया गया है, जहाँ बाज़ार संतुलन E बिन्दु पर होगा और माँग वक्र DD, p0 = न्यूनतम औसत लागत रेखा को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती है कि बाज़ार कीमत p0 तथा कुल माँगी गई मात्रा और पूर्ति q0 के बराबर हो जाती है।

P0 = न्यूनतम औसत लागत पर प्रत्येक फर्म समान मात्रा q0f की पूर्ति करती है। अतः बाज़ार में फर्माें की संतुलन संख्या फर्माें की उस संख्या के बराबर है, जो p0 निर्गत पर q0 पूर्ति के लिए आवश्यक है। प्रत्येक फर्म इस कीमत पर q0f मात्रा की पूर्ति करेगी। यदि हम n0 द्वारा फर्मों की संतुलन संख्या को दर्शाते हैं, तो

संतुलन कीमत तथा मात्रा के निर्धारण को अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिए हम निम्न उदाहरण को देखते हैं।

उदाहरण 5.2

एक बाज़ार का उदाहरण लेते हैं, जहाँ गेहूँ के लिए माँग वक्र निम्न प्रकार दिया गया हैः

qD = 200 p क्योंकि 0 < p < 200

= 0 क्योंकि p > 200

मान लीजिए कि बाज़ार में समरूपी फर्म हैं। किसी अकेली फर्म का पूर्ति वक्र इस प्रकार दिया गया है

qSf =10 + p क्योंकि p > 20

= 0 क्योंकि 0 < p < 20

फर्माें के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि फर्में न्यूनतम औसत लागत से कम पर उत्पादन नहीं करेंगी अन्यथा उन्हें उत्पादन से हानि होगी तथा वे बाज़ार से बहिर्गमन कर जायेंगी।

जैसा कि हम जानते हैं, निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन के साथ बाज़ार संतुलन उस कीमत पर होगा, जो फर्माें की न्यूनतम औसत लागत के बराबर है। अतः संतुलन कीमत हैः

p0 = 20

इस कीमत पर बाज़ार उस मात्रा की पूर्ति करेगा जो बाज़ार माँग के बराबर है, अतः माँग वक्र से हमें संतुलन मात्रा प्राप्त होती हैः

q0 = 200 20 = 180

p0 = 20 पर प्रत्येक फर्म पूर्ति करती है-

q0f = 10 + 20 = 30

अतः फर्मों की संतुलन संख्या हैः

अतः निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन के साथ संतुलन कीमत, मात्रा तथा फर्माें की संख्या क्रमशः 20 रुपये, 180 किलोग्राम तथा 6 है।

माँग में शिफ्ट

आइए, देखते हैं कि जब फर्में बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन कर सकती हैं, तो संतुलन कीमत तथा मात्रा पर माँग में शिफ्ट का क्या प्रभाव पड़ता है। पूर्व खंड से, हमें ज्ञात हुआ कि फर्माें के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि सभी परिस्थितियों में संतुलन कीमत विद्यमान फर्माें की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। इस स्थिति में, यदि बाज़ार माँग वक्र किसी भी दिशा में शिफ्ट होता है, तो नये संतुलन पर बाज़ार उसी कीमत पर इच्छित मात्रा की पूर्ति करेगा।

रेखाचित्र 5.6 में DD0 बाज़ार माँग वक्र है, जो बताता है कि विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा कितनी मात्रा माँगी जाएगी तथा p0 उस कीमत को बताता है जो फर्माें की न्यूनतम औसत लागत के बराबर है। आरंभिक संतुलन E बिन्दु पर है, जहाँ माँग वक्र DD0, p0 = न्यूनतम औसत लागत रेखा को काटता है तथा माँग तथा पूर्त्ति की कुल मात्रा q0 है। इस स्थिति में फर्माें की संतुलन संख्या n0 है।

अब मान लीजिए कि माँग वक्र किसी कारणवश दायीं ओर शिफ्ट होती है। बिन्दु p0 पर वस्तु की अधिमाँग होगी। कुछ असंतुष्ट उपभोक्ता वस्तु की अधिक कीमत देने के इच्छुक होंगे, अतः कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी। इससे अधिसामान्य लाभ अर्जित करने की संभावना होगी जिससे नई फर्में बाज़ार में आकर्षित होंगी। इन नई फर्माें का प्रवेश अधिसामान्य लाभ समाप्त कर देगा तथा कीमत पुनः p0 पर पहुँच जायेगी। अब उच्च मात्रा की पूर्ति उसी कीमत पर होगी। पैनल (a) से हमें यह विदित होता है कि नया माँग वक्र DD1, p = न्यूनतम औसत लागत रेखा को बिन्दु F पर प्रतिच्छेदित करती है। इस प्रकार, नया संतुलन (p0, q1) होगा जहाँ q1, q0 की तुलना में अधिक है। नयी फर्माें के प्रवेश के कारण फर्माें की नयी संतुलन संख्या n1, n0 से अधिक है। इसी प्रकार, माँग वक्र के DD2 पर बायीं ओर शिफ्ट होने पर p0 कीमत पर अधिपूर्ति होगी। इस अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्में जो p0 कीमत पर अपनी वस्तु की इच्छित मात्रा नहीं बेच पाएँगी, अपनी कीमत कम करना चाहेंगी। कीमत के घटने की प्रवृत्ति होगी, परिणामस्वरूप कुछ विद्यमान फर्में बहिर्गमन करेंगी। कीमत पुनः p0 पर आ जायेगी। अतः नए संतुलन में कम मात्रा की पूर्ति होगी, जो उस कीमत पर घटी हुई माँग के बराबर होगी। इसे पैनल (b) में दर्शाया गया है, जहाँ माँग वक्र के DD0 से DD2 पर शिफ्ट होने के कारण माँग तथा पूर्ति की मात्रा घटकर q2 हो जाती है जबकि p0 पर कीमत अपरिवर्तित रहती है। यहाँ कुछ वर्त्तमान फर्माें के बहिर्गमन के कारण, फर्माें की संतुलन संख्या n2, n0 से कम है। अतः माँग में दायीं (बाँयीं) ओर शिफ्ट के कारण, संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या में वृद्धि (कमी) होगी जबकि संतुलन कीमत अपरिवर्तित रहेगी।

माँग में शिफ्टः आरंभ में माँग वक्र DD0, संतुलन मात्रा तथा कीमत क्रमशः q0 तथा p0 थे। माँग वक्र के DD1 पर दायीं ओर शिफ्ट केकारण, जैसा कि पट्टिका (a) में दर्शाया गया है, संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है तथा माँग वक्र के DD2 पर बायीं ओर शिफ्ट के कारण जैसा कि पट्टिका (b) में दर्शाया गया है, संतुलन मात्रा घट जाती है। दोनों ही स्थिति में संतुलन कीमत p0 पर अपरिवर्तित रहती है।

यहाँ हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि फर्माें के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन के साथ माँग में शिफ्ट का प्रभाव, फर्माें की स्थिर संख्या की तुलना में मात्रा पर अधिक होता है। किंतु फर्माें की स्थिर संख्या के विपरीत, यहाँ हम संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पाते।

5.2 अनुप्रयोग

इस खंड में हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि किस प्रकार पूर्ति-माँग विश्लेषण का अनुप्रयोग किया जा सकता है। विशिष्ट रूप से कीमत नियंत्रण के रूप में सरकारी हस्तक्षेप के हम दो उदाहरण लेते हैं। जब कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें वांछित स्तर से या तो अत्यधिक ऊँची अथवा अत्यधिक कम हो जाएँ, तो प्रायः सरकार द्वारा उनका नियमन करना आवश्यक हो जाता है। हम पूर्ण प्रतिस्पर्धा के ढाँचे में इन मुद्दों का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे कि इन नियंत्रणों का वस्तुओं के बाज़ार पर क्या प्रभाव पड़ता है।

5.2.1 उच्चतम निर्धारित कीमत

एेसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ सरकार कुछ वस्तुओं की अधिकतम स्वीकार्य कीमत निर्धारित करती है। किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित कीमत कहते हैं। साधारणतः आवश्यक वस्तुओं जैसे, गेहूँ, चावल, मिट्टी का तेल, चीनी के लिए एेसी कीमत तय की जाती है तथा यह बाज़ार निर्धारित कीमत से कम होती हैं, क्योंकि बाज़ार निर्धारित कीमत पर इन सभी वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए जनसंख्या का कुछ भाग समर्थ नहीं होगा। आइए, गेहूँ के बाज़ार के उदाहरण द्वारा, बाज़ार संतुलन पर उच्चतम निर्धारित कीमत के प्रभावों को देखें।

कीमत नियंत्रक

रेखाचित्र 5.7 गेहूँ के लिए बाज़ार पूर्ति वक्र SS तथा बाज़ार माँग वक्र DD को दर्शाता है।

गेहूँ की संतुलन कीमत एवं मात्रा क्रमशः p* तथा q* है। गेहूँ बाज़ार में जब सरकार pc पर उच्चतम कीमत निर्धारित करती है जो संतुलन कीमत स्तर से कम है, तो इस कीमत पर बाज़ार में गेहूँ की अधिमाँग होगी। उपभोक्ता qc किलोग्राम गेहूँ की माँग करते हैं, जबकि फर्माें द्वारा पूर्ति q'c किलोग्राम है।

गेहूँ बाज़ार में उच्चतम निर्धारित कीमत का प्रभावः संतुलन कीमत तथा मात्रा क्रमशः p* और q* है। pc पर उच्चतम निर्धारित कीमत होने से गेहूँ बाज़ार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है।

यद्यपि सरकार की मंशा उपभोक्ताओं की मदद करना था, लेकिन इसके द्वारा गेहूँ की कमी हो जाएगी। तब गेहूँ की मात्रा q'c को उपभोक्ताओं में किस प्रकार वितरित किया जाता है? एेसा करने का एक तरीका यह है कि उपलब्ध गेहूँ की मात्रा को राशन व्यवस्था के द्वारा सभी में वितरित किया जाए। उपभोक्ताओं को राशन कूपन जारी किए जाते है, ताकि कोई भी व्यक्ति-विशेष एक निश्चित मात्रा से अधिक गेहूँ न खरीद सके और गेहूँ की यह अनुबद्ध मात्रा राशन की दुकानों द्वारा बेची जाती है, जिन्हें उचित कीमत की दुकानें भी कहते हैं।

साधारणतः राशन के साथ वस्तु की उच्चतम कीमत के उपभोक्ताओं पर निम्न प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं– (क) प्रत्येक उपभोक्ता को राशन की दुकानों से वस्तुओं को खरीदने के लिए लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है। (ख) क्योंकि सभी उपभोक्ता उचित कीमत दुकानों से प्राप्त वस्तुओं की मात्रा से संतुष्ट नहीं होंगे, उनमें से कुछ अधिक कीमत देने के लिए तत्पर होंगे। इससे कालाबाज़ार की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

5.2.2 निम्नतम निर्धारित कीमत

कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में एक स्तर विशेष से नीचे गिरावट वांछनीय नहीं होती। अतः सरकार इन वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए निम्नतम कीमत निर्धारित करती है। सरकार द्वारा किसी वस्तु अथवा सेवा के लिए निर्धारित न्यूनतम सीमा को निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं। निम्नतम निर्धारित कीमत के सुपरिचित उदाहरण कृषि समर्थन, कीमत कार्यक्रम तथा न्यूनतम मजदूरी विधान हैं।

कृषि समर्थन कीमत कार्यक्रम द्वारा सरकार कुछ कृषि पदार्थों के लिए क्रय कीमत की न्यूनतम सीमा तय कर देती है और यह साधारणतः इन वस्तुओं की बाज़ार-निर्धारित कीमत से ऊँचे स्तर पर तय की जाती है। इसी प्रकार, न्यूनतम मज़दूरी विधान द्वारा सरकार यह सुनिश्चित करती है कि श्रमिकों की मज़दूरी दर एक विशेष स्तर से नीचे न गिरे। यहाँ भी न्यूनतम मज़दूरी दर को संतुलन मजदूरी दर से अधिक रखा जाता है।

निम्नतम निर्धारित कीमत का वस्तुओं के बाज़ार पर प्रभावः बाज़ार संतुलन (p*, q*) पर है। निम्नतम कीमत सीमा pf पर निर्धारण से अधिपूर्ति उत्पन्न हो रही है।

रेखाचित्र 5.8 एक एेसी वस्तु के बाज़ार पूर्ति तथा बाज़ार माँग वक्र को दर्शाता है, जिसकी कीमत निम्नतम निर्धारित की गई है। यहाँ बाज़ार संतुलन कीमत p* तथा मात्रा q* है। परंतु जब सरकार निम्नतम कीमत सीमा, संतुलित कीमत से अधिक pf पर निर्धारित करती है, बाज़ार माँग qf है जबकि फर्मे q'f मात्रा की पूर्ति करना चाहती है, जिसके कारण qf q'f के बराबर बाज़ार में अधिपूर्ति होती है। कृषि समर्थन के अंतर्गत अधिपूर्ति के कारण कीमतों को गिरने से रोकने के लिए सरकार को पूर्व-निर्धारित कीमत पर अधिशेष को खरीदना पड़ता है।

5.3 सारांश


• एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन वहाँ होता है, जहाँ बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति बराबर होती हैं।

• फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन कीमत तथा मात्रा, बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति वक्रों के परस्पर प्रतिछेदन बिन्दु पर निर्धारित होती है।

• प्रत्येक फर्म श्रम का उपयोग उस बिन्दु तक करती है, जहाँ श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद, मज़दूरी दर के बराबर होता है।

• पूर्ति वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब माँग वक्र दायीं (बायीं) ओर शिफ्ट होती है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है तथा संतुलन कीमत में वृद्धि (गिरावट) होती है।

• माँग वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब पूर्ति वक्र दायीं (बायीं) ओर शिफ्ट होता है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है तथा संतुलन कीमत में गिरावट (वृद्धि) होती है।

• जब माँग तथा पूर्ति दोनों वक्र समान दिशा में शिफ्ट होते हैं, तो संतुलन मात्रा पर इसका प्रभाव सुस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलन कीमत पर इसका प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

• जब माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशाओं में शिफ्ट होते हैं, तो संतुलन कीमत पर इसका प्रभाव सुस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलन मात्रा पर प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

• एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में समरूपी के साथ यदि फर्में बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन कर सकती हैं, तो संतुलन कीमत सदैव फर्माें की न्यूनतम औसत लागत के ही बराबर होती है।

• निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन होने पर माँग में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं होता, परंतु संतुलन मात्रा तथा फर्माें की संख्या में परिवर्तन माँग की दिशा में परिवर्तन के समान होता है।

• फर्मों की स्थिर संख्या वाले बाज़ार की तुलना में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन वाले बाज़ार में माँग वक्र के शिफ्ट का संतुलन मात्रा पर प्रभाव अधिक प्रबल होगा।

• संतुलन कीमत से कम कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिमाँग उत्पन्न होती है।

• संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिपूर्ति उत्पन्न
होती है।

5.4 मूल संकल्पनाएँ

संतुलन

अधिमांग, अधिपूर्ति

श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद

श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य

उच्चतम निर्धारित कीमत

निम्नतम निर्धारित कीमत

5.5 अभ्यास

1. बाज़ार संतुलन की व्याख्या कीजिए।

2. हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?

3. हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?

4. क्या होगा यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य है?

(a) संतुलन कीमत से अधिक

(b) संतुलन कीमत से कम

5. फर्माें की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।

6. मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाज़ार में फर्माें की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्माें के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाज़ार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?

7. जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्में पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? एेसे बाज़ार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?

8. एक बाज़ार में फर्माें की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?

9. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय मेंः-

(a) वृद्धि होती है।

(b) कमी होती है।

10. पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, ख़रीदी व बेची जानी वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?

11. कॉफ़ी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा। एक आरेख द्वारा संतुलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।

12. जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?

13. यदि वस्तु xबकी स्थानापन्न वस्तु (y) की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु x की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?

14. बाज़ार फर्माें की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानांतरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।

15. माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।

16. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब–

(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं?

(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?

17. वस्तु बाज़ार में तथा श्रम बाज़ार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?

18. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?

19. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाज़ार में मज़दूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?

20. क्या आप किसी एेसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?

21. माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।

22. मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैंः

qD = 700 p

qS = 500 + 3p क्योंकि p15

= 0 क्योंकि = 0 < p < 15

मान लीजिए कि बाज़ार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपये से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाज़ार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?

23. अभ्यास 22 में दिये गये समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्माें को वस्तु x का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाज़ार समानरूपी फर्माें से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार हैः

qSf = 8 + 3p क्योंकि p > 20

= 0 क्योंकि 0 < p < 20

(a) p = 20 का क्या महत्त्व है?

(b) बाज़ार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।

(c) संतुलन मात्रा तथा फर्माें की संख्या का परिकलन कीजिए।

24. मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया हैः

qD = 1000 p

qS = 700 + 2p

(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।

(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र हैः

qS = 400 + 2p

संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?

(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपये प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?

25. मान लीजिए कि एपार्टमेंटों के लिए बाज़ार-निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेंटों के बाज़ार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?