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विषय सात

एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर


(लगभग चौदहवीं से सोलहवीं सदी तक)



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चित्र 7.1

विजयनगर के शहर के चारों ओर बनाई गई पत्थर की दीवार का एक भाग

विजयनगर अथवा "विजय का शहर" एक शहर और एक साम्राज्य, दोनों के लिए प्रयुक्त नाम था। इस साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी में की गई थी। अपने चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था। 1565 में इस पर आक्रमण कर इसे लूटा गया और बाद में यह उजड़ गया। हालाँकि सत्रहवीअठारहवीं शताब्दियों तक यह पूरी तरह से विनष्ट हो गया था, पर फिर भी कृष्णा-तुंगभद्रा दोआब क्षेत्र के निवासियों की स्मृतियों में यह जीवित रहा। उन्होंने इसे हम्पी नाम से याद रखा। इस नाम का आविर्भाव यहाँ की स्थानीय मातृदेवी पम्पादेवी के नाम से हुआ था। इन मौखिक परंपराओं के साथ-साथ पुरातात्विक खोजों, स्थापत्य के नमूनों, अभिलेखों तथा अन्य दस्तावेज़ों ने विजयनगर साम्राज्य को पुन खोजने में विद्वानों की सहायता की।

1. हम्पी की खोज

हम्पी के भग्नावशेष 1800 ई. में एक अभियंता तथा पुराविद कर्नल कॉलिन मैकेन्जी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे। मैकेन्जी, जो ईस्ट इण्डिया कंपनी में कार्यरत थे, ने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। उनके द्वारा हासिल शुरुआती जानकारियाँ विरुपाक्ष मंदिर तथा पम्पादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं। कालान्तर में 1856 ई. से छाया चित्रकारों ने यहाँ के भवनों के चित्र संकलित करने आरंभ किए जिससे शोधकर्ता उनका अध्ययन कर पाए। 1836 से ही अभिलेखकर्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मंदिरों से कई दर्जन अभिलेखों को इकट्ठा करना आरंभ कर दिया। इस शहर तथा साम्राज्य के इतिहास के पुनर्निर्माण के प्रयास में इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों तथा तेलुगु, कन्नड़, तमिल और संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया।

स्रोत 1 

कॉलिन मैकेन्जी

1754 ई. में जन्मे कॉलिन मैकेन्जी ने एक अभियंता, सर्वेक्षक, तथा मानचित्रकार के रूप में प्रसिद्धि हासिल की। 1815 में उन्हें भारत का पहला सर्वेयर जनरल बनाया गया और 1821 में अपनी मृत्यु तक वे इस पद पर बने रहे। भारत के अतीत को बेहतर ढंग से समझने और उपनिवेश के प्रशासन को आसान बनाने के लिए उन्होंने इतिहास से संबंधित स्थानीय परंपराओं का संकलन तथा एेतिहासिक स्थलों का सर्वेक्षण करना आरंभ किया। वे कहते है, "ब्रिटिश प्रशासन के सुप्रभाव में आने से पहले दक्षिण भारत खराब प्रबंधन की दुर्गति से लंबे समय तक जूझता रहा।" विजयनगर के अध्ययन से मैकेन्जी को यह विश्वास हो गया कि कंपनी, "स्थानीय लोगों के अलग-अलग कबीलों, जो इस समय भी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा थे, को अब भी प्रभावित करने वाले इनमें से कई संस्थाओं, कानूनों तथा रीति-रिवाज़ों के विषय में बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ" हासिल कर सकती थी।

मैकेन्जी और उनके देशज़ सूचनादाताओं को चित्रकार ने किस प्रकार चित्रित किया है? उनके तथा उनके सूचनादाताओं के विषय में दर्शकों पर किस प्रकार के विचार डालने का प्रयास किया गया है?


7.1
चित्र 7.2

मैकेन्जी और उनके सहायक

यह चित्रकार थॉमस हिकी द्वारा बनाए गए तैलचित्र का किसी अज्ञात चित्रकार द्वारा बनाया गया प्रतिरूप है। यह लगभग 1825 ई. का है और रॉयल एशियाटिक सोसायटी अॉफ़ ब्रिटेन एण्ड आयरलैण्ड के संकलन से संबद्ध है। मैकेन्जी के बायीं ओर दूरबीन थामे उनका चपरासी स्निाजी और दायीं ओर उनके ब्राह्मण सहायक है एक जैन पंडित (दायीं ओर) और उनके पीछे तेलुगु ब्राह्मण कावलेरी वेन्तक लच्छमैया।

2. राय, नायक तथा सुलतान

परंपरा और अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों–हरिहर और बुक्का–द्वारा 1336 में की गई थी। इस साम्राज्य की अस्थिर सीमाओं में अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले तथा अलग-अलग धार्मिक परंपराओं को मानने वाले लोग रहते थे।

अपनी उत्तरी सीमाओं पर विजयनगर शासकों ने अपने समकालीन राजाओं, जिनमें दक्कन के सुलतान तथा उड़ीसा के गजपति शासक शामिल थे, उर्वर नदी घाटियों तथा लाभकारी विदेशी व्यापार से उत्पन्न संपदा पर अधिकार के लिए संघर्ष किया। साथ ही इन राज्यों के बीच संपर्क से विचारों का आदान-प्रदान, विशेष रूप से स्थापत्य के क्षेत्र में, होने लगा। विजयनगर के शासकों ने अवधारणाओं और भवन निर्माण की तकनीकों को ग्रहण किया जिन्हें उन्होंने आगे और विकसित किया।

7.2

चित्र 7.3

तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर का गोपुरम्  अथवा प्रवेशद्वार

हाथी, घोड़े और लोग

गजपति का शाब्दिक अर्थ हाथियों का स्वामी होता है। पंद्रहवीं शताब्दी में उड़ीसा के एक शक्तिशाली शासक वंश का यही नाम था। विजयनगर की लोक प्रचलित परंपराओं में दक्कन के सुल्तानों को अश्वपति या घोड़ों के स्वामी तथा रायों को नरपति या लोगों के स्वामी की संज्ञा दी गई है।

इस साम्राज्य के कई भागों ने पहले शक्तिशाली राज्यों जैसे तमिलनाडु में चोलों और कर्नाटक में होयसालों के राज्य का विकास देखा था। इन क्षेत्रों के शासक वर्ग ने विशाल मंदिरों जैसे तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर तथा बेलूर के चन्नकेशव मंदिर को संरक्षण प्रदान किया था। विजयनगर के शासकों, जो अपने आप को राय कहते थे, ने इन परंपराओं को आगे बढ़ाया और जैसे कि हम देखेंगे, उन्हें नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

कर्नाटक साम्राज्यमु

जहाँ इतिहासकार विजयनगर साम्राज्य शब्द का प्रयोग करते हैं वहीं समकालीन लोगों ने उसे कर्नाटक साम्राज्यमु की संज्ञा दी।

2.1 शासक और व्यापारी

चूँकि इस काल में युद्धकला प्रभावशाली अश्वसेना पर आधारित होती थी, इसलिए प्रतिस्पर्धी राज्यों के लिए अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयात बहुत महत्त्वपूर्ण था। यह व्यापार आरंभिक चरणों में अरब व्यापरियों द्वारा नियंत्रित था। व्यापारियों के स्थानीय समूह, जिन्हें कुदिरई चेट्टी अथवा घोड़ों के व्यापारी कहा जाता था, भी इन विनिमयों में भाग लेते थे। 1498 ई. से कुछ और लोग पटल पर उभर कर आए। ये पुर्तगाली थे जो उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर आए और व्यापारिक तथा सामरिक केंद्र स्थापित करने का प्रयास करने लगे। उनकी बेहतर सामरिक तकनीक, विशेष रूप से बंदूकों के प्रयोग ने उन्हें इस काल की उलझी हुई राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरने में सहायता की।

विजयनगर भी मसालों, वस्त्रों तथा रत्नों के अपने बाज़ारों के लिए प्रसिद्ध था। एेसे शहरों के लिए व्यापार एक प्रतिष्ठा का मानक माना जाता था। यहाँ की समृद्ध जनता मँहगी विदेशी वस्तुओं की माँग करती थी विशेष रूप से रत्नों और आभूषणों की। दूसरी ओर व्यापार से प्राप्त राजस्व राज्य की समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता था।

2.2 राज्य का चरमोत्कर्ष तथा पतन

राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमांडर शामिल थे। पहले राजवंश, जो संगम वंश कहलाता था, ने 1485 तक नियंत्रण रखा। उन्हें सुलुवों ने उखाड़ फेंका, जो सैनिक कमांडर थे और वे 1503 तक सत्ता में रहे। इसके बाद तुलुवों ने उनका स्थान लिया। कृष्णदेव राय तुलुव वंश से ही संबद्ध था।

कृष्णदेव राय के शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार और दृढ़ीकरण था। इसी काल में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र (रायचूर दोआब) हासिल किया गया (1512), उड़ीसा के शासकों का दमन किया गया (1514) तथा बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया गया था (1520)। हालाँकि राज्य हमेशा सामरिक रूप से तैयार रहता था, लेकिन फिर भी यह अतुलनीय शांति और समृद्धि की स्थितियों में फला-फूला। कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण तथा कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव को ही जाता है। उसने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के समीप ही नगलपुरम् नामक उपनगर की स्थापना भी की थी। विजयनगर के संदर्भ में सबसे विस्तृत विवरण कृष्णदेव राय के या उसके तुरंत बाद के कालों से प्राप्त होते हैं।

कृष्णदेव की मृत्यु के पश्चात 1529 में राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा। उसके उत्तराधिकारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पड़ा। 1542 तक केंद्र पर नियंत्रण एक अन्य राजकीय वंश, अराविदु के हाथों में चला गया, जो सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्ता पर काबिज़ रहे। पहले की ही तरह इस काल में भी विजयनगर शासकों और साथ ही दक्कन सल्तनतों के शासकों की सामरिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते समीकरण बदलते रहे। अंतत यह स्थिति विजयनगर के विरुद्ध दक्कन सल्तनतों के बीच मैत्री-समझौते के रूप में परिणत हुई। 1565 में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी-तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया। अब साम्राज्य का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से और बाद में चन्द्रगिरी (तिरुपति के समीप) से शासन किया।

स्रोत 2

राजा और व्यापारी

विजयनगर के सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय (शासनकाल 1509-29) ने शासनकला के विषय में अमुक्तमल्यद नामक तेलुगु भाषा में एक कृति लिखी। व्यापारियों के विषय में उसने लिखा

एक राजा को अपने बन्दरगाहों को सुधारना चाहिए और वाणिज्य को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चंदन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का खुले तौर पर आयात किया जा सके... उसे प्रबंध करना चाहिए कि उन विदेशी नाविकों जिन्हें तूफानों, बीमारी या थकान के कारण उनके देश में उतरना पड़ता है, की भली-भाँति देखभाल की जा
सके... सुदूर देशों के व्यापारियों, जो हाथियों और अच्छे घोड़ों का आयात करते हैं, को रोज बैठक में बुलाकर, तोहफ़े देकर तथा उचित मुनाफे की स्वीकृति देकर अपने साथ संबद्ध करना चाहिए। एेसा करने पर ये वस्तुएँ कभी भी तुम्हारे दुश्मनों तक नहीं पहुँचेंगी।

आपके विचार में राजा व्यापार को प्रोत्साहित करने का इच्छुक क्यों था? इन विनिमयों से किन समूहों को लाभ पहुँचा होगा?

7.3

मानचित्र 1

दक्षिण भारत, लगभग चौदहवीअठारहवीं शताब्दी।

 उन आधुनिक राज्यों को चिह्रित कीजिए जो विजयनगर साम्राज्य का भाग थे।

यवन संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग यूनानियों तथा उत्तर-पश्चिम से उपमहाद्वीप में आनेवाले अन्य लोगों के लिए किया जाता था।

हालाँकि विजयनगर शहर के विध्वंस के लिए सुल्तानों की सेनाएँ उत्तरदायी थीं, फिर भी सुलतानों और रायों के संबंध धार्मिक भिन्नताएँ होने पर भी हमेशा या अपरिहार्य रूप से शत्रुतापूर्ण नहीं रहते थे। उदाहरण के लिए कृष्णदेव राय ने सल्तनतों में सत्ता के कई दावेदारों का समर्थन किया और "यवन राज्य की स्थापना करने वाला" विरुद धारण करके गौरव महसूस किया। इसी प्रकार, बीजापुर के सुल्तान ने कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात विजयनगर में उत्तराधिकार के विवाद को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप किया। वास्तव में विजयनगर शासक और सल्तनतें दोनों ही एक-दूसरे के स्थायित्व को निश्चित करने की इच्छुक थीं। यह रामराय की जोखिम भरी नीति थी, जिसके अनुसार उसने एक सुलतान को दूसरे के विरुद्ध करने की कोशिश की किंतु वे सुल्तान एक हो गए और उन्होंने उसे निर्णायक रूप से पराजित कर किया।

2.3 राय तथा नायक

साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करने वालों में सेना प्रमुख होते थे जो समान्यत किलों पर नियंत्रण रखते थे और जिनके पास सशस्त्र समर्थक होते थे। ये प्रमुख आमतौर पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमणशील रहते थे और कई बार बसने के लिए उपजाऊ भूमि की तलाश में किसान भी उनका साथ देते थे। इन प्रमुखों को नायक कहते थे और ये आमतौर पर तेलुगु या कन्नड़ भाषा बोलते थे। कई नायकों ने विजयनगर शासक की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था पर ये अक्सर विद्रोह
कर देते थे और इन्हें सैनिक कार्रवाई के माध्यम से ही वश में किया जाता था।

अमर-नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। एेसा प्रतीत होता है कि इस प्रणाली के कई तत्त्व दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से लिए गए थे।

अमर-नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय द्वारा प्रशासन के लिए राज्य-क्षेत्र दिये जाते थे। वे किसानों, शिल्पकर्मियों तथा व्यापारियों से भू राजस्व तथा अन्य कर वसूल करते थे। वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे। ये दल विजयनगर शासकों को एक प्रभावी सैनिक शक्ति प्रदान करने में सहायक होते थे जिसकी मदद से उन्होंने पूरे दक्षिणी प्रायद्वीप को अपने नियंत्रण में किया। राजस्व का कुछ भाग मन्दिरों तथा सिंचाई के साधनों के रख-रखाव के लिए खर्च किया जाता था।

अमर शब्द का आविर्भाव मान्यतानुसार संस्कृत शब्द समर से हुआ है जिसका अर्थ है लड़ाई या युद्ध। यह फ़ारसी शब्द अमीर से भी मिलता-जुलता है जिसका अर्थ है– ऊँचे पद का कुलीन व्यक्ति।

अमर-नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे और अपनी स्वामिभक्ति प्रकट करने के लिए राजकीय दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे। राजा कभी-कभी उन्हें एक से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर उन पर अपना नियंत्रण दर्शाता था पर सत्रहवीं शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए। इस कारण केंद्रीय राजकीय ढाँचे का विघटन तेजी से होने लगा।

चर्चा कीजिए...

मानचित्र 1 पर चन्द्रगिरी, मदुरई, इक्केरी, तंजावुर तथा मैसूर को चिह्रित कीजिए, ये सभी नायक शक्ति के केंद्र थे। यह भी चर्चा कीजिए कि नदियों और पहाड़ों ने किन मायनों में विजयनगर के साथ संचार को सरल अथवा बाधित किया।

3. विजयनगर: राजधानी तथा उसके परिप्रदेश

अब हम उस समय के सबसे प्रसिद्ध शहरों में से एक विजयनगर की ओर रुख़ करते हैं। अधिकांश राजधानियों की तरह ही यह भी एक विशिष्ट भौतिक रूपरेखा तथा स्थापत्य शैली से अभिलक्षित थी।

7.4

चित्र 7.4

विजयनगर का नक्शा

नक्शे पर बने तीन अंचलों को पहचानिए। मध्यभाग को ध्यान से देखिए। क्या आप नदियों से जुड़ती हुई नहरों को देख सकते हैं? आप कितनी किलेबन्द दीवारों को देख सकते हैं। क्या धार्मिक केंद्र किलेबन्द था?


शहर के विषय में खोज

विजयनगर के राजाओं तथा उनके नायकों के बड़ी संख्या में अभिलेख मिले हैं जिनमें मन्दिरों को दिए जानेवाले दानों का उल्लेख तथा महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण है। कई यात्रियों ने शहर की यात्रा की और इसके बारे में लिखा। इनमें सबसे उल्लेखनीय वृत्तांत निकोलो दे कॉन्ती नामक इतालवी व्यापारी, अब्दुर रज़्ज़ाक नामक फ़ारस के राजा का दूत, अफ़ानासी निकितिन नामक रूस का एक व्यापारी, जिन सभी ने पंद्रहवीं शताब्दी में शहर की यात्रा की थी, और दुआर्ते बरबोसा, डोमिंगो पेस तथा पुर्तगाल का फर्नावो नूनिज़, जो सभी सोलहवीं शताब्दी में आए थे, के हैं।

क्या आप आज किसी शहर में ये अभिलक्षण देख सकते हैं? आपके विचार में पेस ने उद्यानों तथा जल-स्रोतों को विशेष-उल्लेख के लिए क्यों चुना?


स्रोत 3

विशाल, फैला हुआ शहर

यह डोमिंगो पेस द्वारा लिखे गए विजयनगर शहर के वर्णन से लिया गया एक उद्धरण है:

इस शहर का परिमाप मैं यहाँ नहीं लिख रहा हूँ क्योंकि यह एक स्थान से पूरी तरह नहीं देखा जा सकता, पर मैं एक पहाड़ पर चढ़ा जहाँ से मैं इसका एक बड़ा भाग देख पाया। मैं इसे पूरी तरह से नहीं देख पाया क्योंकि यह कई पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित है। वहाँ से मैंने जो देखा वह मुझे रोम जितना विशाल प्रतीत हुआ, और देखने में अत्यंत सुन्दर; इसमें पेड़ों के कई उपवन हैं, आवासों के बगीचों में, तथा पानी की कई नालियाँ जो इसमें आती हैं, तथा कई स्थानों पर झीलें हैं; तथा राजा के महल के समीप ही खजूर के पेड़ों का बगीचा तथा अन्य फल प्रदान करने वाले वृक्ष थे। 

3.1 जल-संपदा

विजयनगर की भौगोलिक स्थिति के विषय में सबसे चौंकाने वाला तथ्य तुंगभद्रा नदी द्वारा यहाँ निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड है। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भूदृश्य रमणीय ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है जो शहर के चारों ओर करधनी का निर्माण करती सी प्रतीत होती हैं। इन पहाड़ियों से कई जल-धाराएँ आकर नदी से मिलती हैं।

लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज़ बनाए गए थे। चूँकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक था इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के व्यापक प्रबंध करना आवश्यक था। एेसे सबसे महत्त्वपूर्ण हौजों में एक का निर्माण पंद्रहवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ जिसे आज कमलपुरम् जलाशय कहा जाता है। इस हौज़ के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से "राजकीय केंद्र" तक भी ले जाया गया था।

सबसे महत्त्वपूर्ण जल संबंधी संरचनाओं में से एक, हिरिया नहर को आज भी भग्नावशेषों के बीच देखा जा सकता है। इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इसे "धार्मिक केंद्र" से "शहरी केंद्र" को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था। संभवत इसका निर्माण संगम वंश के राजाओं द्वारा करवाया गया था।

स्रोत 4

हौज़ों/जलाशयों का निर्माण किस प्रकार होता था?

कृष्णदेव राय द्वारा बनवाए गए जलाशय के विषय में पेस लिखता है:

राजा ने एक जलाशय बनवाया... दो पहाड़ियों के मुख-विबर पर जिससे दोनों में से किसी पहाड़ी से आने वाला सारा जल वहाँ इकट्ठा हो, इसके अलावा जल 9 मील (लगभग 15 किमी) से भी अधिक की दूरी से पाइपों से आता है जो बाहरी शृंखला के निचले हिस्से के साथ-साथ बनाए गए थे। यह जल एक झील से लाया जाता है जो छलकाव से खुद एक छोटी नदी में मिलती है। जलाशय में तीन विशाल स्तंभ बने हैं जिन पर खूबसूरती से चित्र उकेरे गए हैं; ये ऊपरी भाग में कुछ पाइपों से जुड़े हुए हैं जिनसे ये अपने बगीचों तथा धान के खेतों की सिंचाई के पानी लाते हैं। इस जलाशय को बनाने के लिए इस राजा ने एक पूरी पहाड़ी को तुड़वा दिया... जलाशय में मैंने इतने लोगों को कार्य करते देखा कि वहाँ पन्द्रह से बीस हज़ार आदमी थे, चीटियों की तरह...


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चित्र 7.5

राजकीय केंद्र की ओर जाती एक कृत्रिम जल प्रणाली


3.2 क़िलेबंदियाँ तथा सड़कें

इससे पहले कि हम शहर के विभिन्न भागों का गहन परीक्षण करें, हम उन विशाल क़िलेबंदी की दीवारों पर नज़र डालते हैं जिनसे उन्हें घेरा गया था। पंद्रहवीं शताब्दी में फ़ारस के शासक द्वारा कालीकट (कोज़ीकोेड) भेजा गया दूत अब्दुर रज़्ज़ाक क़िलेबंदी से बहुत प्रभावित हुआ और उसने दुर्गों की सात पंक्तियों का उल्लेख किया। इनसे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आसपास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा गया था। सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी। यह विशाल राजगिरी संरचना थोड़ी सी शुण्डाकार थी। गारे या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु का निर्माण में कही भी प्रयोग नहीं किया गया था। पत्थर के टुकड़े फानाकार थे, जिसके कारण वे अपने स्थान पर टिके रहते थे। दीवारों के अंदर का भाग मिट्टी और मलवे के मिश्रण से बना हुआ था वर्गाकार तथा आयताकार बुर्ज़ बाहर की ओर निकले हुए थे।

इस क़िलेबंदी की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे खेतों को भी घेरा गया था। अब्दुर रज़्ज़ाक लिखता है कि, "पहली, दूसरी और तीसरी दीवारों के बीच जुते हुए खेत, बग़ीचे तथा आवास हैं"। और पेस कहता है "इस पहली परिधि से शहर में प्रवेश करने तक की दूरी बहुत है, जिसमें खेत हैं जहाँ वे धान उगाते हैं और कई उद्यान हैं और बहुत जल जो दो झीलों से लाया जाता है।" इन कथनों की आज के पुरातत्त्वविदों द्वारा पुष्टि की गई है, जिन्होंने धार्मिक केंद्र तथा नगरीय केंद्र के बीच एक कृषि क्षेत्र के साक्ष्य खोज निकाले हैं। यह क्षेत्र एक व्यापक नहर प्रणाली के माध्यम से सींचा जाता था, जिसमें तुंगभद्रा से जल लाया जाता था। 

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चित्र 7.6
क़िलेबंद दीवार में बना एक प्रवेशद्वार

7.5
चित्र 7.7
एक गोपुरम्

इन दो प्रवेश-द्वारों के बीच समानताओं तथा विभिन्नताओं का वर्णन कीजिए। आपके विचार में विजयनगर के शासकों ने इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के तत्त्वों को क्यों अपनाया?

आपके विचार में कृषि-क्षेत्रों को क़िलेबंद भूभाग में क्यों समाहित किया जाता था? अक्सर मध्यकालीन घेराबंदियों का मुख्य उद्देश्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर समर्पण के लिए बाध्य करना होता था। ये घेराबंदियाँ कई महीनों और यहाँ तक कि वर्षों तक चल सकती थीं। आम तौर पर शासक एेसी परिस्थितियों से निपटने के लिए क़िलेबंद क्षेत्रों के भीतर ही विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाते थे। विजयनगर के शासकों ने पूरे कृषि भूभाग को बचाने के लिए एक अधिक मँहगी तथा व्यापक नीति को अपनाया।

दूसरी क़िलेबंदी नगरीय केंद्र के आंतरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी, और तीसरी से शासकीय केेंद्र को घेरा गया था जिसमें महत्त्वपूर्ण इमारतों के प्रत्येक समूह को अपनी ऊँची दीवारों से घेरा गया था।

दुर्ग में प्रवेश के लिए अच्छी तरह सुरक्षित प्रवेशद्वार थे जो शहर को मुख्य सड़कों से जोड़ते थे। प्रवेशद्वार विशिष्ट स्थापत्य के नमूने थे जो अकसर उन संरचनाओं को परिभाषित करते थे जिनमें प्रवेश को वे नियंत्रित करते थे। क़िलेबंद बस्ती में जाने के लिए बने प्रवेशद्वार पर बनी मेहराब और साथ ही द्वार के ऊपर बनी गुंबद (चित्र 7.6) तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य के चारित्रिक तत्त्व माने जाते हैं। कला-इतिहासकार इस शैली को इंडो-इस्लामिक (हिंद-इस्लामी) कहते हैं क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परंपराओं के साथ संपर्क से हुआ

पुरातत्वविदों ने शहर के अंदर की तथा वहाँ से बाहर जाने वाली सड़कों का अध्ययन किया है। इनकी पहचान प्रवेशद्वारों से होकर जाने वाले रास्तों के अनुरेखण तथा फर्श वाली सड़कों की खोजों से की गई है। सड़कें सामान्यत पहाड़ी भूभाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं सबसे महत्त्वपूर्ण सड़कों में से कई मंदिर के प्रवेशद्वारों से आगे बढ़ी हुई थीं और इनके दोनों ओर बाज़ार थे

3.3 शहरी केंद्र

शहरी केंद्र की ओर जाने वाली सड़कों पर चलें तो सामान्य लोगों के आवासों के अपेक्षाकृत कम पुरातात्विक साक्ष्य हैं। पुरातत्वविदों ने कुछ स्थानों, जिनमें शहरी केेंद्र का उत्तर-पूर्वी कोना भी शामिल है, में परिष्कृत चीनी मिट्टी पायी है और उनका यह सुझाव है कि हो सकता है इन स्थानों में अमीर व्यापारी रहते हों यह मुस्लिम रिहायशी मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मक़बरों तथा मस्ज़िदों के विशिष्ट कार्य हैं, फिर भी उनका स्थापत्य हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों के स्थापत्य से मिलता जुलता है।

सामान्य लोगों के आवासों, जो अब अस्तित्व में नहीं हैं, का सोलहवीं शताब्दी का पुर्तगाली यात्री बरबोसा कुछ इस प्रकार वर्णन करता है "लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृढ़ हैं, और व्यवसाय के आधार पर कई खुले स्थानों वाली लंबी गलियों में व्यवस्थित हैं।"

क्षेत्र-सर्वेक्षण इंगित करते हैं कि इस पूरे क्षेत्र में बहुत से पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे जो विविध प्रकार के संप्रदायों, जो संभवत विभिन्न समुदायों द्वारा संरक्षित थे, के प्रचलन की ओर संकेत करते हैं। सर्वेक्षणों से यह भी इंगित होता है कि कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय और साथ ही मन्दिरों के जलाशय संभवत सामान्य नगर निवासियों के लिए पानी के स्रोत का कार्य करते थे।

7.6

चित्र 7.10

विजयनगर में एक मस्जिद

 क्या इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के चारित्रिक तत्व विद्यमान हैं?

4. राजकीय केंद्र

राजकीय केंद्र बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित था। हालाँकि इसे राजकीय केंद्र की संज्ञा दी गई है, पर इसमें 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे। स्पष्टत मन्दिरों और संप्रदायों को प्रश्रय देना शासकों के लिए महत्त्वपूर्ण था जो इन देव-स्थलों में प्रतिष्ठित देवी-देवताओं से संबंध के माध्यम से अपनी सत्ता को स्थापित करने तथा वैधता प्रदान करने का प्रयास कर रहे थे।

लगभग तीस संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से संबद्ध नहीं होती। इन संरचनाओं तथा मंदिरों के बीच एक अंतर यह था कि मंदिर पूरी तरह से राजगिरी से निर्मित थे जबकि धर्मेतर भवनों की अधिरचना विकारी वस्तुओं से बनाई गई थी।

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चित्र 7.8

उत्खनित पटरी का एक भाग

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चित्र 7.9

चीनी मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े 

आपके विचार में ये टुकड़े मूलत किस प्रकार के बर्तनों का हिस्सा थे?

चर्चा कीजिए...

विजयनगर की रूपरेखा की तुलना अपने नगर या गाँव की रूपरेखा से कीजिए।

4.1 महानवमी डिब्बा

इस क्षेत्र की कुछ अधिक विशिष्ट संरचनाओं का नामकरण भवनों के आकार और साथ ही उनके कार्यों के आधार पर किया गया है। "राजा का भवन" नामक संरचना अंतक्षेत्र में सबसे विशाल है परंतु इसके राजकीय आवास होने का कोई निश्चित साक्ष्य नहीं मिला है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें सामान्यत "सभा मंडप" तथा "महानवमी डिब्बा" कहा जाता है। पूरा क्षेत्र ऊँची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है। सभा मंडप एक ऊँचा मंच है जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तंभों के लिए छेद बने हुए हैं। इसमें दूसरी मंज़िल, जो इन स्तंभों पर टिकी थी, तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी। स्तंभों के एक दूसरे से बहुत पास-पास होने से बहुत कम खुला स्थान बचता होगा और इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि यह मंडप किस प्रयोजन के लिए बनाया गया था।

विजय का एक भवन?

सभा मंडप तथा महानवमी डिब्बा जिसे
पेस, संयुक्त रूप से "विजय का भवन" की संज्ञा देता है, के विषय में वह लिखता है:

इन संरचनाओं में एक के ऊपर एक, दो मंच हैं, सुंदरता से चित्रित... ऊपरी मंच पर... इस विजय के भवन में राजा ने कपड़े से बना एक कमरा बनवाया है... जहाँ मूर्ति का एक पूजा स्थल है... और एक अन्य में बीच में एक चबूतरा रखा हुआ है, जिस पर राज्य का सिंहासन खड़ा हुआ है, (मुकुट तथा राजकीय पायल)...


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चित्र 7.11

महानवमी डिब्बा

शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित "महानवमी डिब्बा" एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊँचाई तक जाता है। एेसे साक्ष्य मिले हैं जिनसे पता चलता है कि इस पर एक लकड़ी की संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से पटा पड़ा है (चित्र 7.12)।

7.7

चित्र 7.12

महानवमी डिब्बा पर उत्कीर्णित चित्र

इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान, संभवत सितंबर तथा अक्टूबर के शरद मासों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिंदू त्यौहार, जिसे दशहरा (उत्तर भारत), दुर्गा पूजा (बंगाल में) तथा नवरात्री या महानवमी (प्रायद्वीपीय भारत में) नामों से जाना जाता है, के महानवमी (शाब्दिक अर्थ, महान नवाँ दिवस) के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे। इस अवसर पर विजयनगर शासक अपने रुतबे, ताक़त तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।

इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठानों में मूर्ति की पूजा, राज्य के अश्व की पूजा, तथा भैंसों और अन्य जानवरों की बलि सम्मिलित थी। नृत्य, कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा साज़ लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा और साथ ही प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे। इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे। त्यौहार के अंतिम दिन राजा अपनी तथा अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोह में निरीक्षण करता था। इस अवसर पर नायक, राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेंट तथा साथ ही नियत कर भी लाते थे।

क्या आप इन चित्रों के विषयों को पहचान सकते हैं?

क्या "महानवमी डिब्बा" जो आज अस्तित्व में है, वह इस विस्तृत अनुष्ठान का केंद्र था? विद्वानों का मानना है कि संरचना के चारों ओर का स्थान सशस्त्र आदमियों, औरतों तथा बड़ी संख्या में जानवरों की शोभायात्रा के लिए पर्याप्त नहीं था। राजकीय केंद्र में स्थित कई और संरचनाओं की तरह यह भी एक पहेली बना हुआ है।


7.8

चित्र 7.13

कमल महल का एक खड़ा रेखाचित्र

खड़ा रेखाचित्र किसी वस्तु अथवा संरचना का ऊर्ध्व अवलोकन होता है। यह हमें उन अभिलक्षणों के विषय में जानकारी देता है जो एक छाया-चित्र में नहीं देखे जा सकते। मेहराबों को ध्यान से देखिए। ये संभवत इण्डो-इस्लामी तकनीकों से प्रभावित थीं।

चित्र 7.13 तथा 7.15 की तुलना कीजिए तथा उन अभिलक्षणों की सूची बनाइये जो दोनों में हैं, और साथ ही उनकी भी जो इनमें से केवल एक में ही देखे जा सकते हैं। चित्र 7.14 में बनी मेहराब की तुलना चित्र 7.6 में बनी मेहराब से कीजिए। कमल महल में नौ मीनारें थी बीच में एक ऊँची, तथा आठ उसकी भुजाओं के साथ-साथ। छाया-चित्र तथा खड़े रेखाचित्र में आप कितनी-कितनी मीनारें देख पाते हैं। यदि आप कमल महल का फिर से नामकरण करते तो इसे क्या कहते?


7.9

चित्र 7.14

कमल महल की एक मेहराब का सूक्ष्म चित्रण

4.2 राजकीय केंद्र में स्थित अन्य भवन

राजकीय केंद्र के सबसे सुंदर भवनों में एक लोटस (कमल) महल है, जिसका यह नामकरण उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज़ यात्रियों ने किया था। हालाँकि यह नाम निश्चित रूप से रोमांचक है, लेकिन इतिहासकार इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था। एक सुझाव, जो मैकेन्ज़ी द्वारा बनाए गए मानचित्र से मिलता है, यह है कि यह परिषदीय सदन था जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था।

7.11

चित्र 7.15

कमल महल की एक तसवीर

हालाँकि अधिकांश मन्दिर धार्मिक केंद्र में स्थित थे, लेकिन राजकीय केंद्र में भी कई थे। इनमें से, एक अत्यंत दर्शनीय को हज़ार राम मन्दिर कहा जाता है। संभवत इसका प्रयोग केवल राजा और उनके परिवार द्वारा ही किया जाता था। बीच के देवस्थल की मूर्तियाँ अब नहीं हैं; लेकिन दीवारों पर बनाए गए पटल मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इनमें मन्दिर की आंतरिक दीवारों पर उत्कीर्णित रामायण से लिए गए कुछ दृश्यांश सम्मिलित हैं।

शहर पर आक्रमण के पश्चात विजयनगर की कई संरचनाएँ विनष्ट हो गई थीं, पर नायकों ने महलनुमा संरचनाओं के निर्माण की परंपरा को जारी रखा। इनमें से कई भवन आज भी अस्तित्व में हैं।

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चित्र 7.16(क) "हाथियों के अस्तबल" का खड़ा रेखाचित्र
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चित्र 17.16(ख) "हाथियों के अस्तबल" का नक्शा। नक्शा एक संरचना का समस्तरी अवलोकन देता है।

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चित्र 7.17 कमल महल के समीप स्थित "हाथियों का अस्तबल"

चित्र 7.16(क) तथा 7.16(ख) की तुलना चित्र 7.17 से कीजिए। प्रत्येक में दिखाई देने वाले अभिलक्षणों की सूची बनाइए। क्या आपको लगता है कि ये वास्तव में हाथियों के अस्तबल थे?

7.12

चित्र 7.18

हज़ार राम मन्दिर की दीवारों पर मूर्तिकला



7.13

चित्र 7.19

मदुरई के सभा मण्डप का आंतरिक भाग मेहराबों को ध्यान से देखिए।

क्या आप नृत्य के दृश्यांशों को पहचान सकते हैं। आपके विचार में हाथियों और घोड़ों को पटलों पर क्यों चित्रित किया गया था?

चर्चा कीजिए...

नायको ने विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परंपराओं को जारी क्यों रखा?

5. धार्मिक केंद्र

5.1 राजधानी का चयन

अब हम तुंगभद्रा नदी के तट से लगे शहर के चट्टानी उत्तरी भाग की ओर ध्यान केन्द्रित करते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में उल्लिखित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं। अन्य मान्यताओं के अनुसार स्थानीय मातृदेवी पम्पादेवी ने इन पहाड़ियों में विरुपाक्ष, जो राज्य के संरक्षक देवता तथा शिव का एक रूप माने जाते हैं, से विवाह के लिए तप किया था। आज तक यह विवाह विरुपाक्ष मन्दिर में हर वर्ष धूम-धाम से आयोजित किया जाता है। इन पहाड़ियों में विजयनगर साम्राज्य के पूर्वकालिक जैन मन्दिर भी मिले हैं। दूसरे शब्दों में, यह क्षेत्र कई-धार्मिक मान्यताओं से संबद्ध था।

इस क्षेत्र में मन्दिर निर्माण का एक लंबा इतिहास रहा है जो पल्लव, चालुक्य, होयसाल तथा चोल वशों तक जाता है। आमतौर पर शासक अपने आप को ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे–अकसर देवता को व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप से राजा से जोड़ा जाता था। मन्दिर शिक्षा के केंद्रों के रूप में भी कार्य करते थे। शासक और अन्य लोग मन्दिर के रख-रखाव के लिए भूमि या अन्य संपदा दान में देते थे। अतएव, मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए। शासकों के दृष्टिकोण से मन्दिरों का निर्माण, मरम्मत तथा रखरखाव, अपनी सत्ता, संपत्ति तथा निष्ठा के लिए समर्थन तथा मान्यता के महत्त्वपूर्ण माध्यम थे।

यह संभव है कि विजयनगर के स्थान का चयन वहाँ विरुपाक्ष तथा पम्पादेवी के मन्दिरों के अस्तित्व से प्रेरित था। यहाँ तक कि विजयनगर के शासक भगवान विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा करते थे। सभी राजकीय आदेशों पर सामान्यतया कन्नड़ लिपि में "श्री विरुपाक्ष" शब्द अंकित होता था। शासक देवताओं से अपने गहन संबंधों के संकेतक के रूप में विरुद "हिन्दू सूरतराणा" का प्रयोग भी करते थे। यह अरबी भाषा के शब्द सुल्तान जिसका अर्थ है राजा, का संस्कृत अनुवाद था और शाब्दिक रूप में इसका अर्थ था हिंदू सुलतान।

विजयनगर के शासकों ने पूर्वकालिक परंपराओं को अपनाया, उनमें नवीनता लाई और उन्हें आगे विकसित किया। अब राजकीय प्रतिकृति मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रदर्शित की जाने लगीं और राजा की मन्दिरों की यात्राओं को महत्त्वपूर्ण राजकीय अवसर माना जाने लगा जिन पर साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नायक भी उसके साथ जाते थे।

7.14

चित्र 7.20

आकाश से लिया गया विरुपाक्ष मन्दिर का दृश्य

5.2 गोपुरम् और मण्डप

मन्दिर स्थापत्य के संदर्भ में इस समय तक कई नए तत्व प्रकाश में आते हैं। इनमें विशाल स्तर पर बनाई गई संरचनाएँ जो राजकीय सत्ता की द्योतक थीं, शामिल हैं। इनका सबसे अच्छा उदाहरण राय गोपुरम् (चित्र 7.7) अथवा राजकीय प्रवेशद्वार थे जो अकसर केंद्रीय देवालयों की मीनारों को बौना प्रतीत कराते थे और जो लंबी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। ये संभवत शासकों की ताकत की याद भी दिलाते थे, जो इतनी ऊँची मीनारों के निर्माण के लिए आवश्यक साधन, तकनीक तथा कौशल जुटाने में सक्षम थे। अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लंबे स्तंभों वाले गलियारे, जो अकसर मंदिर परिसर में स्थित देवस्थलों के चारों ओर बने थे, सम्मिलित हैं। अब हम दो मन्दिरों को और सूक्ष्मता से देखते हैं–विरुपाक्ष मन्दिर तथा विट्ठल मन्दिर।

विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। हालाँकि अभिलेखों से पता चलता है कि सबसे प्राचीन मन्दिर नवीदसवीं शताब्दियों का था, विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद इसे कहीं अधिक बड़ा किया गया था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे सूक्ष्मता से उत्कीर्णित स्तंभों से सजाया गया था। पूर्वी गोपुरम् के निर्माण का श्रेय भी उसे ही दिया जाता है। इन परिवर्धनों का अर्थ था कि केंद्रीय देवालय पूरे परिसर के एक छोटे भाग तक सीमित रह गया था।

7.15
चित्र 7.21

विरुपाक्ष मन्दिर का नक्शा

अधिकांश वर्गाकार संरचनाएँ देवस्थल हैं। दो प्रमुख प्रवेश द्वारों को काले रंग से भरा गया है। प्रत्येक छोटा बिंदु एक स्तंभ को दर्शाता है। वर्गाकार या आयताकार ढाँचे में व्यवस्थित स्तंभों की पंक्तियाँ प्रमुख सभागारों, मण्डपों तथा बरामदों को विभाजित करती प्रतीत होती हैं।

नक्शे में दिए गए स्केल का प्रयोग कर मुख्य गोपुरम् से केंद्रीय देवालय की दूरी नापिए। जलाशय से देवालय तक जाने के लिए सबसे आसान मार्ग कौन सा रहा होगा?

7.16

चित्र 7.22

दैवीय विवाहों के आयोजन में प्रयुक्त होने वाला एक कल्याण मंडप

मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ एेसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं। अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनंद मनाने और कुछ अन्य का प्रयोग देवी-देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था। इन अवसरों पर विशिष्ट मूर्तियों का प्रयोग होता था जो छोटे केंद्रीय देवालयों में स्थापित मूर्तियों से भिन्न होती थीं।

दूसरा देवस्थल, विट्ठल मन्दिर, भी रोचक है। यहाँ के प्रमुख देवता विट्ठल थे जो सामान्यत महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं। इस देवता की पूजा को कर्नाटक में आरंभ करना उन माध्यमों का द्योतक है जिनसे एक साम्राज्यिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के शासकों ने अलग-अलग परंपराओं को आत्मसात किया। अन्य मन्दिरों की तरह ही इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है (चित्र 7.24)।

7.17

चित्र 7.23

मूर्तियों वाले स्तम्भ का एक रेखाचित्र 

स्तंभ पर आप जो देख रहे हैं उसका वर्णन कीजिए।


मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम् से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तंभ वाले मण्डप थे जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

जिस प्रकार नायकों ने क़िलेबन्दी की परंपराओं को जारी रखा तथा और अधिक व्यापक बनाया, ठीक वैसा ही उन्होंने मन्दिर निर्माण की परंपराओं के संदर्भ में भी किया। यहाँ तक कि कुछ सबसे दर्शनीय गोपुरमों का निर्माण भी स्थानीय नायकों द्वारा किया गया था।

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चित्र 7.24

विट्ठल मन्दिर का रथ

क्या आपको लगता है कि वास्तव में इस प्रकार के रथ बनाए जाते होंगे?

7.18

चित्र 7.25

जिंजी का झूलता मण्डप


7.19

चित्र 7.26

मदुरई के नायकों द्वारा बनवाया गया एक गोपुरम्

चर्चा कीजिए...

आनुष्ठानिक स्थापत्य की पूर्ववर्ती परंपराओं को विजयनगर के शासकों ने कैसे और क्यों अपनाया तथा रूपान्तरित किया?

 6. महलों, मन्दिरों तथा बाज़ारों का अंकन

हमने विजयनगर के विषय में जानकारी के भण्डार का विश्लेषण किया है - फोटोग्राफ, नक्शे, संरचनाओं के खड़े रेखाचित्र तथा मूर्तियाँ। यह सब कैसे खोजा गया? मैकेन्ज़ी द्वारा किए गए आरंभिक सर्वेक्षणों के बाद यात्रा वृत्तांतों और अभिलेखों से मिली जानकारी को एक साथ जोड़ा गया। बीसवीं शताब्दी में इस स्थान का संरक्षण भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण तथा कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग द्वारा किया गया। 1976 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली। तदोपरांत 1980 के दशक के आरंभ में विविध प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से, व्यापक तथा गहन सर्वेक्षणों के माध्यम से, विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना का शुभारंभ किया गया। लगभग बीस वर्षों के काल में पूरे विश्व के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकट्ठा और संरक्षित करने का कार्य किया।

इस विशद प्रक्रिया के सिर्फ़ एक हिस्से को बारीकी से देखते हैं। यह है मानचित्र निर्माण। इसका पहला चरण यह था कि संपूर्ण क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बाँटा गया और प्रत्येक वर्ग को वर्णमाला के एक अक्षर से इंगित किया गया। फिर इन छोटे वर्गों को पुन और भी छोटे वर्गों के समूहों में बाँटा गया। लेकिन इतना काफ़ी नहीं था आगे फिर छोटे वर्गों को और छोटी इकाइयों में बाँटा गया।

जैसा कि आप देख सकते हैं, ये गहन सर्वेक्षण बहुत परिश्रम से किए गए थे, और इनसे हज़ारों संरचनाओं के अंशों–छोटे देवस्थलों और आवासों से लेकर विशाल मन्दिरों तक–को पुन उजागर किया गया। उनका प्रलेखन भी किया गया। इस सबके कारण सड़कों, रास्तों और बाज़ारों आदि के अवशेषों को पुन प्राप्त किया जा सका है। इन सभी की स्थिति की पहचान स्तंभ आधारों तथा मंचों के माध्यम से की गई है–एक समय जो बाज़ार, जीवंत थे, उनका बस अब यही कुछ बचा है।

 7.20 

चित्र 7.27

विजयनगर स्थल का विस्तृत मानचित्र

(ऊपर दाएँ)

अंग्रेजी वर्णमाला का कौन सा अक्षर प्रयोग नहीं किया गया था? मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए किसी एक छोटे वर्ग की लंबाई नापिए।

7.21

चित्र 7.28

चित्र 7.27 का वर्ग N (दाएँ)

इस मानचित्र में कौन सा पैमाना प्रयोग किया गया है?

7.22
चित्र 7.29
चित्र 7.28 का वर्ग NM

किसी एक मन्दिर को पहचानिए। दीवारों, एक केंद्रीय देवालय, तथा मन्दिर तक जाने वाले रास्तों के अवशेषों को खोजिए। मानचित्र पर उन वर्गों को नाम दीजिए जिनमें मन्दिर का नक्शा स्थित है।

7.23
चित्र 7.30
चित्र 7.29 के मन्दिर का नक्शा

गोपुरम्, सभागारों, स्तंभावलियों तथा केंद्रीय देवालय को पहचानिए। बाहरी प्रवेशद्वार से केंद्रीय देवालय तक पहुँचने के लिए आप किन भागों से होकर गुज़रेंगे।

जॉन एम. फ्रिट्ज़, जॉर्ज मिशेल तथा एम. एस. नागराज राव जिन्होंने इस स्थान पर वर्षों तक कार्य किया, ने जो लिखा वह याद रखना महत्त्वपूर्ण है "विजयनगर के स्मारकों के अपने अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं–स्तंभ, टेक (ब्रेकेट), धरन, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अंदरूनी भाग तथा मीनारों–की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है जो प्लास्टर से सजाए और संभवत चटकीले रंगों से चित्रित थे।"

हालाँकि लकड़ी की संरचनाएँ अब नहीं हैं और केवल पत्थर की संरचनाएँ अस्तित्व में हैं, यात्रियों द्वारा पीछे छोड़े गए विवरण उस समय के स्पंदन से पूर्ण जीवन के कुछ आयामों को पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं।

बाज़ार

पेस बाज़ार का एक सजीव विवरण देता है:

आगे जाने पर एक चौड़ी और सुंदर गली पाते हैं... इस गली में कई व्यापारी रहते हैं और वहाँ आप सभी प्रकार के माणिक्य, और हीरे, और पन्ने, और मोती, और छोटे मोती, और वस्त्र, और पृथ्वी पर होने वाली हर वस्तु जिसे आप खरीदना चाहेंगे, पाएँगे। फिर हर शाम को आप एक मेला देख सकते हैं जहाँ से कई सामान्य घोड़े तथा टट्टू और कई तुरंज और नींबू और संतरे और अंगूर और उद्यान में उगने वाली हर प्रकार की वस्तुएँ और लकड़ी मिलती है इस गली में आप हर वस्तु पा सकते हैं।

और सामान्य रूप से वह शहर का वर्णन "विश्व के सबसे अच्छे संभरण वाले शहर" के रूप में करता है जहाँ बाज़ार "चावल, गेहूँ, अनाज, भारतीय मकई और कुछ मात्रा में जौ तथा सेम, मूँग, दालें, काला चना जैसे खाद्य पदार्थों से भरे रहते थे" जो सभी सस्ते दामों पर तथा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहते थे। फर्नाओ नूनिज़ के अनुसार विजयनगर के बाज़ार "प्रचुर मात्रा में फलों, अंगूरों और संतरों, नींबू, अनार, कटहल तथा आम से भरे रहते थे और सभी बहुत सस्ते।" बाज़ारों में मांस भी बड़ी मात्रा में बिकता था। नूनिज़ उल्लेख करता है कि "भेड़-बकरी का मांस, सूअर, मृगमांस, तीतर-मांस, खरगोश, कबूतर, बटेर और सभी प्रकार के पक्षी, चिड़ियाँ, चूहे तथा बिल्लियाँ और छिपकलियाँ" बिसनग (विजयनगर) के बाज़ारों में बिकती थीं।

 

7. उत्तरों की खोज में प्रश्न

सुरक्षित भवन हमें उन तरीकों के विषय में बताते हैं जिनसे स्थानों को व्यवस्थित किया गया और उन्हें प्रयोग में लाया गया। वह हमें यह भी बताते हैं कि किन वस्तुओं और तकनीकों से उनका निर्माण किया गया और कैसे किया गया। उदाहरण के लिए, किसी शहर की क़िलेबंदी के अध्ययन से हम उसकी प्रतिरक्षण आवश्यकताओं और सामरिक तैयारी को समझ सकते हैं। यदि हम उनकी अन्य स्थानों के भवनों से तुलना करें तो भवन हमें विचारों के फैलाव और सांस्कृतिक प्रभावों के बारे में भी बताते हैं। वे उन विचारों को ज़ाहिर करते हैं जो निर्माणकर्ता या प्रश्रयदाता व्यक्त करना चाहते थे। वे अकसर एेसे चिह्नों से परिपूर्ण रहते हैं जो उनके सांस्कृतिक संदर्भ का परिणाम होते हैं। इन्हें हम समझ सकते हैं जब हम अन्य स्रोतों, जैसे साहित्य, अभिलेखों तथा लोकप्रचलित परंपराओं से मिली जानकारी को संयोजित करें।

स्थापत्य तत्वों के परीक्षण हमें यह नहीं बताते कि सामान्य पुरुष, महिलाएँ तथा बच्चे जो शहर और उसके आसपास के क्षेत्र में रहने वाली जनसंख्या का एक बड़ा भाग थे, इन प्रभावशाली भवनों के विषय में क्या सेाचते थे। क्या उनकी शाही केंद्र अथवा धार्मिक केंद्र के किसी भी भाग में पहुँच हो सकती थी? क्या वे मूर्ति के सामने से तेज़ी से निकल जाते अथवा देखने के लिए रुकते, सोचते और उसके जटिल प्रतीक चित्रण को समझने का प्रयास करते? और वे लोग जिन्होंने इन विशाल निर्माण परियोजनाओं पर कार्य किया था, इन उद्यमों के विषय में क्या सोचते थे जिसके लिए उन्होंने अपना श्रम दान दिया था?

हालाँकि, क्या निर्माण करना है, स्थान, कौन-सा माल प्रयोग करना है और किस शैली का अनुसरण करना है, ये सभी निर्णय शासक लेते थे, पर इतने विशाल उद्यमों के लिए आवश्यक विशिष्ट ज्ञान किसके पास था? भवनों के नक्शे कौन बनाता था? राजगीर, पत्थर काटने वाले, मूर्तिकार जो वास्तविक निर्माण कार्य करते थे, कहाँ से आते थे? क्या उन्हें युद्ध के दौरान पड़ोसी क्षेत्रों से बंदी बनाया जाता था? उन्हें किस प्रकार के वेतन मिलते थे? निर्माण गतिविधियों का अधीक्षण कौन करता था? निर्माण के लिए कच्चा माल कैसे और कहाँ से लाया जाता था? ये कुछ एेसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर हम भवनों या उनके अवशेषों को देखने मात्र से नहीं दे सकते। संभवत अन्य स्रोतों के प्रयोग से जारी शोध कुछ और संकेत दे सकें।


कृष्णदेव राय

परिदृश्य की कुछ समस्याओं को पुन याद करने के लिए तमिलनाडु में चिदम्बरम के मन्दिर के गोपुरम् में रखी कृष्णदेव राय की इस सुंदर प्रतिमा को देखिए।

स्वाभाविक है कि शासक इसी रूप में अपने आप को प्रस्तुत करना चाहता था।

और पेस राजा का वर्णन कुछ इस प्रकार करता है:

मझला कद, गोरा रंग और अच्छी काठी, कुछ मोटा, राजा के चेहरे पर चेचक के दाग़ हैं।


 7.24

चित्र 7.31

7.25

चित्र 7.32
रानी का स्नानघर नामक संरचना का एक भाग


काल-रेखा 1

महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्ततन

लगभग 1200-1300 ईसवी दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206)

लगभग 1300-1400 ईसवी विजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336?);
बहमनी राज्य की स्थापना
(1347);
जौनपुर, कश्मीर और मदुरई में सल्तनतें

लगभग 1400-1500 ईसवी उड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना (1435);
गुजरात और मालवा की सल्तनतों की स्थापना;
अहमदाबाद, बीजापुर तथा बेरार सल्तनतों का उदय
(1490)

लगभग 1500-1600 ईसवी पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर विजय (1510);
बहमनी राज्य का विनाश; गोलकुंडा की सल्तनत का उदय
(1518);
बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की स्थापना
(1526)

नोट: प्रश्नचिह्न अनिश्चित तिथि की ओर संकेत करता है।

काल-रेखा 2

विजयनगर की खोज व संरक्षण की मुख्य घटनाएँ

1800 कॉलिन मैकेन्जी द्वारा विजयनगर की यात्रा

1856 अलेक्जैंडर ग्रनिलो ने हम्पी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र लिए

1876 पुरास्थल की मंदिर की दीवारों के अभिलेखों का जे.एफ. फ्लीट द्वारा
प्रलेखन आरंभ

1902 जॉन मार्शल के अधीन संरक्षण कार्य आरंभ

1986 हम्पी को यूनेस्को द्वारा विश्व पुरातत्व स्थल घोषित किया जाना

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में) 

1.  पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भवनावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके         अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं?

2. विजयनगर की जल-आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?

3. शहर के क़िलेबंद क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फ़ायदे और नुकसान थे?

4. आपके विचार में महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?

5. चित्र 7.33 विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य स्तंभ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प-विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।

7.26

चित्र 7.33

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखि (लगभग 250-300 शब्दों में)

6. "शाही केंद्र" शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं।

7. कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?

8. स्थापत्य की कौन-कौन-सी परंपराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परंपराओं में किस प्रकार बदलाव किए?

9. अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?

मानचित्र कार्य 

10. विश्व के सीमारेखा मानचित्र पर इटली, पुर्तगाल, ईरान तथा रूस को सन्निकटता से अंकित कीजिए। उन मार्गों को पहचानिए जिनका 

परियोजना कार्य (कोई एक)

11. भारतीय उपमहाद्वीप के किसी एक एेसे प्रमुख शहर के विषय में और जानकारी हासिल कीजिए जो लगभग चौदहवीसत्रहवीं शताब्दियों में फला-फूला। शहर के स्थापत्य का वर्णन कीजिए। क्या कोई एेसे लक्षण हैं जो इनके राजनीतिक केंद्र होने की ओर संकेत करें? क्या एेसे भवन हैं जो आनुष्ठानिक रूप से महत्त्वपूर्ण हों? कौन- से एेसे लक्षण हैं जो शहरी भाग को आस-पास के क्षेत्रों से विभाजित करते हैं?

12. अपने आस-पास के किसी धार्मिक भवन को देखिए। रेखाचित्र के माध्यम से छत, स्तंभों, मेहराबों, यदि हों तो, गलियारों, रास्तों, सभागारों, प्रवेशद्वारों, जलआपूर्ति आदि का वर्णन कीजिए। इन सभी की तुलना विरुपाक्ष मन्दिर के अभिलक्षणों से कीजिए। वर्णन कीजिए कि भवन का हर भाग किस प्रयोग में लाया जाता था। इसके इतिहास के विषय में पता कीजिए।

प्रयोग पृ. 176 पर उल्लिखित यात्रियों ने विजयनगर पहुँचने के लिए किया था।

यदि आप और जानकारी चाहते हैं तो इन्हें पढ़िए:

  • बसुंधरा फिलियोजट, 2006 (पुनर्मुद्रण) विजयनगरनेशनल बुक ट्रस्ट, न्यू दिल्ली
  • जॉर्ज मिशैल, 1995 अॉर्किटैक्चर एंड आर्ट अॉफ सदर्न इंडिया कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस कैम्ब्रिज
  • के.ए. नीलकंठ शास्त्री, 1955 ए हिस्ट्री अॉफ साउथ इंडिया अॉक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस न्यू दिल्ली
  • बर्टन स्टीन, 1989 विजयनगर (द न्यू कैम्ब्रिज हिस्ट्री अॉफ इंडिया, वॉल्यूम 1, पार्ट 2) फाउंडेशन बुक्स, न्यू दिल्ली


अधिक जानकारी के लिए आप निम्नलिखित वेबसाइट देख सकते हैं

http://www.museum.upenn. edu/new/kresearch/

Exp_Rese_Disc/Asia/vrp/HT ML/Vijay_Hist.shtml