किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावन थी?

लेखक के पिता ने बचपन में ही उन्हें पुस्तकों को पढ़ने की लत लगा दी थी। ऐसा उन्होंने लेखक को ‘बालसखा और ‘चमचम’ जैसी पुस्तक गिफ्ट स्वरूप देकर किया था। लेखक को धीरे-धीरे अच्छी-अच्छी पुस्तकों को पढ़ने की आदत लग गयी। पिताजी द्वारा उन्हें बचपन में किताबें रखने के लिए दिया गया अलमारी का छोटा खाना अब किताबों से भरा एक पूरा कमरा बन गया था। अस्पताल से लौटने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई के शौक को जारी रखने हेतु ‘किताबों वाले कमरे’ का चयन किया था। इस अवस्था में उनके पास करने के लिए कोई कार्य नहीं था और इसीलिये उनके पास काफी खाली समय बच रहा था और इसी खाली समय का सदुपयोग करने हेतु उन्होंने ‘किताबों वाले कमरे’ का चयन किया था।


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