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इकाई III

अध्याय 8

 

निर्माण उद्योग


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हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विविध प्रकार की वस्तुओं का उपयोग करते हैं| कृषि उत्पादकों, जैसे– गेहूँ, धान आदि को हमारे उपयोग करने से पहले आटा और चावल के रूप में तैयार किया जाता है| लेकिन रोटी और चावल के अतिरिक्त हमें कपड़ों, पुस्तकों, पंखों, कारों और दवाइयों आदि की भी आवश्यकता होती है जिनका निर्माण विभिन्न प्रकार के उद्योगों में होता है| आधुनिक समय में जो अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं| ये उद्योग-धंधे एक बड़ी संख्या में श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करते हैं और कुल राष्ट्रीय संपत्ति/आय में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं|

उद्योगो के प्रकार

उद्योगों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया गया है| आकार, पूँजी-निवेश और श्रमशक्ति के आधार पर उद्योगों को बृहत्, मध्यम, लघु और कुटीर उद्योग में वर्गीकृत किया गया है| स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को (i) सार्वजनिक सेक्टर (ii) व्यक्तिगत सेक्टर (iii) मिश्रित और सहकारी सेक्टर में विभक्त किया गया है| सार्वजनिक सेक्टर उद्योग सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनियाँ या निगम हैं जो सरकार द्वारा निधि प्रदत्त होते हैं| सार्वजनिक सेक्टर में सामान्यतः सामरिक और राष्ट्रीय महत्व के उद्योग-धंधे आते हैं| उद्योगों का वर्गीकरण उनके उत्पादों के उपयोग के आधार पर भी किया गया है, जैसे– (i) मूल पदार्थ उद्योग (ii) पूँजीगत पदार्थ उद्योग (iii) मध्यवर्ती पदार्थ उद्योग (iv) उपभोक्ता पदार्थ उद्योग|

उद्योगों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले कच्चे माल के आधार पर भी उनका वर्गीकरण किया गया है| इसके अनुसार यह वर्गीकरण इस प्रकार है– (i) कृषि-आधारित उद्योग (ii) वन-आधारित उद्योग (iii) खनिज-आधारित उद्योग (iv) उद्योगों द्वारा निर्मित कच्चे माल पर आधारित उद्योग|

उद्योगों का दूसरा प्रचलित वर्गीकरण, निर्मित उत्पादकों की प्रकृति पर आधारित है| इस प्रकार 8 प्रकार के उद्योग हैं– (1) धातुकर्म उद्योग (2) यांत्रिक इंजीनियरी उद्योग (3) रासायनिक और संबद्ध उद्योग (4) वस्त्र उद्योग (5) खाद्य संसाधन उद्योग (6) विद्युत उत्पादन उद्योग (7) इलेक्ट्रॉनिक और (8) संचार उद्योग| आप कभी-कभी स्वतंत्र उद्योग के बारे में पढ़ते हैं| ये क्या हैं? क्या उनका संबंध कच्चे माल से है अथवा नहीं?

उद्योगों की स्थिति

क्या आप पूर्वी और दक्षिणी भारत में लोहा-इस्पात उद्योग की स्थिति के कारणों का अनुमान लगा सकते हैं? उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में कोई भी लोहा-इस्पात उद्योग क्यों नहीं है?

उद्योगों की स्थिति कई कारकों, जैसे– कच्चा माल की उपलब्धता शक्ति, बाज़ार, पूँजी, यातायात और श्रम इत्यादि द्वारा प्रभावित होती है| इन कारकों का सापेक्षिक महत्व समय और स्थान के साथ बदल जाता है| कच्चे माल और उद्योग के प्रकार में घनिष्ठ संबंध होता है| आर्थिक दृष्टि से, निर्माण उद्योग को उस स्थान पर स्थापित करना चाहिए जहाँ उत्पादन मूल्य और निर्मित वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक वितरण करने का मूल्य न्यूनतम हो| परिवहन मूल्य एक बड़ी सीमा तक कच्चे माल और निर्मित उत्पादों की प्रकृति पर निर्भर करता है| उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है|

कच्चा माल

भार-ह्रास वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाले उद्योग उन प्रदेशों में स्थापित किए जाते हैं जहाँ ये उपलब्ध होते हैं| भारत में चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में क्यों स्थापित हैं? इसी तरह, लुगदी उद्योग, ताँबा प्रगलन और पिग आयरन उद्योग अपने कच्चे माल प्राप्ति के स्थानों के निकट ही स्थापित किए जाते हैं| लोहा-इस्पात उद्योग में लोहा और कोयला दोनों ही भार ह्रास वाले कच्चे माल हैं| इसीलिए लोहा-इस्पात उद्योग की स्थिति के लिए अनुकूलतम स्थान कच्चा माल स्रोतों के निकट होना चाहिए| यही कारण है कि अधिकांश लेाहा-इस्पात उद्योग या तो कोयला क्षेत्रों (बोकारो, दुर्गापुर आदि) के निकट स्थित हैं अथवा लौह अयस्क के स्रोतों (भद्रावती, भिलाई और राउरकेला) के निकट स्थित हैं|

शक्ति

शक्ति मशीनों के लिए गतिदायी बल प्रदान करती है और इसीलिए किसी भी उद्योग की स्थापना से पहले इसकी आपूर्ति सुनिश्चित कर ली जाती है| फिर भी कुछ उद्योगों जैसे– एल्युमिनियम और कृत्रिम नाइट्रोजन निर्माण उद्योग की स्थापना शक्ति स्रोत के निकट की जाती है क्योंकि ये अधिक शक्ति उपयोग करने वाले उद्योग हैं, जिन्हें विद्युत की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है|

बाज़ार

बाज़ार, निर्मित उत्पादों के लिए निर्गम उपलब्ध कराती हैं| भारी मशीन, मशीन के औज़ार, भारी रसायनों की स्थापना उच्च माँग वाले क्षेत्रों के निकट की जाती है क्योंकि ये बाज़ार-अभिमुख होते हैं| सूती वस्त्र उद्योग में शुद्ध (जिसमें भार-ह्रास नहीं होता) कच्चे माल का उपयोग होता है और ये प्रायः बड़े नगरीय केंद्रों में स्थापित किए जाते हैं, उदाहरणार्थ– मुंबई, अहमदाबाद, सूरत आदि| पेट्रोलियम परिशोधनशालाओं की स्थापना भी बाज़ारों के निकट की जाती है क्योंकि अपरिष्कृत तेल का परिवहन आसान होता है और उनसे प्राप्त कई उत्पादों का उपयोग दूसरे उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है| कोयली, मथुरा और बरौनी इसके विशिष्ट उदाहरण हैं| परिशोधनशालाओं की स्थापना में पत्तन भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|

परिवहन

क्या आपने कभी मुंबई, चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता के अंदर और उनके चारों ओर उद्योगों के केंद्रीकरण के कारणों को जानने का प्रयास किया है? एेसा इसलिए हुआ कि ये प्रारंभ में ही परिवहन मार्गों को जोड़ने वाले केंद्र बिंदु (Node) बन गए| रेलवे लाइन बिछने के बाद ही उद्योगों को आंतरिक भागों में स्थानांतरित किया गया| सभी मुख्य उद्योग मुख्य रेल मार्गों पर स्थित हैं|

श्रम

क्या हम श्रम के बिना उद्योग के बारे में सोच सकते है? उद्योगों को कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है| भारत में श्रम बहुत गतिशील है तथा जनसंख्या अधिक होने के कारण बड़ी संख्या में उपलब्ध है|

एेतिहासिक कारक

क्या आपने कभी मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के औद्योगिक केंद्र के रूप में उभरने के कारणों के विषय में सोचा है? ये स्थान हमारे औपनिवेशिक अतीत द्वारा अत्यधिक प्रभावित थे| उपनिवेशीकरण के प्रारंभिक चरणों में निर्माण क्रियाओं को यूरोप के व्यापारियों द्वारा नव प्रोत्साहन दिया गया| मुर्शिदाबाद, ढाका, भदोई, सूरत, वडोदरा, कोझीकोड, कोयम्बटूर, मैसूर आदि स्थान महत्वपूर्ण निर्माण केंद्रों के रूप में उभरे| उपनिवेशवाद के उत्तरकालीन औद्योगिक चरण में, ब्रिटेन में निर्मित वस्तुओं से होड़ और उपनिवेशिक शक्ति की भेदमूलक नीति के कारण, इन निर्माण केंद्रों का तेज़ी से विकास हुआ|

उपनिवेशवाद के अंतिम चरणों में अंग्रज़ों ने चुने हुए क्षेत्रों में कुछ उद्योगों को प्रोन्नत किया| इससे, देश में विभिन्न प्रकार के उद्योगों का बड़े पैमाने पर स्थानिक विस्तार हुआ|

औद्योगिक नीति

एक प्रजातांत्रिक देश होने के कारण भारत का उद्देश्य संतुलित प्रादेशिक विकास के साथ आर्थिक संवृद्धि लाना है|

भिलाई और राउरकेला में लौह-स्पात उद्योग की स्थापना देश के पिछड़े जनजातीय क्षेत्रों के विकास के निर्णय पर आधारित थी| वर्तमान समय में भारत सरकार पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित उद्योग-धंधों को अनेक प्रकार के प्रोत्साहन देती है|

मुख्य उद्योग

किसी भी देश के औद्योगिक विकास के लिए लौह-इस्पात उद्योग एक मूल आधार होता है| सूती वस्त्र उद्योग हमारे परंपरागत उद्योगों में से एक है| चीनी उद्योग स्थानिक कच्चे माल पर आधारित है जो कि अंग्रेज़ों के समय में भी फला फूला|

इनके अतिरिक्त इस अध्याय में वर्तमान में और भी आधुनिक उद्योग जैसे पेट्रोलियम रासायनिक उद्योग (Petrochemical Industry) और अवगम प्रौद्योगिकी उद्योग (IT Industry) की भी विवेचना की जाएगी|

लौह-इस्पात उद्योग

लौह-इस्पात उद्योग के विकास ने भारत में तीव्र औद्योगिक विकास के दरवाज़े खोल दिए| भारतीय उद्योग के लगभग सभी सेक्टर अपनी मूल आधारिक अवसंरचना के लिए मुख्य रूप से लोहा इस्पात उद्योग पर निर्भर करते हैं| क्या हम लोहे के उपयोग के बिना कृषि में होने वाले औज़ार बना सकते हैं?

लौह इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क और कोककारी कोयला के अतिरिक्त चूनापत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज और अग्निसहमृत्तिका आदि कच्चे माल की भी आवश्यकता होती है|

ये सभी कच्चे माल स्थूल (भार ह्रास वाले) होते हैं| इसलिए लोहा-इस्पात उद्योग की सबसे अच्छी स्थिति कच्चे माल स्रोतों के निकट होती है| भारत में छत्तीसगढ़, उत्तरी उड़ीसा, झारखंड और पश्चिमी पश्चिम बंगाल के भागों को समाविष्ट करते हुए एक अर्धचंद्राकार प्रदेश है जो कि उच्च कोटि के लौह अयस्क, अच्छे गुणवत्ता वाले कोककारी कोयला और अन्य संपूरकों से समृद्ध है| जिसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश में लौह-इस्पात उद्योग प्रारंभ में ही स्थापित कर दिया गया था|

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भारतीय लौह-इस्पात उद्योग के अंतर्गत बड़े एकीकृत इस्पात कारखानों और छोटी इस्पात मिलें भी सम्मिलित हैं| इसके अंतर्गत द्वितीयक उत्पादक, ढलाई मिलें और आनुषंगिक उद्योग भी आते हैं|

एकीकृत इस्पात कारखाने


टाटा लौह-इस्पात मुंबई-कोलकाता रेलवे मार्ग के बहुत निकट स्थित है| यहाँ के इस्पात के निर्यात के लिए सबसे नज़दीक (लगभग 240 किलोमीटर दूर) पत्तन कोलकाता है|

संयंत्र को पानी सुवर्ण रेखा एवं खारकोई नदियों से, लोहा नोआमंडी और बादाम पहाड़ से, और कोयला जोड़ा खानों (उड़ीसा) से और कोककारी कोयला झरिया और पश्चिमी बोकारो कोयला क्षेत्रों से प्राप्त होता है|

भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी (IISCO)

भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी ने अपना पहला कारखाना हीरापुर में और दूसरा कुल्टी में स्थापित किया| 1937 में भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी (IISCO) के साहचर्य से बंगाल स्टील कार्पोरेशन की स्थापना की गई, बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) में लोहा और इस्पात के उत्पादन की दूसरी इकाई की स्थापना की गई| ‘इंडियन आयरन स्टील कंपनी’ के अधिकार क्षेत्र में आने वाले तीनों संयंत्र दामोदर घाटी कोयला क्षेत्रों (रानीगंज, झरिया और रामगढ़) के निकट कोलकाता-आसनसोल रेल मार्ग पर स्थित हैं| लौह अयस्क सिंहभूमि (झारखंड) से आता है| जल दामोदर नदी की सहायक नदी बराकार से प्राप्त किया जाता है| दुर्भाग्य से, 1972-73 में भारतीय लोहा और इस्पात कारखानें से इस्पात उत्पादन बहुत कम हो गया और संयंत्र सरकार द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया|

विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स (VISW)

तीसरा एकीकृत इस्पात संयंत्र-विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स-जो प्रारंभ में मैसूर लोहा और इस्पात वर्क्स के नाम से जाना जाता था, बाबाबूदन की पहाड़ियों के केमान गुंडी के लौह-अयस्क क्षेत्रों के निकट स्थित है| चूना पत्थर और मैंगनीज भी आसपास के क्षेत्रों में उपलब्ध है| लेकिन इस प्रदेश में कोयला नहीं मिलता| प्रारंभ में पास के जंगलों से प्राप्त लकड़ी को जलाकर बनाए गए चारकोल को 1951 तक ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता था| बाद में विद्युत भट्टियाँ लगाई गईं जिनमें जोग प्रपात जल विद्युत परियोजना से प्राप्त जल विद्युत का उपयोग होता था| संयंत्र को जल भद्रावती नदी से प्राप्त होता है| यह संयंत्र विशिष्ट इस्पात एवं एलॉए का उत्पादन करता है|

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चित्र 8.9 ः तैयार इस्पात का उत्पादन

स्रोतः इस्पात मंत्रालय, भारत सरकार


स्वतंत्रता के बाद, द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-57) में विदेशी सहयोग से तीन नए एकीकृत इस्पात संयंत्रों की स्थापना की गई| ये संयंत्र हैं– राउरकेला (ओडिशा), भिलाई (छत्तीसगढ़) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल)| ये सभी सार्वजनिक सेक्टर संयंत्र हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) के अधिकार में थे| 1973 में, इन संयंत्रों के प्रबंधन के लिए स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया (SAIL) की स्थापना की गई|

राउरकेला इस्पात संयंत्र

राउरकेला इस्पात संयंत्र जर्मनी के सहयोग से 1959 में ओडिशा के सुंदरगढ़ ज़िले में स्थापित किया गया था| संयंत्र को कच्चे माल की निकटता के आधार पर स्थापित किया गया था, इस प्रकार भार-ह्रास वाले कच्चे माल का परिवहन मूल्य कम हो जाता है| इस संयंत्र को विशिष्ट अवस्थितिक लाभ प्राप्त हैं क्योंकि इसे निकटस्थ झरिया (झारखंड) से कोयला और सुंदरगढ़ और केंदुझर से लौह अयस्क प्राप्त हो जाता है| विद्युत भट्टियों के लिए विद्युत शक्ति हीराकुड परियोजना से तथा जल कोइल और शंख नदियों से प्राप्त होता है|

भिलाई इस्पात संयंत्र

भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना रूस के सहयोग से छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले में की गई एवं 1959 में इसमें उत्पादन प्रारंभ हो गया| यहाँ लौह अयस्क डल्ली राजहरा खानों से तथा कोयला कोरबा और करगाली कोयला खानों से प्राप्त होता है| जल तंदुला बाँध से और विद्युतशक्ति कोरबा ताप शक्तिगृह से प्राप्त होती है| यह संयंत्र कोलकाता-मुंबई रेलमार्ग पर स्थित है| उत्पादित इस्पात का अधिकांश भाग विशाखापट्नम स्थित हिंदुस्तान शिपयार्ड में चला जाता है|

दुर्गापुर इस्पात संयंत्र

दुर्गापुर इस्पात संयंत्र यूनाइटेड किंगडम की सरकार के सहयोग से पश्चिम बंगाल में स्थापित किया गया था और 1962 में उसमें उत्पादन प्रारंभ हो गया| यह संयंत्र रानीगंज और झरिया कोयला पेटी में स्थित है और लौह अयस्क नोआमंडी (मानचित्र) से प्राप्त होता है| दुर्गापुर कोलकाता-दिल्ली रेलवे मार्ग पर स्थित है| इसे जल विद्युत शक्ति और जल दामोदर घाटी कारपोरेशन (डी वी सी) से प्राप्त होते हैं|

बोकारो इस्पात संयंत्र


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सूत की कताई (पावरलूम)

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हथकरघा वस्त्र उद्योग

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चित्र 8.10 ः सूती वस्त्रों का उत्पादन

स्रोतः वार्षिक रिपोर्ट 2013-14, CITI

यह इस्पात संयंत्र रूस के सहयोग से 1964 में बोकारो में स्थापित किया गया था| इस संयंत्र की स्थापना परिवहन लागत न्यूनीकरण सिद्धांत के आधार पर की गई थी जिसके अनुसार बोकारो और राउरकेला संयुक्त रूप से राउरकेला प्रदेश से लौह अयस्क प्राप्त करते हैं और वापसी में मालगाड़ी के डिब्बे राउरकेला के लिए कोयला ले जाते हैं| अन्य कच्चे माल बोकारो को लगभग 350 किलोमीटर की परिधि के अंदर प्राप्त हो जाते हैं| जल और जलविद्युत शक्ति की आपूर्ति दामोदर घाटी कार्पोरेशन द्वारा की जाती है|

चित्र 8.11 ः भारत - सूती वस्त्र उद्योग

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अन्य इस्पात संयंत्र

चतुर्थ योजना के समय में स्थापित तीन नए इस्पात संयंत्र कच्चे माल स्रोतों से दूर हैं| तीनों संयंत्र दक्षिणी भारत में स्थापित है| विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) स्थित विजाग इस्पात संयंत्र पहला पत्तन आधारित संयंत्र है| इसकी शुरुआत 1992 में हुई थी| इसकी पत्तन स्थिति लाभप्रद है|

विजयनगर इस्पात संयंत्र होसपेटे (कर्नाटक) में विकसित किया गया| इसमें स्वदेशी तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है| यह संयंत्र आस-पास के क्षेत्रों से प्राप्त लौह-अयस्क और चूना पत्थर का उपयोग करता है| सेलम (तमिलनाडु) इस्पात संयंत्र 1982 में चालू किया गया|

इन मुख्य इस्पात संयंत्रों के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में 206 से अधिक इकाइयाँ स्थापित की गईं| इनमें से अधिकांश इकाइयाँ अपने मुख्य कच्चे माल के रूप में रद्दी लोहे का उपयोग करती हैं और उसे विद्युत भट्टियों में प्रक्रमित करती हैं|

सूती वस्त्र उद्योग

सूती वस्त्र उद्योग भारत के परंपरागत उद्योगों में से एक है| प्राचीन और मध्यकाल में, ये केवल एक कुटीर उद्योग के रूप में थे| भारत संसार में उत्कृष्ट कोटि का मलमल, कैलिको, छींट और अन्य प्रकार के अच्छी गुणवत्ता वाले सूती कपड़ों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था| भारत में इस उद्योग का विकास कई कारणों से हुआ| पहला, भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है एवं सूती कपड़ा गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए एक आरामदायक वस्त्र है| दूसरा, भारत में कपास का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था| देश में इस उद्योग के लिए आवश्यक कुशल श्रमिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे| वस्तुतः कुछ क्षेत्रों में लोग सूती वस्त्रों का उत्पादन पीढ़ियों से कर रहे थे और अपनी कुशलता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करते रहे और इस प्रक्रिया में उनकी कुशलताएँ पक्की हो गईं|

प्रारंभ में, अंग्रेज़ों ने स्वदेशी सूती वस्त्र उद्योग के विकास को प्रोत्साहित नहीं किया| वे कच्चे कपास को मानचेस्टर और लिवरपूल स्थित अपनी मिलों के लिए निर्यात कर देते थे और वहाँ तैयार माल को बेचने के लिए भारत ले आते थे| यह कपड़ा सस्ता होता था क्योंकि भारत के कुटीर उद्योगों की तुलना में यूनाइटेड किंगडम की मिलों में बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था|

1854 में, पहली आधुनिक सूती मिल की स्थापना मुंबई में की गई| इस शहर को सूती वस्त्र निर्माण केंद्र के रूप में कई लाभ थे| यह गुजरात और महाराष्ट्र के कपास उत्पादक क्षेत्रों के बहुत निकट था| कच्ची कपास इंग्लैंड को निर्यात करने के लिए मुंबई पत्तन तक लाई जाती थी| इसलिए कपास स्वयं मुंबई नगर में उपलब्ध थी| इसके अतिरिक्त मुंबई उस समय भी वित्तीय केंद्र था एवं उद्योग प्रारंभ करने के लिए आवश्यक पूँजी भी उपलब्ध थी| रोज़गार अवसर प्रदान करने वाला बड़ा नगर होने के कारण यह श्रमिकों के लिए एक आकर्षक केंद्र था| इसलिए, सस्ते और प्रचुर मात्रा में श्रमिक भी आसपास ही मिल जाते थे| सूती वस्त्र मिलों के लिए आवश्यक मशीनों का आयात इंग्लैंड से किया जा सकता था| बाद में दो और मिलें- शाहपुर मिल और कैलिको मिल– अहमदाबाद में स्थापित की गईं| 1947 तक भारत में मिलों की संख्या 423 तक पहुँच गई लेकिन देश विभाजन के बाद दृश्य बदल गया और इस उद्योग को एक बड़ा प्रतिसरण झेलना पड़ा| इसका कारण यह था कि अच्छी गुणवत्ता वाले कपास उत्पादक क्षेत्रों में से अधिकांश पश्चिमी पाकिस्तान में चले गए और भारत में 409 मिलें और केवल 29 प्रतिशत कपास उत्पादक क्षेत्र रह गए|

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस उद्योग में धीरे-धीरे पुनर्लाभ की स्थिति आई और अंततः यह उद्योग फिर से विकसित हो गया|

भारत में सूती वस्त्र उद्योग को दो सेक्टर्स में बाँटा जा सकता है ः संगठित सेक्टर और असंगठित सेक्टर| विकेंद्रित सेक्टर के अंतर्गत हथकरघों (खादी सहित) और विद्युतकरघों में उत्पादित कपड़ा आता है| संगठित सेक्टर के उत्पादनों में तेज़ी से कमी आई है| यह 20 शताब्दी के मध्य में 81 प्रतिशत से घटकर 2000 में केवल लगभग 6 प्रतिशत रह गया है| वर्तमान में, देश में उत्पादित सूती वस्त्र हथकरघा सेक्टर की तुलना में विकेंद्रित सेक्टर में विद्युत करघों द्वारा अधिक उत्पादित किया जाता है|

कपास एक शुद्ध कच्चा माल है जिसका वजन निर्माण प्रक्रिया में नहीं घटता है| अतः अन्य दूसरे कारक, जैसे करघों को चलाने के लिए शक्ति, श्रमिक, पूँजी अथवा बाज़ार आदि उद्योग की स्थिति को निर्धारित करते हैं| वर्तमान में उद्योग को बाज़ार में या बाज़ार के निकट स्थापित करने की प्रवृत्ति पाई जाती है और बाज़ार ही यह निश्चित करता है कि किस प्रकार के कपड़े का उत्पादन होना चाहिए| तैयार माल के बाज़ार में अत्यधिक भिन्नता मिलती है| अतएव तैयार माल को बेचने के दृष्टिकोण से मिलों को बाज़ार के निकट स्थापित करना महत्वपूर्ण है|

19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मुंबई और अहमदाबाद में पहली मिल की स्थापना के पश्चात् सूती वस्त्र उद्योग का तेज़ी से विस्तार हुआ| मिलों की संख्या आकस्मिक रूप से बढ़ गई| स्वदेशी आंदोलन ने उद्योग को प्रमुख रूप से प्रोत्साहित किया क्योंकि ब्रिटेन के बने सामानों का बहिष्कार कर बदले में भारतीय सामानों को उपयोग में लाने का आह्वान किया गया| 1921 के बाद रेलमार्गों के विकास के साथ ही दूसरे सूती वस्त्र केंद्रों का तेजी से विस्तार हुआ| दक्षिणी भारत में, कोयंबटूर, मदुरई और बेंगलूरु में मिलों की स्थापना की गई| मध्य भारत में नागपुर, इंदौर के अतिरिक्त शोलापुर और वडोदरा सूती वस्त्र केंद्र बन गए| कानपुर में स्थानिक निवेश के आधार पर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की गई| पत्तन की सुविधा के कारण कोलकाता में भी मिलें स्थापित की गईं| जलविद्युत शक्ति के विकास से कपास उत्पादक क्षेत्रों से दूर सूती वस्त्र मिलों की अवस्थिति में भी सहयोग मिला| तमिलनाडु में इस उद्योग के तेज़ी से विकास का कारण मिलों के लिए प्रचुर मात्रा में जल-विद्युत शक्ति की उपलब्धता है| उज्जैन, भरूच, आगरा, हाथरस, कोयंबटूर और तिरुनेलवेली आदि केंद्रों में, कम श्रम लागत के कारण कपास उत्पादक क्षेत्रों से उनके दूर होते हुए भी उद्योगों की स्थापना की गई|

इस प्रकार, भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में जहाँ एक या एक से अधिक अनुकूल अवस्थितिक कारक विद्यमान थे, सूत्री वस्त्र उद्योग स्थापित किए गए| इस प्रकार कच्चे माल के स्थान पर बाज़ार अथवा सस्ते स्थानिक श्रमिक या विद्युत शक्ति की उपलब्धता अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई|

वर्तमान में अहमदाबाद, भिवांडी, शोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर, इंदौर और उज्जैन सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं| ये सभी केंद्र परंपरागत केंद्र हैं और कपास उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित हैं| महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु अग्रणी कपास उत्पादक राज्य हैं| पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब दूसरे महत्वपूर्ण सूती वस्त्र उत्पादक हैं| (चित्र 8.11)

तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक मिलें हैं और उनमें से अधिकांश कपड़ा न बनाकर सूत का उत्पादन करती हैं| कोयंबटूर, जहाँ तमिलनाडु की लगभग आधे से अधिक मिलों के अवस्थित होने के कारण सबसे महत्वपूर्ण केंद्र के रूप मेें उभरा है| चेन्नई, मदुरई, तिरुनेलवैली, तूतीकोरिन, थंजावूर, रामनाथपुरम और सेलम दूसरे महत्वपूर्ण केंद्र हैं| कर्नाटक में सूती वस्त्र उद्योग का विकास राज्य के उत्तरी पूर्वी भागों के कपास उत्पादक क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ देवनगरी, हुब्बलि, बल्लारि, मैसूरु और बेंगलुरु महत्वपूर्ण केंद्र हैं| सूती वस्त्र उद्योग कपास उत्पादक तेलंगाना प्रदेश में स्थित है| वहाँ अधिकांश कताई मिलें हैं जो सूत का उत्पादन करती हैं| हैदराबाद, सिकंदराबाद और वारंगल महत्वपूर्ण केंद्र हैं|

उत्तर प्रदेश में कानपुर सबसे बड़ा केंद्र है| मोदीनगर, हाथरस, सहारनपुर, आगरा और लखनऊ कुछ अन्य महत्वपूर्ण केंद्र हैं| पश्चिम बंगाल में, सूती मिलें हुगली प्रदेश में स्थित हैं| हावड़ा, सीरामपुर, कोलकाता और श्यामनगर महत्वपूर्ण केंद्र हैं|

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् से सूती कपड़े के उत्पादन में लगभग 5 गुनी वृद्धि हुई है| सूती कपड़े को सिंथेटिक कपड़ों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है| भारत में सूती वस्त्र उद्योग की और कौन-सी अन्य समस्याएँ हैं?

चीनी उद्योग

चीनी उद्योग देश का दूसरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण कृषि-आधारित उद्योग है| भारत विश्व में गन्ना और चीनी दोनों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और यह विश्व के कुल चीनी उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत उत्पादन करता है| इसके अतिरिक्त गन्ने से खांडसारी और गुड़ भी तैयार किए जाते हैं| यह उद्योग 4 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और एक बड़ी संख्या में किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है| कच्चे माल के मौसमी होने के कारण, चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है|

आधुनिक आधार पर उद्योग का विकास 1903 में प्रारंभ हुआ जब बिहार में एक चीनी मिल की स्थापना की गई| इसके बाद, बिहार और उत्तर प्रदेश के दूसरे भागों में चीनी मिलें खोली गईं| 1950-51 में 139 कारखानें प्रचालन में थे 2010-11 में चीनी मिलों की संख्या बढ़कर 662 हो गयी|

उद्योग की अवस्थिति

गन्ना एक भार-ह्रास वाली फ़सल है| चीनी और गन्ने का अनुपात 9 प्रतिशत से 12 प्रतिशत के बीच होता है जो इसकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है| खेतों में काटकर एकत्रित करने से लेकर ढुलाई की अवधि तक इसमें सुक्रोज की मात्रा सूखती रहती है| गन्ने को खेत से काटने के 24 घंटे के अंदर ही पेरा जाय तो अधिक चीनी की मात्रा प्राप्त होती है| अतः इस प्रदेश के अधिकांश कारखाने गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के निकट ही स्थित हैं|

महाराष्ट्र देश में अग्रणी चीनी उत्पादक राज्य के रूप में विकसित हुआ और देश में कुल चीनी उत्पादन के एक-तिहाई से अधिक भाग का उत्पादन करता है| राज्य में 119 चीनी मिलें हैं जो एक सँकरी पट्टी के रूप में उत्तर में मनमाड से लेकर दक्षिण में कोल्हापुर तक विस्तृत हैं| इनमें से 87 मिलें सहकारी सेक्टर में हैं|

चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश का द्वितीय स्थान है| चीनी उद्योग दो पेटियों– गंगा-यमुना दोआब और तराई प्रदेश में केंद्रित है| गंगा-यमुना दोआब में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाज़ियाबाद, बागपत और बुलंदशहर मुख्य चीनी उत्पादक ज़िले हैं, जबकि तराई प्रदेश के मुख्य चीनी उत्पादक ज़िले लखीमपुर खीरी, बस्ती, गोंडा, गोरखपुर, बहराइच हैं|

तमिलनाडु में, चीनी मिलें कोयंबटूर, वेलौर, तिरुवनमलाई, विल्लुपुरम और तिरुचिरापल्ली ज़िलों में स्थित हैं| कर्नाटक में बेलगावि, बेल्लारि, माण्डया, शिवमोगा, विजयपुर और चित्रदुर्ग मुख्य चीनी उत्पादक ज़िले हैं| यहाँ चीनी उद्योग आंध्र प्रदेश के तटीय जिलों में पूर्वी गोदावरी, पश्चिमी गोदावरी, विशाखापट्नम और तेलंगाना के निजामाबाद ज़िले और मेडक ज़िले में वितरित है|


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बिहार, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात अन्य चीनी उत्पादक राज्य हैं| बिहार में सारन, चंपारन, मुजफ्फरपुर, सीवान, दरभंगा और गया (मानचित्र) मुख्य गन्ना उत्पादक ज़िले हैं| पंजाब का सापेक्षिक महत्व कम हो गया है, यद्यपि गुरदासपुर, जलंधर, संगरूर, पटियाला एवं अमृतसर अब भी प्रमुख चीनी उत्पादक हैं| हरियाणा में चीनी मिलें यमुनानगर, रोहतक, हिसार और फरीदाबाद ज़िलों में स्थित हैं| गुजरात में चीनी उद्योग तुलनात्मक रूप से नया है| यहाँ, चीनी मिलें सूरत, जूनागढ़, राजकोट, अमरेली, वालसद और भावनगर ज़िलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में स्थित हैं|

पेट्रो-रसायन उद्योग

उद्योगों का यह वर्ग भारत में तेज़ी से विकसित हो रहा है| उद्योगों की इस श्रेणी के अंतर्गत कई प्रकार के उत्पाद आते हैं| 1960 में जैव रसायनों की माँग इतनी तेज़ी से बढ़ी कि इसको पूरा करना कठिन हो गया| उस समय पेट्रोल परिशोधन उद्योग का तेज़ी से विस्तार हुआ| अपरिष्कृत पेट्रोल से कई प्रकार की वस्तुएँ तैयार की जाती हैं जो अनेक नए उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराती हैं, इन्हें सामूहिक रूप से पेट्रो-रसायन उद्योग के नाम से जाना जाता है| उद्योगों के इस वर्ग को चार उपवर्गों में विभाजित किया गया है– (1) पॉलीमर (Polymers), (2) कृत्रिम रेशे, (3) इलैस्टोमर्स, (4) पृष्ठ संक्रियक  (Surfacant Intermediate)| मुंबई शैल-रसायन उद्योगों का केंद्र है| पटाखों के उद्योग औरैया (उत्तर प्रदेश), जामनगर, गांधीनगर और हजीरा (गुजरात), नागोथाने, रत्नागिरि महाराष्ट्र, हल्दिया (पश्चिम बंगाल) और विशाखापट्नम (आंध्र प्रदेश) में भी स्थित हैं| रासायनिक और पेट्रो-रासायनिक विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में पेट्रो-रसायन सेक्टर के अंतर्गत तीन संस्थाएँ कार्य कर रही हैं| पहली, भारतीय पेट्रो-रासायनिक कार्पोरेशन लिमिटेड (IPCL) सार्वजनिक सेक्टर में आती है| यह विभिन्न प्रकार के पेट्रो-रसायनों, जैसे– पॉलीमर, रेशों और रेशों से बने संक्रियक (Intermediate) का निर्माण और वितरण करता है| दूसरा पेट्रोफिल्स कोअॉपरेटिव लिमिटेड है जो भारत सरकार एवं बुनकरों की सहकारी संस्थाओं का संयुक्त प्रयास है| यह पॉलिस्टर तंतु सूत और नाइलोन चिप्स का उत्पादन गुजरात स्थित वडोदरा एवं नलधारी संयंत्रों में करता है| तीसरा, सेंट्रल इंस्टिट्यूट अॉफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET) है जो पेट्रोकेमिकल उद्योग में प्रशिक्षण प्रदान करता है|

सार्वजनिक सेक्टर में 1961 में स्थापित द नेशनल आर्गेनिक केमिकल्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड (NOCIL) नेफथा पर आधारित मुंबई का पहला रासायनिक उद्योग था| इसके बाद अन्य कई कंपनियां बन गईं| मुंबई, बरौनी, मेटूर पिम्परी और रिशरा में स्थित संयंत्र प्लास्टिक की वस्तुओं के मुख्य उत्पादक हैं| लगभग 75 प्रतिशत इकाइयाँ लघु पैमाने के सेक्टर में हैं| यह उद्योग पुनःचक्रित (recycled) प्लास्टिक का भी प्रयोग करता है जो पूरे उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत है|

संश्लिष्ट तंतु (synthetic fibre) का अपने मज़बूती, टिकाऊपन, प्रक्षालनता, धोने पर न सिकुड़ने के गुणों के कारण इसका व्यापक रूप से प्रयोग कपड़ा बनाने के लिए किया जाता है| नायलान तथा पॉलिस्टर धागा बनाने के संयंत्र कोटा, पिंपरी, मुंबई, मोदी नगर, पुणे, उज्जैन, नागपुर एवं उधना में लगाये गए हैं| कोटा और वडोदरा में एेक्रिलिक कपड़े बनाए जाते हैं|

यद्यपि प्लास्टिक हमारे दैनिक जीवन के उपयोग के लिए एक अपृथक्करणीय वस्तु बन चुकी है और हमारे रहन-सहन की पद्धति को प्रभावित करती हैं परंतु जैव-निम्नीकरण का गुण न होने के कारण यह हमारे पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है| इसीलिए भारत के विभिन्न राज्यों में प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है| क्या आप जानते हैं कि प्लास्टिक किस प्रकार हमारे पर्यावरण को हानि पहुँचाता है?

ज्ञान-आधारित उद्योग

अवगम प्रौद्योगिक उन्नति ने देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है| सूचना औद्योगिकी क्रांति ने आर्थिक और सामाजिक रूपांतरण के लिए नई संभावनाएँ उत्पन्न कर दी हैं| भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग यहाँ की अर्थव्यवस्था में सबसे तेज़ी से विकसित हुए सेक्टरों में से एक है| सॉफ्टवेयर उद्योग इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर उत्पादन से आगे बढ़ गया| भारत सरकार ने देश में अनेक सॉफ्टवेयर पार्क्स बनाए हैं|

भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग को उत्तम उत्पाद उपलब्ध कराने में असाधारण प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी है| बड़ी संख्या में भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणन प्राप्त कर लिया है| अवगम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के या तो सॉफ्टवेयर विकास केंद्र अथवा अनुसंधान विकास केंद्र भारत में हैं|

इस विकास का मुख्य प्रभाव रोज़गार अवसर के सृजन पर पड़ा है जो प्रतिवर्ष लगभग दुगुना हो रहा है|


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चित्र 8.12 ः भारत - कुछ सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क

भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण एवं औद्योगिक विकास नई औद्योगिक नीति की घोषणा 1991 में की गई| इस नीति के मुख्य उद्देश्य थे– अब तक प्राप्त किए गए लाभ को बढ़ाना, इसमें विकृति अथवा कमियों को दूर करना, उत्पादकता और लाभकारी रोज़गार में स्वपोषित वृद्धि को बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता प्राप्त करना|

इस नीति के अंतर्गत किए गए उपाय हैंः (1) औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था का समापन, (2) विदेशी तकनीकी का निःशुल्क प्रवेश, (3) विदेशी निवेश नीति, (4) पूँजी बाज़ार में अभिगम्यता, (5) खुला व्यापार, (6) प्रावस्थबद्ध निर्माण कार्यक्रम का उन्मूलन, (7) औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण| नीति के तीन मुख्य लक्ष्य हैं– उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण|

औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था वस्तुतः सुरक्षा, सामरिक अथवा पर्यावरणीय सरोकार से संबंधित केवल छः उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों के लिए समाप्त कर दी गई| साथ ही, 1956 से सार्वजनिक सेक्टर के लिए सुरक्षित उद्योगों की संख्या 17 से घटकर 4 रह गई| परमाणु शक्ति से संबंधित उद्योग, परमाणु शक्ति विभाग की सूची में विनिर्दिष्ट पदार्थ तथा रेलवे सार्वजनिक सेक्टर के अंतर्गत बने रहे| सरकार ने सार्वजनिक उद्यमों के शेयरों में कुछ भाग वित्तीय संस्थाओं, सामान्य जनता और कामगारों को देने का निश्चय किया|

संपत्ति देहली (threshold) की सीमा समाप्त कर दी गई और बिना-लाइसेंस सेक्टर में पूँजी लगाने के लिए किसी भी उद्योग को पूर्व सहमति लेने की आवश्यकता नहीं रह गई| उन्हें केवल निर्धारित आरूप में दिए गए विवरण पत्र जमा करने की आवश्यकता होती है|

नई औद्योगिक नीति में, आर्थिक विकास का ऊँचा स्तर प्राप्त करने के लिए सीधा विदेशी सीधा निवेश (Foreign Direct Investiment– FDI) घरेलू निवेश के पूरक के रूप में देखा गया है| FDI घरेलू निवेश तथा उपभोक्ताओं को जिस तकनीकी उन्नयन, वैश्विक प्रबंध कुशलता और व्यावहारिकता का अभिगमन प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों का सर्वाेत्तम उपयोग आदि के प्रावधान द्वारा लाभ प्रदान करता है| इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए विदेशी निवेश का उदारीकरण हुआ तथा सरकार ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए स्वचालित मार्ग तक पहुँच की सहमति दे दी है|

सरकार ने औद्योगिक स्थिति संबंधी नीतियों में भी परिवर्तन की घोषणा की है पर्यावरणीय कारणों से बड़े शहरों में या उनके निकट उद्योगों की स्थिति को हतोत्साहित किया गया|

औद्योगिक नीति में उदारता, घरेलू और बहुराष्ट्रीय दोनों व्यक्तिगत पूँजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए, दिखाई गई| नए सेक्टर जैसे खनन, दूर संचार राजमार्ग निर्माण और व्यवस्था को व्यक्तिगत कंपनियों के लिए पूरा खोल दिया गया| इन सभी छूटों के बाद भी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) आशाओं के अनुकूल नहीं था| स्वीकृत और वास्तविक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में बहुत अंतर था यद्यपि विदेशी सहयोग की संख्या बढ़ रही है| इस निवेश का बड़ा भाग घरेलू उपकरणों, वित्त, सेवा, इलेक्ट्रॉनिक और विद्युत उपकरण और खाद्य व दुग्ध उत्पादकों में लगाया जा चुका है| 

वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है| इस प्रक्रिया के अंतर्गत सामान और पूँजी सहित सेवाएँ, श्रम और संसाधन एक देश से दूसरे देश को स्वतंत्रतापूर्वक पहुँचाए जा सकते हैं| घरेलू और बाह्य प्रतिस्पर्धा के लिए बाज़ार प्रक्रिया के व्यापक उपयोग और विदेशी निवेशकों और तकनीकी पूर्तिकारों के साथ प्रभावी संबंध को सुसाध्य बनाकर वैश्वीकरण को आगे बढ़ाना है| भारतीय संदर्भ में इसका अर्थ है– (1) भारत में आर्थिक क्रियाओं के विभिन्न क्षेत्रों में, विदेशी कंपनियों को पूँजी निवेश की सुविधा उपलब्ध कराकर, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए अर्थव्यवस्था को खोलना (2) भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंधों और बाधाओं को ख़त्म करना (3) भारतीय कंपनियों को देश में विदेशी कंपनियों के सहयोग से उद्योग खोलने की अनुमति प्रदान करना और उनके सहयोग से विदेशों में साझा उद्योग स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहित करना (4) पहले शुल्क दर के मात्रात्मक प्रतिबंधों में कमी लाकर बड़ी मात्रा में आयात उदारता कार्यक्रम को कार्यान्वित करना और तब आयात करों के स्तर को ध्यान में रखते हुए उसे नीचे लाना (5) निर्यात प्रोत्साहन के एक वर्ग के बजाय निर्यात को बढ़ाने के लिए विनिमय दर व्यवस्था को चुनना|

भारत के औद्योगिक प्रदेश

देश में उद्योगों का वितरण समरूप नहीं है| उद्योग कुछ अनुकूल अवस्थितिक कारकों से कुछ निश्चित स्थानों पर केंद्रित हो जाते हैं|

उद्योगों के समूहन को पहचानने के लिए कई सूचकांकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें प्रमुख हैंः (1) औद्योगिक इकाइयों की संख्या (2) औद्योगिक कर्मियों की संख्या (3) औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली प्रयुक्त शक्ति की मात्रा (4) कुल औद्योगिक निर्गत (output) (5) उत्पादन प्रक्रिया जन्य मूल्य आदि| 

देश के प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों का सविस्तार विवरण आगे प्रस्तुत है (चित्र 8.13)|

मुंबई-पुणे औद्योगिक प्रदेश

यह मुंबई-थाने से पुणे तथा नासिक और शोलापुर ज़िलों के संस्पर्शी क्षेत्रों तक विस्तृत है| इसके अतिरिक्त रायगढ़, अहमदनगर, सतारा, सांगली और जलगाँव ज़िलों में औद्योगिक विकास तेज़ी से हुआ है| इस प्रदेश का विकास मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के साथ प्रारंभ हुआ| मुंबई में कपास के पृष्ठ प्रदेश में स्थिति होने और नम जलवायु के कारण मुंबई में सूती वस्त्र उद्योेग का विकास हुआ| 1869 में स्वेज नहर के खुलने के कारण मुंबई पत्तन के विकास को प्रोत्साहन मिला| इस पत्तन के द्वारा मशीनों का आयात किया जाता था| इस उद्योग की आवश्यकता पूर्ति के लिए पश्चिमी घाट प्रदेश में जलविद्युत शक्ति का विकास किया गया|

सूती वस्त्र उद्योेग के विकास के साथ रासायनिक उद्योग भी विकसित हुए| मुंबई हाई पेट्रोलियम क्षेत्र और नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना ने इस प्रदेश को अतिरिक्त बल प्रदान किया|

इसके अतिरिक्त, अभियांत्रिकी वस्तुएँ, पेट्रोलियम परिशोधन, पेट्रो-रासायनिक, चमड़ा, संश्लिष्ट और प्लास्टिक वस्तुएँ, दवाएँ, उर्वरक, विद्युत वस्तुएँ, जलयान निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, सॉफ्टवेयर, परिवहन उपकरण और खाद्य उद्योगों का भी विकास हुआ| मुंबई, कोलाबा, कल्याण, थाणे, ट्राम्बे, पुणे, पिंपरी, नासिक, मनमाड, शोलापुर, कोल्हापुर, अहमदनगर, सतारा और सांगली महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र हैैं|

हुगली औद्योगिक प्रदेश

हुगली नदी के किनारे बसा हुआ, यह प्रदेश उत्तर में बाँसबेरिया से दक्षिण में बिडलानगर तक लगभग 100 किलोमीटर में फैला है| उद्योगों का विकास पश्चिम में मेदनीपुर में भी हुआ है| कोलकाता-हावड़ा इस औद्योगिक प्रदेश के केंद्र हैं| ंइसके विकास में एेतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों ने अत्यधिक योगदान दिया है | इसका विकास हुगली नदी पर पत्तन के बनने के बाद प्रारंभ से हुआ| देश में कोलकाता एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा| इसके बाद, कोलकाता भीतरी भागों से रेलमार्गों और सड़क मार्गों द्वारा जोड़ दिया गया| असम और पश्चिम बंगाल की उत्तरी पहाड़ियों में चाय बगानों के विकास उससे पहले नील का परिष्करण और बाद में जूट संसाधनों ने दामोदर घाटी के कोयला क्षेत्रों और छोटानागपुर पठार के लौह अयस्क के निक्षेपों के साथ मिलकर इस प्रदेश के औद्योगिक विकास में सहयोग प्रदान किया| बिहार के घने बसे भागों, पूर्वी उत्तर प्रदेश और ओडिशा से उपलब्ध सस्ते श्रम ने भी इस प्रदेश के विकास में योगदान दिया| कोलकाता ने अंग्रेज़ी ब्रिटिश भारत की राजधानी (1773-1911) होने के कारण ब्रिटिश पूँजी को भी आकर्षित किया| 1855 में रिशरा में पहली जूट मिल की स्थापना ने इस प्रदेश के आधुनिक औद्योगिक समूहन के युग का प्रारंभ किया|

जूट उद्योग का मुख्य केंद्रीकरण हावड़ा और भटपारा मेें है| 1947 में देश के विभाजन ने इस औद्योगिक प्रदेश को बुरी तरह प्रभावित किया| जूट उद्योग के साथ ही सूती वस्त्र उद्योग भी पनपा| कागज, इंजीनियरिंग , टेक्सटाइल मशीनों, विद्युत, रासायनिक, औषधीय, उर्वरक और पेट्रो-रासायनिक उद्योगों का भी विस्तार हुआ| कोननगर में हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड का कारखाना और चितरंजन में डीज़ल इंजन का कारखाना इस प्रदेश के औद्योगिक स्तंभ हैं| इस प्रदेश के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र कोलकाता, हावड़ा, हल्दिया, सीरमपुर, रिशरा, शिबपुर, नैहाटी गुरियह, काकीनारा, श्यामनगर, टीटागढ़, सौदेपुर, बजबज, बिडलानगर, बाँसबेरिया, बेलगुरियह, त्रिवेणी, हुगली, बेलूर आदि हैं| फिर भी इस प्रदेश के औद्योगिक विकास में दूसरे प्रदेशों की
तुलना में कमी आई है| जूट उद्योग की अवनति इसका एक कारण है|

बेंगलूरु-चेन्नई औद्योगिक प्रदेश

यह प्रदेश स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अत्यधिक तीव्रता से औद्योगिक विकास का साक्षी है| 1960 तक उद्योग केवल बेंगलूरु, सेलम और मदुरई ज़िलों तक सीमित थे लेकिन अब वे तमिलनाडु के विल्लूपुरम को छोड़कर लगभग सभी ज़िलों में फैल चुके हैैं| कोयला क्षेत्रों से दूर होने के कारण इस प्रदेश का विकास पायकारा जलविद्युत संयंत्र पर निर्भर करता है जो 1932 में बनाया गया था| कपास उत्पादक क्षेत्र होने के कारण सूती वस्त्र उद्योगा ने सबसे पहले पैर जमाए थे| सूती मिलों के साथ ही करघा उद्योग का भी तेज़ी से विकास हुआ| अनेक भारी अभियांत्रिकी उद्योग बंगलौर में एकत्रित हो गए| वायुयान (एच.ए.एल.), मशीन उपकरण, टेलीफ़ोन और भारत इलेक्ट्रानिक्स इस प्रदेश के औद्योगिक स्तंभ हैं| टेक्सटाइल, रेल के डिब्बे, डीज़ल इंजन, रेडियो, हल्की अभियांत्रिकी वस्तुएँ, रबर का सामान, दवाएँ, एल्युमीनियम, शक्कर, सीमेंट, ग्लास, कागज़, रसायन, फ़िल्म, सिगरेट, माचिस, चमड़े का सामान आदि महत्वपूर्ण उद्योग हैैं| चेन्नई में पेट्रोलियम परिशोधनशाला,
सेलम में लोहा-इस्पात संयंत्र और उर्वरक संयंत्र अभिनव विकास हैं|

गुजरात औद्योगिक प्रदेश

इस प्रदेश का केंद्र अहमदाबाद और वडोदरा के बीच है लेकिन यह प्रदेश दक्षिण में वलसाद और सूरत तक और पश्चिम में जामनगर तक फैला है| इस प्रदेश का विकास 1860 में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना से भी संबंधित है| यह प्रदेश एक महत्वपूर्ण सूती वस्त्र उद्योग क्षेत्र बन गया| कपास उत्पादक क्षेत्र में स्थित होने के कारण इस प्रदेश को कच्चे माल और बाज़ार दोनों का ही लाभ मिला| तेल क्षेत्रों की खोज से पेट्रो-रासायनिक उद्योगों की स्थापना अंकलेश्वर, वडोदरा और जामनगर के चारों ओर हुई| कांडला पत्तन ने इस प्रदेश के तीव्र विकास में सहयोग दिया| कोयली में पेट्रोलियम परिशोधनशाला ने अनेक पेट्रो-रासायनिक उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया| औद्योगिक संरचना में अब विविधता आ चुकी है| कपड़ा (सूती, सिल्क और कृत्रिम कपड़े) और पेट्रो-रासायनिक उद्योगों के अतिरिक्त अन्य उद्योग भारी और आधार रासायनिक, मोटर, ट्रैक्टर, डीज़ल इंजन, टेक्सटाइल मशीनें, इंजीनियरिंग, औषधि, रंग रोगन, कीटनाशक, चीनी, दुग्ध उत्पाद और खाद्य प्रक्रमण हैं| अभी हाल ही में सबसे बड़ी पेट्रोलियम परिशोधनशाला जामनगर में स्थापित की गई है| इस प्रदेश के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र अहमदाबाद, वडोदरा, भरूच, कोयली, आनंद, खेरा, सुरेंद्रनगर, राजकोट, सूरत, वलसाद और जामनगर हैं|

छोटानागपुर प्रदेश

यह प्रदेश झारखंड, उत्तरी ओडिशा और पश्चिमी पश्चिम बंगाल में फैला है और भारी धातु उद्योगों के लिए जाना जाता है| यह प्रदेश अपने विकास के लिए दामोदर घाटी में कोयला और झारखंड तथा उत्तरी उड़ीसा में धात्विक और अधात्विक खनिजों की खोज का ऋणी है| कोयला, लौह अयस्क और दूसरे खनिजों की निकटता इस प्रदेश में भारी उद्योगों की स्थापना को सुसाध्य बनाती है| इस प्रदेश में छः बड़े एकीकृत लौह-इस्पात संयंत्र जमशेदपुर, बर्नपुर, कुल्टी, दुर्गापुर, बोकारो और राउरकेला में स्थापित है| ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ऊष्मीय और जलविद्युतशक्ति संयंत्रों का निर्माण दामोदर घाटी में किया गया है| प्रदेश के चारों ओर घने बसे प्रदेशों से सस्ता श्रम प्राप्त होता है और हुगली प्रदेश अपने उद्योगों के लिए बड़ा बाज़ार उपलब्ध कराता है| भारी इंजीनियरिंग, मशीन-औज़ार, उर्वरक, सीमेंट, कागज़, रेल इंजन और भारी विद्युत उद्योग इस प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण उद्योग हैं| राँची, धनबाद, चैबासा, सिंदरी, हज़ारीबाग, जमशेदपुर, बोकारो, राउरकेला, दुर्गापुर आसनसोल और डालमियानगर महत्वपूर्ण केंद्र हैं|

विशाखापट्नम-गुंटूर प्रदेश

यह औद्योगिक प्रदेश विशाखापत्तनम् ज़िले से लेकर दक्षिण में कुरूनूल और प्रकासम ज़िलों तक फैला है| इस प्रदेश का औद्योगिक विकास विशाखापट्नम और मछलीपटनम पत्तनों, इसके भीतरी भागों में विकसित कृषि तथा खनिजों के बड़े संचित भंडार पर निर्भर है| गोदावरी बेसिन के कोयला क्षेत्र इसे ऊर्जा प्रदान करते हैं| जलयान निर्माण उद्योग का प्रारंभ 1941 में विशाखापट्नम में हुआ था| आयातित पेट्रोल पर आधारित पेट्रोलियम परिशोधनशाला ने कई पेट्रो-रासायनिक उद्योगों की वृद्धि को सुगम बनाया है| शक्कर, वस्त्र, जूट, कागज़, उर्वरक, सीमेंट, एल्युमीनियम और हल्की इंजीनियरिंग इस प्रदेश के मुख्य उद्योग हैं| गुंटूर ज़िले में एक शीशा-जिंक प्रगालक कार्य कर रहा है| विशाखापट्नम में लोहा और इस्पात संयंत्र बेलाडिला लौह अयस्क का प्रयोग करता है| विशाखापट्नम, विजयवाड़ा, विजयनगर, राजमुंदरी, गुंटूर, एलूरू और कुरनूल महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र हैं|

गुरुग्राम-दिल्ली-मेरठ प्रदेश

इस प्रदेश में स्थित उद्योगों में पिछले कुछ समय से बड़ा तीव्र विकास दिखाई देता है| खनिजों और विद्युतशक्ति संसाधनों से बहुत दूर स्थित होने के कारण यहाँ उद्योग छोटे और बाज़ार अभिमुखी हैं| इलेक्ट्रॉनिक, हल्के इंजीनियरिंग और विद्युत उपकरण इस प्रदेश के प्रमुख उद्योग हैं| इसके अतिरिक्त यहाँ सूती, ऊनी और कृत्रिम रेशा वस्त्र, होजरी, शक्कर, सीमेंट, मशीन उपकरण, ट्रैक्टर, साईकिल, कृषि उपकरण, रासायनिक पदार्थ और वनस्पति घी उद्योग हैं जो कि बड़े स्तर पर विकसित हैं| सॉफ्टवेयर उद्योग एक नई वृद्धि है| दक्षिण में आगरा-मथुरा उद्योग क्षेत्र हैं जहाँ मुख्य रूप से शीशे और चमड़े का सामान बनता है| मथुरा तेल परिशोधन कारखाना पेट्रो-रासायनिक पदार्थों का संकुल है| प्रमुख औद्योगिक केंद्रों में गुरुग्राम, दिल्ली, मेरठ, मोदीनगर, गाज़ियाबाद, अंबाला, आगरा और मथुरा का नाम लिया जा सकता है|

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कोलम-तिरुवनंतपुरम प्रदेश

यह औद्योगिक प्रदेश तिरुवनंतपुरम, कोलम, अलवाय, अरनाकुलम् और अल्लापुझा ज़िलों में फैला हुआ है| बागान कृषि और जलविद्युत इस प्रदेश को औद्योगिक आधार प्रदान करते हैं| देश की खनिज पेटी से बहुत दूर स्थित होने के कारण, कृषि उत्पाद प्रक्रमण और बाज़ार अभिविन्यस्त हल्के उद्योगों की इस प्रदेश पर से अधिकता है| उनमें से सूती वस्त्र उद्योग, चीनी, रबड़, माचिस, शीशा, रासायनिक उर्वरक और मछली आधारित उद्योग महत्वपूर्ण हैं| खाद्य प्रक्रमण, कागज़, नारियल रेशा उत्पादक, एल्यूमीनियम और सीमेंट उद्योग भी महत्वपूर्ण हैं| कोची में पेट्रोलियम परिशोधनशाला की स्थापना ने इस प्रदेश के उद्योगों को एक नया विस्तार प्रदान किया है| कोलम, थिरुवनंथपुरम्, अलुवा, कोच्चि, अलापुझा और पुनालूर महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र हैं|

चित्र 8.1 ः भारत - लोहा एवं इस्पात संयंत्र


उत्पादन मिलियन टन में

औद्योगिक प्रदेश और ज़िले

मुख्य औद्योगिक प्रदेश-8

(1) मुंबई-पुणे प्रदेश, (2) हुगली प्रदेश, (3) बेंगलुरु-तमिलनाडु प्रदेश, (4) गुजरात प्रदेश, (5) छोटानागपुर प्रदेश,
(6) विशाखापट्नम- गुंटूर प्रदेश, (7) गुरुग्राम-दिल्ली-मेरठ, (8) कोलम-थिरुवनंथपुरम प्रदेश|

लघु औद्योगिक प्रदेश (13)

(1)अंबाला-अमृतसर (2) सहारनपुर-मुजफ़रनगर-बिजनौर (3) इंदौर-देवास-उज्जैन (4) जयपुर-अजमेर (5) कोल्हापुर-दक्षिणी कन्नड़ (6) उत्तरी मालाबार (7) मध्य मालाबार (8) अदीलाबाद-निजामाबाद (9) इलाहाबाद-वाराणसी-मिर्जापुर (10) भोजपुर-मुँगेर (11) दुर्ग-रायपुर (12) बिलासपुर-कोरबा (13) ब्रह्मपुत्र घाटी|

औद्योगिक ज़िले (15)

(1) कानपुर (2) हैदराबाद (3)आगरा (4) नागपुर (5) ग्वालियर (6) भोपाल (7) लखनऊ (8)जलपाई गुड़ी (9)कटक
(10) गोरखपुर (11) अलीगढ़ (12) कोटा (13) पूर्णिया (14) जबलपुर (15) बरेली|

चित्र 8.13 ः भारत - मुख्य औद्योगिक क्षेत्र


अभ्यास

1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए|

(i) कौन-सा औद्योगिक अवस्थापना का एक कारण नहीं है?

(क) बाज़ार (ग) जनसंख्या घनत्व

(ख) पूँजी (घ) ऊर्जा

(ii) भारत में सबसे पहले स्थापित की गई लौह-इस्पात कंपनी निम्नलिखित में से कौन-सी है?

(क) भारतीय लौह एवं इस्पात कंपनी (आई.आई.एस.सी.ओ.)

(ख) टाटा लौह एवं इस्पात कंपनी (टी.आई.एस.सी.ओ.)

(ग) विश्वेश्वरैया लौह तथा इस्पात कारखाना

(घ) मैसूर लोहा तथा इस्पात कारखाना

(iii) मुंबई में सबसे पहला सूती वस्त्र कारखाना स्थापित किया गया, क्योंकिः-

(क) मुंबई एक पत्तन है| (ग) मुंबई एक वित्तीय केंद्र था

(ख) यह कपास उत्पादक क्षेत्र के निकट स्थित है| (घ) उपर्युक्त सभी

(iv) हुगली औद्योगिक प्रदेश का केंद्र है-

(क) कोलकाता-हावड़ा (ग) कोलकाता-मेदनीपुर

(ख) कोलकाता रिशरा (घ) कोलकाता-कोन नगर

(v) निम्नलिखित में से कौन-सा चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है?

(क) महाराष्ट्र (ग) पंजाब

(ख) उत्तर प्रदेश (घ) तमिलनाडु

2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें|

(i) लोहा-इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है, एेसा क्यों?

(ii) सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टरों के नाम बताइए| वे किस प्रकार भिन्न हैं?

(iii) चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है?

(iv) पेट्रो-रासायनिक उद्योग के लिए कच्चा माल क्या है? इस उद्योग के कुछ उत्पादों के नाम बताइए|

(v) भारत में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें|

(i) ‘स्वदेशी’ आंदोलन ने सूती वस्त्र उद्योग को किस प्रकार विशेष प्रोत्साहन दिया?

(ii) आप उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से क्या समझते हैं? इन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार से सहायता की है?

 

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