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इकाई-4


अध्याय-10

 

मानव बस्ती


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हम सब मकानों के समूह में रहते हैं। आप इसे ग्राम, नगर या एक शहर कह सकते हैं, यह सभी मानव बस्ती के उदाहरण हैं। मानव बस्ती का अध्ययन मानव भूगोल का मूल है क्योंकि किसी भी क्षेत्र में बस्तियों का रूप उस क्षेत्र के वातावरण से मानव का संबंध दर्शाता है। एक स्थान जो साधारणतया स्थायी रूप से बसा हुआ हो उसे मानव बस्ती कहते हैं। मकानों का स्वरूप बदला जा सकता है, उनके कार्य बदल सकते हैं परंतु बस्तियाँ समय एवं स्थान के साथ निरंतर बसती रहेंगी। कुछ बस्तियाँ अस्थायी हो सकती हैं जिसमें निवास कुछ ही समय जैसे कि एक ऋतु के लिए होता है।


बस्तियों का वर्गीकरण– ग्रामीण नगरीय द्विभाजन

यह सभी स्वीकार करते हैं कि बस्तियों में भेद नगरीय व ग्रामीण आधार पर होता है, परंतु हम किस को ग्राम कहें एवं किसको नगर इस पर कोई मतैक्य नहीं है। यद्यपि जनसंख्या इसका एक मापदंड हो सकती है पर यह सर्वव्यापी मापदंड नहीं हो सकता क्योंकि भारत एवं चीन में जो घने बसे देश हैं उनमें कई एेसे ग्राम हैं जिनकी जनसंख्या पश्चिमी यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के नगरों से अधिक है।

एक समय था जब ग्राम के निवासियों का मुख्य उद्यम कृषि करना या प्राथमिक गतिविधियों में लगे रहना था। परंतु वर्तमान समय में विश्व के विकसित देशों की नगरीय जनसंख्या यद्यपि शहरों में कार्य करती हैं तथापि वे गाँवों में रहना पसंद करते हैं। अतः ग्रामों एवं शहरों में आधारभूत अंतर यह होता है कि नगरों या शहरों के निवासियों का मुख्य व्यवसाय द्वितीयक एवं तृतीयक गतिविधियों से संबंधित है। इसके विपरीत ग्रामों में रहने वाले निवासियों का मुख्य व्यवसाय प्राथमिक गतिविधियाँ जैसे कृृषि, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, खनन कार्य, पशुपालन इत्यादि से संबंधित होता है।


उप नगरीकरण

यह एक नवीन प्रवृत्ति है जिसमें मनुष्य शहर के घने बसे क्षेत्रों से हटकर रहन-सहन की अच्छी गुणवत्ता की खोज में शहर के बाहर स्वच्छ एवं खुले क्षेत्रों में जा रहे हैं। बड़े शहरों के समीप एेसे महत्त्वपूर्ण उपनगर विकसित हो जाते हैं, जहाँ से प्रतिदिन हज़ारों व्यक्ति अपने घरों से कार्यस्थलों पर आते-जाते हैं।

ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या में उनके द्वारा संपन्न कार्यों के आधार पर विभेदीकरण अधिक अर्थपूर्ण है क्योंकि ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों द्वारा किए गए कार्यों के पदानुक्रम में समरूपता नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में पैट्रोल पंप को पदानुक्रम में निम्न श्रेणी का कार्य समझा जाता है, जबकि भारत में यह नगरीय कार्य के अंतर्गत आता है। यहाँ तक कि एक देश के अंदर ही कार्यों का स्तर प्रादेशिक अर्थव्यवस्था के अनुसार अलग-अलग हो सकता है, जो सुविधाएँ विकसित देशों के ग्रामों में पाई जाती हैं, वैसी सुविधाएँ विकासशील एवं अल्प विकसित देशों के गाँवों में दुर्लभ होती हैं।


1991 की भारतीय जनगणना में नगरीय बस्ती को इस प्रकार परिभाषित किया है। ‘सभी स्थान जहाँ नगरपालिका, निगम, छावनी बोर्ड (कैंटोनमेंट बोर्ड) या अधिसूचित नगरीय क्षेत्र समिति (नोटीफाइड टाउन एरिया कमेटी) हो एवं कम से कम 5000 व्यक्ति वहाँ निवास करते हों, 75 प्रतिशत पुरुष श्रमिक गैर कृषि कार्यों में संलग्न हों व जनसंख्या का घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो, एेसे स्थान या क्षेत्र को नगरीय बस्ती कहेंगे’।


बस्तियों के प्रकार एवं प्रतिरूप

बस्तियोें का वर्गीकरण उनकी आकृति एवं प्रतिरूपों के आधार पर किया जाता है। आकृति के आधार पर बस्तियों को मुख्यतया निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है :

(i) संहत बस्ती : इस प्रकार की बस्तियाँ वे होती हैं जिनमें मकान एक दूसरे के समीप बनाए जाते हैं। इस तरह की बस्तियों का विकास नदी घाटियों के सहारे या उपजाऊ मैदानों में होता है। यहाँ रहने वाला समुदाय मिलकर रहता है एवं उनके व्यवसाय भी समान होते हैं।

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(ii) प्रकीर्ण बस्ती :इन बस्तियों में मकान दूर-दूर होते हैं तथा प्रायः खेतों के द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं। एक सांस्कृतिक आकृति जैसे पूजा-स्थल अथवा बाज़ार, बस्तियों को एक साथ बाँधता है।

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चित्र 10.2 : प्रकीर्ण बस्ती

ग्रामीण बस्ती

ग्रामीण बस्ती अधिक निकटता से तथा प्रत्यक्ष रूप से भूमि से नज़दीकी संबंध रखती हैं। यहाँ के निवासी अधिकतर प्राथमिक गतिविधियों में लगे होते हैं। जैसे–कृषि, पशुपालन एवं मछली पकड़ना आदि इनके प्रमुख व्यवसाय होते हैं। बस्तियों का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है। ग्रामीण बस्तियों को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं -

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जल आपूर्ति

साधारणतया ग्रामीण बस्तियाँ जल स्रोतों या जलराशियों जैसे नदियाँ, झीलें एवं झरनों इत्यादि के समीप स्थित होती हैं, जहाँ जल आसानी से उपलब्ध हो जाता है। कभी-कभी पानी की आवश्यकता लोगों को अन्यथा असुविधाजनक स्थानों जैसे दलदल से घिरे द्वीपों अथवा नदी किनारों के निचले क्षेत्रों में बसने के लिए प्रेरित करते हैं। अधिकांश जल आधारित ‘नम बिंदु’ बस्तियों में पीने, खाना बनाने, वस्त्र धोने आदि के लिए जल की उपलब्धि जैसे अनेक लाभ उपलब्ध होते हैं। फार्म भूमि की सिंचाई के लिए नदियों और झीलों का उपयोग किया जा सकता है। इन्हीं जल स्रोतों से वहाँ के निवासी भोजन हेतु मछली पकड़ते हैं तथा नाव चलाने योग्य नदियाँ एवं झीलें जल यातायात के लिए भी प्रयोग की जा सकती हैं।

भूमि

मनुष्य बसने के लिए उस जगह का चुनाव करता है जहाँ की भूमि कृषि कार्य के लिए उपयुक्त व उपजाऊ हो। यूरोप में दलदली क्षेत्र एवं निचले क्षेत्र में बस्तियाँ नहीं बसाई जाती हैं जबकि दक्षिणी पूर्वी एशिया में रहने वाले लोग नदी घाटियों के निम्न भाग एवं तटवर्ती मैदानों के निकट बस्तियाँ बसाते हैं जो कि उन्हें नम चावल की कृषि के लिए सहायक होते हैं। किसी भी क्षेत्र में प्रारंभिक अधिवासी उपजाऊ एवं समतल क्षेत्रों में ही बसते थे।


उच्च भूमि के क्षेत्र

मानव ने अपने अधिवास हेतु ऊँचे क्षेत्रों को इसलिए चुना कि वहाँ पर बाढ़ के समय होने वाली क्षति से बचा जा सके एवं मकान व जीवन सुरक्षित रह सके। नदी बेसिन के निम्न भाग में बस्तियाँ नदी वेदिकाओं एवं तटबंधों पर बसाई जाती हैं क्योंकि ये भाग ‘शुष्क बिंदु’ होते हैं। उष्ण कटिबंधीय देशों के दलदली क्षेत्रों के निकट लोग अपने मकान स्तंभों पर बनाते हैं जिससे कि बाढ़ एवं कीड़े-मकोड़ों से बचा जा सके।

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चित्र 10.4 :स्तंभी मकान


गृह निर्माण सामग्री

मानव बस्तियों के विकसित होने में गृहनिर्माण सामग्री की उपलब्धता भी एक बड़ा कारक होती है। जहाँ आसानी से लकड़ी, पत्थर आदि प्राप्त हो जाते हैं मनुष्य वहीं अपनी बस्तियाँ बसाता है। वनों को काट कर प्राचीन गाँवों को बनाया गया था जहाँ लकड़ी बहुतायत में थी।

चीन के लोयस क्षेत्र में वहाँ के निवासी कंदराओं में मकान बनाते थे एवं अफ्रीका के सवाना प्रदेश में कच्ची ईंटों के मकान बनते थे जबकि ध्रुवीय क्षेत्र में एस्किमो हिम खंडों से अपने इग्लू का निर्माण करते हैं।

सुरक्षा

राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध या पड़ोसी समूहों के उपद्रवी होने की स्थिति में गाँवों को सुरक्षात्मक पहाड़ियों एवं द्वीपों पर बसाया जाता था। नाइजीरिया में खड़े इंसेलबर्ग अच्छी सुरक्षित स्थिति प्रदान करते हैं। भारत में अधिकतर दुर्ग ऊँचे स्थानों अथवा पहाड़ियों पर स्थित हैं।


नियोजित बस्तियाँ

इस तरह की बस्तियाँ सरकार द्वारा बसाई जाती हैं। ग्रामवासियों द्वारा स्वतः जिन बस्तियों की स्थिति का चयन नहीं किया जाता, सरकार द्वारा अधिगृहित की गई एेसी भूमि पर निवासियों को सभी प्रकार की सुविधाएँ जैसे–आवास, पानी तथा अन्य अवसंरचना आदि उपलब्ध कराकर बस्तियों को विकसित करती हैं। इथोपिया में सरकार द्वारा ग्रामीणीकरण योजना एवं भारत में इंदिरा गांधी नहर के क्षेत्र में नहरी बस्तियों का विकास इसके अच्छे उदाहरण हैं।

ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप

ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप यह दर्शाता है कि मकानों की स्थिति किस प्रकार एक दूसरे से संबंधित है। गाँव की आकृति एवं प्रसार को प्रभावित करने वाले कारकों में गाँव की स्थिति, समीपवर्ती स्थलाकृति एवं क्षेत्र का भूभाग प्रमुख स्थान रखते हैं।

ग्रामीण बस्तियों का वर्गीकरण कई मापदंडों के आधार पर किया जा सकता है :

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चित्र 10.5 : ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप

(i) विन्यास के आधार पर : इनके मुख्य प्रकार हैं– मैदानी ग्राम, पठारी ग्राम, तटीय ग्राम, वन ग्राम एवं मरुस्थलीय ग्राम।

(ii) कार्य के आधार पर : इसमें कृषि ग्राम, मछुवारों के ग्राम, लकड़हारों के ग्राम, पशुपालक ग्राम आदि आते हैं।

(iii) बस्तियों की आकृति के आधार पर : इसमें कई प्रकार की ज्यामितिक आकृतियाँ हो सकती हैं जैसे कि रेखीय, आयताकार, वृत्ताकार, तारे के आकार की, ‘टी’ के आकार की, चौक पट्टी, दोहरे ग्राम इत्यादि।

(क) रैखिक प्रतिरूप : उस प्रकार की बस्तियों में मकान सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, नहरों, घाटी के किनारे अथवा तटबंधों पर स्थित होते हैं।

(ख) आयताकार प्रतिरूप : ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अंतरा पर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इसमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।

(ग) वृत्ताकार प्रतिरूप : इस प्रकार के गाँव झीलों व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों ओर बस्ती बस जाने से विकसित होते हैं। कभी-कभी ग्राम को इस योजना से बसाया जाता है कि उसका मध्य भाग खुला रहे जिसमें पशुओं को रखा जाए ताकि वे जंगली जानवरों से सुरक्षित रहें।

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चित्र 10.6 : रैखिक प्रतिरूप बस्ती


(घ) तारे के आकार का प्रतिरूप : जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उन मार्गों के सहारे मकान बन जाते हैं। वहाँ तारे के आकार की बस्तियाँ विकसित होती हैं।

(ड) ‘टी’ आकार, ‘वाई’ आकार, क्रॉस आकार : टी के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती हैं। जबकि वाई आकार की बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ पर दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं। क्रॉस आकार की बस्तियाँ चौराहों पर प्रारंभ होती हैं जहाँ चौराहे से चारों दिशा में बसाव आरंभ हो जाता है।

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चित्र 10.7 : वाई आकार बस्ती

(च) दोहरे ग्राम : नदी पर पुल या फेरी के दोनों ओर इन बस्तियों का विस्तार होता है।


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आपके द्वारा कक्षा XI के भूगोल प्रायोगिक कार्य, भाग-I
(एन.सी.ई. आर.टी. 2006) में अध्ययन किए गए किसी भी स्थलाकृतिक पत्रक में इन प्रतिरूपों को पहचानिए।


ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ

विकासशील देशों में ग्रामीण बस्तियों की संख्या अधिक है एवं इनका आधारभूत ढाँचा भी अविकसित है। ये नियोजकों के सम्मुख बड़ी चुनौती और सुअवसर प्रस्तुत करते हैं।

विकासशील देशों में ग्रामीण बस्तियों में जल की आपूर्ति भी पर्याप्त नहीं है। पर्वतीय एवं शुष्क क्षेत्रों में निवासियों को पेय जल हेतु लंबी दूरियाँ तय करनी पड़ती हैं। जल जनित बीमारियाँ जैसे हैजा, पीलिया आदि सामान्य समस्या है। दक्षिणी एशिया के देश प्रायः बाढ़ एवं सूखे से ग्रस्त रहते हैं। सिंचाई सुविधाएँ कम होने से कृषि कार्य पर भी प्रभाव पड़ता है।

शौचघर एवं कूड़ा-कचरा निस्तारण की सुविधाएँ नगण्य हैं। जिससे इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएँ रहती हैं।

मकानों की रूपरेखा एवं उनके लिए प्रयुक्त होने वाली गृह निर्माण सामग्री हर पारिस्थितिक प्रदेश में भिन्न होती है। जो मकान मिट्टी, लकड़ी एवं छप्पर के बनाए जाते हैं उन्हें भारी वर्षा एवं बाढ़ के समय काफ़ी नुकसान पहुँचता है एवं हर वर्ष उनके उचित रख-रखाव की आवश्यकता पड़ती है। अधिकतर मकानों की रूपरेखा भी एेसी होती है जिसमें उपयुक्त संवातन नहीं होता है। एक ही मकान में मनुष्यों के साथ पशु भी रहते हैं। इसी मकान में पशु शेड और उनके चारा रखने की जगह भी होती है। एेसा इसलिए किया जाता है कि जंगली जानवरों से पालतू पशुओं और उनके चारे की रक्षा उचित ढंग से हो सके।

कच्ची सड़क एवं आधुनिक संचार के साधनों की कमी भी यहाँ की प्रमुख समस्या है। वर्षा ऋतु में इन क्षेत्रों का संपर्क आसपास के क्षेत्र से कट जाता है जिससे आपतकालीन सेवाएँ प्रदान करने में भी गंभीर कठिनाइयाँ उपलब्ध हो जाती है। विशाल ग्रामीण जनसंख्या के लिए स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करना भी कठिन हो जाता है। यह समस्या उस समय और विकट हो जाती है जब ग्रामीणीकरण उचित प्रकार से नहीं हुआ है और विशाल क्षेत्र में मकान दूर तक विकसित होते हैं।

नगरीय बस्तियाँ

तीव्र नगरीय विकास एक नूतन परिघटना है। कुछ समय पूर्व तक बहुत ही कम बस्तियाँ कुछ हज़ार से अधिक निवासियों वाली थी। प्रथम नगरीय बस्ती लंदन नगर की जनसंख्या लगभग 1810 ई. तक 10 लाख हो गई थी। 1982 में विश्व में करीब 175 नगर 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले थे। 1800 में विश्व की केवल 3 प्रतिशत जनसंख्या नगरीय बस्तियों में निवास करती थी जबकि वर्तमान समय में 54 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में निवास करती है (तालिका 10.1)।

तालिका 10.1 : विश्व में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत

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नगरीय बस्तियों का वर्गीकरण

नगरीय क्षेत्रों की परिभाषा एक देश से दूसरे देश में भिन्न है। वर्गीकरण के कुछ सामान्य आधार जनसंख्या का आकार, मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले व्यवसाय एवं प्रशासकीय ढाँचा है।


जनसंख्या का आकार

नगरीय क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिए अधिकतर देशों ने इसी मापदंड को अपनाया है। नगरीय क्षेत्र की श्रेणी में आने के लिए जनसंख्या के आकार की निचली सीमा कोलंबिया में 1500, अर्जेंटाइना एवं पुर्तगाल में 2000, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं थाईलैंड में 2500, भारत में 5000 एवं जापान में 30,000 व्यक्ति हैं। भारत में जनसंख्या के अतिरिक्त जनसंख्या घनत्व भी 400 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर होना चाहिए एवं साथ ही साथ गैर कृषि कार्य में लगी जनसंख्या को भी ध्यान में रखा जाता है। विभिन्न देशों में जनसंख्या घनत्व अधिक या कम होने की स्थिति में घनत्व वाला मापदंड उसी के अनुरूप बढ़ा या घटा दिया जाता है। डेनमार्क, स्वीडन एवं फिनलैंड में 250 व्यक्तियों की जनसंख्या वाले सभी क्षेत्र नगरीय क्षेत्र कहलाते हैं। आइसलैंड में नगर होने के लिए न्यूनतम जनसंख्या 300 मनुष्य होनी चाहिए जब कि कनाडा एवं वेनेजुएला में यह संख्या 1000 व्यक्ति है।


व्यावसायिक संरचना

जनसंख्या के आकार के अतिरिक्त कुछ देशों में जैसे भारत में प्रमुख आर्थिक गतिविधियों को भी नगरीय बस्तियाँ निर्दिष्ट करने के लिए मापदंड माना जाता है। इसी प्रकार इटली में उस बस्ती को नगरीय कहा जाता है जिसकी आर्थिक रूप से उत्पादक जनसंख्या का 50 प्रतिशत गैर कृषि कार्यों में संलग्न हो। भारत में यह मापदंड 75 प्रतिशत का रखा गया है।


प्रशासन

कुछ देशों में किसी बस्ती को नगरीय बस्ती में वर्गीकृत करने हेतु प्रशासनिक ढाँचे को मापदंड माना जाता है। उदाहरण के लिए भारत में किसी भी आकार की बस्तियों को नगर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है यदि वहाँ नगरपालिका, छावनी बोर्ड या अधिसूचित नगरीय क्षेत्र समिति है। इसी प्रकार लैटिन अमेरिका के देश ब्राजील एवं बोलीविया में जनसंख्या आकार का ध्यान नहीं रखते हुए किसी भी प्रशासकीय केंद्र को नगरीय केंद्र माना जाता है।


स्थिति

नगरीय केंद्राें की स्थिति उनके द्वारा संपन्न कार्यों के आधार पर देखी जाती है। उदाहरण के तौर पर किसी अवकाश सैरगाह की स्थिति के लिए जो आवश्यक बातें होनी चाहिए वो औद्योगिक नगर, सेना नगर या एक समुद्री पत्तन नगर के लिए आवश्यक स्थितियों से भिन्न होती हैं। सामरिक नगरों की स्थिति एेसी जगह हो जहाँ इसे प्राकृतिक सुरक्षा मिले; खनिज नगरों के लिए क्षेत्र में आर्थिक दृष्टिकोण से उपयोगी खनिजों का पाया जाना आवश्यक है; औद्योगिक नगरों के लिए स्थानीय शक्ति के साधन एवं कच्चा माल; पर्यटन केंद्र के लिए आकर्षक दृश्य या सामुद्रिक तट, औषधीय जल वाला झरना या कोई एेतिहासिक अवशेष; पत्तन के लिए पोताश्रय का होना।

प्राचीन नगरीय बस्तियों की स्थिति, जल, गृह निर्माण सामग्री एवं उपजाऊ भूमि उपलब्धता पर निर्भर रहती थी। यद्यपि वर्तमान में भी उपरोक्त कारकों का महत्त्व कम नहीं हुआ है फिर भी आधुनिक प्रौद्योगिकी के कारण एेसे क्षेत्रों में भी नगरीय बस्तियाँ विकसित हो रही हैं जहाँ उपरोक्त सुविधाएँ न हाें। पाइपलाइन के द्वारा जल दूर-दूर तक पहुँचाया जा सकता है एवं यातायात के साधनों के माध्यम से गृह निर्माण सामग्री भी दूरस्थ क्षेत्रों से प्राप्त की जा सकती है।

नगरों के विस्तार में स्थान के अलावा उनकी स्थिति भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जो नगर महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग के निकट स्थित हैं उनका विकास तेज़ी से हुआ है।


नगरीय क्षेत्रों के कार्य

प्राचीन नगर, प्रशासन, व्यापार, उद्योग, सुरक्षा एवं धार्मिक महत्त्व के केंद्र हुआ करते थे। वर्तमान समय में सुरक्षा तथा धर्म का कार्यात्मक विभेदीकरण के रूप में महत्त्व घटा है, परंतु कई अन्य कार्य इस सूची में जुड़

गए हैं। आजकल कई नए कार्य जैसे मनोरंजनात्मक, यातायात, खनन, निर्माण,आवासीय तथा सबसे नवीन सूचना प्रौद्योगिकी आदि कुछ विशिष्ट नगरों में संपन्न होते हैं। इनमें से कुछ कार्यों के लिए नगरीय केंद्रों को समीप के ग्रामीण क्षेत्रों से किसी भी प्रकार के आधारभूत संबंधों की आवश्यकता नहीं होती है।

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का एक कार्य के रूप में वर्तमान एवं नवीन बस्तियों के विकास पर क्या प्रभाव होगा।


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उन शहरों की सूची बनाइए जिनमें नए कार्यों ने पुराने कार्यों का स्थान ले लिया है।


यद्यपि नगर बहुत से कार्य करते हैं पर हम केवल उनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों का ही उल्लेख करते हैं। उदाहरण के तौर पर हम शैफील्ड को औद्योगिक नगर, लंदन को पत्तन नगर, चंडीगढ़ को प्रशासकीय नगर सोचते हैं। बड़े नगरों में विभिन्न प्रकार के कार्य किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त समय के अनुसार नए-नए कार्य विकसित होते रहते हैं। इंग्लैंड के 19वीं शताब्दी के मछली पकड़ने वाले पत्तनों ने अब पर्यटन को विकसित कर लिया है। कई प्राचीन बाज़ार नगर अब विनिर्माण कार्यों के लिए जाने जाते हैं। नगराें एवं शहरों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है।

प्रशासनिक नगर

राष्ट्र की राजधानियाँ जहाँ पर केंद्रीय सरकार के प्रशासनिक कार्यालय होते हैं उन्हें प्रशासनिक नगर कहा जाता है। जैसे नयी दिल्ली, केनबेरा, बीजिंग, अदीस अबाबा, वाशिंगटन डी.सी. एवं लंदन इत्यादि प्रशासनिक नगर हैं। राज्यों में भी एेसे नगर हो सकते हैं जिनका कार्य प्रशासनिक हो, उदाहरण के लिए विक्टोरिया (ब्रिटिश कोलंबिया), अलबैनी (न्यूयार्क), चेन्नई (तमिलनाडु) इत्यादि।


व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर

कृषि बाज़ार कस्बे जैसे विनिपेग एवं कंसास नगर, बैंकिंग एवं वित्तीय कार्य करने वाले नगर, जैसे फ्रैंकफर्ट एवं एमसटर्डम, विशाल अंतर्देशीय केंद्र जैसे मैनचेस्टर एवं सेंट लूइस एवं परिवहन के केंद्र जैसे लाहौर, बगदाद एवं आगरा प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहे हैं।


सांस्कृतिक नगर

तीर्थस्थान जैसे जैरूसलम, मक्का, जगन्नाथ पुरी एवं बनारस आदि सांस्कृतिक नगर हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से इनका बहुत महत्त्व है।

इनके अतिरिक्त जो कार्य नगर करते हैं उनमें स्वास्थ्य एवं मनोरंजन (मियामी एवं पणजी), औद्योगिक (पिट्सबर्ग एवं जमशेदपुर), खनन (ब्रोकन हिल एवं धनबाद) एवं परिवहन (सिंगापुर एवं मुगलसराय) आदि सम्मिलित किए जाते हैं।


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नगरीकरण से तात्पर्य एक देश की नगरीय क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या में अनुपातिक वृद्धि से है।

नगरीकरण का प्रमुख कारण ग्रामों से नगरों की ओर स्थानांतरण है। 1990 के दशक के अंत में 2 से 3 करोड़ मनुष्य प्रतिवर्ष गाँव छोड़कर नगरों और शहरों की ओर रहने के लिए चले जाते थे।

19वीं शताब्दी में विकसित देशों में नगरीकरण तेज़ी से हुआ है।

20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विकासशील देशों में नगरीकरण तेज़ी से हुआ है।


आकृति के आधार र नगरों का वर्गीकरण

एक नगरीय बस्ती रेखीय, वर्गाकार, तारा के आकार या अर्ध चंद्राकार (चापाकार) हो सकती है। वास्तव में किसी भी नगर की आकृति, वास्तुकला एवं भवनों की शैली वहाँ के एेतिहासिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं की देन होती है।

विकसित एवं विकासशील देशों के कस्बे एवं नगर उनके विकास एवं नगर नियोजन में कई तरह की विभिन्नताएँ रखते हैं। विकसित देशों में अधिकतर नगर योजनाबद्ध तरीके से बसाये गए हैं जबकि विकासशील देशों में अधिकतर नगरों की उत्पत्ति एेतिहासिक है तथा उनकी आकृति अनियमित है। उदाहरण के तौर पर चंडीगढ़ एवं केनबरा नियोजित नगर हैं, जबकि भारत में छोटे कस्बे एेतिहासिक रूप से परकोटे से बाहर की ओर बड़े नगरीय फैलाव में गैर योजनाबद्ध तरीके से विकसित हुए हैं।


अदीस अबाबा (नवीन पुष्प)

इथोपिया का राजधानी नगर अदीस अबाबा जैसा कि इसके नाम से विदित होता है (अदीस-नया, अबाबा-पुष्प) एक नया नगर है जिसकी स्थापना 1878 में हुई थी।

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संपूर्ण नगर पर्वतीय घाटी स्थलाकृति पर स्थित है सड़कों का प्रारूप स्थानीय धरातल से प्रभावित है। राजकीय मुख्यालय प्याज्ज़ा, अरात एवं आमिस्ट किलो से चारों ओर सड़कें जाती हैं। मरकाटो में एक बहुत विकसित बाज़ार है, जिसके विषय में मान्यता है कि उत्तर में काहिरा एवं दक्षिण में जोहंसबर्ग के बीच ये सबसे बड़ा बाज़ार है। अदीस अबाबा जहाँ एक बहु संकाय विश्वविद्यालय, चिकित्सा महाविद्यालय एवं कई अच्छे स्कूल होने की वजह से शिक्षा का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। जिबूती– अदीस अबाबा रेलमार्ग का अंतिम स्टेशन है। बोले हवाई अड्डा सापेक्षतः एक नया हवाई अड्डा है। इस नगर का तेज़ी से विकास हुआ है, क्योंकि यह इथोपिया के मध्य में स्थित है एवं कई प्रकार के कार्य यहाँ संपन्न किए जाते हैं।


केनबेरा

अमेरिकन वास्तुविद वाल्टर बरली ग्रिफिन ने 1912 में आस्ट्रेलिया की राजधानी के लिए इस नगर की योजना बनाई। भू-दृश्य की प्राकृतिक आकृतियों को ध्यान में रखते हुए लगभग 25,000 निवासियों के रहने के लिए इस उद्यान नगर की कल्पना की थी। इसमें पाँच मुख्य केंद्र थे, प्रत्येक के अलग-अलग कार्य थे। पिछले कुछ दशकों में कई उपनगर इसके समीप बन गए हैं जिनके अपने केंद्र हैं। नगर में बहुत खुले क्षेत्र हैं एवं कई उद्यान तथा पार्क हैं।


नगरीय बस्तियों के प्रकार

नगरीय बस्ती अपने आकार, उपलब्ध सुविधाओं एवं उनके द्वारा संपन्न किए जाने वाले कार्यों के आधार पर कई नामों से पुकारी जाती हैं जैसे नगर, शहर, मिलियन सिटी, सन्नगर, विश्वनगरी।


नगर

नगर की संकल्पना को ग्राम के संदर्भ में आसानी से समझा जा सकता है। केवल जनसंख्या का आकार ही मापदंड नहीं होता है। नगरों एवं ग्रामों में कार्यों की विषमता सदैव स्पष्ट नहीं होती है परंतु कुछ विशेष कार्य जैसे निर्माण, खुदरा एवं थोक व्यापार एवं व्यावसायिक सेवाएँ नगरों में ही विद्यमान होती हैं।


शहर

यह अग्रणी नगर होता है। जो अपने स्थानीय व क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ देता है। लेविस ममफोर्ड के शब्दों में, ‘वास्तव में शहर उच्च एवं अधिक जटिल प्रकार के सहचारी जीवन का भौतिक रूप हैं।’ शहर नगरों से बड़े होते हैं एवं इनके आर्थिक कार्य भी अधिक होते हैं। यहाँ पर प्रमुख वित्तीय संस्थान, प्रादेशिक प्रशासकीय कार्यालय एवं यातायात के केंद्र होते हैं। जब इनकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक हो जाती है तब इन्हें मिलियन सिटी कहा जाता है।


सन्नगर

इस शब्दावली का प्रयोग 1915 में पैट्रिक गिडिज ने किया था। यह विशाल विकसित नगरीय क्षेत्र होते हैं जो कि मूलतः अलग-अलग नगरों या शहरों के आपस में मिल जाने से एक विशाल नगरीय विकास क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। ग्रेटर लंदन, मानचेस्टर, शिकागो एवं टोक्यो इसके उदाहरण हैं। क्या आप भारत से एेसा उदाहरण दे सकते हैं?


मिलियन सिटी

विश्व में मिलियन सिटी की संख्या पहले की अपेक्षा निरंतर बढ़ रही है। 1800 में लंदन इस श्रेणी में आया, 1850 में पेरिस, 1860 में न्यूयार्क तथा 1950 तक विश्व में 80 शहर मिलियन सिटी थे। मिलियन सिटी की वृद्धि प्रत्येक तीसरे दशक में तीन गुनी हुई है। 1975 में इनकी संख्या 160 थी जो बढ़कर 2005 में 438 हो गई। 70 के मध्य में 162 मिलियन सिटी थे और 2005 में इन की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई और संख्या 438 तक पहुँच गई। 2016 में, दुनिया भर में 512 शहरों में कम से कम 1 मिलियन (10 लाख) निवासी थे। 2030 तक, अनुमानित 662 शहरों में कम से कम 1 मिलियन निवासी होंगे।


विश्वनगरी

यह यूनानी शब्द ‘मेगालोपोलिस’ से बना है जिसका अर्थ होता है ‘विशाल नगर’। इसका प्रयोग 1957 में जीन गोटमेन ने किया। यह बड़ा महानगर प्रदेश होता है जिसमें सन्नगरों का समूह होता है। विश्वनगरी का सबसे अच्छा उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका में है जहाँ उत्तर में बोस्टन से दक्षिण में वाशिंगटन तक नगरीय भूदृश्य के रूप में दिखाई देता है।


मेगासिटी का वितरण

एक मेगासिटी शब्दावली उन नगरों के लिए प्रयुक्त की जाती है जिनकी जनसंख्या मुख्य नगर व उपनगरों को मिलाकर एक करोड़ से अधिक हो। सबसे पहले 1950 में न्यूयार्क ने यह श्रेय प्राप्त किया था जब उसकी जनसंख्या 1 करोड़ 25 लाख हो गई। वर्तमान में 31 मेगासिटी हैं। पिछले 50 वर्षों में विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में इनकी संख्या बढ़ी है।

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विकासशील देशों में मानव बस्तियों की समस्याएँ

विकासशील देशों में बस्तियों से संबंधित कई प्रकार की समस्याएँ हैं जैसे अवहनीय जनसंख्या का केंद्रीकरण, छोटे व तंग आवास एवं गलियाँ, पीने योग्य जल जैसी सुविधाओं की कमी। इसके अतिरिक्त इनमें आधारभूत ढाँचा जैसे बिजली, गंदे पानी की निकासी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि सुविधाओं की भी कमी होती है।


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ग्रामीण/नगरीय समस्याएँ

क्या आप अपने नगर/कस्बे/ग्राम में उत्पन्न निम्नलिखित समस्याओं में से किसी एक की भी पहचान कर सकते हैं?

पीने योग्य जल की उपलब्धता

विद्युत आपूर्ति

मल निकास व्यवस्था

परिवहन एवं संचार सुविधाएँ

स्वास्थ्य एवं शिक्षा की अवसंरचना

जल एवं वायु प्रदूषण

क्या आप उपरोक्त समस्याओं के समाधान सोच सकते हैं।


नगरीय बस्तियों की समस्याएँ

रोज़गार के अवसर एवं नागरिक सुविधाओं के लिए मानव शहरों की ओर आता है। परंतु विकासशील देशों में अधिकतर शहर अनियोजित हैं अतः आने वाले व्यक्ति अत्यंत भीड़ की स्थिति पैदा कर देते हैं। विकासशील देशों के आधुनिक शहरों में आवासाें की कमी लंबवत विस्तार (बहुमंजिला मकान) तथा गंदी बस्तियों की वृद्धि प्रमुख विशेषताएँ हैं। अनेक शहरों में जनसंख्या का बढ़ता भाग निम्न स्तरीय आवासों जैसे गंदी बस्तियों, अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं। भारत के अधिकांश मिलीयन सिटी 25 प्रतिशत निवासी अवैध बस्तियों में रहते हैं और एेसे नगर अन्य नगरों की अपेक्षा दोगुनी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। एशिया पेसिफिक देशों में नगरीय जनसंख्या का 60 प्रतिशत भाग अनधिकृत बस्तियों में रहता है।

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चित्र 10.11 : गंदी बस्ती


एक स्वस्थ शहर क्या है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बतलाया कि एक स्वस्थ शहर में निम्न सुविधाएँ अवश्य होनी चाहिए:

• ‘स्वच्छ’ एवं ‘सुरक्षित’ वातावरण

• सभी निवासियों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति

• स्थानीय सरकार में समुदाय की भागीदारी

• सभी के लिए आसानी से उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाएँ


आर्थिक समस्याएँ

विश्व के विकासशील देशों के ग्रामीण व छोटे नगरीय क्षेत्रों में रोज़गार के घटते अवसरों के कारण जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन हो रहा है। यह विशाल प्रवासी जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों, अकुशल एवं अर्धकुशल श्रमिकों, की संख्या में अत्यधिक वृद्धि कर देती है, जबकि इन क्षेत्रों में जनसंख्या पहले से ही चरम पर होती है।


सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ

विकासशील देशों के शहर विभिन्न प्रकार की सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त हैं। अपर्याप्त वित्तीय संसाधनों के कारण बहुसंख्यक निवासियों की आधारभूत सामाजिक ढाँचागत आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती हैं। उपलब्ध स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी सुविधाएँ गरीब नगरवासियों की पहुँच से बाहर रहती हैं। विकासशील देशों में स्वस्थ सूचक भी एक निराशाजनक चित्र प्रस्तुत करते हैं। बेरोज़गारी एवं शिक्षा की कमी के कारण अपराध अधिक होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से स्थानांतरित जनसंख्या में पुरुषों की अधिकता के कारण इन नगरों में जनसंख्या का लिंग अनुपात असंतुलित हो जाता है।


पर्यावरण संबंधी समस्याएँ

विकासशील देशों में रहने वाली विशाल नगरीय जनसंख्या जल का केवल उपयोग ही नहीं करती वरन् जल एवं सभी प्रकार के व्यर्थ पदार्थों का निस्तारण भी करती है। विकासशील देशों के अनेक नगरों में पीने योग्य पानी की न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति तथा घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना अत्यधिक कठिन है। घरेलू एवं औद्योगिक कार्यों के लिए परंपरागत ईंधन के व्यापक उपयोग के कारण वायु प्रदूषित हो जाती है। एक अनुपयुक्त मल निस्तारण व्यवस्था अस्वास्थ्यकर दशाएँ पैदा करती हैं। घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्ट को सामान्य मल-व्यवस्था में डाल दिया जाता है या बिना किसी शोधन के अनिश्चित स्थानों में डाल दिया जाता है। जनसंख्या को आवास प्रदान करने के लिए विशाल कंकरीट ढाँचे बनाए जाते हैं जो नगरों में ‘उष्म द्वीप’ बनाने में सहायक भूमिका निभाते हैं।

समान, संसाधन एवं मनुष्यों के संचलन के द्वारा शहर, नगर एवं ग्रामीण बस्ती आपस में एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। मानव बस्तियों को बनाए रखने के लिए नगरीय-ग्रामीण संपर्क अत्यंत आवश्यक है। विशेष रूप से विकासशील देशों में ग्रामीण जनसंख्या की वृद्धि ने रोज़गार सृजन एवं आर्थिक अवसरों को पीछे धकेल दिया है जिसके कारण ग्रामीण जनसंख्या का नगरों की ओर प्रवास क्रमशः बढ़ा है। जिसने नगरीय क्षेत्रों में पहले से ही समस्याग्रस्त ढाँचागत सुविधाओं और सेवाओं पर बहुत अधिक दबाव बढ़ा दिया है। ग्रामीण निर्धनता को दूर करना शीघ्र आवश्यक है। ग्रामीण बस्तियों में रहन-सहन के स्तर को सुधारना एवं वहाँ रोज़गार व शिक्षा के अवसरों का सृजन करना भी आवश्यक है। ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में विभिन्न आर्थिक सामाजिक एवं पर्यावरणीय आवश्यकताओं को संतुलित करके उनके अनुपूरक योगदान तथा संपर्कों का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए।


नगरीय रणनीति की योजना

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने ‘नगर रणनीति’ में निम्न प्राथमिकताएँ बताई हैंः

• नगरीय निर्धनों के लिए ‘आश्रयस्थल’ में वृद्धि

• आधारभूत नगरीय सुविधाओं जैसे शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, स्वच्छ जल और सफाई का प्रबंध आदि को उपलब्ध करवाना।

• महिलाओं की ‘मूलभूत सेवाओं’ तथा राजकीय सुविधाओं तक पहुँच में सुधार

• उर्जा उपयोग तथा वैकल्पिक परिवहन तंत्र को उन्नत बनाना।

• वायु प्रदूषण को कम करना।


अभ्यास

1. नीचे दिए गए चार विकल्पों मे से सही उत्तर को चुनिएः

(i) निम्न में से किस प्रकार की बस्तियाँ सड़क, नदी या नहर के किनारे होती हैं?

(अ) वृत्ताकार (स) चौक पट्टी

(ब) रेखीय (द) वर्गाकार

(ii) निम्न में से कौन-सी एक आर्थिक क्रिया ग्रामीण बस्तियों की मुख्य आर्थिक क्रिया है?

(क) प्राथमिक (ख) तृतीयक

(ग) द्वितीयक (घ) चतुर्थ

(iii) निम्न में से किस प्रदेश में प्रलेखित प्राचीनतम नगरीय बस्ती रही है?

(क) ह्वांगही की घाटी (ख) सिंधु घाटी

(ग) नील घाटी (घ) मेसोपोटामिया

(iv) 2006 के प्रारंभ में भारत में कितने मिलियन सिटी थे?

(क) 40 (ख) 41

(ग) 42 (घ) 43

(v) विकासशील देशों की जनसंख्या के सामाजिक ढाँचे के विकास एवं आवश्यकताओ की पूर्ति में कौन से प्रकार के संसाधन सहायक हैं?

(क) वित्तीय (ख) मानवीय

(ग) प्राकृतिक (घ) सामाजिक


2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :

(i) आप बस्ती को कैसे परिभाषित करेंगे?

(ii) स्थान (साइट) एवं स्थिति (सिचुएसन) के मध्य अंतर बताएँ।

(iii) बस्तियों के वर्गीकरण के क्या आधार हैं?

(iv) मानव भूगोल में मानव बस्तियों के अध्ययन का औचित्य बताएँ।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों से अधिक में न दीजिए:

(i) ग्रामीण एवं नगरीय बस्ती किसे कहते हैं? उनकी विशेषताएँ बताएँ।

(ii) विकासशील देशों में नगरीय बस्तियों की समस्याओं का विवेचन कीजिए।


परियोजना/क्रियाकलाप

(i) क्या आप शहर में रहते हैं? यदि नहीं तो क्या शहर के समीप रहते हैं? क्या आपका जीवन शहर से जुड़ा हुआ है?

(क) इसका क्या नाम है?

(ख) यह कब बसा?

(ग) इसकी यह स्थिति क्यों चुनी गई?

(घ) इसकी जनसंख्या कितनी है?

(ड) यह कौन-से कार्य करता है?

(च) अपने शहर का एक खाका (स्केच) बनाकर उसमें किए जाने वाले कार्यों को पहचानिए।

प्रत्येक विद्यार्थी चयनित शहर से जुड़ी हुई पाँच चीज़ों की सूची बनाए जो अन्यत्र नहीं पाई जाती हो। यह शहर की एक छोटी परिभाषा होगी जैसा कि विद्यार्थी इसे देखता है। कक्षा में इस सूची को एक दूसरे से मिलाएँ एवं देखें कि सूचियों के बारे में आपस में कितनी सहमति है।

(ii) क्या आप किसी एेसी युक्ति के विषय में सोच सकते हैं, जिसके प्रयोग से आप अपनी बस्ती में प्रदूषण कम करने में सहायता कर सकते हैं।

संकेत :

(अ) उचित कूड़ा-करकट निस्तारण

(ब) सार्वजनिक यातायात के साधनों का प्रयोग

(स) घरेलू पानी उपयोग का बेहतर प्रबंधन

(द) आस-पास के क्षेत्रों में वृक्षारोपण

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