Our Past -3

गद्य खंड

‘‘जिस पुस्तक से यह उद्देश्य सिद्ध नहीं होता, जिससे मनुष्य का अज्ञान, कुसंस्कार और अविवेक दूर नहीं होता, जिससे मनुष्य शोषण और अत्याचार के विरुद्ध सिर उठाकर खड़ा नहीं हो जाता, जिससे वह छीना-झपटी, स्वार्थपरता और हिंसा के दलदल से उबर नहीं पाता, वह पुस्तक किसी काम की नहीं है।’’

- हजारी प्रसाद द्विवेदी

गद्य का पठन-पाठन

‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति।’ गद्य को कवि की कसौटी कहा गया है क्योंकि अच्छा गद्य लेखक अपने अनुभवों और विचारों की अभिव्यक्ति सरल और सरस भाषा में इस प्रकार करता है कि वह प्रभावपूर्ण हो उठती है। वह अपने विचारों को एक व्यवस्थित क्रम में तथा तर्कपूर्ण ढंग से रखता है। अपनी भाषा को अधिक संप्रेषणीय बनाने के लिए वह कभी मुहावरों का प्रयोग करता है तो कभी लोकोक्तियों का। प्रसंग की आवश्यकता के अनुसार कभी सपाट और सरल भाषा का प्रयोग करता है तो कभी व्यंग्यपूर्ण लाक्षणिक भाषा का। यहाँ गद्य पाठों का संकलन इस दृष्टि से किया गया है कि विद्यार्थी को विविध भाषा-प्रयोगों और व्यवहारों से परिचित कराया जा सके, जिससे भाषा प्रभावपूर्ण और संप्रेषणीय बनती है।

पाठ्यपुस्तक में यथासंभव विविध विधाएँ संकलित करने का प्रयास किया गया है। इन पाठों के द्वारा वैचारिक, वैज्ञानिक तथा ललित निबंधों के अतिरिक्त साहसिक यात्रा-विवरण, संस्मरण, जीवनी, व्यंग्य, कहानी आदि का सामान्य परिचय विद्यार्थी को मिल सकेगा।

पठन

शब्दों का शुद्ध उच्चारण और वाक्यों को उचित आरोह-अवरोह, तान-अनुतान तथा बलाघात के साथ पढ़ना मुखर पठन में अपेक्षित होता है। प्रत्येक पाठ में कुछ-न-कुछ शब्द समूह, पदबंध एवं वाक्य एेसे होते हैं जिनका अभ्यास करने में कठिनाई हो सकती है। एेसे शब्दों को रेखांकित कर लेना चाहिए और पठन से पहले उनका उच्चारण-अभ्यास अवश्य करवाना चाहिए। एक ही अंश को कमज़ोर और दक्ष छात्र से पढ़वाने पर अन्य छात्र उसका आलोचनात्मक श्रवण कर सकेंगे। यद्यपि मुखर पठन की द्रुत या धीमी गति की कोई सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती, किंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वह सामान्यतः वार्तालाप की गति से धीमी होती है।

मौन पठन आज के युग की शैक्षणिक आवश्यकता है। अतः शिक्षक को मौन पठन विशेष सजगता से कराना चाहिए। मौन पठन कराने से पहले कठिन शब्दों के अर्थ समझा देने चाहिए। पठन के लिए उचित समय देकर अर्थग्रहण का परीक्षण अवश्य किया जाना चाहिए।

विचार-बोध

गद्य में भावों की अपेक्षा विचारों की प्रधानता होती है जिन्हें लेखक सुसंबद्ध अनुच्छेदों द्वारा अभिव्यक्त करता है। पाठ में अनुच्छेदों का महत्त्व होता है अतः उन्हें उसी क्रम में पढ़ाया जाना चाहिए। पाठ पढ़ने के बाद उसके प्रभाव की पकड़ का परीक्षण किया जाना चाहिए। विचार-बोध के प्रश्न समग्र पाठ को समझने में सहायक सिद्ध होतेे हैं। पूर्ण प्रभाव के लिए पाठ में आए उन छोटे-छोटे विचारों के परस्पर संबंधों पर भी विचार करना चाहिए जो समग्र प्रभाव बनाने में सहायक होते हैं।

भाषा-प्रयोग

पाठ में आए हुए विविध भाषा-प्रयोग विद्यार्थियों के भाषा-सीखने एवं उनकी संप्रेषण-क्षमता के विकास में सहायक हो सकते हैं। पठन-पाठन के समय उन पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए। प्रश्न-अभ्यासों में दिए गए भाषा-प्रयोग तो बानगी मात्र हैं। हाँ, उन्हें आधार के रूप में अवश्य स्वीकार किया जा सकता है। ध्यान दिया जाना चाहिए कि कहावतों और मुहावरों के प्रयोग से भाषा अधिक सहज, व्यंजक, प्रभावपूर्ण और संप्रेषणीय बनती है। वाक्य के स्वाभाविक क्रम को कभी-कभी बदल देने से अभिव्यक्ति अधिक सशक्त बन जाती है। अलंकारों का प्रयोग केवल कविता में ही नहीं, गद्य में भी किया जाता है, जैसे–‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ की निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए–

"तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकित कर चुके, तुमने एक अंतरंग निजी संबंध मुझसे स्थापित कर लिया, तुमने मेरी आर्थिक सीमाओं की बैंजनी चट्टान देख ली; तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके। अब तुम लौट जाओ, अतिथि!"

निश्चय ही इन प्रयोगों से अभिव्यक्ति का सौंदर्य बढ़ गया है। एेसे प्रयोगों पर न केवल ध्यान दिया जाना चाहिए बल्कि उनके अधिकाधिक प्रयोग करने को भी प्रोत्साहित करना चाहिए।

मौखिक अभिव्यक्ति

व्यावहारिक जीवन में भाषा का सर्वाधिक प्रयोग मौखिक रूप में ही होता है। इन पाठों के पठन-पाठन के समय मौखिक अभिव्यक्ति के अधिकाधिक अवसरों और साधनों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। पाठ में आई हुई वाक्य संरचनाओं के आधार पर समान वाक्य बोलने का अभ्यास कराया जा सकता है। पाठों में एेसे विषय मिल सकते हैं जिनके आधार पर भाषण-प्रतियोगिता, वाद-विवाद, आशु-रचना आदि का आयोजन किया जा सकता है। एेसे आयोजन कक्षा में और कक्षा से बाहर भी किए जा सकते हैं।

योग्यता-विस्तार

किसी भी पाठ्यपुस्तक में पाठों की संख्या तो सीमित ही होती है, किंतु उनको आधार बनाकर अनेकानेक कुशलताओं का विकास कराया जा सकता है। ‘योग्यता-विस्तार’ शीर्षक में एेसी कुछ कुशलताओं और योग्यताओं के संकेत दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त एेसे भी प्रयत्न किए जा सकते हैं, जिनसे विद्यार्थियों की सृजनात्मक शक्ति का विकास हो, उनके ज्ञान में वृद्धि हो और उनके चिंतन को दिशा मिल सके। विविध विधाओं के पठन-पाठन का ढंग एक-सा नहीं होता। प्रत्येक विधा की अपनी शैलीगत विशेषताएँ होती हैं, उन्हें ध्यान में रखना चाहिए।

कुल मिलाकर इन पाठों के पठन-पाठन में एेसे सभी संभव प्रयत्न किए जाने चाहिए, जिनसे विद्यार्थियों की लिखित एवं मौखिक अभिव्यक्ति का अधिकाधिक विकास हो और हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति उनकी रुचि जाग्रत हो।


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यशपाल

(1903 - 1976)

यशपाल का जन्म फिरोज़पुर छावनी में सन् 1903 में हुआ। इन्होंने आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में और उच्च शिक्षा लाहौर में पाई। यशपाल विद्यार्थी काल से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गए थे। अमर शहीद भगतसिंह आदि के साथ मिलकर इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।

यशपाल की प्रमुख कृतियाँ हैं: देशद्रोही, पार्टी कामरेड, दादा कामरेड, झूठा सच तथा मेरी, तेरी, उसकी बात (सभी उपन्यास), ज्ञानदान, तर्क का तूफ़ान, पिंजड़े की उड़ान, फूलो का कुर्ता, उत्तराधिकारी (सभी कहानी संग्रह) और सिंहावलोकन (आत्मकथा)।

‘मेरी, तेरी, उसकी बात’ पर यशपाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। यशपाल की कहानियों में कथा रस सर्वत्र मिलता है। वर्ग-संघर्ष, मनोविश्लेषण और पैना व्यंग्य इनकी कहानियों की विशेषताएँ हैं।

यशपाल यह मानते रहे कि समाज को उन्नत बनाने का एक ही रास्ता है– सामाजिक समानता के साथ-साथ आर्थिक समानता। यशपाल ने अपनी रचनाओं में हिंदी के अलावा उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी बेहिचक प्रयोग किया है।

प्रस्तुत कहानी देश में फैले अंधविश्वासों और ऊँच-नीच के भेद-भाव को बेनकाब करते हुए यह बताती है कि दुःख की अनुभूति सभी को समान रूप से होती है। कहानी धनी लोगों की अमानवीयता और गरीबों की मजबूरी को भी पूरी गहराई से उजागर करती है। यह सही है कि दुःख सभी को तोड़ता है, दुःख में मातम मनाना हर कोई चाहता है, दुःख के क्षण से सामना होने पर सब अवश हो जाते हैं, पर इस देश में एेसे भी अभागे लोग हैं जिन्हें न तो दुःख मनाने का अधिकार है, न अवकाश!

दुःख का अधिकार


मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी एेसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम ज़रा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास परिस्थितियाें में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

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बाज़ार में, फुटपाथ पर कुछ खरबूज़े डलिया में और कुछ ज़मीन पर बिक्री के लिए रखे जान पड़ते थे। खरबूज़ों के समीप एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी रो रही थी। खरबूज़े बिक्री के लिए थे, परंतु उन्हें खरीदने के लिए कोई कैसे आगे बढ़ता? खरबूज़ों को बेचनेवाली तो कपड़े से मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी।

पड़ोस की दुकानों के तख्तों पर बैठे या बाज़ार में खड़े लोग घृणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे। उस स्त्री का रोना देखकर मन में एक व्यथा-सी उठी, पर उसके रोने का कारण जानने का उपाय क्या था? फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में मेरी पोशाक ही व्यवधान बन खड़ी हो गई।

एक आदमी ने घृणा से एक तरफ़ थूकते हुए कहा, "क्या ज़माना है! जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।"

दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे, "अरे जैसी नीयत होती है अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।"

सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने दियासलाई की तीली से कान खुजाते हुए कहा, "अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।"

परचून की दुकान पर बैठे लाला जी ने कहा, "अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो खयाल करना चाहिए! जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाज़ार में आकर खरबूज़े बेचने बैठ गई है। हज़ार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूज़े खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है!"

पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता लगा–उसका तेईस बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलिया बाज़ार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती।

लड़का परसों सुबह मुँह-अँधेरे बेलों में से पके खरबूज़े चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया।

लड़के की बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे ‘भगवाना’ से लिपट-लिपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला। सर्प के विष से उसका सब बदन काला पड़ गया था।

ज़िंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।

भगवाना परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करने में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूज़े दे दिए लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी-चवन्नी भी कौन उधार देता।

बुढ़िया रोते-रोते और आँखें पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे हुए खरबूज़े डलिया में समेटकर बाज़ार की ओर चली–और चारा भी क्या था?

बुढ़िया खरबूज़े बेचने का साहस करके आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फफक-फफककर रो रही थी।

कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाज़ार में सौदा बेचने चली है, हाय रे पत्थर-दिल!

उस पुत्र-वियोगिनी के दुःख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ़ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।

जब मन को सूझ का रास्ता नहीं मिलता तो बेचैनी से कदम तेज़ हो जाते हैं। उसी हालत में नाक ऊपर उठाए, राह चलतों से ठोकरें खाता मैं चला जा रहा था। सोच रहा था–

शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और... दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।

प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए–

1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?

2. खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूज़े क्यों नहीं खरीद रहा था?

3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?

4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?

5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए–

1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?

2. पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?

3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?

4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?

5. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने क्यों चल पड़ी?

6. बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए–

1. बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों  में लिखिए।

2. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?

3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?

4. लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाज़ा कैसे लगाया?

5. इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए–

1. जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।

3. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और... दुःखी होने का भी एक 

अधिकार होता है।

भाषा-अध्ययन

1. निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो–

(क) कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।

(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।

(ग) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।

(घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।

(ङ) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिलाएँ, में, मैं।


ध्यान दो कि ङ्, ञ्, ण्, न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं– इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे– अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, ल, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे– संशय, संरचना में ‘न्’, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ्’ ।

( ं ) यह चिह्न है अनुस्वार का और ( ँ ) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिक का स्वर के साथ।

2. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए–

ईमान ....................

बदन ....................

अंदाज़ा ....................

बेचैनी ....................

गम ....................

दर्ज़ा ....................

ज़मीन ....................

ज़माना ....................

बरकत ....................

3. निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए-

उदाहरण: बेटा-बेटी

4. पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए–

बंद दरवाज़े खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।

5. निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए–

(क) छन्नी-ककना अढ़ाई-मास पास-पड़ोस

दुअन्नी-चवन्नी मुँह-अँधेरे झाड़ना-फूँकना

(ख) फफक-फफककर बिलख-बिलखकर

तड़प-तड़पकर लिपट-लिपटकर

6. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़ि़ए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए:

(क)   1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।

2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।

3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।

(ख) 1. अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।

2. भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।

योग्यता-विस्तार

1. ‘व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा 

कीजिए।

2. यदि आपने भगवाना की माँ जैसी किसी दुखिया को देखा है तो उसकी कहानी लिखिए।

3. पता कीजिए कि कौन-से साँप विषैले होते हैं? उनके चित्र एकत्र कीजिए और भित्ति पत्रिका में लगाइए।

शब्दार्थ और टिप्पणियाँ

पोशाक वस्त्र, पहनावा

अनुभूति एहसास

अड़चन विघ्न, रुकावट, बाधा

अधेड़ आधी उम्र का, ढलती उम्र का

व्यथा पीड़ा, दुःख

व्यवधान रुकावट, बाधा

बेहया बेशर्म, निर्लज्ज

नीयत - इरादा, आशय

बरकत वृद्धि, लाभ, सौभाग्य

खसम पति

लुगाई पत्नी

परचून की दुकान आटा, चावल, दाल आदि की दुकान

सूतक परिवार में किसी बच्चे के जन्म होने या किसी के मरने पर  कुछ निश्चित समय तक परिवार के लोगाें को न छूना, छूत

कछियारी खेतों में तरकारियाँ बोना

निर्वाह गुज़ारा

मेड़ खेत के चारों ओर मिट्टी डालकर बनाया हुआ घेरा, दो खेतों के बीच की सीमा

तरावट गीलापन, नमी, शीतलता, ठंडक

ओझा झाड़-फूँक करने वाला

छन्नी-ककना मामूली गहना, जेवर

सहूलियत सुविधा

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