विजय बाबू एक ग्राहक थे और मुरलीवाला एक विक्रेता। दोनों अपने-अपने पक्ष के समर्थन में क्या तर्क पेश करते हैं?

विजय बाबू- मुरली कितने में देते हो। जवा मिला कि है तो तीन पैसे की लेकिन आपको 2 पैसे की दे दूंगा। तब वो सोचता हैं कि सबको इसी भाव में देता है लेकिन मुझपर एहसान जता रहा है। वो कहते हैं- तुम लोगों को झूठ बोलने की आदत होती है। देते होगे सभी को दो-दो पैसे में, पर एहसान का बोझा मेरे ऊपर लाद रहे हो।

मुरलीवाला- आपको क्या पता बाबूजी इनकी असली लागत क्या है? यह तो ग्राहकों का दस्तूर होता है कि दुकानदार चाहे हानि उठाकर चीज क्यों न बेचे, पर ग्राहक यही समझते हैं कि दुकानदार मुझे लूट रहा है। आप कहीं से दो पैसे में ये मुरलियाँ नहीं पा सकते। मैंने तो पूरी एक हजार बनवाई थीं, तब मुझे इस भाव पड़ी है।


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