स्पर्श भाग 2

Book: स्पर्श भाग 2

Chapter: 9. Ravindra Nath Thakur - Aatmrin

Subject: Hindi - Class 10th

Q. No. 1 of Exercise

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निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए-

नत शिर होकर सुख के दिन में


तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

यहां ईश्वर से कवि सुख के दिनों में पहले अपने अहंकार के नाश करने की प्रार्थना करता है। ऐसा हो जाने पर ही कवि प्रभु का स्मरण हो पाने की संभावना देखता है। हम सभी इस बारे मे जानते हैं कि सुख के दिनों में हमारे मन में अहंकार नामक हमारा शत्रु घर कर लेता है। अहंकार वश सुख के दिनों में हम ईश्वर तक को भुला बैठते हैं। हम समझने लगते हैं कि हमें जो सुख मिला है वह हमारी बदौलत ही हमें मिला है। हम इस सुख को स्थायी मानने लगते हैं और ऐसा समझने लगते हैं कि हमारे इस दौलत को हमसे कोई अलग नहीं कर सकता। ईश्वर से कवि जीवन में यह स्थिति नहीं आने देने की कामना करते हैं। एक बार अहंकार के नाश होने पर कोई भी व्यक्ति अपने सुख के लिए उत्तरदायी ईश्वर का बारंबार स्मरण करता है। कवि द्वारा यही भाव कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में व्यक्त किया गया है।


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