निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत है? स्पष्ट कीजिए।
अक्सर फिल्मकार व्यावसायिक सफलता के चक्कर में फिल्म की आत्मा के साथ खिलवाड़ करते हैं। ज्यादातर फिल्मों में ग्रामीण पृष्ठभूमि का मतलब होता है भड़काऊ पोशाक और संगीत। लेखक द्वारा कहे गए इस कथन से हम पूर्णतः सहमत हैं कि 'तीसरी कसम’ फिल्म को कवि हृदय ही बना सकता है। एक सच्चे कवि का हृदय अत्यंत शांत, भावुक एवं संवेदनशील होता है। संवेदना की गहराइयों से पूर्ण भावुकता को स्वयं में समेटे तीसरी कसम कवि हृदय द्वारा निर्मित फिल्म थी। जिसे केवल आत्मसंतुष्टि की अभिलाषा से निर्मित किया गया था तथा उन्हें न तो धन का लोभ था और न ही दर्शकों की भीड़ की चाह थी। ‘तीसरी कसम’ फिल्म में कवि-हृदय के कारण ही नायक और नायिका के मनोभावों को प्रस्तुत किया जा सकता था। शैलेंद्र उन कोमल अनुभूतियों को बारीकी से समझते थे और उन्हें प्रस्तुत करने में सर्मथ थे। फिल्म को देखकर ऐसा लगता है जैसे कलाकारों ने पूरी ईमानदारी व मनोयोग से परदे पर उतारा है जो इस साहित्य की मार्मिक कृति है। ‘तीसरी कसम’ फिल्म में शैलेंद्र ने व्यवसायिक खतरों को उठाया है। उसमें गहरी कलात्मकता तथा कलापूर्णता को पिरो दिया। उसमें उन्होंने करूणा और संघर्षशीलता को दर्शाया हैं। उन्होंने अपने पात्रों से आँखों की भाषा में अभिव्यक्ति कराई। इस फिल्म में कोमल भावनाओं की प्रधानता होने के कारण ही लेखक ने कहा है कि इसे कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता है।