निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।

अपने निजी जीवन में शैलेंद्र एक सरल इंसान थे जिनके अंदर असीम गहराई थी। वे एक सच्चे, आदर्शवादी, संवेदनशील और भावुक कवि थे। उन्होंने अपने जीवन में केवल एक ही फिल्म का निर्माण किया, जिसका नाम ‘तीसरी कसम’ था। देखा जाए तो ‘तीसरी कसम’ एक साधारण से देहात की पृष्ठभूमि एवं आमज की फिल्म लगती है। तीसरी कसम’ एक संवेदनात्मक, आदर्शवादी और भावनापूर्ण फिल्म थी। शांत नदी का प्रभाव और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और यही विशेषता उनकी फिल्म में भी दिखाई देती है। ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन जो केवल दिल की जुवान समझता है, दिमाग की नहीं साथ ही वह अत्यंत सरल हृदयी और शरीफ नवयुवक है। उसके लिए मोहब्बत के सिवाय किसी चीज़ का कोई अर्थ नहीं। हीरामन को धन की चकाचौंध से दूर रहनेवाले एक देहाती के रूप में इस फिल्म में प्रस्तुत किया गया है| कुछ हद तक इसी प्रकार का व्यक्तित्व शैलेंद्र का था जिसमें वे स्वयं भी यश और धनलिप्सा से कोसों दूर थे इसलिए वे अपने जीवन को सहज रूप से जीते थे। इसके साथ-साथ फिल्म ‘तीसरी कसम’ में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसमें वे दुख से घबराकर उससे दूर नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म में झलकती है। लेकिन जिस प्रकार से इस फिल्म में लोक जीवन का चित्रण हुआ है वह इस फिल्म की गहराई को दर्शाता है।


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