कल्पना की बात
कवि अपनी कल्पना से शब्दों के हेर-फेर द्वारा कुछ चीज़ो के बारे में ऐसी बातें कह देता है, जिसे पढ़कर बहुत अच्छा लगता है। तुम भी अपनी कल्पना से किसी चीज के बारे में जैसी भी बात बताना चाहो, बता सकते हो। हाँ, ध्यान रहे कि उन बातों से किसी को कोई नुकसान न हो। शब्दों के फेर-बदल में तुम पूरी तरह से स्वतंत्र हो।
मेरे जीवन के सबसे यादगार पलों में वो दिन भी शामिल हैं जब मैं पहली बार अपने गांव गया था। हमारा पूरा परिवार शहर में ही रहता है। शहर की भागती-दौड़ती जिंदगी से समय निकालकर पहली बार जब मैं अपने परिवार के साथ गांव गया तो वहां का सुन्दर नजारा मैं आज तक नहीं भूल पाया। चारों ओर हरे-भरे खेत। खेतों से महकती मि्टटी की खुशबू और देसी खान-पान। पेड़ों की शाखाओं पर लटकते फल और रंगबिरंगे फूल। बागों में उड़ती तितलियां और कच्ची सड़कों पर बैलगाड़ी का सफर। लोगों की जबान पर शब्दों की मिठास और व्यवहार में ढेर सारा सम्मान आज भी मुझे गांव की तरफ रुख करने को मजबूर कर देता है। गांव के वो यादगार पल मैं शायद ही कभी भूल सकूं।