पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पेशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
इस बारे में लेखक के विचार बदलने का कारण मैं प्रेमचंद के कर्मनिष्ठ स्वभाव को मानता हूँ। वास्तव में लेखक प्रेमचंद के लेखन के प्रति उनके समर्पण भाव को भांप गये हैं। वो समझ गये हैं कि इस आदमी ने अपने संपूर्ण जीवन को साहित्य सेवा में लगा दिया है और उसे अच्छे कपडे पहनने का कोई शौक नहीं है या फिर उसके पास अच्छे कपडे पहनकर फोटो खिंचवाने का समय नहीं है। वह इन दिखावे की चीजों को साहित्य सेवा के अपने लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में बाधा समझता है। वह साहित्य साधना में सदा प्रयत्नशील रहकर अपने पहनावे के प्रति थोड़ा लापरवाह हो गया है। वह साहित्य साधना में इतना रम गया है कि उसे किसी अन्य चीज की परवाह नहीं है और अपने पहनावे की उसे तो परवाह बिल्कुल नहीं है। मुंशी प्रेमचंद के बारे में इन सब बातों को सोचकर लेखक उनके पास अलग-अलग पोशाक मौजूद होने के बारे में अपने विचार को बदल देता है।