Vasant Bhag 3 Chapter-12






12

सुदामा चरित


सीस पगा न झँगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।

धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा।।

द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसाें बसुधा अभिरामा।

पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।।



एेसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।

हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए।।

देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।।


कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देत।

चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु।।


आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।

स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सों, "चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।।

पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।

पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे।।"


वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।

वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात।।

घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।

कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज-समाज।

हौं आवत नाहीं हुतौ, वाही पठयो ठेलि।।

अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि।।


वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।

कैधों पर्यो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो।।

भौन बिलोकिबे को मन लोचत, सोचत ही सब गाँव मझायो।

पूँछत पाँडे फिरे सब सों, पर झोपरी को कहुँ खोज न पायो।


कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।

कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत।।

भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत।।

कै जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप तें दाख न भावत।।


-नरोत्तमदास

प्रश्न-अभ्यास


कविता से

1. सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों
में लिखिए।

2. "पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।" पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

3. "चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।"

(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?

(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।

(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?

4. द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।

5. अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

6. निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।

कविता से आगे

1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।

2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, एेसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए।

अनुमान और कल्पना

1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?

2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।

विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।

इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।

भाषा की बात

 "पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोए"

ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।

कुछ करने को

1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए।

2. कविता के उचित सस्वर वाचन का अभ्यास कीजिए।

3. ‘मित्रता’ संबंधी दोहों का संकलन कीजिए।

शब्दार्थ

पगा – पगड़ी

झँगा – ढीला कुरता

आहि – है

लटी – लटकना

दुपटी – अंगोछा, गमछा

उपानह – जूता

द्विज – ब्राह्मण

चकिसाें – चकित, विस्मित

वसुधा – पृथ्वी

बिवाइन – पाँव की एड़ी का

फटना

अभिरामा – सुंदर

जोए – ढूँढ़ना

परात – थाली की तरह का पीतल आदि धातु से बना एक बड़ा और गहरा बरतन

पाछिली – पिछला

पुलकनि – खुशी, उमंग

पठवनि – भेजना, विदाई

बिलोकिबे – देखना

मझायो – बीच में

सुहावत – सुंदर/भला लगना

पनही – जूता

महावत – हाथीवान

जुरत – जुटना, प्राप्त होना